Changes

Jump to navigation Jump to search
लेख सम्पादित किया
Line 773: Line 773:     
इनका जन्म मद्रास राज्य के तंजौर जिले के कुम्भकोणम्नगरमेंहुआ था। रामानुजम् केपिता श्रीनिवास आयंगरएक निर्धन किन्तुस्वाभिमानी व्यक्ति थे। रामानुजम् को गणित से बहुत प्रेम था। चौथी कक्षा से ही वे त्रिकोणमिति में रुचि लेने लगे थे। छात्र जीवन में ही उन्होंने गणित के अनेक सूत्रों का अपने आप पता लगाया था।उनकी अद्भुतप्रतिभा का पता लगने परवेइंग्लैंड बुलालिये गये। इंग्लैडमेंप्रोफेसर हार्डी के सहयोग से उन्होंने गणित में अनुसंधान किये और रायल सोसाइटी के फेलो चुने गये। अथक शोधकार्य और ब्रिटेन में शाकाहारी पौष्टिक भोजन न मिल पाने के कारण उनकास्वास्थ्य बहुत गिर गया और33 वर्षकी अल्पायुमें उनकी क्षय रोग से मृत्युहो गयी। गणित शास्त्र के जिन विषयों में रामानुजम्ने योग दिया है उनको संख्याओं कासिद्धांत,विभाजन (पार्टीशन) का सिंद्धात और सतत् भिन्नों का सिद्धांत कहते हैं। मृत्युके समय भीउनकामस्तिष्क इतना सजग था कि जब एक कार के नं० 1729 का उल्लेख हुआ तो तुरंत उनके मुँह से निकला कि 'हाँ, यह संख्या मैं जानता हूँ। यह वह छोटी से छोटी संख्या है जिसे दो प्रकार से दो घनों के योग के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है – (10³ +9³) तथा (12³+1³)
 
इनका जन्म मद्रास राज्य के तंजौर जिले के कुम्भकोणम्नगरमेंहुआ था। रामानुजम् केपिता श्रीनिवास आयंगरएक निर्धन किन्तुस्वाभिमानी व्यक्ति थे। रामानुजम् को गणित से बहुत प्रेम था। चौथी कक्षा से ही वे त्रिकोणमिति में रुचि लेने लगे थे। छात्र जीवन में ही उन्होंने गणित के अनेक सूत्रों का अपने आप पता लगाया था।उनकी अद्भुतप्रतिभा का पता लगने परवेइंग्लैंड बुलालिये गये। इंग्लैडमेंप्रोफेसर हार्डी के सहयोग से उन्होंने गणित में अनुसंधान किये और रायल सोसाइटी के फेलो चुने गये। अथक शोधकार्य और ब्रिटेन में शाकाहारी पौष्टिक भोजन न मिल पाने के कारण उनकास्वास्थ्य बहुत गिर गया और33 वर्षकी अल्पायुमें उनकी क्षय रोग से मृत्युहो गयी। गणित शास्त्र के जिन विषयों में रामानुजम्ने योग दिया है उनको संख्याओं कासिद्धांत,विभाजन (पार्टीशन) का सिंद्धात और सतत् भिन्नों का सिद्धांत कहते हैं। मृत्युके समय भीउनकामस्तिष्क इतना सजग था कि जब एक कार के नं० 1729 का उल्लेख हुआ तो तुरंत उनके मुँह से निकला कि 'हाँ, यह संख्या मैं जानता हूँ। यह वह छोटी से छोटी संख्या है जिसे दो प्रकार से दो घनों के योग के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है – (10³ +9³) तथा (12³+1³)
 +
 +
<blockquote>'''<big>रामकृष्णो दयानन्दो रवीन्द्रो राममोहन: । रामतीथोंऽरविन्दश्च विवेकानन्द उद्यशा: ।28 ।</big>''' </blockquote>
 +
 +
'''<big>श्री रामकृष्ण परमहंस (युगाब्द 4936-4987)</big>'''
 +
 +
बंगाल के प्रसिद्ध विरागी गृहस्थ सिद्ध पुरुष। स्वामी विवेकानन्द उन्हीं के शिष्य थे। उनका बचपन कानामगदाधर था। कलकत्ता केनिकटदक्षिणेश्वरमें काली के मन्दिरमेंपुजारी का काम करते-करते उनका सम्पूर्ण जीवन कालीमय हो गया। एक दीर्घ जीवी सिद्धपुरुष स्वामी तोतापुरी उनके गुरु थे, जिनसे उन्हें वेदान्त का ज्ञान प्राप्त हुआ। ज्ञान-साधना के अतिरिक्त उन्होंने तंत्र साधना भी की। कठिन साधना के काल में उनकी विक्षिप्त जैसी अवस्था देखकर लोग उन्हें पागल समझने लगे थे। उनकी जीवन-रक्षा तक हितैषियों के लिए चिन्ता का विषय बन गयी। किन्तु साधना पूरी होने पर वे परमहंस के रूप में विख्यात हो गये। उन्होंने विभिन्न सम्प्रदायों की साधना-पद्धतियों को अपनाकर देखा और इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि सभी धर्ममत मूलत: अविरोधी हैं और परमात्मा की प्राप्ति के मार्ग हैं। उन दिनों बंगाल में बुद्धिवाद, नास्तिकता और परकीय संस्कृति के अंधानुकरण की प्रवृत्ति प्रबल थी। रामकृष्ण परमहंस ने सरल सुबोध शैली में आध्यात्मिकता की शिक्षा देकर उक्त प्रवृत्ति को रोका। बड़े-बड़े विद्वान् और बुद्धिमान लोग उनके शिष्य बने। दूर विदेशों तक से लोग उनके दर्शन करने आते थे। उनके शिष्यों ने ‘रामकृष्ण मिशन' नामक संस्था की स्थापना की ताकि उनके दिव्य संदेश का प्रचार किया जा सके।
 +
 +
'''<big>स्वामी दयानन्द सरस्वती [कलि संवत् 4925-4984 (1824-1883 ई०)]</big>'''
 +
 +
आर्य समाज के संस्थापक, वैदिक धर्म एवं विचार के प्रचारक, आधुनिक काल में हिन्दू समाज के उद्धारक तथा महान् समाज-सुधारक स्वामी दयानन्द सरस्वती का जन्म काठियावाड़ (गुजरात) के मोरबी नामक ग्राम मेंहुआ था। बचपन मेंही उनके मन में मूर्तिपूजा के प्रति अनास्था उत्पन्नहो गयी। उन्होंने गृह त्यागकर ब्रह्मचर्य की दीक्षा ली और अनेक वर्षोंतक योग-साधना तथा शास्त्राध्ययन किया। आचार्य शंकर द्वारा स्थापित दशनामी सम्प्रदाय में संन्यास—दीक्षा लेने के पश्चात् वे दयानन्द सरस्वती कहलाये। वेदाध्ययन के लिए व्याकरण के विशेष महत्व के कारण उन्होंने स्वामी विरजानन्द से व्याकरण पढ़ना प्रारम्भ किया। अपने विद्या-गुरुस्वामी विरजानन्द के आदेशानुसार वे वेदों के शुद्ध ज्ञान का प्रचार करने में लग गये। परम्परागत हिन्दू धर्म (सनातन धर्म) के सुधार में स्वामी दयानन्द का बहुत योगदान रहा। आर्य धर्म के तत्वों का सुबोध भाषा-शैलीमें प्रतिपादन करने के उद्देश्यसे उन्होंने'सत्यार्थप्रकाश' लिखा। इस्लाम और ईसाइयत की अनेक भ्रामक बातों की उन्होंने कठोर आलोचना की। शास्त्रार्थ में विरोधियों को परास्त कर वैदिक मत की श्रेष्ठता का प्रतिपादन किया। आर्यत्व का अभिमान और स्वदेश का गौरव जगाया। युगाब्द 4984 (सन् 1883) में अजमेर में दीपावली के दिन विषघात से उनकी मृत्यु हुई।
 +
 +
'''<big>रवीन्द्रनाथ ठाकुर [कलियुगाब्द 4962-5043 (1861-1942 ई०)]</big>'''
 +
 +
'गीतांजलि' परयुगाब्द 5014 (ई० 1913) में नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुरबंगला साहित्य में नवयुग के प्रवर्तक थे। उनकेपितादेवेन्द्रनाथ ठाकुर बंगाल के प्रसिद्ध और आदरणीय ब्रह्मसमाजी थे। साहित्यिक रुचि सम्पन्न सुसंस्कृत परिवार में जन्मे रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने बंगला वाडमय की अपूर्व श्रीवृद्धि की। बंगभंग के विरुद्ध जब बंगाल में आन्दोलन काप्रवर्तनहुआ तो रवीन्द्रनाथठाकुर ने उत्कुष्टदेशभक्तिपूर्ण कविताओं की रचना की। उन्होंने इंग्लैंड, चीन,जापान आदि देशों का प्रवास और पाश्चात्य साहित्य का गहन अध्ययन किया था। शिक्षा के क्षेत्र में भी उनका योगदान विशिष्ट रहा। वे 'विश्वभारती' और ' शांतिनिकेतन' संस्थाओं के संस्थापक थे। कहानी और कविता ही नहीं, रवीन्द्र-संगीत भीउनकी अनुपम देन है। रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने विश्व को भारतीय संस्कृति के सार्वभौम स्वरूप से परिचित कराया।
 +
 +
'''<big>राजा राममोहन राय [कलियुगाब्द4873-4934 (1772-1833 ई०)]</big>'''
 +
 +
बंगाल के एक धनाढ़य, रूढ़िवादी, वैष्णव परिवार में जन्मे राममोहन राय प्रसिद्ध समाज सुधारक,आधुनिक भारत के निर्माता,ब्रह्म समाज के संस्थापक,वेदान्तनिष्ठ,पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान के पुरस्कर्ता, सतीप्रथा उन्मूलन आन्दोलन के प्रवर्तक, विभिन्न धर्ममतों में समन्वय स्थापित कर सार्वभौम धर्ममत का प्रतिपादन करने वाले, विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के समर्थक, आधुनिक बंगला पत्रकारिता के महान् प्रवर्तक और अनेक पत्र-पत्रिकाओं के प्रारम्भकर्ता थे। पैतृक धन का सदुपयोग उन्होंने अपने सिद्धान्तों को साकार रूपदेने में किया। उन्होंने एकेश्वरवाद का समर्थन और मूर्तिपूजा का विरोध किया। देश में ईसाई मत के विस्तार का कार्य उनके कर्तृत्व के परिणामस्वरूप कुंठित हो गया।
 +
 +
'''<big>रामतीर्थ [कलि सं० 4964-5007 (1873-1906)]</big>'''
 +
 +
गोस्वामी तुलसीदास के कुल में जन्मे, पंजाब के गुजराँवाला जिले के तीर्थरामने 28 वर्षकी आयु में महाविद्यालय के व्याख्याता पद से त्यागपत्र देकर संन्यास-दीक्षा ली और रामतीर्थ नाम से प्रख्यात हुए। उन्होंने वेदान्त-प्रचार का अमित कार्य किया, विशेष रूप से विदेशों में। स्वामी विवेकानन्द के समान उन्होंने भी विदेशों में घूम-घूमकर वेदान्त-चर्चा की और अनेक पाश्चात्य लोगों को अपना अनुयायी बनाया। उर्दू तथा फारसी पर उनका प्रारम्भ से ही प्रभुत्व रहा; संस्कृत का अध्ययन किया; गणित विषय के तो वे प्राध्यापक रहे। ऋषिकेश के समीप वन में कठिन तपस्या की। उन्होंने देशभक्ति, निर्भयता तथा अद्वैत वेदान्त मत का प्रचार किया। अध्यात्मनिष्ठ, भक्तिमय जीवन बिताते हुए, भारतीय वेदान्त की ज्योति देश-विदेश में जला कर 33 वर्ष की आयु में स्वामी रामतीर्थ ने गंगा में जलसमाधि ले ली।
 +
 +
'''<big>अरविन्द [युगाब्द 4973-5051 (1872-1950 ई०)]</big>'''
 +
 +
श्री अरविन्द भारत के एक श्रेष्ठ राजनीतिक नेता,क्रान्तिकारी,योगी और भारतीय संस्कृति के श्रेष्ठ व्याख्याता थे। उन्होंने प्राथमिक शिक्षा बंगाल में प्राप्त की। तदुपरान्त अध्ययन के लिए इंग्लैंड गये। भारत लौटने पर राष्ट्रीय आन्दोलन में कुद पड़े और क्रान्तिकारी गतिविधियों में भाग लिया। अलीपुर बम केस में जेल गये। 'कर्मयोगी', 'वन्देमातरम्' तथा 'आर्य' पत्रों का प्रकाशन किया। बाद में राजनीतिक आन्दोलन के मार्ग से निवृत्त होकर पांडिचेरी चले आये और योग साधना में रत हुए। युगाब्द 5021 (सन् 1920) में पांडिचेरी आश्रम की स्थापना की। 'पूर्णयोग<nowiki>''</nowiki>अतिमानस','अतिमानव' और 'दिव्य जीवन' की अवधारणाओं का प्रतिपादन करने वाले अनेक ग्रंथी का प्रणयन किया। भारतमाता का चेतनामयी परमात्म-शक्ति के रूप में साक्षात्कार कर भारतीय राष्ट्रवाद को उन्होंने आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अधिष्ठान प्रदान किया तथा भविष्य में भारत को जो योगदान करनाहैउसका भी विवेचन किया। उन्होंने भारत केपुन: अखंड होने की भविष्यवाणी की है।
 +
 +
'''<big>विवेकानन्द [युगाब्द 4963-5003 (1863-1902 ई०)]</big>'''
 +
 +
विदेशोंमेंहिन्दूधर्म की कीर्तिपताका फहराने वाले,स्वदेशमें वेदान्त की युगानुरूप व्याख्या कर हताश एवं विभ्रान्त समाज में उत्साह, स्फूर्ति और बल का संचार करने वाले तथा भारतीय संस्कृति के अध्यात्म तत्व का व्यावहारिक प्रतिपादन करने वाले स्वामी विवेकानन्द का बचपन का नाम नरेन्द्र था। बालक नरेन्द्र खेल तथा अध्ययन दोनों में ही प्रवीण था और ईश्वर के विषय में उसके मन में तीव्र जिज्ञासा थी। रामकृष्ण परमहंस के दर्शन और आशीर्वाद से नरेन्द्र को ईश्वर का साक्षात्कार हुआ और मन की शंकाओं का समाधान हुआ। वे विवेकानन्द बन गये। युगाब्द 4994 (ई०1893) में अमेरिका में आयोजित'सर्वधर्म सम्मेलन' में हिन्दूधर्म के प्रतिनिधि के रूप में भाग लेकरअपनी ओजस्वी वक्तृता से वेदान्त की अनुपम ज्ञान-सम्पदा का रहस्योद्घाटन करते हुए स्वामी विवेकानन्द ने पश्चिम के मानस में हिन्दूधर्म के प्रति आकर्षण और रुचि उत्पन्न की। स्वदेश में भ्रमण कर स्वामी जी ने मानव-सेवा को ईश्वर-सेवा का पर्याय बताया। गुरुभाइयों के साथ मिलकर उनहोंने 'रामकृष्ण मिशन' की स्थापना की और धर्म-जागृति तथा सेवा पर आग्रह रखा। 39 वर्ष के अल्प जीवनकाल में स्वामी विवेकानन्द ने हिन्दुत्व के नवोन्मेष का महान् कार्य किया।
 +
 +
<blockquote>'''<big>दादाभाई गोपबन्धु: तिलको गान्धिरादूता: । रमणो मालवीयश्च श्री सुब्रह्मण्यभारती।29 ॥</big>''' </blockquote>
 +
 +
'''<big>दादाभाईनौरोजी [युगाब्द 4936-5018 (1835-1917 ई०)]</big>'''
 +
 +
महाराष्ट्र के एक पारसी परिवार में जन्मे दादाभाई नौरोजी आधुनिक भारत के एक प्रमुख देशभक्त, राजनीतिक नेता एवं समाज-सुधारक हुए हैं। भारतीयों के स्वराज्य के अधिकार को ब्रिटिश संसद् तक गुंजाने वाले दादाभाई भारतीय स्वातंत्र्य के वैधानिक आन्दोलन के जनक थे। वे कांग्रेस के संस्थापकोंमेंसेएक थे औरतीन बार कांग्रेस केअध्यक्षबने। 1892 (युगाब्द4993) में ब्रिटेन की लिबरल पार्टी की ओर से ब्रिटिश संसद् के सदस्य चुने जाने वाले वे प्रथम भारतीय थे। उन्होंने अंग्रेजों की आर्थिक नीतियों का तथ्यपरक एवं गहन विश्लेषण कर यह सिद्ध किया कि भारत का धन इंग्लैंड की ओर प्रवाहित हो रहा है। इसे 'ड्रेन थ्योरी' कहते हैं।
 +
 +
'''<big>गोपबन्धुदास [युगाब्द 4973-5029 (1872-1928 ई०)]</big>'''
 +
 +
उड़ीसा में पुरी जिले के अन्तर्गत जन्मे पण्डित गोपबन्धुदास श्रेष्ठ कवि, लेखक, पत्रकार, दार्शनिक, समाज-सुधारक,कुशल संगठक, राजनीतिक नेता एवं हिन्दुत्ववादी चिंतक के रूप में विख्यात हैं। स्वाधीनता संग्राम में गांधीजी के नेतृत्व के पूर्व एवं पश्चात् भी वे सम्पूर्ण उड़ीसा में अग्रणी रहे। उन्होंने अस्पृश्यता—निवारण हेतु अभियान चलाया और गांधी जी को भी हरिजन-उद्धार-कार्य की प्रेरणा दी। उनके साथ पुरी जिले में पदयात्रा के समय ही महात्मा गांधी ने 'एक वस्त्र परिधान'का संकल्प लिया था। गोपबन्धुदास ने आर्तजनों की सेवा के सामने निजी तथा पारिवारिक दु:खों एवं संकटों को सदा गौण माना। वे उड़ीसा के सर्वाधिक लोकप्रिय पत्र 'समाज' के प्रतिष्ठाता और अखिल भारतीय लोक-सेवक मंडल के प्रमुख कर्णधार थे।
 +
 +
'''<big>लोकमान्य बाल गंगाधरतिलक [युगाब्द 4957-5021 (1856-1920 ई०)]</big>'''
 +
 +
“भारतीय असंतोष के जनक" तथा उग्र राष्ट्रवादी राजनीतिक विचारों के नेता लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक काजन्म रत्नागिरि (महाराष्ट्र) मेंहुआ था। राष्ट्रीय शिक्षा के प्रसार के उद्देश्य से तिलक ने अनेक शिक्षा-संस्थाओं की स्थापना की। उनमें सुप्रसिद्ध फग्र्युसन कालेज भी था, जिसमें तिलक संस्कृत और गणित पढ़ाया करते थे। ब्रिटिश दमन-नीति का विरोध करने तथा लोगोंमें राष्ट्रीयचेतनाजगाने के उद्देश्य सेउन्होंने 'केसरी' और 'मराठा'पत्रों का प्रकाशन किया।
 +
 +
'स्वराज्य मेरा जन्म—सिद्ध अधिकार है” – यह गर्जना करने वाले भारत—केसरी तिलक ही थे। 1905 में बंगाल के विभाजन की घोषणा के बाद जब राष्ट्रीय आन्दोलन में उभार आया तो तिलक ने स्वराज्य, स्वदेशी,बहिष्कार और राष्ट्रीय शिक्षा की चतु:सूत्री योजना प्रस्तुत की। अंग्रेजों की दमन—नीति का प्रखर विरोध करने के कारण उन्हें छ: वर्ष का कठोर कारावास देकर मांडले बन्दीगृह में भेज दिया गया। कारागार में ही तिलक ने ‘गीता-रहस्य' नामक श्रेष्ठ ग्रंथ लिखकर गीता की कर्मयोगपरक व्याख्या की। ' ओरायन' और ' आकटिक होम इन द वेदाज' नामक शोध-प्रबन्ध भी लिखे। उन्होंने जनजागृति के लिएगणेशोत्सवतथाशिव-जयन्ती महोत्सवप्रारम्भ किये औरउनके माध्यम से अंग्रेजी दासता के विरुद्ध जनरोष को मुखर किया।
 +
 +
'''<big>महात्मा गांधी [कलि सं० 4970-5048 (1869-1948 ई०)]</big>'''
 +
 +
राष्ट्रीय स्वातंत्र्य अांदोलन केप्रमुख नेता,जो लगभग तीन दशक तक भारत के सार्वजनिक जीवन पर छाये रहे। काठियावाड़, गुजरात में जन्मे मोहनदास कर्मचन्द गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों को उनके न्यायोचित अधिकार प्राप्त कराने के लिए अहिंसात्मक सत्याग्रह की नूतन पद्धति का प्रयोग किया। युगाब्द 5021 (ई० 1920) में लोकमान्य तिलक की मृत्यु के पश्चात् राष्ट्रीय आन्दोलन का नेतृत्व गांधी जी के कधों पर आ पड़ा। उन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन में समाज के विभिन्न वर्गों का समावेश करके उसे व्यापक आधार प्रदान किया। युगाब्द 5021, 5031-32 और 5043 (सन् 1920, 1930-31 और 1942) में गांधी जी ने तीन बड़े राष्ट्रीय आंदोलनों का संचालन किया। सत्य, अहिंसा, गीता और रामनाम में उनकी प्रगाढ़ आस्था थी। वे उदार सनातनी हिन्दूथे। गांधी जी ने अस्पृश्यता—निवारण,गोरक्षण, ग्रामोद्योग, खादी, राष्ट्रभाषा, मद्यपान-निषेद्य जैसी अनेक राष्ट्रीय एवं रचनात्मक प्रवृत्तियों की श्रृंखला खड़ी की। राष्ट्रविरोधी तत्वों के प्रति भी सदाशयता जैसेउनके कुछविचारोंसे असहमतनाथूरामगोडसेनामकउग्र व्यक्ति ने 30जनवरी, 1948 को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी।
 +
 +
'''<big>रमण महर्षि [युगाब्द 4980-5051 (1879-1950 ई०)]</big>'''
 +
 +
रमण महर्षि एक साक्षात्कारी पुरुष थे,जिन्होंने प्रश्नोत्तर की सीधी-सरल पद्धति से उपदेश देकर अपने देशी-विदेशी शिष्यों एवं श्रद्धालुओं को दिव्य संदेश सुनाया। उनके विचारों का संकलन 'रमणगीता'नामक ग्रंथ मेंहुआहै। इनका जन्म दक्षिण मेंमदुरै के समीपहुआ था। इनका मूल नाम वेंकट रमण था। गृह-त्याग कर वे अरुणाचलम् पहाड़ी पर ध्यानस्थ रहने लगे और आत्मज्ञान प्राप्त किया। आध्यात्मिक विद्या के जिज्ञासुउनके पास देश-विदेश से आने लगे,जिन्हें उन्होंने अपने सुबोध, सरल उपदेशों से परितृप्त किया।
 +
 +
'''<big>मदनमोहनमालवीय [युगाब्द 4962-5047 (1861-1946 ई०)]</big>'''
 +
 +
काशी हिन्दूविश्वविद्यालय के संस्थापक पंडित मदनमोहन मालवीय ने अंग्रेजी दासता के युग में हिन्दूधर्म एवं परम्परा का स्वाभिमानजगाने का कार्यकिया। उन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन की धारा से जुड़कर कांग्रेस तथा हिन्दू महासभा के माध्यम से अपने समय की सक्रिय राजनीति में प्रमुख भूमिका निभायी। कांग्रेस केदो बार अध्यक्ष रहे। अपने निजी जीवन की पवित्रता तथा श्रेष्ठ चारित्रय की साख के बल पर धनसंग्रह कर लोकोपयोगी कार्यों का संयोजन किया। स्वातंत्रय—प्राप्ति हेतुकिये जा रहे संघर्ष और सांस्कृतिक उन्नयन के प्रयासों में मालवीय जी ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। राष्ट्रीय शिक्षा के प्रसार में उनका अविस्मरणीय योगदान है।
 +
 +
'''<big>सुब्रह्मण्य भारती [युगाब्द 4983-5022 (1882-1921 ई०)]</big>'''
 +
 +
तमिलनाडु के प्रमुख राष्ट्रीय कवि सुब्रह्मण्य भारती ने सहज-सुबोध भाषा में लिखी अपनी राष्ट्रीय कविताओं द्वारा हजारों-लाखों लोगों के हृदय में देशभक्ति का संचार किया। वे अपनी ओजपूर्ण राष्ट्रीय रचनाओं के कारण कई बार जेल गये। राजनीतिक विचारों की दृष्टि से वे गरमपंथी थे। वे श्री अरविन्द, चिदम्बरम् पिल्लै, वी०वी०एस० अय्यर आदि देशभक्तों और स्वाधीनता-संग्राम के योद्धाओं के निकट सम्पर्क में आये। आलवार और नायन्मार भक्तों की शैली में उन्होंने अनेक भक्तिगीत रचे। सुब्रह्मण्य भारती देशभक्त होने के साथ समाज-सुधारक भी थे। स्त्रियों की स्वतंत्रता, उच्च और निम्न जातियों की समानता तथा अस्पृश्यता—निवारण के लिए उन्होंने बहुत काम किया। आधुनिक तमिल कविता की प्रवृत्ति का प्रारम्भ भारती ने ही किया। भारती ने ऋषियों और संतों के आध्यात्मिक-सांस्कृतिक दाय को जन-सामान्य तक पहुँचाने का महत्वपूर्ण कार्य किया।
1,192

edits

Navigation menu