Line 488: |
Line 488: |
| सृष्टि परमात्मा का विश्वरूप है, अंगांगी सम्बन्ध, समग्रता की | | सृष्टि परमात्मा का विश्वरूप है, अंगांगी सम्बन्ध, समग्रता की |
| | | |
− | आवश्यकता, सृष्टि का समग्र स्वरूप, चिज्जडग्रन्थि, मनुष्य का | + | आवश्यकता, सृष्टि का समग्र स्वरूप, चिज्जड़ग्रन्थि, मनुष्य का |
| | | |
| दायित्व, अनुप्रश्न | | दायित्व, अनुप्रश्न |
Line 1,378: |
Line 1,378: |
| उसने वास किया । जो आश्रयरूप है या नहीं है, जिसका | | उसने वास किया । जो आश्रयरूप है या नहीं है, जिसका |
| | | |
− | वर्णन किया जाता है या नहीं किया जाता है, जो जड़ है या | + | वर्णन किया जाता है या नहीं किया जाता है, जो जड़़ है या |
| | | |
| चेतन है, जो सत्य है या अनृत अर्थात् असत्य है । ये सारे | | चेतन है, जो सत्य है या अनृत अर्थात् असत्य है । ये सारे |
Line 1,724: |
Line 1,724: |
| और प्रकृति ऐसी तीन इकाइयाँ हुईं । पुरुष चेतन तत्त्व है, | | और प्रकृति ऐसी तीन इकाइयाँ हुईं । पुरुष चेतन तत्त्व है, |
| | | |
− | प्रकृति जड़ तत्त्व है और परमात्मा जड़ और चेतन दोनों से | + | प्रकृति जड़़ तत्त्व है और परमात्मा जड़़ और चेतन दोनों से |
| | | |
| ............. page-23 ............. | | ............. page-23 ............. |
Line 1,730: |
Line 1,730: |
| we : १ तत्त्वचिन्तन | | we : १ तत्त्वचिन्तन |
| | | |
− | परे है । वह जड़ भी है, चेतन भी है । अथवा जड़ भी नहीं | + | परे है । वह जड़़ भी है, चेतन भी है । अथवा जड़़ भी नहीं |
| | | |
| है, चेतन भी नहीं है। “नहीं है' कहने से 'है' कहना | | है, चेतन भी नहीं है। “नहीं है' कहने से 'है' कहना |
Line 1,736: |
Line 1,736: |
| अधिक युक्तिसंगत है क्योंकि जो नहीं है उसमें से 'है' कैसे | | अधिक युक्तिसंगत है क्योंकि जो नहीं है उसमें से 'है' कैसे |
| | | |
− | उत्पन्न होगा ? इसलिये परमात्मा जड़ भी है और चेतन भी | + | उत्पन्न होगा ? इसलिये परमात्मा जड़़ भी है और चेतन भी |
| | | |
| है। | | है। |
Line 1,746: |
Line 1,746: |
| प्रकृति सक्रिय हैं । दोनों मिलकर सृष्टि के रूप में विकसित | | प्रकृति सक्रिय हैं । दोनों मिलकर सृष्टि के रूप में विकसित |
| | | |
− | होते हैं । दोनों के मिलन को चिज्जडग्रन्थि अर्थात् चेतन | + | होते हैं । दोनों के मिलन को चिज्जड़ग्रन्थि अर्थात् चेतन |
| | | |
− | और जड़ की गाँठ कहते हैं । यह गाँठ ऐसी है कि अब | + | और जड़़ की गाँठ कहते हैं । यह गाँठ ऐसी है कि अब |
| | | |
| दोनों को एकदूसरे से अलग पहचाना नहीं जाता है । जहाँ | | दोनों को एकदूसरे से अलग पहचाना नहीं जाता है । जहाँ |
| | | |
− | भी हो दोनों साथ में रहते हैं । यह चेतन और जड़ का आदि | + | भी हो दोनों साथ में रहते हैं । यह चेतन और जड़़ का आदि |
| | | |
| ग्रन्थन है जहाँ से सृष्टि रचना प्रारम्भ होती है । | | ग्रन्थन है जहाँ से सृष्टि रचना प्रारम्भ होती है । |
Line 1,772: |
Line 1,772: |
| oft. rai. at. 23/28 | | oft. rai. at. 23/28 |
| | | |
− | चेतन और जड़ के संयोग से अब प्रकृति में परिवर्तन | + | चेतन और जड़़ के संयोग से अब प्रकृति में परिवर्तन |
| | | |
| प्रारम्भ होता है । इस अनन्त वैविध्यपूर्ण सृष्टि के मूल रूप | | प्रारम्भ होता है । इस अनन्त वैविध्यपूर्ण सृष्टि के मूल रूप |