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| # इस दर्शन और भावना को कृति में उतारता है। अग्नि में अपवित्र पदार्थ जलाता नहीं है, पानी को गंदा करता नहीं है, पैर रखने के लिये भूमि की क्षमा माँगता है, अपने स्वार्थ के लिये वृक्षों को काटता नहीं है, कर्कश आवाज का निषेध करता है। दुरुपयोग कर किसी भी पदार्थ की अवमानना करता नहीं है। सजीव निर्जीव हर पदार्थ के साथ आत्मीयता का व्यवहार करता है। | | # इस दर्शन और भावना को कृति में उतारता है। अग्नि में अपवित्र पदार्थ जलाता नहीं है, पानी को गंदा करता नहीं है, पैर रखने के लिये भूमि की क्षमा माँगता है, अपने स्वार्थ के लिये वृक्षों को काटता नहीं है, कर्कश आवाज का निषेध करता है। दुरुपयोग कर किसी भी पदार्थ की अवमानना करता नहीं है। सजीव निर्जीव हर पदार्थ के साथ आत्मीयता का व्यवहार करता है। |
| # भारत जानता है कि पंचमहाभूतों का प्रदूषण रोकना तो फिर भी सरल है, तीन गुणों को प्रदूषणमुक्त रखना बहुत कठिन काम है। इसलिये भारत ने इनके लिये अधिक गम्भीरतापूर्वक प्रयास किये हैं। | | # भारत जानता है कि पंचमहाभूतों का प्रदूषण रोकना तो फिर भी सरल है, तीन गुणों को प्रदूषणमुक्त रखना बहुत कठिन काम है। इसलिये भारत ने इनके लिये अधिक गम्भीरतापूर्वक प्रयास किये हैं। |
− | # व्यक्तित्व विकास की हर साधना के साथ सद्गुण और सदाचार को जोडा है, संयम और सेवा को अपनाने का आग्रह किया है । रजोगुण को कम करने हेतु मन को शान्त करने के हजार उपाय बताये हैं। | + | # व्यक्तित्व विकास की हर साधना के साथ सद्गुण और सदाचार को जोड़ा है, संयम और सेवा को अपनाने का आग्रह किया है । रजोगुण को कम करने हेतु मन को शान्त करने के हजार उपाय बताये हैं। |
| # मन वश में हुआ तो बुद्धि की विपरीतता का उपाय हो ही जाता है। अहंकार की विनाशकता को जानकर भारत ने सर्व प्रकार से स्पर्धा को निष्कासित किया है । विनयशीलता, परिचर्या, शुश्रुषा, सेवा को महत्त्वपूर्ण गुण माना है। इन गुणों के बिना अनेक श्रेष्ठ बातें मिलेंगी नहीं ऐसा बन्धन निर्माण किया है। | | # मन वश में हुआ तो बुद्धि की विपरीतता का उपाय हो ही जाता है। अहंकार की विनाशकता को जानकर भारत ने सर्व प्रकार से स्पर्धा को निष्कासित किया है । विनयशीलता, परिचर्या, शुश्रुषा, सेवा को महत्त्वपूर्ण गुण माना है। इन गुणों के बिना अनेक श्रेष्ठ बातें मिलेंगी नहीं ऐसा बन्धन निर्माण किया है। |
| # सम्पन्नता, सामर्थ्य, विद्वत्ता पश्चिम के मनुष्य को उद्दण्डता बरतने का अधिकार देती है। भारत क्षमा, उदारता, विनय, सौजन्य से इनकी शोभा बढाने का परामर्श देता है। पश्चिम प्राप्ति को महत्त्व देता है। भारत प्राप्ति के बाद उसके त्याग को । विकास का मार्ग प्राप्ति और सामर्थ्य को पार करके आगे जाता है। | | # सम्पन्नता, सामर्थ्य, विद्वत्ता पश्चिम के मनुष्य को उद्दण्डता बरतने का अधिकार देती है। भारत क्षमा, उदारता, विनय, सौजन्य से इनकी शोभा बढाने का परामर्श देता है। पश्चिम प्राप्ति को महत्त्व देता है। भारत प्राप्ति के बाद उसके त्याग को । विकास का मार्ग प्राप्ति और सामर्थ्य को पार करके आगे जाता है। |