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३. अब तीन बातें साथ साथ चल रही थी । रानी विक्टोरिया का शासन ब्रिटीश सत्ता को दृढमूल बनाने के लिये और सन १८५७ के स्वातन्त्रयसंग्राम के पश्चात्परिणामों को समाप्त करने के लिये अधिक कठोरता से पेश आ रहा था । शिक्षा का भी विस्तार और सुदूद़दीकरण हो रहा था ।
 
३. अब तीन बातें साथ साथ चल रही थी । रानी विक्टोरिया का शासन ब्रिटीश सत्ता को दृढमूल बनाने के लिये और सन १८५७ के स्वातन्त्रयसंग्राम के पश्चात्परिणामों को समाप्त करने के लिये अधिक कठोरता से पेश आ रहा था । शिक्षा का भी विस्तार और सुदूद़दीकरण हो रहा था ।
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४. दूसरी ओर स्वतन्त्रता प्राप्ति का मानस भी अपना काम कर रहा था । भविष्य में जो भारत की स्वतन्त्रता के और राष्ट्रीय भावना के अपग्रदूत बनने वाले थे ऐसे अनेक आन्दोलनों के प्रणेताओं का जन्म भारतभूमि में हो रहा था । स्वामी विवेकानन्द, स्वामी दयानन्द सरस्वती, योगी अरविन्द, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी, डॉ. हेडगेवार, सुभाषचंद्र॒ बसु, जगदीश चन्द्र बसु, बदरीशाह ठुलधरिया, पंडित सुन्द्रलाल, शिवकर बापूजी तलपदे, केशव कृष्णजी  वझे आदि राष्ट्रसाधना और ज्ञानसाधना करने वाली अनेक प्रतिभायें पनप रही थीं ।
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४. दूसरी ओर स्वतन्त्रता प्राप्ति का मानस भी अपना काम कर रहा था । भविष्य में जो भारत की स्वतन्त्रता के और राष्ट्रीय भावना के अपग्रदूत बनने वाले थे ऐसे अनेक आन्दोलनों के प्रणेताओं का जन्म भारतभूमि में हो रहा था । स्वामी विवेकानन्द, स्वामी दयानन्द सरस्वती, योगी अरविन्द, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी, सुभाषचंद्र॒ बसु, जगदीश चन्द्र बसु, बदरीशाह ठुलधरिया, पंडित सुन्द्रलाल, शिवकर बापूजी तलपदे, केशव कृष्णजी  वझे आदि राष्ट्रसाधना और ज्ञानसाधना करने वाली अनेक प्रतिभायें पनप रही थीं ।
    
५. तीसरा, शिक्षा के धार्मिककरण के प्रयास भी आरम्भ होकर धीरे धीरे प्रस्तुत हो रहे थे । इन तीनों का एकदूसरे पर प्रभाव होना तो साहजिक ही था । शिक्षा के प्रयास एक ओर तो स्वतन्त्रता प्राप्ति की भावना के ही अंगरूप थे । तभी तो सभी प्रयासों को निरपवाद रूप से राष्ट्रीय शिक्षा आन्दोलन का ही अंगभूत माना गया । दूसरी ओर उसी कारण से वे प्रयास पूरी शक्ति के साथ नहीं हो रहे थे । ब्रिटीश शिक्षा के साथ उन्हें निरन्तर संघर्ष करना पड रहा था । यह भी युद्ध का बहुत महत्त्वपूर्ण मोर्चा था ।
 
५. तीसरा, शिक्षा के धार्मिककरण के प्रयास भी आरम्भ होकर धीरे धीरे प्रस्तुत हो रहे थे । इन तीनों का एकदूसरे पर प्रभाव होना तो साहजिक ही था । शिक्षा के प्रयास एक ओर तो स्वतन्त्रता प्राप्ति की भावना के ही अंगरूप थे । तभी तो सभी प्रयासों को निरपवाद रूप से राष्ट्रीय शिक्षा आन्दोलन का ही अंगभूत माना गया । दूसरी ओर उसी कारण से वे प्रयास पूरी शक्ति के साथ नहीं हो रहे थे । ब्रिटीश शिक्षा के साथ उन्हें निरन्तर संघर्ष करना पड रहा था । यह भी युद्ध का बहुत महत्त्वपूर्ण मोर्चा था ।

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