Changes

Jump to navigation Jump to search
no edit summary
Line 1: Line 1:  
__NOINDEX__{{One source}}
 
__NOINDEX__{{One source}}
 
=== प्रश्न १. आज के बच्चोंं पर पीअर प्रेशर बहुत रहता है । इस प्रेशर को दूर करने के लिये क्या करें ? ===
 
=== प्रश्न १. आज के बच्चोंं पर पीअर प्रेशर बहुत रहता है । इस प्रेशर को दूर करने के लिये क्या करें ? ===
'''उत्तर''' समान आयु के साथ पढ़ने वाले बच्चोंं को पीअर्स अर्थात्‌ समवयस्क बच्चे कहते हैं । बच्चे जब साथ खेलते हैं, साथ साथ विद्यालय आते जाते हैं, साथ साथ पढ़ ते हैं तब एक दूसरे की वस्तुरयें देखते हैं । तब उनके मन में सहज आकर्षण निर्माण होता है । जिसके प्रति आकर्षण निर्माण होता है वह वस्तु कोई अधिक सुन्दर या मूल्यवान होती है ऐसा नहीं है परन्तु क्षणिक आकर्षण होना मन का स्वभाव होता है । आकर्षण हुआ कि वह चाहिये ऐसा लगना भी मन का स्वभाव है । इस स्थिति में जिस वस्तु की इच्छा हुई वह सब प्राप्त होना सदा सम्भव नहीं होता । वह इष्ट भी नहीं होता । वह आवश्यक भी नहीं होता । उस समय स्थिति को स्वाभाविक समझना उचित है । उचित समय पर बालक को समझाना उचित है । उचित समय पर बालक को समझाना चाहिये कि मन में आती है वह हर वस्तु प्राप्त करना सदा ठीक नहीं होता । बच्चा मन की चंचलता के कारण जो माँगता है वह देना उचित नहीं होता । हम दे नहीं सकते ऐसा अपराध बोध भी उचित नहीं । उसे परावृत करना ही उचित है और और बिना दुःखी हुए, बिना झुंझलाये यह करना चाहिये । दूसरों के पास है वह हर वस्तु न तो लेने लायक होती है न लेना उचित है यह बात ठीक से मन में बिठाई जानी चाहिये । यदि ऐसा नहीं किया तो यह बात आगे जाकर भी परेशान करती है । तरुण विद्यार्थी भी मित्र इन्जिनीयरींग में प्रवेश लेते हैं इसलिये इन्जिनीयरिंग पढना चाहते हैं । आगे चलकर लोग कहते हैं इसलिये अपना भी वैसा ही मत बना लेते हैं । वस्तुसे पढाई तक और पढाई से अभिप्रायों तक पिअर प्रेशर ही चलता है, स्वतन्त्र बुद्धि का विकास ही नहीं होता । इसलिये समय रहते अपने बच्चोंं को उचित पद्धति से समझाना अच्छा है ।
+
'''उत्तर''' समान आयु के साथ पढ़ने वाले बच्चोंं को पीअर्स अर्थात्‌ समवयस्क बच्चे कहते हैं । बच्चे जब साथ खेलते हैं, साथ साथ विद्यालय आते जाते हैं, साथ साथ पढ़ ते हैं तब एक दूसरे की वस्तुरयें देखते हैं । तब उनके मन में सहज आकर्षण निर्माण होता है । जिसके प्रति आकर्षण निर्माण होता है वह वस्तु कोई अधिक सुन्दर या मूल्यवान होती है ऐसा नहीं है परन्तु क्षणिक आकर्षण होना मन का स्वभाव होता है । आकर्षण हुआ कि वह चाहिये ऐसा लगना भी मन का स्वभाव है । इस स्थिति में जिस वस्तु की इच्छा हुई वह सब प्राप्त होना सदा सम्भव नहीं होता । वह इष्ट भी नहीं होता । वह आवश्यक भी नहीं होता । उस समय स्थिति को स्वाभाविक समझना उचित है । उचित समय पर बालक को समझाना उचित है । उचित समय पर बालक को समझाना चाहिये कि मन में आती है वह हर वस्तु प्राप्त करना सदा ठीक नहीं होता । बच्चा मन की चंचलता के कारण जो माँगता है वह देना उचित नहीं होता । हम दे नहीं सकते ऐसा अपराध बोध भी उचित नहीं । उसे परावृत करना ही उचित है और और बिना दुःखी हुए, बिना झुंझलाये यह करना चाहिये । दूसरों के पास है वह हर वस्तु न तो लेने लायक होती है न लेना उचित है यह बात ठीक से मन में बिठाई जानी चाहिये । यदि ऐसा नहीं किया तो यह बात आगे जाकर भी परेशान करती है । तरुण विद्यार्थी भी मित्र इन्जिनीयरींग में प्रवेश लेते हैं इसलिये इन्जिनीयरिंग पढना चाहते हैं । आगे चलकर लोग कहते हैं इसलिये अपना भी वैसा ही मत बना लेते हैं । वस्तुसे पढाई तक और पढाई से अभिप्रायों तक पिअर प्रेशर ही चलता है, स्वतन्त्र बुद्धि का विकास ही नहीं होता । इसलिये समय रहते अपने बच्चोंं को उचित पद्धति से समझाना अच्छा है ।<ref>धार्मिक शिक्षा : धार्मिक शिक्षा के व्यावहारिक आयाम (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला ३), पर्व ५, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>
    
=== प्रश्न २. बच्चे अनेक अनावश्यक वस्तुओं के लिये जिद करते हैं । क्या करें ? जिद पूरी करें या न करें ? ===
 
=== प्रश्न २. बच्चे अनेक अनावश्यक वस्तुओं के लिये जिद करते हैं । क्या करें ? जिद पूरी करें या न करें ? ===
Line 17: Line 17:     
=== प्रश्न ३. महाविद्यालय में कुछ भी पढाते नहीं । हम क्या करें ? (एक विद्यार्थी का प्रश्न) ===
 
=== प्रश्न ३. महाविद्यालय में कुछ भी पढाते नहीं । हम क्या करें ? (एक विद्यार्थी का प्रश्न) ===
१. सारे विद्यार्थी मिलकर अध्यापकों को पढ़ाने का आग्रह करें कि वे पढाये । विद्यार्थी ऐसा कहें यह तो एक सुखद आश्चर्य होगा क्योंकि विद्यार्थी पढ़ते नहीं ऐसा सबका मानना होता है ।
+
'''उत्तर'''
 
+
# सारे विद्यार्थी मिलकर अध्यापकों को पढ़ाने का आग्रह करें कि वे पढाये । विद्यार्थी ऐसा कहें यह तो एक सुखद आश्चर्य होगा क्योंकि विद्यार्थी पढ़ते नहीं ऐसा सबका मानना होता है ।
२. नोट्स लेने का, गाइड बुक्स पढने का परामर्श यदि अध्यापक देते हैं तो विनयपूर्वक मना करें । स्वयं पढ़ाने का ही आग्रह करें ।
+
# नोट्स लेने का, गाइड बुक्स पढने का परामर्श यदि अध्यापक देते हैं तो विनयपूर्वक मना करें । स्वयं पढ़ाने का ही आग्रह करें ।
 
+
# एकाध अध्यापक ऐसे हैं तो उन्हें बदलना सरल भी होता है, ठीक भी होता है । सारे अध्यापक ऐसे हैं तो महाविद्यालय बदलना उचित है ।
३. एकाध अध्यापक ऐसे हैं तो उन्हें बदलना सरल भी होता है, ठीक भी होता है । सारे अध्यापक ऐसे हैं तो महाविद्यालय बदलना उचित है ।
+
# विनय न छोडें, आग्रह भी न छोडें । दोनों किया तो स्थिति बदलना निश्चित है ।
 
  −
४. विनय न छोडें, आग्रह भी न छोडें । दोनों किया तो स्थिति बदलना निश्चित है ।
      
=== प्रश्न ४. माध्यमिक विद्यालयों में पूरे वर्ष का कार्यक्रम सरकार द्वारा भेज दिया जाता है । मुख्याध्यापक के टेबल पर काँच के नीचे वह रहता है । वह पूरा करना ही है और प्रमाणों के साथ उसका वृत्त भी भेजना है । इस स्थिति में मौलिकता और स्वतन्त्रता कहाँ है ? हम अपनी कल्पना से कुछ भी नहीं कर सकते । क्या करें ? (मुख्याध्यापक का प्रश्न) ===
 
=== प्रश्न ४. माध्यमिक विद्यालयों में पूरे वर्ष का कार्यक्रम सरकार द्वारा भेज दिया जाता है । मुख्याध्यापक के टेबल पर काँच के नीचे वह रहता है । वह पूरा करना ही है और प्रमाणों के साथ उसका वृत्त भी भेजना है । इस स्थिति में मौलिकता और स्वतन्त्रता कहाँ है ? हम अपनी कल्पना से कुछ भी नहीं कर सकते । क्या करें ? (मुख्याध्यापक का प्रश्न) ===
यह बात सही है । कठिनाई भी सही है । इससे होने वाली हानि भी निश्चित है । लोग इन कार्यक्रमों को सम्पन्न करने में कितनी कृत्रिमता और औपचारिकता बरतते हैं यह भी सब जानते हैं । किसी भी अच्छी बात को अनिवार्य बनाया जाय तो उसका विकृतिकरण हो जाता है और वह निरर्थक बन जाती है यह व्यावहारिक सत्य है ।
+
'''उत्तर''' यह बात सही है । कठिनाई भी सही है । इससे होने वाली हानि भी निश्चित है । लोग इन कार्यक्रमों को सम्पन्न करने में कितनी कृत्रिमता और औपचारिकता बरतते हैं यह भी सब जानते हैं । किसी भी अच्छी बात को अनिवार्य बनाया जाय तो उसका विकृतिकरण हो जाता है और वह निरर्थक बन जाती है यह व्यावहारिक सत्य है ।
    
प्रथम सरकारीकरण, दूसरा शिक्षकों की विश्वसनीयता की समाप्ति और तीसरा अनिवार्य बनाना ऐसा इसका क्रम है ।
 
प्रथम सरकारीकरण, दूसरा शिक्षकों की विश्वसनीयता की समाप्ति और तीसरा अनिवार्य बनाना ऐसा इसका क्रम है ।
Line 41: Line 39:     
=== प्रश्न ७. औरों के दोष भी शिक्षक दूर नहीं करेगा तब तक दूर नहीं होंगे । फिर भी यदि शिक्षक करता नहीं है और रोता रहता है तो शिक्षक के अलावा और कौन दोषी है ? आज के विद्यार्थियों में ज्ञान तो ठीक, संस्कार भी दिखाई नहीं देते हैं । संस्कार देने की व्यावहारिक योजना क्या हो सकती है ? (एक कार्यकर्ता का प्रश्न) ===
 
=== प्रश्न ७. औरों के दोष भी शिक्षक दूर नहीं करेगा तब तक दूर नहीं होंगे । फिर भी यदि शिक्षक करता नहीं है और रोता रहता है तो शिक्षक के अलावा और कौन दोषी है ? आज के विद्यार्थियों में ज्ञान तो ठीक, संस्कार भी दिखाई नहीं देते हैं । संस्कार देने की व्यावहारिक योजना क्या हो सकती है ? (एक कार्यकर्ता का प्रश्न) ===
विद्यार्थियों में ज्ञान और संस्कार आयें इस का सम्पूर्ण दायित्व क्रमशः शिक्षकों और अभिभावकों का है । इन्होंने अपना दायित्व नहीं निभाया इसका ही यह परिणाम है । योजना तत्काल और दीर्घकालीन ऐसे दो प्रकार से होनी चाहिये । तत्काल भी केवल संस्कार के लिये हो सकती है ।
+
'''उत्तर''' विद्यार्थियों में ज्ञान और संस्कार आयें इस का सम्पूर्ण दायित्व क्रमशः शिक्षकों और अभिभावकों का है । इन्होंने अपना दायित्व नहीं निभाया इसका ही यह परिणाम है । योजना तत्काल और दीर्घकालीन ऐसे दो प्रकार से होनी चाहिये । तत्काल भी केवल संस्कार के लिये हो सकती है ।
    
संस्कार के लिये संस्कारवर्ग तत्काल योजना हो सकती है । परन्तु तत्काल योजना सदा के लिये न बनी रहे इसलिये मातापिता को अपने बच्चोंं को संस्कार देने हेतु प्रशिक्षित करना यह होनी चाहिये । मातापिता के लिये प्रशिक्षण हेतु विद्यालयों में योजना होनी चाहिये । इसके साथ साथ वर्तमान विद्यार्थियों को अच्छे मातापिता बनने की शिक्षा का मुख्य शिक्षाक्रम में समावेश होना चाहिये । ज्ञान के लिये शिक्षकों को निवेदन करना चाहिये, आग्रह करना चाहिये । पठनपाठन पद्धति में परिवर्तन करना अति आवश्यक है ।
 
संस्कार के लिये संस्कारवर्ग तत्काल योजना हो सकती है । परन्तु तत्काल योजना सदा के लिये न बनी रहे इसलिये मातापिता को अपने बच्चोंं को संस्कार देने हेतु प्रशिक्षित करना यह होनी चाहिये । मातापिता के लिये प्रशिक्षण हेतु विद्यालयों में योजना होनी चाहिये । इसके साथ साथ वर्तमान विद्यार्थियों को अच्छे मातापिता बनने की शिक्षा का मुख्य शिक्षाक्रम में समावेश होना चाहिये । ज्ञान के लिये शिक्षकों को निवेदन करना चाहिये, आग्रह करना चाहिये । पठनपाठन पद्धति में परिवर्तन करना अति आवश्यक है ।
    
=== प्रश्न ८. सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में आठ वर्ष पढने के बाद भी बच्चोंं को सादा पढना लिखना भी नहीं आता । बच्चे गन्दे होते हैं, गालियाँ देते हैं । उन्हें मिलने वाला मध्याह्म भोजन सडा हुआ रहता है । ऐसे विद्यालयों में हम अपने बच्चोंं को कैसे भेज सकते हैं ? ===
 
=== प्रश्न ८. सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में आठ वर्ष पढने के बाद भी बच्चोंं को सादा पढना लिखना भी नहीं आता । बच्चे गन्दे होते हैं, गालियाँ देते हैं । उन्हें मिलने वाला मध्याह्म भोजन सडा हुआ रहता है । ऐसे विद्यालयों में हम अपने बच्चोंं को कैसे भेज सकते हैं ? ===
यह एक दुश्चक्र है । शिक्षक पढ़ाते नहीं इसलिये हम जाते नहीं । हम जाते नहीं इसलिये शिक्षा अच्छी होती नहीं । हम आग्रह रखते नहीं इसलिये भोजन सडा हुआ होता है । शिक्षक ध्यान देते नहीं इसलिये बच्चे गन्दे और गाली देने वाले होते हैं । वे गाली देने वाले मातापिता के ही बच्चे होते हैं इसलिये गाली देना उनका दोष नहीं । इस दोष को दूर नहीं करना शिक्षकों का दोष है । उपाय क्या है ?
+
'''उत्तर''' यह एक दुश्चक्र है । शिक्षक पढ़ाते नहीं इसलिये हम जाते नहीं । हम जाते नहीं इसलिये शिक्षा अच्छी होती नहीं । हम आग्रह रखते नहीं इसलिये भोजन सडा हुआ होता है । शिक्षक ध्यान देते नहीं इसलिये बच्चे गन्दे और गाली देने वाले होते हैं । वे गाली देने वाले मातापिता के ही बच्चे होते हैं इसलिये गाली देना उनका दोष नहीं । इस दोष को दूर नहीं करना शिक्षकों का दोष है । उपाय क्या है ?
 
+
# इन विद्यालयों को ठीक करना हमारा सामाजिक दायित्व है । हम केवल अपना ही विचार करते हैं इसलिये सामाजिक जिम्मेदारी से पलायन करते हैं । हमें इन विद्यालयों में अपने बच्चोंं को भेजना चाहिये ।
१, इन विद्यालयों को ठीक करना हमारा सामाजिक दायित्व है । हम केवल अपना ही विचार करते हैं इसलिये सामाजिक जिम्मेदारी से पलायन करते हैं । हमें इन विद्यालयों में अपने बच्चोंं को भेजना चाहिये ।
+
# शिक्षक पढ़ायें ऐसा आग्रह करना चाहिये । अभिभावकों ने मिलकर यदि आग्रह किया तो शिक्षक पढ़ाने लगेंगे क्योंकि वे योग्यता तो रखते ही हैं । हमारे बच्चोंं के साथ झॉंपडियों के बच्चे भी पढने लगेंगे ।
 
+
# झॉपडियों के दो दो बच्चोंं को हममें से एक एक अभिभावक यदि उनकी जिम्मेदारी स्वीकार करते हैं तो बडी सेवा होगी ।
२. शिक्षक पढ़ायें ऐसा आग्रह करना चाहिये । अभिभावकों ने मिलकर यदि आग्रह किया तो शिक्षक पढ़ाने लगेंगे क्योंकि वे योग्यता तो रखते ही हैं । हमारे बच्चोंं के साथ झॉंपडियों के बच्चे भी पढने लगेंगे ।
+
# सडा हुआ मध्याह्म भोजन तो हमारी देखरेख से तुरन्त ठीक हो सकता है ।
 
  −
३. झॉपडियों के दो दो बच्चोंं को हममें से एक एक अभिभावक यदि उनकी जिम्मेदारी स्वीकार करते हैं तो बडी सेवा होगी ।
  −
 
  −
४. सडा हुआ मध्याह्म भोजन तो हमारी देखरेख से तुरन्त ठीक हो सकता है ।
  −
 
   
निजी विद्यालयों में ऊँचा शुल्क, वाहन का खर्चा और साधनसामग्री का खर्च बचाकर सरकारी विद्यालयों में अपने बच्चोंं को पढाना शिक्षा की सेवा है, समाज की सेवा है । हम सेवा क्यों नहीं करेंगे ? समय नहीं है कहना ठीक नहीं है । इस काम को सेवा न मानकर दायित्व ही मानेंगे तो यह काम हो सकता है । शिक्षा को बाजारीकरण का शिकार बनने से भी हम बचा सकते हैं ।
 
निजी विद्यालयों में ऊँचा शुल्क, वाहन का खर्चा और साधनसामग्री का खर्च बचाकर सरकारी विद्यालयों में अपने बच्चोंं को पढाना शिक्षा की सेवा है, समाज की सेवा है । हम सेवा क्यों नहीं करेंगे ? समय नहीं है कहना ठीक नहीं है । इस काम को सेवा न मानकर दायित्व ही मानेंगे तो यह काम हो सकता है । शिक्षा को बाजारीकरण का शिकार बनने से भी हम बचा सकते हैं ।
    
=== प्रश्न ९. जो विद्यालय पूर्व प्राथमिक और प्राथमिक विद्यालयों में एक या डेढ़ लाख का शुल्क वसूलते हैं उन्हें सरकार क्यों दण्डित नहीं करती ? (एक अभिभावक का प्रश्र) ===
 
=== प्रश्न ९. जो विद्यालय पूर्व प्राथमिक और प्राथमिक विद्यालयों में एक या डेढ़ लाख का शुल्क वसूलते हैं उन्हें सरकार क्यों दण्डित नहीं करती ? (एक अभिभावक का प्रश्र) ===
ऐसा प्रश्न यदि समाज सेवा करने वाला कार्यकर्ता पूछता है तब तो उसका उत्तर और प्रकार से दिया जा सकता है परन्तु आप अभिभावक होकर पूछ रहे हैं इसलिये प्रथम तो आपको ही दण्डित करना चाहिये । ऐसे विद्यालय आपके सहयोग से चलते हैं । पूर्व प्राथमिक शिक्षा की तो कोई आवश्यकता ही नहीं है फिर आप क्यों अपने बच्चे को भेजते हैं । प्राथमिक विद्यालय निःशुल्क भी चलते हैं और कम शुल्क में भी चलते हैं । उसमें शिक्षा डेढड लाख वाले विद्यालयों से कम गुणवत्ता की होती है ऐसा तो नहीं है । फिर आप डेढ लाख वालों का चयन क्यों करते हैं ? वे आपको बाध्य तो नहीं करते । आप ही तो अपनी प्रतिष्ठा के लिये वहाँ भेजते हैं ।
+
'''उत्तर''' ऐसा प्रश्न यदि समाज सेवा करने वाला कार्यकर्ता पूछता है तब तो उसका उत्तर और प्रकार से दिया जा सकता है परन्तु आप अभिभावक होकर पूछ रहे हैं इसलिये प्रथम तो आपको ही दण्डित करना चाहिये । ऐसे विद्यालय आपके सहयोग से चलते हैं । पूर्व प्राथमिक शिक्षा की तो कोई आवश्यकता ही नहीं है फिर आप क्यों अपने बच्चे को भेजते हैं । प्राथमिक विद्यालय निःशुल्क भी चलते हैं और कम शुल्क में भी चलते हैं । उसमें शिक्षा डेढड लाख वाले विद्यालयों से कम गुणवत्ता की होती है ऐसा तो नहीं है । फिर आप डेढ लाख वालों का चयन क्यों करते हैं ? वे आपको बाध्य तो नहीं करते । आप ही तो अपनी प्रतिष्ठा के लिये वहाँ भेजते हैं ।
    
इनका दोष अवश्य है परन्तु इन्हें सरकार दण्डित नहीं कर सकती । इन्हें अभिभावक ही अपने बच्चोंं को न भेजकर दण्डित कर सकते हैं ।
 
इनका दोष अवश्य है परन्तु इन्हें सरकार दण्डित नहीं कर सकती । इन्हें अभिभावक ही अपने बच्चोंं को न भेजकर दण्डित कर सकते हैं ।
Line 126: Line 119:     
=== प्रश्न १८. इतने प्रभावी दृश्यश्राव्य उपकरण हैं फिर शिक्षक की क्या आवश्यकता है ? (एक संचालक का प्रश्न) ===
 
=== प्रश्न १८. इतने प्रभावी दृश्यश्राव्य उपकरण हैं फिर शिक्षक की क्या आवश्यकता है ? (एक संचालक का प्रश्न) ===
घर में आपके सब काम करने वाला और आपके साथ मीठी बातें भी करने वाला रोबोट है तो फिर पत्नी, पुत्र आदि की क्‍या आवश्यकता है ? आप तुरन्त कहेंगे कि जीवन जीवित लोगोंं के साथ जीया जाता है, यन्त्रों के साथ नहीं । शिक्षा का भी ऐसा ही है । शिक्षा जीवित लोगोंं के मध्य होने वाला व्यवहार है, यन्त्रों और मनुष्यों के मध्य होने वाला नहीं । यन्त्र हमारे सहायक हो सकते हैं, हमारा स्थान नहीं ले सकते हैं ।
+
'''उत्तर''' घर में आपके सब काम करने वाला और आपके साथ मीठी बातें भी करने वाला रोबोट है तो फिर पत्नी, पुत्र आदि की क्‍या आवश्यकता है ? आप तुरन्त कहेंगे कि जीवन जीवित लोगोंं के साथ जीया जाता है, यन्त्रों के साथ नहीं । शिक्षा का भी ऐसा ही है । शिक्षा जीवित लोगोंं के मध्य होने वाला व्यवहार है, यन्त्रों और मनुष्यों के मध्य होने वाला नहीं । यन्त्र हमारे सहायक हो सकते हैं, हमारा स्थान नहीं ले सकते हैं ।
    
जो लोग शिक्षा को यान्त्रिक व्यवस्था के हवाले कर रहे हैं उनकी सोच इस प्रकार की बनती है, परन्तु जो आत्मीयता, प्रेरणा, श्रद्धा, निष्ठा, मूल्य चरित्र, सदूगुणविकास आदि का महत्त्व जानते हैं वे कभी भी शिक्षक के स्थान पर यन्त्र नहीं लायेंगे ।
 
जो लोग शिक्षा को यान्त्रिक व्यवस्था के हवाले कर रहे हैं उनकी सोच इस प्रकार की बनती है, परन्तु जो आत्मीयता, प्रेरणा, श्रद्धा, निष्ठा, मूल्य चरित्र, सदूगुणविकास आदि का महत्त्व जानते हैं वे कभी भी शिक्षक के स्थान पर यन्त्र नहीं लायेंगे ।
    
=== प्रश्न १९. दुनिया टेबलेट की ओर जा रही है और आप स्लेट की बात कर रहे हैं । कौन इसे स्वीकार कर सकता है ? (एक अभिभावक का प्रश्न) ===
 
=== प्रश्न १९. दुनिया टेबलेट की ओर जा रही है और आप स्लेट की बात कर रहे हैं । कौन इसे स्वीकार कर सकता है ? (एक अभिभावक का प्रश्न) ===
जो बुद्धिमान होगा वह स्लेट के पक्ष में खडा रहेगा । खूब पैसा खर्च करना, विद्युत का प्रयोग करना, हाथ और मस्तिष्क को कोई कम नहीं देना यह टेबलेट है जबकि उससे सौ गुना कम दाम में स्लेट आती है जिस पर हाथ से लिखना और बुद्धि में बिठाना है । पुस्तक का भी ऐसा ही है ।
+
'''उत्तर''' जो बुद्धिमान होगा वह स्लेट के पक्ष में खडा रहेगा । खूब पैसा खर्च करना, विद्युत का प्रयोग करना, हाथ और मस्तिष्क को कोई कम नहीं देना यह टेबलेट है जबकि उससे सौ गुना कम दाम में स्लेट आती है जिस पर हाथ से लिखना और बुद्धि में बिठाना है । पुस्तक का भी ऐसा ही है ।
    
हम ऐसे कष्ट कम करना चाहते हैं जो वास्तव में अध्ययन हेतु किया जानेवाला व्यायाम है । इससे बचकर स्वास्थ्य को कैसे बचायेंगे ? टेब्लेट में हो या स्लेट में लिखना तो समान ही है ना ? फिर इतने महँगे उपकरणों की और आकर्षित होने में क्या बुद्धिमानी है ? शिक्षा को महँगे उपकरणों वाली नहीं, सस्ते और कम से कम उपकरणों वाली बनाना चाहिये । इसलिये टेबलेट नहीं स्लेट चाहिये ।
 
हम ऐसे कष्ट कम करना चाहते हैं जो वास्तव में अध्ययन हेतु किया जानेवाला व्यायाम है । इससे बचकर स्वास्थ्य को कैसे बचायेंगे ? टेब्लेट में हो या स्लेट में लिखना तो समान ही है ना ? फिर इतने महँगे उपकरणों की और आकर्षित होने में क्या बुद्धिमानी है ? शिक्षा को महँगे उपकरणों वाली नहीं, सस्ते और कम से कम उपकरणों वाली बनाना चाहिये । इसलिये टेबलेट नहीं स्लेट चाहिये ।
Line 193: Line 186:     
=== प्रश्न २३. लोग बारबार भगवद्‌गीता, उपनिषद, वेद आदि की बातें करते रहते हैं । वे तो प्राचीन हैं । उनके होने के खास प्रमाण भी नहीं हैं । वे उस समय प्रासंगिक होंगे । आज के आधुनिक काल में उनकी क्या उपयोगिता है ? उन्हें क्यों पढना चाहिये ? (एक विद्वान प्राध्यापक) ===
 
=== प्रश्न २३. लोग बारबार भगवद्‌गीता, उपनिषद, वेद आदि की बातें करते रहते हैं । वे तो प्राचीन हैं । उनके होने के खास प्रमाण भी नहीं हैं । वे उस समय प्रासंगिक होंगे । आज के आधुनिक काल में उनकी क्या उपयोगिता है ? उन्हें क्यों पढना चाहिये ? (एक विद्वान प्राध्यापक) ===
इस प्रकार का प्रश्न पूछने वाले आप अकेले नहीं हैं । और भी विट्रज्जन ऐसा प्रश्न पूछते हैं ।
+
'''उत्तर''' इस प्रकार का प्रश्न पूछने वाले आप अकेले नहीं हैं । और भी विट्रज्जन ऐसा प्रश्न पूछते हैं ।
    
मजेदार बात यह है कि ऐसा प्रश्न पूछने वाले लोगोंं में कई ऐसे होते हैं जिन्होंने ये ग्रन्थ देखे तक नहीं होते, पढ़ने की बात तो दूर की है । वे सुनी सुनाई या काल्पनिक बातें करते हैं । उनका तो खास वजूद नहीं है ।
 
मजेदार बात यह है कि ऐसा प्रश्न पूछने वाले लोगोंं में कई ऐसे होते हैं जिन्होंने ये ग्रन्थ देखे तक नहीं होते, पढ़ने की बात तो दूर की है । वे सुनी सुनाई या काल्पनिक बातें करते हैं । उनका तो खास वजूद नहीं है ।
Line 206: Line 199:     
=== प्रश्न २४. हमारे सारे शास्त्रग्न्थ संस्कृत में लिखे गये हैं । आज हमें संस्कृत आती नहीं है । तब शास्त्रों में क्या लिखा है यह कैसे समझा जा सकता है ? संस्कृत पढ़ना तो कठिन लगता है । फिर क्या करें ? ===
 
=== प्रश्न २४. हमारे सारे शास्त्रग्न्थ संस्कृत में लिखे गये हैं । आज हमें संस्कृत आती नहीं है । तब शास्त्रों में क्या लिखा है यह कैसे समझा जा सकता है ? संस्कृत पढ़ना तो कठिन लगता है । फिर क्या करें ? ===
हमें संस्कृत नहीं आती है यह हमारा दुर्दैव है । संस्कृत की हमने हरसम्भव अवमानना की है । हमें लगता है कि संस्कृत कठिन है परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है । भारत की सभी भाषाओं की जननी संस्कृत है इसलिये शब्दकोश की दृष्टि से हमारे लिये बहुत परिचित है । सीखने लगें तो बहुत जल्दी आ सकती है । संस्कृत सिखने में एक सात्त्विक आनन्द भी है । इसलिये छोटी आयु से उसे सिखाने की व्यवस्था करनी चाहिये ।
+
'''उत्तर''' हमें संस्कृत नहीं आती है यह हमारा दुर्दैव है । संस्कृत की हमने हरसम्भव अवमानना की है । हमें लगता है कि संस्कृत कठिन है परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है । भारत की सभी भाषाओं की जननी संस्कृत है इसलिये शब्दकोश की दृष्टि से हमारे लिये बहुत परिचित है । सीखने लगें तो बहुत जल्दी आ सकती है । संस्कृत सिखने में एक सात्त्विक आनन्द भी है । इसलिये छोटी आयु से उसे सिखाने की व्यवस्था करनी चाहिये ।
    
संस्कृत का परिचय होने के बाद प्रामाणिक अनुवाद की सहायता से हम मूल ग्रन्थ पढ़ सकते हैं ।
 
संस्कृत का परिचय होने के बाद प्रामाणिक अनुवाद की सहायता से हम मूल ग्रन्थ पढ़ सकते हैं ।
Line 213: Line 206:     
=== प्रश्न २५. आज सर्वसामान्य लोग नौकरी ही करते हैं । परम्परागत धन्धे भी समाप्त हो गये हैं । धन्धे करने वालों को भी नौकरी करनी पड रही है । नये से धन्धा करने के लिये निवेश के लिये बहुत पैसा चाहिये । उसके बाद भी स्पर्धा में टिकना असम्भव है । फिर सामान्य लोगोंं के लिये जैसी भी मिले नौकरी के अलावा क्या बचा है ? नौकरी का भी तो संकट है । (एक अभिभावक का प्रश्न) ===
 
=== प्रश्न २५. आज सर्वसामान्य लोग नौकरी ही करते हैं । परम्परागत धन्धे भी समाप्त हो गये हैं । धन्धे करने वालों को भी नौकरी करनी पड रही है । नये से धन्धा करने के लिये निवेश के लिये बहुत पैसा चाहिये । उसके बाद भी स्पर्धा में टिकना असम्भव है । फिर सामान्य लोगोंं के लिये जैसी भी मिले नौकरी के अलावा क्या बचा है ? नौकरी का भी तो संकट है । (एक अभिभावक का प्रश्न) ===
आपकी बात ठीक है । उत्पादकों के साथ स्पर्धा में गये तो टिकना असम्भव है । इसलिये विद्यालय के शिक्षक, संचालक और अभिभावकों ने मिलकर उत्पादन, वितरण और निवेश की योजना बनानी चाहिये । उत्पादन के लिये सुरक्षित बाजार निर्माण करना चाहिये । विद्यार्थियों को उत्पादन करना सिखाना इसका मुख्य उद्देश्य है परन्तु उत्पादन की खपत को कुछ समय के लिये सुरक्षित करना होगा । धीरे धीरे बाजार खुला हो जायेगा । परन्तु उत्पादन फिर यन्त्रों के बडे पैमाने पर होने वाले उत्पादनों के साथ स्पर्धा में जा पड़े ऐसी स्थिति नहीं निर्माण करनी चाहिये । उत्पादन के अनेक नैतिक नियमों की चर्चा ग्रन्थ में अन्यत्र की गई है ।
+
'''उत्तर''' आपकी बात ठीक है । उत्पादकों के साथ स्पर्धा में गये तो टिकना असम्भव है । इसलिये विद्यालय के शिक्षक, संचालक और अभिभावकों ने मिलकर उत्पादन, वितरण और निवेश की योजना बनानी चाहिये । उत्पादन के लिये सुरक्षित बाजार निर्माण करना चाहिये । विद्यार्थियों को उत्पादन करना सिखाना इसका मुख्य उद्देश्य है परन्तु उत्पादन की खपत को कुछ समय के लिये सुरक्षित करना होगा । धीरे धीरे बाजार खुला हो जायेगा । परन्तु उत्पादन फिर यन्त्रों के बडे पैमाने पर होने वाले उत्पादनों के साथ स्पर्धा में जा पड़े ऐसी स्थिति नहीं निर्माण करनी चाहिये । उत्पादन के अनेक नैतिक नियमों की चर्चा ग्रन्थ में अन्यत्र की गई है ।
    
=== प्रश्न २६. भाषा प्रभुत्व के लिये पुस्तक पढने को आप कितना महत्त्व देते हैं ? (एक अभिभावक का प्रश्न) ===
 
=== प्रश्न २६. भाषा प्रभुत्व के लिये पुस्तक पढने को आप कितना महत्त्व देते हैं ? (एक अभिभावक का प्रश्न) ===
पुस्तक पढने का महत्त्व बहुत है । बच्चोंं को तीन वर्ष की आयु से पुस्तकों के मध्य में रखना चाहिये । भले ही पुस्तक पढ़ें नहीं, पुस्तकों के साथ सम्बन्ध जुडना चाहिये । धीरे धीरे अपने आप पढ़ना आ जायेगा ।
+
'''उत्तर''' पुस्तक पढने का महत्त्व बहुत है । बच्चोंं को तीन वर्ष की आयु से पुस्तकों के मध्य में रखना चाहिये । भले ही पुस्तक पढ़ें नहीं, पुस्तकों के साथ सम्बन्ध जुडना चाहिये । धीरे धीरे अपने आप पढ़ना आ जायेगा ।
    
घर में यदि बडों को पढ़ते हुए देखते हैं तो बच्चे भी पढ़ने में रुचि लेते हैं । बच्चोंं ने पढ़ी हुई पुस्तक पर उनके साथ बातें करना भाषा सीखने में बहुत सहायता करता है ।
 
घर में यदि बडों को पढ़ते हुए देखते हैं तो बच्चे भी पढ़ने में रुचि लेते हैं । बच्चोंं ने पढ़ी हुई पुस्तक पर उनके साथ बातें करना भाषा सीखने में बहुत सहायता करता है ।
Line 236: Line 229:     
=== प्रश्न २८. जिस प्रकार सहशि क्षा नहीं होनी चाहिये ऐसा कहा जाता है उसी प्रकार क्यो दोनों को मिलने वाली शिक्षा भी अलग होनी चाहिये ? यदि ऐसा होता है तो समानता कहाँ रही ? (एक विचारक का प्रश्न) ===
 
=== प्रश्न २८. जिस प्रकार सहशि क्षा नहीं होनी चाहिये ऐसा कहा जाता है उसी प्रकार क्यो दोनों को मिलने वाली शिक्षा भी अलग होनी चाहिये ? यदि ऐसा होता है तो समानता कहाँ रही ? (एक विचारक का प्रश्न) ===
हमें आज की शिक्षा के परिणाम स्वरूरप चीजों को उपर उपर से ही देखने की आदत हो गई है । वेश की समानता, काम की समानता, अवसरों की समानता, करिअर की समानता ही हमें समानता लगती है । वास्तव में यह समानता नहीं है, एकरूपता है । एकरूपता सृष्टि में कहीं भी होती नहीं है । एकरूपता का न होना विविधता है और सुन्दरता है । इसलिये हमें समानता के नाम पर हमने एकरूपता के पीछे नहीं जाना चाहिये ।
+
'''उत्तर''' हमें आज की शिक्षा के परिणाम स्वरूरप चीजों को उपर उपर से ही देखने की आदत हो गई है । वेश की समानता, काम की समानता, अवसरों की समानता, करिअर की समानता ही हमें समानता लगती है । वास्तव में यह समानता नहीं है, एकरूपता है । एकरूपता सृष्टि में कहीं भी होती नहीं है । एकरूपता का न होना विविधता है और सुन्दरता है । इसलिये हमें समानता के नाम पर हमने एकरूपता के पीछे नहीं जाना चाहिये ।
    
समानता का गहरा अर्थ है । हरेक के व्यक्तित्व के विशेष गुणों का विकास करने हेतु समान अवसर मिलना ही समानता है ।
 
समानता का गहरा अर्थ है । हरेक के व्यक्तित्व के विशेष गुणों का विकास करने हेतु समान अवसर मिलना ही समानता है ।
Line 247: Line 240:     
=== प्रश्न २९. एक बात ध्यान में आती है कि स्त्रीत्व के गुणों का विकास हो सके ऐसी शिक्षा की आज कोई व्यवस्था ही नहीं है । में निवृत्त शिक्षक हूँ । क्‍या मैं इसके लिये कुछ कर सकता हूँ ? (एक शिक्षक का प्रश्न) ===
 
=== प्रश्न २९. एक बात ध्यान में आती है कि स्त्रीत्व के गुणों का विकास हो सके ऐसी शिक्षा की आज कोई व्यवस्था ही नहीं है । में निवृत्त शिक्षक हूँ । क्‍या मैं इसके लिये कुछ कर सकता हूँ ? (एक शिक्षक का प्रश्न) ===
'''उत्तर'''
+
'''उत्तर''' आपकी ओर से ऐसा प्रस्ताव आना ही शुभ संकेत है । आपके जैसे अन्य सेवानिवृत्त शिक्षक यदि इस बात को प्रधानता देते हैं तो उचित परिप्रेक्ष्या में यह बात आरम्भ होगी । इस दृष्टि से आपको इन चरणों में काम करना होगा ।
 
+
# केवल स्त्रीत्व के ही नहीं तो पुरुषत्व के गुणों का सम्यक्‌ विकास होना अपेक्षित है ।
आपकी ओर से ऐसा प्रस्ताव आना ही शुभ संकेत है । आपके जैसे अन्य सेवानिवृत्त शिक्षक यदि इस बात को प्रधानता देते हैं तो उचित परिप्रेक्ष्या में यह बात आरम्भ होगी । इस दृष्टि से आपको इन चरणों में काम करना होगा ।
+
# दोनों के लिये किस प्रकार की शिक्षा चाहिये उसका विचार कर एक रूपरेखा तैयार करना, सामग्री जुटाना और योजना बनाना ।
 
+
# कुछ मात्रा में व्यापक प्रवाह कर समाज की मानसिकता बनाना ।
१, केवल स्त्रीत्व के ही नहीं तो पुरुषत्व के गुणों का सम्यक्‌ विकास होना अपेक्षित है ।
+
# साथ ही साथ छोटे छोटे समूहों में प्रत्यक्ष शिक्षा का प्रारम्भ करना . लोग जानते नहीं हैं कि उन्हें इस शिक्षा की कितनी अधिक आवश्यकता है । इसलिये प्रारम्भ भले ही छोटा लगता हो, देखते ही देखते इसका व्याप बढ जायेगा ।
 
  −
२. दोनों के लिये किस प्रकार की शिक्षा चाहिये उसका विचार कर एक रूपरेखा तैयार करना, सामग्री जुटाना और योजना बनाना ।
  −
 
  −
३. कुछ मात्रा में व्यापक प्रवाह कर समाज की मानसिकता बनाना ।
  −
 
  −
४. साथ ही साथ छोटे छोटे समूहों में प्रत्यक्ष शिक्षा का प्रारम्भ करना . लोग जानते नहीं हैं कि उन्हें इस शिक्षा की कितनी अधिक आवश्यकता है । इसलिये प्रारम्भ भले ही छोटा लगता हो, देखते ही देखते इसका व्याप बढ जायेगा ।
  −
 
   
इस दृष्टि से अभिभावकों को चाहिये कि वे अपनी सन्तानों को इस शिक्षा के लिये समय मिल सके ऐसे हर सम्भव प्रयास करें ।
 
इस दृष्टि से अभिभावकों को चाहिये कि वे अपनी सन्तानों को इस शिक्षा के लिये समय मिल सके ऐसे हर सम्भव प्रयास करें ।
   Line 277: Line 263:     
=== प्रश्न ३१. शिक्षा को धार्मिक बनाने हेतु हम यदि अध्ययन करना चाहते हैं तो क्या करें ? और अनुसन्धान का क्या तरीका है ? (एक जिज्ञासु) ===
 
=== प्रश्न ३१. शिक्षा को धार्मिक बनाने हेतु हम यदि अध्ययन करना चाहते हैं तो क्या करें ? और अनुसन्धान का क्या तरीका है ? (एक जिज्ञासु) ===
पहली बात तो यह है कि आप विश्वविद्यालय की कोई पदवी या पुरस्कार मिलेगा ऐसी अपेक्षा छोड दो । वर्तमान शिक्षाव्यवस्था से समानान्तर पद्धति विकसित करने की आवश्यकता है । दूसरी बात यह है कि गीता और उपनिषदों का कुछ अध्ययन कर धार्मिक जीवनदृष्टि क्या है इसकी समझ स्पष्ट करने का प्रयास करो । तीसरी बात यह है कि स्वामी विवेकानन्द, श्री अरविन्द, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर, महात्मा गांधी आदि महानुभावों के शिक्षाविषयक विचारों और प्रयोगों का अध्ययन करो । चौथी बात है आज देशभर में धार्मिक शिक्षा के क्षेत्र में समानान्तर कार्य कैसा चल रहा है उसका अध्ययन करो ।
+
'''उत्तर''' पहली बात तो यह है कि आप विश्वविद्यालय की कोई पदवी या पुरस्कार मिलेगा ऐसी अपेक्षा छोड दो । वर्तमान शिक्षाव्यवस्था से समानान्तर पद्धति विकसित करने की आवश्यकता है । दूसरी बात यह है कि गीता और उपनिषदों का कुछ अध्ययन कर धार्मिक जीवनदृष्टि क्या है इसकी समझ स्पष्ट करने का प्रयास करो । तीसरी बात यह है कि स्वामी विवेकानन्द, श्री अरविन्द, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर, महात्मा गांधी आदि महानुभावों के शिक्षाविषयक विचारों और प्रयोगों का अध्ययन करो । चौथी बात है आज देशभर में धार्मिक शिक्षा के क्षेत्र में समानान्तर कार्य कैसा चल रहा है उसका अध्ययन करो ।
    
इसके बाद आज क्या किया जा सकता है और क्या करने की आवश्यकता है इसका चिन्तन कर उसके अनुसार योजना बनाना व्यावहारिक अनुसन्धान होता है । ऐसे अध्ययन और अनुसन्धान की आज नितान्त आवश्यकता है । इस दृष्टि से अध्ययन हेतु कुछ ग्रन्थों की, कुछ मार्गदर्शकों की, परामर्शकों की, सहअध्येताओं की सूचियाँ बन सकती हैं । आप देखेंगे कि यह कार्य बहुत अच्छी तरह से हो सकता है और उसमें आनन्द आ सकता है। क्या अनुसन्धान का स्वरूप भी धार्मिक हो सकता है ? वर्तमान अनुसन्धान से वह भिन्न है ?
 
इसके बाद आज क्या किया जा सकता है और क्या करने की आवश्यकता है इसका चिन्तन कर उसके अनुसार योजना बनाना व्यावहारिक अनुसन्धान होता है । ऐसे अध्ययन और अनुसन्धान की आज नितान्त आवश्यकता है । इस दृष्टि से अध्ययन हेतु कुछ ग्रन्थों की, कुछ मार्गदर्शकों की, परामर्शकों की, सहअध्येताओं की सूचियाँ बन सकती हैं । आप देखेंगे कि यह कार्य बहुत अच्छी तरह से हो सकता है और उसमें आनन्द आ सकता है। क्या अनुसन्धान का स्वरूप भी धार्मिक हो सकता है ? वर्तमान अनुसन्धान से वह भिन्न है ?
Line 300: Line 286:  
=== प्रश्न ३३. विगत कुछ वर्षों से सूत्र चल रहा है “छोटा परिवार सुखी परिवार' अब लोगोंं के ध्यान में आ रहा है कि छोटा परिवार बहुत सुखदायक नहीं होता है । लोग एकदम बडे परिवार बनाने तो नहीं लगे हैं परन्तु विचार तो आरम्भ हुआ है । विद्यालय भी एक परिवार है । आज की स्थिति में तो सूत्र है “बडा विद्यालय अच्छा विद्यालय ।' उचित क्या है, बडा विद्यालय कि छोटा ? (एक संचालक का प्रश्न) ===
 
=== प्रश्न ३३. विगत कुछ वर्षों से सूत्र चल रहा है “छोटा परिवार सुखी परिवार' अब लोगोंं के ध्यान में आ रहा है कि छोटा परिवार बहुत सुखदायक नहीं होता है । लोग एकदम बडे परिवार बनाने तो नहीं लगे हैं परन्तु विचार तो आरम्भ हुआ है । विद्यालय भी एक परिवार है । आज की स्थिति में तो सूत्र है “बडा विद्यालय अच्छा विद्यालय ।' उचित क्या है, बडा विद्यालय कि छोटा ? (एक संचालक का प्रश्न) ===
 
'''उत्तर''' “छोटा विद्यालय अच्छा विद्यालय' यही उचित रचना है । इसके कई कारण हैं ।
 
'''उत्तर''' “छोटा विद्यालय अच्छा विद्यालय' यही उचित रचना है । इसके कई कारण हैं ।
 
+
# एक मुख्याध्यापक को साथी शिक्षक और विद्यालय के लगभग सभी विद्यार्थियों के नाम, उनके गुणदोष, उनकी क्षमताओं , उनकी पारिवारिक स्थिति की भली भाँति जानकारी हो यह अपेक्षित है । यह सम्भव हो इसके लिये विद्यालय छोटा होना चाहिये ।
१, एक मुख्याध्यापक को साथी शिक्षक और विद्यालय के लगभग सभी विद्यार्थियों के नाम, उनके गुणदोष, उनकी क्षमताओं , उनकी पारिवारिक स्थिति की भली भाँति जानकारी हो यह अपेक्षित है । यह सम्भव हो इसके लिये विद्यालय छोटा होना चाहिये ।
+
# विद्यालय का भवन और परिसर यदि छोटा हो तो उसे सम्हालना भी सरल होता है ।
 
+
# शैक्षिक योजनाओं का क्रियान्वयन भी अच्छी तरह से होता है ।
२. विद्यालय का भवन और परिसर यदि छोटा हो तो उसे सम्हालना भी सरल होता है ।
+
# यात्रा आदि कार्यक्रम भी सरलता से होते हैं ।
 
  −
३. शैक्षिक योजनाओं का क्रियान्वयन भी अच्छी तरह से होता है ।
  −
 
  −
४. यात्रा आदि कार्यक्रम भी सरलता से होते हैं ।
  −
 
   
इन कारणों से छोटा विद्यालय ही अच्छा होता है । फिर कोई कहेगा कि तक्षशिला आदि विद्यापीठों में तो दस हजार विद्यार्थी और एक हजार शिक्षक थे । यह तो बडे विद्यालय का उदाहरण है ।
 
इन कारणों से छोटा विद्यालय ही अच्छा होता है । फिर कोई कहेगा कि तक्षशिला आदि विद्यापीठों में तो दस हजार विद्यार्थी और एक हजार शिक्षक थे । यह तो बडे विद्यालय का उदाहरण है ।
   Line 328: Line 309:     
=== प्रश्न ३६. धार्मिक शिक्षा का बहुत बखान करनेवाले एक बात भूल जाते हैं कि भारत में शिक्षा की व्यवस्था ही नहीं थी । लडकियों को तो पढाया ही नहीं जाता था । शिक्षा का प्रसार तो अब हुआ है । अभी तो प्रयास चल रहे हैं । भारत में ही तो हो रहे हैं । उन्हें क्यों धार्मिक नहीं कहा जाता ? (एक शिक्षाशास्त्री का प्रश्न) ===
 
=== प्रश्न ३६. धार्मिक शिक्षा का बहुत बखान करनेवाले एक बात भूल जाते हैं कि भारत में शिक्षा की व्यवस्था ही नहीं थी । लडकियों को तो पढाया ही नहीं जाता था । शिक्षा का प्रसार तो अब हुआ है । अभी तो प्रयास चल रहे हैं । भारत में ही तो हो रहे हैं । उन्हें क्यों धार्मिक नहीं कहा जाता ? (एक शिक्षाशास्त्री का प्रश्न) ===
निरक्षरता और अशिक्षितता में अन्तर है । इस देश में लिखने पढने को शिक्षा नहीं कहा जाता था, संस्कार और बुद्धि को शिक्षा कहा जाता था । लिखना पढना नहीं जानने वाले कबीर तत्त्वज्ञ, भक्त और कवि थे, लिखना पढना नहीं जाननेवाले व्यापारी करोड़ों रूपये कमाते थे, लिखना पढना नहीं जानने वाले लोग अत्यन्त व्यवहारदृक्ष थे, लिखना पढना नहीं जानने वाले लोग कुशल कारीगर थे । आज लिखना पढ़ना जानने वाले लोगोंं में ज्ञान, संस्कार, व्यवहार कौशल कुछ नहीं होता । अर्थात्‌ साक्षरता से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता तो भी हम उसे ही शिक्षा कह रहे हैं । दूसरी बात यह है कि सरकार की कोई शिक्षा व्यवस्था नहीं होने पर भी इस देश में पाँच लाख प्राथमिक विद्यालय और सैंकडों उच्च शिक्षा के केन्द्र थे इसके तो दस्तावेज भी आपको मिलेंगे । तीसरी बात यह है कि शिक्षा धार्मिक और अधार्मिक कानून और संविधान से नहीं होती, उसके आधार रूप जीवनदृष्टि के कारण होती है । आज भारत में शिक्षा टैकनिकली धार्मिक है, उसकी जीवनदृष्टि पाश्चात्य है । उसे जीवनदृष्टि के रूप में धार्मिक बनाने से वह धार्मिक होगी ।
+
'''उत्तर''' निरक्षरता और अशिक्षितता में अन्तर है । इस देश में लिखने पढने को शिक्षा नहीं कहा जाता था, संस्कार और बुद्धि को शिक्षा कहा जाता था । लिखना पढना नहीं जानने वाले कबीर तत्त्वज्ञ, भक्त और कवि थे, लिखना पढना नहीं जाननेवाले व्यापारी करोड़ों रूपये कमाते थे, लिखना पढना नहीं जानने वाले लोग अत्यन्त व्यवहारदृक्ष थे, लिखना पढना नहीं जानने वाले लोग कुशल कारीगर थे । आज लिखना पढ़ना जानने वाले लोगोंं में ज्ञान, संस्कार, व्यवहार कौशल कुछ नहीं होता । अर्थात्‌ साक्षरता से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता तो भी हम उसे ही शिक्षा कह रहे हैं । दूसरी बात यह है कि सरकार की कोई शिक्षा व्यवस्था नहीं होने पर भी इस देश में पाँच लाख प्राथमिक विद्यालय और सैंकडों उच्च शिक्षा के केन्द्र थे इसके तो दस्तावेज भी आपको मिलेंगे । तीसरी बात यह है कि शिक्षा धार्मिक और अधार्मिक कानून और संविधान से नहीं होती, उसके आधार रूप जीवनदृष्टि के कारण होती है । आज भारत में शिक्षा टैकनिकली धार्मिक है, उसकी जीवनदृष्टि पाश्चात्य है । उसे जीवनदृष्टि के रूप में धार्मिक बनाने से वह धार्मिक होगी ।
    
अभी तो धार्मिक शिक्षा की केवल बातें आरम्भ हुई हैं । देश में हलचल आरम्भ हुई है । योजना और प्रयोग तो होने शेष हैं । हम सबको मिलकर शिक्षा को पूर्ण रूप से धार्मिक बनाने की आवश्यकता है ।
 
अभी तो धार्मिक शिक्षा की केवल बातें आरम्भ हुई हैं । देश में हलचल आरम्भ हुई है । योजना और प्रयोग तो होने शेष हैं । हम सबको मिलकर शिक्षा को पूर्ण रूप से धार्मिक बनाने की आवश्यकता है ।
Line 452: Line 433:     
=== प्रश्न ५०. शिक्षा के अनेक प्रश्न ऐसे हैं जो बुरी तरह से उलझ गये हैं । सरकार, संचालक, शिक्षक, अभिभावक और विद्यार्थी शिक्षा से सम्बन्धित वर्ग हैं । इनमें सर्वप्रथम किसे ठीक करने का प्रयास करना चाहिये ? ===
 
=== प्रश्न ५०. शिक्षा के अनेक प्रश्न ऐसे हैं जो बुरी तरह से उलझ गये हैं । सरकार, संचालक, शिक्षक, अभिभावक और विद्यार्थी शिक्षा से सम्बन्धित वर्ग हैं । इनमें सर्वप्रथम किसे ठीक करने का प्रयास करना चाहिये ? ===
शिक्षा के विभिन्न प्रश्नों के लिये विभिन्न वर्गों के साथ बात करनी चाहिये । उदाहरण के लिये शिक्षानीति की बात सरकार से, विद्यालय की व्यवस्थाओं की बात संचालकों से, अध्यापन पद्धतियों की बात शिक्षकों से, बालकों के संगोपन की बात अभिभावकों से और विनयशील आचरण की बात विद्यार्थियों से करनी चाहिये ।
+
'''उत्तर''' शिक्षा के विभिन्न प्रश्नों के लिये विभिन्न वर्गों के साथ बात करनी चाहिये । उदाहरण के लिये शिक्षानीति की बात सरकार से, विद्यालय की व्यवस्थाओं की बात संचालकों से, अध्यापन पद्धतियों की बात शिक्षकों से, बालकों के संगोपन की बात अभिभावकों से और विनयशील आचरण की बात विद्यार्थियों से करनी चाहिये ।
    
फिर भी शिक्षाविषयक किसी भी प्रश्न की चर्चा करने का केन्द्रवर्ती स्थान शिक्षक ही है । समस्या और समस्या के निराकरण का प्रारम्भ बिन्दु शिक्षक है । वह यदि बातों को ठीक से समझता है तो समस्‍यायें सुलझने लगती है ।
 
फिर भी शिक्षाविषयक किसी भी प्रश्न की चर्चा करने का केन्द्रवर्ती स्थान शिक्षक ही है । समस्या और समस्या के निराकरण का प्रारम्भ बिन्दु शिक्षक है । वह यदि बातों को ठीक से समझता है तो समस्‍यायें सुलझने लगती है ।
Line 458: Line 439:  
=== प्रश्न ५१. आज के युवा ब्रह्मचर्य का पालन कर सकें ऐसी स्थिति ही नहीं है । इसका परिणाम तो बहुत विपरीत होता है, परन्तु बचने का उपाय क्या है ? ===
 
=== प्रश्न ५१. आज के युवा ब्रह्मचर्य का पालन कर सकें ऐसी स्थिति ही नहीं है । इसका परिणाम तो बहुत विपरीत होता है, परन्तु बचने का उपाय क्या है ? ===
 
'''उत्तर''' विषय तो कठिन है ही । मन पर चारों ओर से भीषण आक्रमण होते हैं । मन को सम्हालने की शक्ति नहीं है । मन की शक्ति बढ़े ऐसे कोई उपाय नहीं किये जाते । छोटी आयु से उपाय नहीं किये जाते इसलिये युवावस्था तक पहुँचते पहुँचते बातें अधिक कठिन हो जाती हैं । इसके तत्काल और दीर्घकालीन दोनों उपाय करने चाहिये ?
 
'''उत्तर''' विषय तो कठिन है ही । मन पर चारों ओर से भीषण आक्रमण होते हैं । मन को सम्हालने की शक्ति नहीं है । मन की शक्ति बढ़े ऐसे कोई उपाय नहीं किये जाते । छोटी आयु से उपाय नहीं किये जाते इसलिये युवावस्था तक पहुँचते पहुँचते बातें अधिक कठिन हो जाती हैं । इसके तत्काल और दीर्घकालीन दोनों उपाय करने चाहिये ?
 +
# कक्षाकक्षों में उपस्थिति अनिवार्य होना ।
 +
# युवा विद्यार्थियों के लिये भी गृहकार्य देना और उसे अनिवार्य बनाना ।
 +
# अध्यापकों द्वारा विद्यार्थियों को व्यक्तिगत परामर्श देना ।
 +
# विद्यार्थियों के अभिभावकों के साथ अध्यापकों का सम्पर्क होना ।
 +
# व्यायाम अनिवार्य बनाना । साथ ही प्रबोधनात्मक आग्रह बढ़ने चाहिये जैसे कि
   −
(१) कक्षाकक्षों में उपस्थिति अनिवार्य होना ।
+
##बाइकसवारी छोड़कर साइकिल का प्रयोग करना ।
 
+
##तंग कपडों का त्याग करना ।
(२) युवा विद्यार्थियों के लिये भी गृहकार्य देना और उसे अनिवार्य बनाना ।
+
##मनोरंजन और अध्ययन का सन्तुलन बनाना ।
 
+
##अधथर्जिन और गृहस्थाश्रम के बारे में विचार करना ।
(3) अध्यापकों द्वारा विद्यार्थियों को व्यक्तिगत परामर्श देना ।
+
##विनयशील होना ।
 
  −
(४) विद्यार्थियों के अभिभावकों के साथ अध्यापकों का सम्पर्क होना ।
  −
 
  −
(५) व्यायाम अनिवार्य बनाना । साथ ही प्रबोधनात्मक आग्रह बढ़ने चाहिये जैसे कि
  −
 
  −
(१) बाइकसवारी छोड़कर साइकिल का प्रयोग करना ।
  −
 
  −
(२) तंग कपडों का त्याग करना ।
  −
 
  −
(३) मनोरंजन और अध्ययन का सन्तुलन बनाना ।
  −
 
  −
(४) अधथर्जिन और गृहस्थाश्रम के बारे में विचार करना ।
  −
 
  −
(५) विनयशील होना ।
  −
 
   
आज देखा यह जाता है कि युवा विद्यार्थियों के मातापिता चिन्तित भी हैं और अज्ञान भी । महाविद्यालयों ने अभिभावकों के साथ संवाद की व्यवस्था बनानी चाहिये । अध्यापक और मातापिता दोनों ने मिलकर विद्यार्थियों के चरित्र के बारे में चिन्तन और उपाय करने चाहिये ।
 
आज देखा यह जाता है कि युवा विद्यार्थियों के मातापिता चिन्तित भी हैं और अज्ञान भी । महाविद्यालयों ने अभिभावकों के साथ संवाद की व्यवस्था बनानी चाहिये । अध्यापक और मातापिता दोनों ने मिलकर विद्यार्थियों के चरित्र के बारे में चिन्तन और उपाय करने चाहिये ।
   Line 484: Line 455:     
=== प्रश्न ५२. युवाओं में युवक और युवती दोनों का समावेश होता है । चिन्ता दोनों की करनी चाहिये यह बात सच है । परन्तु आज तो युवतियों की चिन्ता करने की अधिक आवश्यकता लगती है । इसका क्या करें ? ===
 
=== प्रश्न ५२. युवाओं में युवक और युवती दोनों का समावेश होता है । चिन्ता दोनों की करनी चाहिये यह बात सच है । परन्तु आज तो युवतियों की चिन्ता करने की अधिक आवश्यकता लगती है । इसका क्या करें ? ===
आपकी बात सही है । हम कल्पना करते हैं उससे भी युवतियों का प्रश्न अधिक गम्भीर है । युवतियों के सामने युवक की बराबरी करने की बडी चुनौती है । यह चुनौती उन्होंने स्वयं ही स्वीकार कर ली हैं । उन्हें इस चुनौती को स्वीकार करने हेतु समाज ने ही बाध्य किया है । पुरुष करता है वह सब कर दिखाने पर ही स्त्री को सम्मानित किया जाता है । ख्री को पुरुष जैसा बनने के अर्थात्‌ अपना विकास करने के, सारे अवसर दिये जाते हैं । ऐसे अवसर देने में तो कोई बुराई नहीं है परन्तु पुरुष जैसा बनने में ही विकास है यह कहने में बहुत बडा दोष है । जिस समाज ने स्त्री को स्त्री के रूप में हेय माना, नीचा माना, अविकसित माना उस समाज का बडा दोष है । इसलिये युवतियों को सही मार्ग दिखाने से पूर्व समाज के स्तर पर चिन्तन बदलने की आवश्यकता है । यह मार्ग भी कम उलझा हुआ नहीं है । जो भी उपाय करना है वह सामाजिक स्तर पर ही करना होगा ।
+
'''उत्तर''' आपकी बात सही है । हम कल्पना करते हैं उससे भी युवतियों का प्रश्न अधिक गम्भीर है । युवतियों के सामने युवक की बराबरी करने की बडी चुनौती है । यह चुनौती उन्होंने स्वयं ही स्वीकार कर ली हैं । उन्हें इस चुनौती को स्वीकार करने हेतु समाज ने ही बाध्य किया है । पुरुष करता है वह सब कर दिखाने पर ही स्त्री को सम्मानित किया जाता है । ख्री को पुरुष जैसा बनने के अर्थात्‌ अपना विकास करने के, सारे अवसर दिये जाते हैं । ऐसे अवसर देने में तो कोई बुराई नहीं है परन्तु पुरुष जैसा बनने में ही विकास है यह कहने में बहुत बडा दोष है । जिस समाज ने स्त्री को स्त्री के रूप में हेय माना, नीचा माना, अविकसित माना उस समाज का बडा दोष है । इसलिये युवतियों को सही मार्ग दिखाने से पूर्व समाज के स्तर पर चिन्तन बदलने की आवश्यकता है । यह मार्ग भी कम उलझा हुआ नहीं है । जो भी उपाय करना है वह सामाजिक स्तर पर ही करना होगा ।
    
युवा वर्ग के लिये आदेश का मार्ग तो है ही नहीं । संवाद का ही मार्ग है । समाजप्रबोधन के साथ साथ युवाओं से संवाद का मार्ग भी अपनाना चाहिये ।
 
युवा वर्ग के लिये आदेश का मार्ग तो है ही नहीं । संवाद का ही मार्ग है । समाजप्रबोधन के साथ साथ युवाओं से संवाद का मार्ग भी अपनाना चाहिये ।
Line 509: Line 480:  
=== प्रश्न ५४. ऐसी पाँच बातें बताइये जो हमें कठोरतापूर्वक हमारे दस से पन्द्रह वर्षों के बच्चोंं के लिये लागू करनी चाहिये । ===
 
=== प्रश्न ५४. ऐसी पाँच बातें बताइये जो हमें कठोरतापूर्वक हमारे दस से पन्द्रह वर्षों के बच्चोंं के लिये लागू करनी चाहिये । ===
 
'''उत्तर'''
 
'''उत्तर'''
 
+
# होटेलिंग शत प्रतिशत बन्द |
१, होटेलिंग शत प्रतिशत बन्द |
+
# ट्यूशन और गाईड बुक्स बन्द |
 
+
# प्रतिदिन एक घण्टा मैदानमें खेलना ।
2. ट्यूशन और गाईड बुक्स बन्द |
+
# प्रतिदिन एक घंटा घर का कोई भी काम जिम्मेदारी से करना।
 
+
# सूती कपड़े पहनना।
3. प्रतिदिन एक घण्टा मैदानमें खेलना ।
  −
 
  −
४. प्रतिदिन एक घंटा घर का कोई भी काम जिम्मेदारी से करना।
  −
 
  −
५. सूती कपड़े पहनना।
      
=== प्रश्न ५५. ऐसी पाँच बातें बताइयें जो हमें माध्यमिक विद्यालय के विद्यार्थियों से अनिवार्य रूप से करवानी चाहिये । (एक शिक्षक का प्रश्न) ===
 
=== प्रश्न ५५. ऐसी पाँच बातें बताइयें जो हमें माध्यमिक विद्यालय के विद्यार्थियों से अनिवार्य रूप से करवानी चाहिये । (एक शिक्षक का प्रश्न) ===
'''उत्तर''' १, प्रतिदिन बीस वाक्य मौलिकतापूर्वक शुद्ध भाषा में लिखना ।
+
'''उत्तर'''
 
+
# प्रतिदिन बीस वाक्य मौलिकतापूर्वक शुद्ध भाषा में लिखना ।
२. प्रतिदिन निश्चित की हुई पुस्तक के बीस पृष्ठ पढना ।
+
# प्रतिदिन निश्चित की हुई पुस्तक के बीस पृष्ठ पढना ।
 
+
# विद्यालय की सेवा हेतु प्रतिदिन आधा घण्टा काम करना ।
3. विद्यालय की सेवा हेतु प्रतिदिन आधा घण्टा काम करना ।
+
# पैदल चलकर अथवा साइकिल पर ही विद्यालय आना |
 
+
# सप्ताह में एक दिन टीवी नहीं देखना ।
४. पैदल चलकर अथवा साइकिल पर ही विद्यालय आना |
  −
 
  −
५. सप्ताह में एक दिन टीवी नहीं देखना ।
      
=== प्रश्न ५६. ऐसी पाँच बातें बताइये जो अच्छे शिक्षक बनने हेतु हमें आग्रहपूर्वक करनी चाहिये । (एक शिक्षक का प्रश्न) ===
 
=== प्रश्न ५६. ऐसी पाँच बातें बताइये जो अच्छे शिक्षक बनने हेतु हमें आग्रहपूर्वक करनी चाहिये । (एक शिक्षक का प्रश्न) ===
'''उत्तर''' १. प्रतिमास धार्मिक शिक्षाविषयक एक पुस्तक पढना।
+
'''उत्तर'''
 
+
# प्रतिमास धार्मिक शिक्षाविषयक एक पुस्तक पढना।
२. वर्ष में कम से कम एक बार शिक्षकों की गोष्ठी आयोजित करना अथवा उसमें जाना ।
+
# वर्ष में कम से कम एक बार शिक्षकों की गोष्ठी आयोजित करना अथवा उसमें जाना ।
 
+
# भाषा के अलावा शेष सारे विषय बिना पुस्तक के पढ़ाना ।
३. भाषा के अलावा शेष सारे विषय बिना पुस्तक के पढ़ाना ।
+
# वर्ष में एक बार अपने विद्यार्थी के घर जाना ।
 
+
# अभिभावकों की सभा में भाषण करना ।
४. वर्ष में एक बार अपने विद्यार्थी के घर जाना ।
  −
 
  −
५. अभिभावकों की सभा में भाषण करना ।
      
=== प्रश्न ५७. ऐसी एक पुस्तक का नाम दें जो भारत के हर शिक्षित व्यक्ति को पढनी और समझनी चाहिये । (एक जिज्ञासु का प्रश्र) ===
 
=== प्रश्न ५७. ऐसी एक पुस्तक का नाम दें जो भारत के हर शिक्षित व्यक्ति को पढनी और समझनी चाहिये । (एक जिज्ञासु का प्रश्र) ===
367

edits

Navigation menu