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पंजाब के सुप्रसिद्ध महाराजा, जिन्होंने जम्मू और कश्मीर को भी मिलाकर पंजाब को एक शक्तिशाली, प्रभुतासम्पन्न राज्य का रूप दिया। हरिसिंह नलवा और जोरावर सिंह जैसे पराक्रमी सेनापतियों के नेतृत्व में संगठित सेना से उन्होंने राज्य की सीमाओं को तिब्बत के पश्चिम, सिन्धु के उत्तर और खैबर दर्रे से लेकर यमुना नदी के पश्चिमी तट तक बढ़ाकर उसे राजनीतिक और भौगोलिक एकता प्रदान की। उनका प्रशासन साम्प्रदायिक आग्रहों से मुक्त था और राज्य जनभावना पर आधारित था। गोहत्या पर उन्होंने कठोर प्रतिबंध लगाया था तथा अपने प्रभाव से अफगानिस्तान में भी वहाँ के शाह से गोहत्या बन्द करवायी थी। महमूद गजनवी द्वारा लूटे गये सोमनाथ मन्दिर के बहुमूल्य द्वार को वापस लाने का पराक्रम भी उन्हींका था। उनके जीवित रहते तक अंग्रेजों की कुटनीति पंजाब में विफल हुई।
 
पंजाब के सुप्रसिद्ध महाराजा, जिन्होंने जम्मू और कश्मीर को भी मिलाकर पंजाब को एक शक्तिशाली, प्रभुतासम्पन्न राज्य का रूप दिया। हरिसिंह नलवा और जोरावर सिंह जैसे पराक्रमी सेनापतियों के नेतृत्व में संगठित सेना से उन्होंने राज्य की सीमाओं को तिब्बत के पश्चिम, सिन्धु के उत्तर और खैबर दर्रे से लेकर यमुना नदी के पश्चिमी तट तक बढ़ाकर उसे राजनीतिक और भौगोलिक एकता प्रदान की। उनका प्रशासन साम्प्रदायिक आग्रहों से मुक्त था और राज्य जनभावना पर आधारित था। गोहत्या पर उन्होंने कठोर प्रतिबंध लगाया था तथा अपने प्रभाव से अफगानिस्तान में भी वहाँ के शाह से गोहत्या बन्द करवायी थी। महमूद गजनवी द्वारा लूटे गये सोमनाथ मन्दिर के बहुमूल्य द्वार को वापस लाने का पराक्रम भी उन्हींका था। उनके जीवित रहते तक अंग्रेजों की कुटनीति पंजाब में विफल हुई।
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<blockquote>'''<big>वैज्ञानिकाश्च कपिलः कणादः सुश्रुतस्तथा। चरको भास्कराचार्यों वराहमिहिर: सुधी: ॥26 ॥</big>''' </blockquote>
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'''<big>कपिल</big>'''
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सांख्य सूत्रों के रचयिता दार्शनिक, जिन्हें श्रीमद्भागवत में विष्णु के 24 अवतारों में स्थान मिला है। इनकेमाता-पिता कानामकर्दम ऋषि औरदेवहूतिबतायागयाहै। प्रचलित सांख्यदर्शन के येप्रवर्तक माने जाते हैं। कपिल वेदान्तदर्शन की भाँति ब्रह्म या आत्मा को ही एकमात्र सत् नहीं मानते थे। उन्होंने असंख्य जीवों या 'पुरुषों' तथा प्रकृति को भी स्वतंत्र तत्च माना। चेतन पुरुष और जड़ प्रकृति कपिल के मत में मुख्य तत्व हैं। प्रकृति नित्य है,जगत् की सारी वस्तुएँउसी के विकारहैं। पुरुष की समीपता मात्र से और उसके ही लिए प्रकृति में क्रियाउत्पन्न होती है,जिससे विश्व की वस्तुओं की उत्पत्ति और विनाश होता है। कपिल के उपदेशों का एक बड़ा संग्रह ‘षष्टितंत्र' कहा जाताहै। 'सांख्य सूत्र' और'सांख्य कारिका'सांख्यदर्शन केप्रमुख ग्रंथहैं। पुराणों में कपिल मुनि का वर्णन महान् तपस्वी सिद्धपुरुष के रूप में हैं।
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'''<big>कणाद</big>'''
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वैशेषिक दर्शन के प्रवर्तक माने जाने वाले कणाद परमाणुवादी दार्शनिक थे। कणाद के ग्रंथ का नाम 'वैशेषिक सूत्र' है जो दस अध्यायों में लिखा गया है। प्रत्येक अध्याय में दो-दो आह्निक हैं। कणाद ने जिस प्रयोजन से वैशेषिक सूत्र की रचना की,उसेउन्होंने ग्रंथ के प्रथम सूत्र में स्पष्ट कर दिया:“अबमैं धर्म सम्बंधी जिज्ञासा पर व्याख्यान करता हूँ। ”फिर कहा- “ जिससे अभ्युदय और नि:श्रेयस् की सिद्धि होती है,वह धर्म है।” “उस (धर्म) को कहने में वेद प्रमाण है।" कणाद ने विश्व के तत्वों का छ: पदार्थों में वर्गीकरण किया है, वे हैं -द्रव्य,गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय। बाद में भाष्यकार प्रशस्तपाद ने इनमें एक और पदार्थ ' अभाव' को भी जोड़ दिया। वैशेषिक दर्शन अपने परमाणुवाद और क्रिया सम्बन्धी वैज्ञानिक विश्लेषण के लिए प्रसिद्ध है।
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'''<big>सुश्रुत</big>'''
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आयुर्वेद के प्रसिद्ध आचार्य, जिनकी शल्य चिकित्सा के लिए विशेष ख्याति थी। इनका रचा ग्रंथ है 'सुश्रुत संहिता'। कहा जाता हैकि इन्होंने काशीपति दिवोदास से शल्यतंत्र काउपदेश प्राप्त किया था। 'सुश्रुत संहिता' में वर्णित शल्यक्रिया-यंत्रों की उन्नत वैज्ञानिक संरचना का आधुनिक यंत्रों से सादृश्य वैज्ञानिकों को विस्मय में डालता है।
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'''<big>चरक</big>'''
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आयुर्वेद केप्रसिद्ध आचार्य। इनकारचितप्रसिद्ध'चरक संहिता'ग्रंथ आयुर्वेदमेंकायचिकित्सा का संहिताबद्ध मूल ग्रंथ है, जो विश्व की अनेक भाषाओं में अनूदित हो चुका है। शतपथ ब्राह्मण में चरक का उल्लेख उनकी प्राचीनता का द्योतक है।
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'''<big>भास्कराचार्य</big>'''
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कलि संवत् की 43वीं (ई० 12वीं) शताब्दी के बहुत बड़े गणितज्ञ एवं त्योतिषी। ये उज्जैन की वेधशाला के अध्यक्ष थे। इनके रचित गणित ज्योतिष के दो प्रसिद्ध ग्रंथ हैं – 'सिंद्धात शिरोमणि' और 'करण कुतूहल'। 'लीलावती बीजगणित' भी उनकी प्रसिद्ध रचना है। न्यूटन से 500 वर्ष पूर्व ही उन्होंने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त स्पष्ट शब्दों में प्रतिपादित कर दिया था। उनसे शताब्दियों पूर्व एक और गणितज्ञ भास्कराचार्य हो चुके हैं।
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'''<big>वराहमिहिर</big>'''
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विक्रमादित्य और कालिदास के समकालीन प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य। इनका रचित 'बृहत् संहिता' प्रसिद्ध ग्रंथ है। सम्भवत: ये उज्जैन—निवासी थे। विक्रमादित्य की राजसभा के नवरत्नों में वराहमिहिर की भी गणना की जाती है। आर्यभट्ट के सिद्धांतो के बारे में उनकी निरपेक्षता से भी यही प्रकट होता है कि वे पूर्ववर्ती रहे होंगे।
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<blockquote>'''<big>नागार्जुनो भरद्वाज आर्यभट्टो वसुर्बुध: । ध्येयो वेडश्कटरामश्च विज्ञा रामानुजादयः ॥27 ॥</big>''' </blockquote>
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'''<big>नागार्जुन</big>'''
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प्रसिद्ध बौद्ध दार्शनिक,जिनका जन्म विदर्भ में हुआ था। उन्होंने ब्राह्मण तथा बौद्ध ग्रंथों का गहन अध्ययन किया और आगे चलकर श्रीपर्वत (नागार्जुनी कोंडा,गुंटूर) को अपना निवास-स्थान बनाया। नागार्जुन आंध्र राजा गौतमीपुत्र यज्ञश्री (कलियुगाब्द 3267-3297 अर्थात् 166-196ई०) के समकालीन तथा सुहृद थे। वे वैद्यक तथा रसायन शास्त्र के भी आचार्य थे। उनका 'अष्टांग हृदय' वैद्यक एक महत्वपूर्ण ग्रंथहै। नागार्जुन के नाम से अनेक ग्रंथ प्रसिद्धहैं,किन्तुउनकी प्रमुख  कृतियाँदी हैं—'माध्यमिक कारिका' और'विग्रहव्यावर्तनी'। नागार्जुन कादर्शन शून्यवाद कहलाता है जिसे बौद्ध दर्शन में प्रमुखता प्राप्त हुईहै। उन्होंने वस्तुशून्यता के सिद्धांत का प्रतिपादन किया, जिसका अर्थ है कि अविद्या के नष्ट हो जाने पर सभी वस्तुएँशून्य में विलीन हो जाती हैं। कुछ भी शेष न रहना ही निवांण है। जिस काल के बारे में प्रचार किया जाता है कि ग्रीक देश से विज्ञान भारत में आया,उसी काल में नागार्जुन के रसायन शास्त्र का अनुवाद चीनी और जापानी भाषाओं में ही रहा था।
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'''<big>भरद्वाज</big>'''
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मंत्रद्रष्टा वैदिक ऋषि और विमान-विद्या के विद्वान् आचार्य महर्षि भरद्वाज ‘यंत्र सर्वस्व', 'अंशुतंत्र' और 'आकाश शास्त्र' ग्रंथों के निर्माता कहे जाते हैं। यंत्र-सर्वस्व के वैमानिक प्रकरण में विमान—विद्या का विवेचन किया गया है और विमान विषयक रचना—क्रम कहे गये हैं। 'वैमानिक प्रकरण' में विज्ञान विषय के प्राचीन पच्चीस ग्रंथों की सूची है तथा विमान शास्त्र के पूर्वाचार्यों औरउनके रचे ग्रंथों के नामों का उल्लेख किया गया है,जिससे ज्ञात होता हैकि प्राचीन भारतमेंविमान-निर्माणएवं संचालन-क्रिया की पूरी जानकारी थी। प्रयागमेंगंगा-यमुना के संगम पर भरद्वाज का प्रसिद्ध गुरुकुल था।
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'''<big>आर्यभट्ट</big>'''
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कलिकी 36वीं (ई०पाँचवी )शतीमेंहुएभारत केमहान्ज्योतिषाचार्य।इन्होंने'आर्यभटीयम्' नामक ग्रंथ की रचना की, जो उपलब्ध सबसे प्राचीन ज्योतिष—ग्रंथों में गिना जाता है। अन्य ज्योतिषियों ने 'आर्यभटीयम्' को 'आर्य सिद्धान्त' कहा है। आर्यभट्ट ने यह सिंद्धात प्रतिपादित किया था कि सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा नहीं करता, प्रत्युत् पृथ्वी ही सूर्य की परिक्रमा करती है।
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'''<big>जगदीशचन्द्र बसु [युगाब्द 4959-5038 (1858-1937 ई०)]</big>'''
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पूर्वी बंगालमें जन्मे भारत के महान्वैज्ञानिक। वनस्पति शास्त्र और भौतिकीमें इनकी गहरी रुचि थी। इंग्लैड में अध्ययन करने के पश्चात संवत् 4986 (1885 ई०) में भारत लौटे और प्रेसीडेंसी कॉलेज में भैतिकी के प्रोफेसर बने। उन्होंने विद्युत-चुम्बकीयरेडियो तरंगें उत्पन्न करने के लिएएक यंत्र बनाया। संवत् 4996 (1895 ई०) में इन तरंगों की सहायता से उन्होंने 75 फुट दूरी पर टेलीफोन की घंटी बजायी। इन्हीं तरंगों के उपयोग का विकास करके मारकोनी नेरेडियो का आविष्कार किया। जगदीशचन्द्र बसुने वैज्ञानिकउपकरणोंद्वारा वनस्पतियों की सजीवता और प्रतिक्रियाशीलता सिद्ध की और इस प्रकार समस्त जीवमात्र की एकता सिद्ध की। वे रायल सोसाइटी के सदस्य चुने गये। सं० 5018 (1917 ई०) में उन्होंने कलकत्ता में 'बोस रिसर्च इंस्टीट्यूट' की स्थापना की।
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'''<big>चन्द्रशेखर वेंकटरामन [4989-5071 (1888-1970 ई०)]</big>'''
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सुप्रसिद्ध भौतिक वैज्ञानिक,जिन्हेंप्रकाश-भौतिकी में ‘रमण प्रभाव' का अन्वेषण करने पर 1930 में नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ। इनका जन्म त्रिचनापल्ली (तमिलनाडु) में हुआ था। आरम्भिक शिक्षा वाल्टेयर में और उच्च शिक्षा मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्राप्त की। वैज्ञानिक अनुसंधान विषयक प्रवृत्ति के कारण राज्य-सेवा में उच्च पद पर होते हुए भी समय निकालकर अनुसंधान में प्रवृत्त हुए। कलकत्ता विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्रोफेसर,साइन्स एसोसिएशन के सचिव, लंदन की रॉयल सोसाइटी के फेलो और बंगलौर के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के निदेशक रहे। अपना ऊंचे से ऊँचा अनुसन्धान-कार्य उन्होंने भारत में ही सम्पन्न किया। स्वाभिमान-सम्पन्न वे इतने थे कि अपने शिष्यों से कहते – विदेशियों की बातों का तब तक विश्वास न करो जब तक वे सिद्ध न हो जायें।
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'''<big>रामानुजम् [4988-5021 (1887-1920 )]</big>'''
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इनका जन्म मद्रास राज्य के तंजौर जिले के कुम्भकोणम्नगरमेंहुआ था। रामानुजम् केपिता श्रीनिवास आयंगरएक निर्धन किन्तुस्वाभिमानी व्यक्ति थे। रामानुजम् को गणित से बहुत प्रेम था। चौथी कक्षा से ही वे त्रिकोणमिति में रुचि लेने लगे थे। छात्र जीवन में ही उन्होंने गणित के अनेक सूत्रों का अपने आप पता लगाया था।उनकी अद्भुतप्रतिभा का पता लगने परवेइंग्लैंड बुलालिये गये। इंग्लैडमेंप्रोफेसर हार्डी के सहयोग से उन्होंने गणित में अनुसंधान किये और रायल सोसाइटी के फेलो चुने गये। अथक शोधकार्य और ब्रिटेन में शाकाहारी पौष्टिक भोजन न मिल पाने के कारण उनकास्वास्थ्य बहुत गिर गया और33 वर्षकी अल्पायुमें उनकी क्षय रोग से मृत्युहो गयी। गणित शास्त्र के जिन विषयों में रामानुजम्ने योग दिया है उनको संख्याओं कासिद्धांत,विभाजन (पार्टीशन) का सिंद्धात और सतत् भिन्नों का सिद्धांत कहते हैं। मृत्युके समय भीउनकामस्तिष्क इतना सजग था कि जब एक कार के नं० 1729 का उल्लेख हुआ तो तुरंत उनके मुँह से निकला कि 'हाँ, यह संख्या मैं जानता हूँ। यह वह छोटी से छोटी संख्या है जिसे दो प्रकार से दो घनों के योग के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है – (10³ +9³) तथा (12³+1³)
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