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४८. नहीं पढाने का ठेका कवल प्राथमिक विद्यालयों तक सीमित नहीं है । इसका विस्तार विश्वविद्यालयों तक हुआ है जिसके नमूने अत्यन्त घटिया किसम के शोधनिबन्धों के रूप में दिखाई देते हैं जो पीएचडी की पदवी प्राप्त करने हेतु स्वे जाते हैं ।
 
४८. नहीं पढाने का ठेका कवल प्राथमिक विद्यालयों तक सीमित नहीं है । इसका विस्तार विश्वविद्यालयों तक हुआ है जिसके नमूने अत्यन्त घटिया किसम के शोधनिबन्धों के रूप में दिखाई देते हैं जो पीएचडी की पदवी प्राप्त करने हेतु स्वे जाते हैं ।
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४९. व्यवस्था नहीं पढ़ाने वाले छोटे से छोटे या बडे से बडे शिक्षक का कुछ नहीं बिगाड सकती क्योंकि ऐसा करने की उसमें क्षमता ही नहीं होती । जिस प्रकार निर्जीव मृतदेह पेड के सूखे पत्ते को भी नहीं हिला सकता उसी प्रकार जड व्यवस्था जीवित शिक्षक को कुछ नहीं कर सकती ।
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४९. व्यवस्था नहीं पढ़ाने वाले छोटे से छोटे या बडे से बडे शिक्षक का कुछ नहीं बिगाड सकती क्योंकि ऐसा करने की उसमें क्षमता ही नहीं होती । जिस प्रकार निर्जीव मृतदेह पेड के सूखे पत्ते को भी नहीं हिला सकता उसी प्रकार जड़ व्यवस्था जीवित शिक्षक को कुछ नहीं कर सकती ।
    
५०. शिक्षको को हाथ जोडकर, शीश नवाकर, उनके समक्ष घुटने टेककर, उनका अनुनय विनय कर, उनमें विश्वास जता कर उनके सम्बन्ध में बने सभी कानूनों और नियमों को समाप्त कर, उन्हें wea कर ही उन्हें पढाने वाले शिक्षक बनाया जा सकता है । विद्यालय और नकारात्मक दोनों अर्थों में यह सही है । हमारा विनय जितना सही होगा उतना हमें अधिक संख्या में सही शिक्षक मिलेंगे । जितना नकारात्मक होगा उतने ही गैरशिक्षक मिलेंगे ।
 
५०. शिक्षको को हाथ जोडकर, शीश नवाकर, उनके समक्ष घुटने टेककर, उनका अनुनय विनय कर, उनमें विश्वास जता कर उनके सम्बन्ध में बने सभी कानूनों और नियमों को समाप्त कर, उन्हें wea कर ही उन्हें पढाने वाले शिक्षक बनाया जा सकता है । विद्यालय और नकारात्मक दोनों अर्थों में यह सही है । हमारा विनय जितना सही होगा उतना हमें अधिक संख्या में सही शिक्षक मिलेंगे । जितना नकारात्मक होगा उतने ही गैरशिक्षक मिलेंगे ।

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