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से उन्होंने राज्य हथियाना प्रारम्भ किया । ब्रिटीशों का दूसरा उद्देश्य था भारत का इसाईकरण करना । इस उद्देश्य की पूर्ति
 
से उन्होंने राज्य हथियाना प्रारम्भ किया । ब्रिटीशों का दूसरा उद्देश्य था भारत का इसाईकरण करना । इस उद्देश्य की पूर्ति
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के लिये उन्होंने वनवासी, गिरिवासी, निर्धन लोगों को लक्ष्य बनाया, वर्गभेद निर्माण किये, भारत की समाज व्यवस्था को
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के लिये उन्होंने वनवासी, गिरिवासी, निर्धन लोगोंं को लक्ष्य बनाया, वर्गभेद निर्माण किये, भारत की समाज व्यवस्था को
    
ऊँचनीच का स्वरूप दिया, एक वर्ग को उच्च और दूसरे वर्ग को नीच बताकर उच्च वर्ग को अत्याचारी और नीच वर्ग को
 
ऊँचनीच का स्वरूप दिया, एक वर्ग को उच्च और दूसरे वर्ग को नीच बताकर उच्च वर्ग को अत्याचारी और नीच वर्ग को
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ग्रन्थों के विभिन्न विषयों पर प्रश्नावलियाँ बनाकर सम्बन्धित समूहों को भेज कर उनसे उत्तर मँगवाकर उनका संकलन किया
 
ग्रन्थों के विभिन्न विषयों पर प्रश्नावलियाँ बनाकर सम्बन्धित समूहों को भेज कर उनसे उत्तर मँगवाकर उनका संकलन किया
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गया और निष्कर्ष निकाले गये । इन प्रश्नावलियों के माध्यम से कम से कम पाँच हजार लोगों तक पहुंचना हुआ । इसी
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गया और निष्कर्ष निकाले गये । इन प्रश्नावलियों के माध्यम से कम से कम पाँच हजार लोगोंं तक पहुंचना हुआ । इसी
    
प्रकार से अध्ययन यात्रा का आयोजन किया गया जिसमें देश के विभिन्न महानगरों में जाकर विद्वान प्राध्यापकों से मार्गदर्शन
 
प्रकार से अध्ययन यात्रा का आयोजन किया गया जिसमें देश के विभिन्न महानगरों में जाकर विद्वान प्राध्यापकों से मार्गदर्शन
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आधार पर निष्कर्ष, मुद्रित शोधन, चिकित्सक बुद्धि से पठन, आदि सन्दर्भ कार्यों में अनेकानेक लोग सहभागी हुए । इस
 
आधार पर निष्कर्ष, मुद्रित शोधन, चिकित्सक बुद्धि से पठन, आदि सन्दर्भ कार्यों में अनेकानेक लोग सहभागी हुए । इस
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प्रकार इन ग्रन्थों का निर्माण सामूहिक प्रयास का फल है । इसमें सहभागी प्रमुख लोगों की सूची भी इतनी लम्बी है कि
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प्रकार इन ग्रन्थों का निर्माण सामूहिक प्रयास का फल है । इसमें सहभागी प्रमुख लोगोंं की सूची भी इतनी लम्बी है कि
    
उसे यहाँ नहीं दी जा सकती । उसे परिशिष्ट में दिया गया है । पुनरुत्थान विद्यापीठ उन सभी सहायकों और सहभागियों का
 
उसे यहाँ नहीं दी जा सकती । उसे परिशिष्ट में दिया गया है । पुनरुत्थान विद्यापीठ उन सभी सहायकों और सहभागियों का
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विद्यार्थी से लेकर किसी भी विषय का अध्ययन करने वाले अध्यापक अथवा किसी भी क्षेत्र में कार्यरत विद्वानों, समाज
 
विद्यार्थी से लेकर किसी भी विषय का अध्ययन करने वाले अध्यापक अथवा किसी भी क्षेत्र में कार्यरत विद्वानों, समाज
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का हित चाहने वाले राजनीति के क्षेत्र के लोगों तथा सन्तों, धर्माचार्यो, आदि सबका यह विषय बनता है । शिक्षा के
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का हित चाहने वाले राजनीति के क्षेत्र के लोगोंं तथा सन्तों, धर्माचार्यो, आदि सबका यह विषय बनता है । शिक्षा के
    
पश्चिमीकरण ने अर्थक्षेत्र, राजनीति, शासन, समाज व्यवस्था, कुटुम्ब जीवन, उद्योगतन्त्र आदि सभी क्षेत्रों को प्रभावित किया
 
पश्चिमीकरण ने अर्थक्षेत्र, राजनीति, शासन, समाज व्यवस्था, कुटुम्ब जीवन, उद्योगतन्त्र आदि सभी क्षेत्रों को प्रभावित किया
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है इसलिये धार्मिककरण भी सभी क्षेत्रों के सरोकार का विषय बनेगा । शिक्षा अपने आपमें तो ऐसा कोई विषय नहीं है ।
 
है इसलिये धार्मिककरण भी सभी क्षेत्रों के सरोकार का विषय बनेगा । शिक्षा अपने आपमें तो ऐसा कोई विषय नहीं है ।
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अतः सभी क्षेत्रों में कार्यरत लोगों को अपने अपने क्षेत्र के विचार और व्यवस्था के सम्बन्ध में तथा शिक्षा के सम्बन्ध में
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अतः सभी क्षेत्रों में कार्यरत लोगोंं को अपने अपने क्षेत्र के विचार और व्यवस्था के सम्बन्ध में तथा शिक्षा के सम्बन्ध में
    
साथ साथ विचार करना होगा । धार्मिककरण का विचार भी समग्रता में ही हो सकता है ।
 
साथ साथ विचार करना होगा । धार्मिककरण का विचार भी समग्रता में ही हो सकता है ।
Line 308: Line 308:  
सुधी लोग आवश्यकता के अनुसार इस विषय को आगे बढ़ाते ही रहेंगे ऐसा विश्वास है ।
 
सुधी लोग आवश्यकता के अनुसार इस विषय को आगे बढ़ाते ही रहेंगे ऐसा विश्वास है ।
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इस ग्रन्थमाला के माध्यम से विद्यापीठ ऐसे सभी लोगों का धार्मिक शिक्षा के विषय पर ध्रुवीकरण करना चाहता है
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इस ग्रन्थमाला के माध्यम से विद्यापीठ ऐसे सभी लोगोंं का धार्मिक शिक्षा के विषय पर ध्रुवीकरण करना चाहता है
    
जो धार्मिक शिक्षा के विषय में चिन्तित हैं, कुछ करना चाहते हैं, अन्यान्य प्रकार से कुछ कर रहे हैं और जिज्ञासु और
 
जो धार्मिक शिक्षा के विषय में चिन्तित हैं, कुछ करना चाहते हैं, अन्यान्य प्रकार से कुछ कर रहे हैं और जिज्ञासु और
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समग्रता की चर्चा हुए पाँच दिन बीत गये थे । भारत
 
समग्रता की चर्चा हुए पाँच दिन बीत गये थे । भारत
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के सामान्य लोगों के सामान्य व्यवहार में भी समग्रता की
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के सामान्य लोगोंं के सामान्य व्यवहार में भी समग्रता की
    
दृष्टि किस प्रकार अनुस्यूत रहती है यह जानकर सब हैरान
 
दृष्टि किस प्रकार अनुस्यूत रहती है यह जानकर सब हैरान
Line 2,186: Line 2,186:  
हमने आपस में चर्चा की थी । एक दो दिन तो हमने नगर
 
हमने आपस में चर्चा की थी । एक दो दिन तो हमने नगर
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में सर्वसामान्य लोगों से सम्पर्क भी किया । हमने देखा कि
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में सर्वसामान्य लोगोंं से सम्पर्क भी किया । हमने देखा कि
    
शिक्षित, सम्पन्न और अपने आपको आधुनिक और शिक्षित
 
शिक्षित, सम्पन्न और अपने आपको आधुनिक और शिक्षित
Line 2,208: Line 2,208:  
शिक्षित, कम आय वाले, सामान्य काम कर अधथर्जिन करने
 
शिक्षित, कम आय वाले, सामान्य काम कर अधथर्जिन करने
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वाले, अपने आपको आधुनिक न कहने वाले लोगों को
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वाले, अपने आपको आधुनिक न कहने वाले लोगोंं को
    
मिले तब इन विषयों में उनकी आस्था दिखाई दी । वे भी
 
मिले तब इन विषयों में उनकी आस्था दिखाई दी । वे भी
Line 2,242: Line 2,242:  
अज्ञान और अनास्था क्यों दिखाई देते हैं ? यह शिक्षित
 
अज्ञान और अनास्था क्यों दिखाई देते हैं ? यह शिक्षित
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लोगों की समस्या है या उन्होंने समस्या निर्माण की है ?
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लोगोंं की समस्या है या उन्होंने समस्या निर्माण की है ?
    
हमारी व्यवस्थायें इतनी विपरीत कैसे हो गईं ? यह सब
 
हमारी व्यवस्थायें इतनी विपरीत कैसे हो गईं ? यह सब
Line 2,254: Line 2,254:  
आपके प्रश्न में ही कदाचित उत्तर भी है । समस्या
 
आपके प्रश्न में ही कदाचित उत्तर भी है । समस्या
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शिक्षित लोगों की है और शिक्षित लोगों द्वारा निर्मित भी है ।
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शिक्षित लोगोंं की है और शिक्षित लोगोंं द्वारा निर्मित भी है ।
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कारण यह है कि परम्परा से लोगों को जो दृष्टि प्राप्त होती है
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कारण यह है कि परम्परा से लोगोंं को जो दृष्टि प्राप्त होती है
    
उसका स्रोत विद्याकेन्द्र होते हैं । विद्याकेन्द्रों में जीवन से
 
उसका स्रोत विद्याकेन्द्र होते हैं । विद्याकेन्द्रों में जीवन से
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सौंपकर पाण्डब हिमालय चले गये । उसी समय कलियुग
 
सौंपकर पाण्डब हिमालय चले गये । उसी समय कलियुग
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का प्राम्भ हुआ । कलियुग के प्रभाव से लोगों की
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का प्राम्भ हुआ । कलियुग के प्रभाव से लोगोंं की
    
............. page-27 .............
 
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Line 2,328: Line 2,328:  
आवश्यकता होती है । एक सन्दर्भ है समय का । अब ट्रापर
 
आवश्यकता होती है । एक सन्दर्भ है समय का । अब ट्रापर
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युग नहीं था । पंचमहाभूतों की गुणवत्ता, लोगों की समझ
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युग नहीं था । पंचमहाभूतों की गुणवत्ता, लोगोंं की समझ
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और मानस, लोगों की कार्यशक्ति आदि सभी में परिवर्तन
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और मानस, लोगोंं की कार्यशक्ति आदि सभी में परिवर्तन
    
हुआ था । इन कारणों से जो द्वापर युग में स्वाभाविक था
 
हुआ था । इन कारणों से जो द्वापर युग में स्वाभाविक था
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विचार करना था । दूसरा, जो भी निष्कर्ष निकलेंगे उन्हें
 
विचार करना था । दूसरा, जो भी निष्कर्ष निकलेंगे उन्हें
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लोगों तक कैसे पहुँचाना इसका भी विचार करना था । यह
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लोगोंं तक कैसे पहुँचाना इसका भी विचार करना था । यह
    
कार्य सरल भी नहीं था और शीघ्रता से भी होने वाला नहीं
 
कार्य सरल भी नहीं था और शीघ्रता से भी होने वाला नहीं
Line 2,348: Line 2,348:  
था। बारह वर्ष की दीर्घ अवधि में उन्होंने यह कार्य
 
था। बारह वर्ष की दीर्घ अवधि में उन्होंने यह कार्य
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किया । सर्वसामान्य लोगों के दैनंदिन जीवन की छोटी से
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किया । सर्वसामान्य लोगोंं के दैनंदिन जीवन की छोटी से
    
छोटी व्यवस्थाओं के लिये निर्देश तैयार किये । हम कल्पना
 
छोटी व्यवस्थाओं के लिये निर्देश तैयार किये । हम कल्पना
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०... अध्यात्म, . बुद्धिविकास, cle, oe,
 
०... अध्यात्म, . बुद्धिविकास, cle, oe,
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व्यवहारज्ञान को ध्यान में रखकर सामान्य लोगों को
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व्यवहारज्ञान को ध्यान में रखकर सामान्य लोगोंं को
    
कहीं पर भी सुलभ हों ऐसे खेलों, गीतों, कहानियों
 
कहीं पर भी सुलभ हों ऐसे खेलों, गीतों, कहानियों
Line 2,440: Line 2,440:  
माध्यम होती है । जब तक भारत में धार्मिक शिक्षा चली ये
 
माध्यम होती है । जब तक भारत में धार्मिक शिक्षा चली ये
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सारी बातें परम्परा के रूप में लोगों के व्यवहार में और मानस
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सारी बातें परम्परा के रूप में लोगोंं के व्यवहार में और मानस
    
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लगीं । अज्ञान और अनास्था बढ़ते गये और मानसिकता तथा
 
लगीं । अज्ञान और अनास्था बढ़ते गये और मानसिकता तथा
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व्यवस्थायें बदलती गईं । स्वाभाविक है कि शिक्षित लोगों में
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व्यवस्थायें बदलती गईं । स्वाभाविक है कि शिक्षित लोगोंं में
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इनकी मात्रा अधिक है । कम शिक्षित लोगों की स्थिति
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इनकी मात्रा अधिक है । कम शिक्षित लोगोंं की स्थिति
    
ट्रिधायुक्त है । वे परम्पराओं को आस्थापूर्वक रखना भी चाहते
 
ट्रिधायुक्त है । वे परम्पराओं को आस्थापूर्वक रखना भी चाहते
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हैं परन्तु शिक्षित लोगों ने बनाया हुआ सजमाना' ऐसा करने
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हैं परन्तु शिक्षित लोगोंं ने बनाया हुआ सजमाना' ऐसा करने
    
नहीं देता । इसलिये धार्मिक व्यवस्था के अवशेष तो दिखाई
 
नहीं देता । इसलिये धार्मिक व्यवस्था के अवशेष तो दिखाई
Line 2,630: Line 2,630:  
इस सामान्य जन का बहुत सहयोग प्राप्त होगा । फिर भी
 
इस सामान्य जन का बहुत सहयोग प्राप्त होगा । फिर भी
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शिक्षित लोगों को भी साथ में तो लेना ही होगा । कारण
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शिक्षित लोगोंं को भी साथ में तो लेना ही होगा । कारण
    
यह है कि इस कठिन परिस्थिति से उबरने के प्रयास तो
 
यह है कि इस कठिन परिस्थिति से उबरने के प्रयास तो
Line 2,640: Line 2,640:  
2 ५.
 
2 ५.
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शिक्षित लोगों के सहयोग की
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शिक्षित लोगोंं के सहयोग की
    
आवश्यकता रहेगी । हमें अपने शिक्षाक्षेत्र को परिष्कृत
 
आवश्यकता रहेगी । हमें अपने शिक्षाक्षेत्र को परिष्कृत
Line 2,715: Line 2,715:  
कीर्तिमान भी थे । लगभग सबने कई ग्रन्थों का लेखन किया
 
कीर्तिमान भी थे । लगभग सबने कई ग्रन्थों का लेखन किया
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था। कुछ लोगों ने विश्व की अनेक शिक्षासंस्थाओं में
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था। कुछ लोगोंं ने विश्व की अनेक शिक्षासंस्थाओं में
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व्याख्यान हेतु प्रवास भी किया था । अनेक लोगों को अपने
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व्याख्यान हेतु प्रवास भी किया था । अनेक लोगोंं को अपने
    
देश में और अन्य देशों में पुरस्कार भी प्राप्त हुए थे । कुछ
 
देश में और अन्य देशों में पुरस्कार भी प्राप्त हुए थे । कुछ
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a |
 
a |
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लोगों के पास जब धन नहीं होता है तब वे अभावों
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लोगोंं के पास जब धन नहीं होता है तब वे अभावों
    
में जीते हैं। अभावों में जीने वाला असन्तुष्ट रहता है,
 
में जीते हैं। अभावों में जीने वाला असन्तुष्ट रहता है,
Line 3,273: Line 3,273:  
उसका मन कुंठा से ग्रस्त रहता है । समाज में जब कुंठाग्रस्त
 
उसका मन कुंठा से ग्रस्त रहता है । समाज में जब कुंठाग्रस्त
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लोगों की संख्या अधिक रहती है तब नैतिकता कम होती
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लोगोंं की संख्या अधिक रहती है तब नैतिकता कम होती
    
है। कहा है न, “बुभुक्षित: कि न करोति पाप॑' - भूखा
 
है। कहा है न, “बुभुक्षित: कि न करोति पाप॑' - भूखा
Line 3,443: Line 3,443:  
इस प्रकार आचार्य वैभव नारायण के आर्थिक विकास
 
इस प्रकार आचार्य वैभव नारायण के आर्थिक विकास
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को ही विकास बताने वाले विचार पर अनेक लोगों ने
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को ही विकास बताने वाले विचार पर अनेक लोगोंं ने
    
आपत्ति उठाई । संस्कार पक्ष को आप्रहपूर्वक स्थापित
 
आपत्ति उठाई । संस्कार पक्ष को आप्रहपूर्वक स्थापित
Line 3,641: Line 3,641:  
इसके विपरीत धर्म को लेकर विवाद भी बहुत अधिक हो
 
इसके विपरीत धर्म को लेकर विवाद भी बहुत अधिक हो
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रहे थे । ऐसे विवादों में इनमें से भी कई लोगों ने भाग लिया
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रहे थे । ऐसे विवादों में इनमें से भी कई लोगोंं ने भाग लिया
    
था । इसलिये आचार्य श्रीपति का कथन शान्त पानी में
 
था । इसलिये आचार्य श्रीपति का कथन शान्त पानी में

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