− | और जब धर्म बुद्धि का क्षय हुआ तो उस में से एक तीसरी जो नई प्रवृत्ति आयी उससे बचने के लिए हमने यह कहना आरम्भ कर दिया कि भाई परम्परागत समाज में कुछ बुराइयाँ थीं, त्रुटियाँ थी या परम्परा प्रस्तुत नहीं रह गई, प्रासंगिक नहीं रह गई। और एक शब्दावली चली 'Modernization of Traditions'| परम्परा का आधुनिकीकरण होना चाहिए। या कुछ लोग कहते हैं कि दोनों में सामंजस्य बिठा लीजिये। यह वैसा ही काम है जैसा कि आग व पानी में सामंजस्य बिठाने का काम करना । पानी की अधिकता से या तो आग बुझ जायेगी या पानी भाप बन जायेगा, उनमें कोई सामंजस्य नहीं हो सकता। अगर दोनों एक ही प्रकार के वृक्ष हैं तो शायद उनका या एक ही प्रकार की चीजें हैं तो शायद उनका समन्वय सम्भव हो। लेकिन जो विरोधी चीजें हैं, उनका समन्वय कैसे होगा ? उसमें तो क्या होगा, जो चीज प्रबल होगी वह निर्बल चीज को खा जायेगी, उसे समाप्त कर देगी, उसका अस्तित्व नष्ट कर देगी। आधुनिकता के जो मूलाधार हैं जो foundations हैं, शक्ति केन्द्रित राजनीति, लाभ केन्द्रित अर्थव्यवस्था, स्वार्थ केन्द्रित समाज और सामाजिक सम्बन्ध, ये संक्षेप में आधुनिकता के मूल सिद्धान्त हैं। कला एक मनोरंजन है, व्यवसाय है। ये पश्चिमी आधुनिकता के सिद्धान्त है। धार्मिक दृष्टि है, राजनीति धर्म के अधीन हो, राजीनति सेवा के लिए हों, अर्थ आयाम कभी लोभ या लाभ से दूषित नहीं होना चाहिए, समाज में धन की ज्यादा प्रतिष्ठा नहीं होनी चाहिए, समाज में धनिक तो हों लेकिन धनिक हमेशा धर्म की मर्यादा में रहें । कला व साहित्य साधना है, भगवद् उपासना है, केवल मनोरंजन नहीं है, मनोरंजन हो जाय तो हो जाय लेकिन उनका साध्य यह नहीं है। जो कला है वह catharsis यानि शुद्धिकरण का माध्यम है, आत्मा की शुद्धि का साधन है । संगीत आत्मा की शुद्धि का साधन है, आत्मोपलब्धि का साधन है, यह धार्मिक दृष्टि है। अब पूर्व और पश्चिम दोनों का समन्वय कैसे हो सकता है ? जैसे रहीमने कहा -<blockquote>'''<nowiki/>'कहो रहीम कैसे निभे बेर केर को संग ।''' </blockquote><blockquote>'''वे डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग ॥''''</blockquote>अब आप केर के पेड़ को और बेर के पेड़ को साथ साथ लगा दो और कहो कि दोनों लोग शान्ति से रहे. सहअस्तित्व से रहे। तो क्या आपकी शिक्षा से सहअस्तित्व कायम हो जायेगा ? जब पश्चिमी सभ्यता powerful साबित हुई तो हम को उसने खाने की पूरी कौशिश की। हम उसके आगे टिक नहीं पाये । यह नहीं कि हम उनसे श्रेष्ठ नहीं थे, शक्ति उनके पास ज्यादा थी। उनकी शक्ति से हम लोग परास्त हो गये । ऐसा नहीं था कि वे हमसे श्रेष्ठ थे। | + | और जब धर्म बुद्धि का क्षय हुआ तो उस में से एक तीसरी जो नई प्रवृत्ति आयी उससे बचने के लिए हमने यह कहना आरम्भ कर दिया कि भाई परम्परागत समाज में कुछ बुराइयाँ थीं, त्रुटियाँ थी या परम्परा प्रस्तुत नहीं रह गई, प्रासंगिक नहीं रह गई। और एक शब्दावली चली 'Modernization of Traditions'| परम्परा का आधुनिकीकरण होना चाहिए। या कुछ लोग कहते हैं कि दोनों में सामंजस्य बिठा लीजिये। यह वैसा ही काम है जैसा कि आग व पानी में सामंजस्य बिठाने का काम करना । पानी की अधिकता से या तो आग बुझ जायेगी या पानी भाप बन जायेगा, उनमें कोई सामंजस्य नहीं हो सकता। अगर दोनों एक ही प्रकार के वृक्ष हैं तो शायद उनका या एक ही प्रकार की चीजें हैं तो शायद उनका समन्वय सम्भव हो। लेकिन जो विरोधी चीजें हैं, उनका समन्वय कैसे होगा ? उसमें तो क्या होगा, जो चीज प्रबल होगी वह निर्बल चीज को खा जायेगी, उसे समाप्त कर देगी, उसका अस्तित्व नष्ट कर देगी। आधुनिकता के जो मूलाधार हैं जो foundations हैं, शक्ति केन्द्रित राजनीति, लाभ केन्द्रित अर्थव्यवस्था, स्वार्थ केन्द्रित समाज और सामाजिक सम्बन्ध, ये संक्षेप में आधुनिकता के मूल सिद्धान्त हैं। कला एक मनोरंजन है, व्यवसाय है। ये पश्चिमी आधुनिकता के सिद्धान्त है। धार्मिक दृष्टि है, राजनीति धर्म के अधीन हो, राजीनति सेवा के लिए हों, अर्थ आयाम कभी लोभ या लाभ से दूषित नहीं होना चाहिए, समाज में धन की ज्यादा प्रतिष्ठा नहीं होनी चाहिए, समाज में धनिक तो हों लेकिन धनिक सदा धर्म की मर्यादा में रहें । कला व साहित्य साधना है, भगवद् उपासना है, केवल मनोरंजन नहीं है, मनोरंजन हो जाय तो हो जाय लेकिन उनका साध्य यह नहीं है। जो कला है वह catharsis यानि शुद्धिकरण का माध्यम है, आत्मा की शुद्धि का साधन है । संगीत आत्मा की शुद्धि का साधन है, आत्मोपलब्धि का साधन है, यह धार्मिक दृष्टि है। अब पूर्व और पश्चिम दोनों का समन्वय कैसे हो सकता है ? जैसे रहीमने कहा -<blockquote>'''<nowiki/>'कहो रहीम कैसे निभे बेर केर को संग ।''' </blockquote><blockquote>'''वे डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग ॥''''</blockquote>अब आप केर के पेड़ को और बेर के पेड़ को साथ साथ लगा दो और कहो कि दोनों लोग शान्ति से रहे. सहअस्तित्व से रहे। तो क्या आपकी शिक्षा से सहअस्तित्व कायम हो जायेगा ? जब पश्चिमी सभ्यता powerful साबित हुई तो हम को उसने खाने की पूरी कौशिश की। हम उसके आगे टिक नहीं पाये । यह नहीं कि हम उनसे श्रेष्ठ नहीं थे, शक्ति उनके पास ज्यादा थी। उनकी शक्ति से हम लोग परास्त हो गये । ऐसा नहीं था कि वे हमसे श्रेष्ठ थे। |