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स्वच्छता भौतिक स्तर की बात है, पवित्रता मानसिक स्तर की । मानसिक स्तर अन्तःकरण का स्तर है जिसमें मन, बुद्धि, अहंकार और चित्त का समावेश होता है। पवित्रता इस अन्त:करण के स्तर का विषय है।
 
स्वच्छता भौतिक स्तर की बात है, पवित्रता मानसिक स्तर की । मानसिक स्तर अन्तःकरण का स्तर है जिसमें मन, बुद्धि, अहंकार और चित्त का समावेश होता है। पवित्रता इस अन्त:करण के स्तर का विषय है।
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पवित्रता अन्तःकरण का विषय अवश्य है परन्तु वह व्यक्त तो भौतिक स्तर पर ही होता है इसलिये पवित्रता का सीधा सम्बन्ध स्वच्छता से है । जो पवित्र है वह स्वच्छ है ही परन्तु जो स्वच्छ है वह हमेशा पवित्र होता ही है ऐसा नहीं है। अर्थात् कभी कभी ऐसा भी होता है कि जो स्वच्छ नहीं है वह भी पवित्र होता है।
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पवित्रता अन्तःकरण का विषय अवश्य है परन्तु वह व्यक्त तो भौतिक स्तर पर ही होता है इसलिये पवित्रता का सीधा सम्बन्ध स्वच्छता से है । जो पवित्र है वह स्वच्छ है ही परन्तु जो स्वच्छ है वह सदा पवित्र होता ही है ऐसा नहीं है। अर्थात् कभी कभी ऐसा भी होता है कि जो स्वच्छ नहीं है वह भी पवित्र होता है।
    
हम कौन सी बात को पवित्र कहते हैं ? परम्परा से हम अन्न को, पानी को, विद्या को, मन्दिर को, पुस्तक को पवित्र मानते हैं । इसका कारण क्या है ?
 
हम कौन सी बात को पवित्र कहते हैं ? परम्परा से हम अन्न को, पानी को, विद्या को, मन्दिर को, पुस्तक को पवित्र मानते हैं । इसका कारण क्या है ?

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