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९. परन्तु शिक्षा में ऐसा नहीं है । सब कुछ सरकार की पहल से ही तय होता है और चलता है । घर घरवालों का होता है परन्तु शिक्षा शिक्षावालों की नहीं है । शिक्षावालों से तात्पर्य है शिक्षक और विद्यार्थी । ये दोनों दूसरों द्वारा ही नियन्त्रित होते हैं ।
 
९. परन्तु शिक्षा में ऐसा नहीं है । सब कुछ सरकार की पहल से ही तय होता है और चलता है । घर घरवालों का होता है परन्तु शिक्षा शिक्षावालों की नहीं है । शिक्षावालों से तात्पर्य है शिक्षक और विद्यार्थी । ये दोनों दूसरों द्वारा ही नियन्त्रित होते हैं ।
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१०. अतः प्रथम बात तो है विद्यालय को घर के ही समान स्वायत्त बनाने की । शिक्षा विषयक जो सारी एडमिनिस्ट्रेटीव सिस्टम की ढह जाने की आकांक्षा है इसका तात्पर्य यह है कि प्रथम तो शिक्षा को मुक्त हवा में श्वास लेने देना चाहिये । सरकार यदि समझदार है तो सरकार स्वयं शिक्षा को मुक्त करेगी । यदि सरकार मुक्त नहीं करती तो शिक्षकों को अपनी तपश्चर्या के बल पर मुक्त करनी पडेगी
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१०. अतः प्रथम बात तो है विद्यालय को घर के ही समान स्वायत्त बनाने की । शिक्षा विषयक जो सारी एडमिनिस्ट्रेटीव सिस्टम की ढह जाने की आकांक्षा है इसका तात्पर्य यह है कि प्रथम तो शिक्षा को मुक्त हवा में श्वास लेने देना चाहिये । सरकार यदि समझदार है तो सरकार स्वयं शिक्षा को मुक्त करेगी । यदि सरकार मुक्त नहीं करती तो शिक्षकों को अपनी तपश्चर्या के बल पर मुक्त करनी पड़ेगी
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११. सरकार मुक्त कर भी दे तो भी प्रश्न रहेगा शिक्षकों के सामर्थ्य का । सामर्थ्य के दो पहलू होंगे । ज्ञान और साहस । शिक्षकों को ज्ञानसाधना करनी पडेगी और साहस भी ज़ुटाना पडेगा । यह सरल कार्य नहीं है । आज जिन्हें शिक्षक कहा जाता है उनमें से बहुत कम लोग ऐसा साहस जुटा पायेंगे ।
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११. सरकार मुक्त कर भी दे तो भी प्रश्न रहेगा शिक्षकों के सामर्थ्य का । सामर्थ्य के दो पहलू होंगे । ज्ञान और साहस । शिक्षकों को ज्ञानसाधना करनी पड़ेगी और साहस भी ज़ुटाना पड़ेगा । यह सरल कार्य नहीं है । आज जिन्हें शिक्षक कहा जाता है उनमें से बहुत कम लोग ऐसा साहस जुटा पायेंगे ।
    
१२. परिणाम स्वरूप साधना करने वाले समर्थ शिक्षकों की
 
१२. परिणाम स्वरूप साधना करने वाले समर्थ शिक्षकों की
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होगी । शिक्षाशास््र के एक विभाग के रूप में गर्भावस्‍था और शिशुअवस्था की शिक्षा का शास्त्र बनाना पडेगा और उसके लिये साहित्य भी तैयार करना पड़ेगा ।
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होगी । शिक्षाशास््र के एक विभाग के रूप में गर्भावस्‍था और शिशुअवस्था की शिक्षा का शास्त्र बनाना पड़ेगा और उसके लिये साहित्य भी तैयार करना पड़ेगा ।
    
४५. आज देश में सरकारी और गैरसरकारी स्तर पर लाखों की संख्या में प्राथमिक विद्यालय चल रहे हैं जिनमें पढ़ने वाले बच्चों की संख्या करोडों में होगी । इन विद्यालयों के सम्बन्ध में पहली ही महत्त्वपूर्ण बात यह है कि शिक्षक पढायें । आठ वर्ष की पढाई के बाद भी विद्यार्थियों को यदि पढ़ना लिखना नहीं आता है तो जिम्मेदार शिक्षक ही हैं ।
 
४५. आज देश में सरकारी और गैरसरकारी स्तर पर लाखों की संख्या में प्राथमिक विद्यालय चल रहे हैं जिनमें पढ़ने वाले बच्चों की संख्या करोडों में होगी । इन विद्यालयों के सम्बन्ध में पहली ही महत्त्वपूर्ण बात यह है कि शिक्षक पढायें । आठ वर्ष की पढाई के बाद भी विद्यार्थियों को यदि पढ़ना लिखना नहीं आता है तो जिम्मेदार शिक्षक ही हैं ।
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६५. वर्ष प्रतिवर्ष हम शिकायत ही करते रहते हैं और प्रश्न ही पूछते हैं । प्रश्नों का ही विस्तार होता है । प्रश्न की पाश्चभूमि बताते हैं परन्तु उत्तर नहीं देतें । देते हैं तो वे संदिग्ध ही होते हैं । देश में चल रही विद्वचर्या का यही स्वरूप है ।
 
६५. वर्ष प्रतिवर्ष हम शिकायत ही करते रहते हैं और प्रश्न ही पूछते हैं । प्रश्नों का ही विस्तार होता है । प्रश्न की पाश्चभूमि बताते हैं परन्तु उत्तर नहीं देतें । देते हैं तो वे संदिग्ध ही होते हैं । देश में चल रही विद्वचर्या का यही स्वरूप है ।
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६६. स्पष्ट उत्तर यह है कि शिक्षा में परिवर्तन ही प्रथम होगा, बाद में अन्य व्यवस्थाओं का । कारण भी स्पष्ट है। अन्य व्यवस्थाओं में परिवर्तन करने वाले लोगोंं को भी शिक्षित और दीक्षित करना पडेगा । यह शिक्षा का ही कार्य है । इसलिये प्रारम्भ शिक्षा से होना व्यावहारिक है ।
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६६. स्पष्ट उत्तर यह है कि शिक्षा में परिवर्तन ही प्रथम होगा, बाद में अन्य व्यवस्थाओं का । कारण भी स्पष्ट है। अन्य व्यवस्थाओं में परिवर्तन करने वाले लोगोंं को भी शिक्षित और दीक्षित करना पड़ेगा । यह शिक्षा का ही कार्य है । इसलिये प्रारम्भ शिक्षा से होना व्यावहारिक है ।
    
६७. शिक्षा तन्त्र के शैक्षिक पक्ष में क्या होना चाहिये और कैसे होना चाहिये इस सम्बन्ध में विपुल साहित्य और मार्गदर्शन उपलब्ध है । प्राचीनतम काल से अवचिीनतम काल तक का यह मार्गदर्शन है । परन्तु इसका कोई उपयोग नहीं है क्योंकि यान्त्रिक परीक्षा सारे प्रयासों को इस प्रकार जकडती है कि किसी मनीषी की कुछ नहीं चलती ।
 
६७. शिक्षा तन्त्र के शैक्षिक पक्ष में क्या होना चाहिये और कैसे होना चाहिये इस सम्बन्ध में विपुल साहित्य और मार्गदर्शन उपलब्ध है । प्राचीनतम काल से अवचिीनतम काल तक का यह मार्गदर्शन है । परन्तु इसका कोई उपयोग नहीं है क्योंकि यान्त्रिक परीक्षा सारे प्रयासों को इस प्रकार जकडती है कि किसी मनीषी की कुछ नहीं चलती ।

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