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| अतः गणवेश का प्रयोग उसकी मूल भावना को स्वीकार करके करना चाहिये । | | अतः गणवेश का प्रयोग उसकी मूल भावना को स्वीकार करके करना चाहिये । |
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− | गणवेश में केवल वस्त्र का ही समावेश नहीं होता, पदवेश अर्थात् जूते और केशभूषा का भी होता है । कैशभूषा भी संयमित होनी चाहिये । अतिरिक्त अलंकार नहीं होने चाहिये । जूते कपडे अथवा चमडे के ही होने चाहिये, रबर प्लास्टिक के कदापि नहीं । | + | गणवेश में केवल वस्त्र का ही समावेश नहीं होता, पदवेश अर्थात् जूते और केशभूषा का भी होता है । कैशभूषा भी संयमित होनी चाहिये । अतिरिक्त अलंकार नहीं होने चाहिये । जूते कपड़े अथवा चमडे के ही होने चाहिये, रबर प्लास्टिक के कदापि नहीं । |
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| महाविद्यालय में पहुँचकर विद्यार्थी गणवेश से मुक्त होने का अनुभव करते हैं । माध्यमिक विद्यालय के अन्तिम वर्ष में कब गणवेश से मुक्ति मिले इसकी प्रतीक्षा करते हैं । इसका अर्थ यह है कि गणवेश को शिक्षकों और विद्यार्थियों ने सत्कार पूर्वक स्वीकार नहीं किया है, बन्धन की तरह, बोझ की तरह ही स्वीकार किया है । इस मनः स्थिति को तो आपग्रहपूर्वक बदलना चाहिये । | | महाविद्यालय में पहुँचकर विद्यार्थी गणवेश से मुक्त होने का अनुभव करते हैं । माध्यमिक विद्यालय के अन्तिम वर्ष में कब गणवेश से मुक्ति मिले इसकी प्रतीक्षा करते हैं । इसका अर्थ यह है कि गणवेश को शिक्षकों और विद्यार्थियों ने सत्कार पूर्वक स्वीकार नहीं किया है, बन्धन की तरह, बोझ की तरह ही स्वीकार किया है । इस मनः स्थिति को तो आपग्रहपूर्वक बदलना चाहिये । |
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| आज गणवेश को लेकर ही बडा बाजार चलता है । कहीं कहीं विद्यालय भी उस बाजार से जुड गये हैं । कहीं कहीं सबकी सुविधा के लिये विद्यालय ही गणवेश का प्रबन्ध करता है । विद्यालय सुविधा के लिये करता है तब तो ठीक है परन्तु बाजार का अंग बनता है तब उसका शैक्षिक प्रभाव कम हो जाता है । इससे बचना चाहिये । | | आज गणवेश को लेकर ही बडा बाजार चलता है । कहीं कहीं विद्यालय भी उस बाजार से जुड गये हैं । कहीं कहीं सबकी सुविधा के लिये विद्यालय ही गणवेश का प्रबन्ध करता है । विद्यालय सुविधा के लिये करता है तब तो ठीक है परन्तु बाजार का अंग बनता है तब उसका शैक्षिक प्रभाव कम हो जाता है । इससे बचना चाहिये । |
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− | गणवेश में विद्यार्थियों के पैण्ट और विद्यार्थिनियों के पायजामे कमर से नीचे के शरीर के साथ घर्षण न करते हों अर्थात् तंग न हों इसका विशेष ध्यान रखना चाहिये । गणवेश के अलावा जो कपडे पहने जाते हैं उनमें भी यह ध्यान रखना चाहिये । इसका सम्बन्ध बालक बालिकाओं की जननक्षमता के साथ है । | + | गणवेश में विद्यार्थियों के पैण्ट और विद्यार्थिनियों के पायजामे कमर से नीचे के शरीर के साथ घर्षण न करते हों अर्थात् तंग न हों इसका विशेष ध्यान रखना चाहिये । गणवेश के अलावा जो कपड़े पहने जाते हैं उनमें भी यह ध्यान रखना चाहिये । इसका सम्बन्ध बालक बालिकाओं की जननक्षमता के साथ है । |
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− | इस सन्दर्भ में एक गम्भीर समस्या की अन्यत्र की गई चर्चा का स्मरण करना उचित होगा । जननशास्त्र के शोधकर्ताओं का कहना है कि आज के युवक युवतियों की जननक्षमता का चिन्ताजनक मात्रा में क्षरण हो रहा है । इसके तीन चार कारणों में से एक कारण है कमर के नीचे के तंग कपडे और मोटरसाइकिल की सवारी । इसका उपाय वस्त्रों का स्वरूप बदलना ही है । इसी कारण से हमारी परम्परा में पुरुषों के लिये धोती अथवा खुले पायजामे और खियों के लिये घाघरे, स्कर्ट और साडी का प्रचलन था । अन्य कई बातों की तरह हमने कपडों के सम्बन्ध में भी वैज्ञानिक पद्धति से विचार करना छोड दिया है । | + | इस सन्दर्भ में एक गम्भीर समस्या की अन्यत्र की गई चर्चा का स्मरण करना उचित होगा । जननशास्त्र के शोधकर्ताओं का कहना है कि आज के युवक युवतियों की जननक्षमता का चिन्ताजनक मात्रा में क्षरण हो रहा है । इसके तीन चार कारणों में से एक कारण है कमर के नीचे के तंग कपड़े और मोटरसाइकिल की सवारी । इसका उपाय वस्त्रों का स्वरूप बदलना ही है । इसी कारण से हमारी परम्परा में पुरुषों के लिये धोती अथवा खुले पायजामे और खियों के लिये घाघरे, स्कर्ट और साडी का प्रचलन था । अन्य कई बातों की तरह हमने कपडों के सम्बन्ध में भी वैज्ञानिक पद्धति से विचार करना छोड दिया है । |
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| === विद्यालय की बैठक व्यवस्था === | | === विद्यालय की बैठक व्यवस्था === |
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| ==== अभिमत : ==== | | ==== अभिमत : ==== |
− | अध्यापकों की कमजोरी और अभिभावकों की गलत सोच का परिणाम ट्यूशन की अनिवार्यता है । ट्यूशन में जाना यह गौरव की नहीं अपितु लज्जा की बात है यह विचार जाग्रत करना पडेगा । पढाई में जो छात्र कमजोर हैं उन्हें ज्यादा ध्यान से पढाना शिक्षक का कर्तव्य है । समाज में जो ज्ञानी वृद्ध जन हैं वे यह काम कर सकते हैं। बाकी अन्य बालकों में स्वयं अध्ययन का कौशल निर्माण करें । अनिष्ट एवं गलत बातों को सोच समझकर पूर्णविराम देना ही चाहिये । | + | अध्यापकों की कमजोरी और अभिभावकों की गलत सोच का परिणाम ट्यूशन की अनिवार्यता है । ट्यूशन में जाना यह गौरव की नहीं अपितु लज्जा की बात है यह विचार जाग्रत करना पड़ेगा । पढाई में जो छात्र कमजोर हैं उन्हें ज्यादा ध्यान से पढाना शिक्षक का कर्तव्य है । समाज में जो ज्ञानी वृद्ध जन हैं वे यह काम कर सकते हैं। बाकी अन्य बालकों में स्वयं अध्ययन का कौशल निर्माण करें । अनिष्ट एवं गलत बातों को सोच समझकर पूर्णविराम देना ही चाहिये । |
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| === विद्यालय में पवित्रता === | | === विद्यालय में पवित्रता === |