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तमिलनाडु के प्रमुख राष्ट्रीय कवि सुब्रह्मण्य भारती ने सहज-सुबोध भाषा में लिखी अपनी राष्ट्रीय कविताओं द्वारा हजारों-लाखों लोगों के हृदय में देशभक्ति का संचार किया। वे अपनी ओजपूर्ण राष्ट्रीय रचनाओं के कारण कई बार जेल गये। राजनीतिक विचारों की दृष्टि से वे गरमपंथी थे। वे श्री अरविन्द, चिदम्बरम् पिल्लै, वी०वी०एस० अय्यर आदि देशभक्तों और स्वाधीनता-संग्राम के योद्धाओं के निकट सम्पर्क में आये। आलवार और नायन्मार भक्तों की शैली में उन्होंने अनेक भक्तिगीत रचे। सुब्रह्मण्य भारती देशभक्त होने के साथ समाज-सुधारक भी थे। स्त्रियों की स्वतंत्रता, उच्च और निम्न जातियों की समानता तथा अस्पृश्यता—निवारण के लिए उन्होंने बहुत काम किया। आधुनिक तमिल कविता की प्रवृत्ति का प्रारम्भ भारती ने ही किया। भारती ने ऋषियों और संतों के आध्यात्मिक-सांस्कृतिक दाय को जन-सामान्य तक पहुँचाने का महत्वपूर्ण कार्य किया।
 
तमिलनाडु के प्रमुख राष्ट्रीय कवि सुब्रह्मण्य भारती ने सहज-सुबोध भाषा में लिखी अपनी राष्ट्रीय कविताओं द्वारा हजारों-लाखों लोगों के हृदय में देशभक्ति का संचार किया। वे अपनी ओजपूर्ण राष्ट्रीय रचनाओं के कारण कई बार जेल गये। राजनीतिक विचारों की दृष्टि से वे गरमपंथी थे। वे श्री अरविन्द, चिदम्बरम् पिल्लै, वी०वी०एस० अय्यर आदि देशभक्तों और स्वाधीनता-संग्राम के योद्धाओं के निकट सम्पर्क में आये। आलवार और नायन्मार भक्तों की शैली में उन्होंने अनेक भक्तिगीत रचे। सुब्रह्मण्य भारती देशभक्त होने के साथ समाज-सुधारक भी थे। स्त्रियों की स्वतंत्रता, उच्च और निम्न जातियों की समानता तथा अस्पृश्यता—निवारण के लिए उन्होंने बहुत काम किया। आधुनिक तमिल कविता की प्रवृत्ति का प्रारम्भ भारती ने ही किया। भारती ने ऋषियों और संतों के आध्यात्मिक-सांस्कृतिक दाय को जन-सामान्य तक पहुँचाने का महत्वपूर्ण कार्य किया।
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<blockquote>'''<big>सुभाषः प्रणवानन्दः क्रान्तिवीरो विनायक: । ठक्करो भीमरावश्च फुले नारायणी गुरुः ॥30 ॥</big>''' </blockquote>
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'''<big>सुभाषचन्द्र बसु [जन्म युगाब्द 4997 (1897ई०)]</big>'''
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नेताजी सुभाषचन्द्र बोस (बसु) कटक (उड़ीसा) के प्रख्यात वकील जानकीनाथ बसु के पुत्र थे। इन्होंने आई०सी०एस० परीक्षा उत्तीर्ण की,परउस सर्वोच्चसरकारी सेवा कोठोकर मारकर स्वाधीनता-संघर्ष में कुद पड़े। गांधी जी के प्रत्याशी को पराजित कर कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये। अंग्रेजों की नजरबंदी से गुप्त रूप से निकलकर विदेश पहुँचे। इंग्लैंड द्वितीय विश्वयुद्ध में फंसा था। इस स्थिति का लाभ उठाकर इंग्लैंड के शत्रु देश जापान की सहायता लेकर 'आजाद हिन्द फौज' का विस्तार किया तथा अंग्रेजों के विरुद्ध सशस्त्र संग्राम करते हुए भारत के उत्तर-पूर्वी सीमान्त में पर्याप्त आगे बढ़ आये। युगाब्द 5046 (सन् 1945) में जापान की पराजय हो जाने पर वे एक विमान सेकिसी सुरक्षित स्थान को जा रहे थे। उनकी मृत्युउसी विमान की दुर्घटना में हुई ऐसा बताया गया,परन्तुउनकी मृत्युका रहस्य अब भी बना हुआ है। देश के लिए स्वाधीनता लाने मेंउनका अति महत्वपूर्ण योगदान यहरहा कि सेनामेंउनकी जगायी चेतना के फलस्वरूप अंग्रेजों के लिए यह सम्भव नहीं रहा कि वे भारतीयों के ही कन्धों पर बन्दूक रखकर भारत को अपने अधीन रख सकें।
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'''<big>प्रणवानन्द</big>'''
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'भारत सेवाश्रम संघ' के संस्थापक स्वामी प्रणवानन्द जी पीड़ितों की सेवा-सहायता में सदैव अग्रणी रहे। उन्होंने प्रखर हिन्दुत्व का प्रतिपादन किया। हिन्दू संगठन हेतु संघशाखा के ही समान 'मिलन—मन्दिर' के माध्यम से दैनिक एकत्रीकरण आयोजित करने की व्यवस्था विकसित की। वे विशेषत: बंगाल में संगठन—कार्य में रत रहे।
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'''<big>विनायकसावरकर [युगाब्द 4984—5067 (1883-1966 ई०)]</big>'''
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क्रान्तिकारियों में अग्रणी,हिन्दुत्व के प्रखरउद्घोषक, अस्पृश्यता-निवारण एवं सामाजिक समता जैसी समाज-सुधार प्रवृत्तियों के पुरस्कर्ता, ब्रिटिश दमन के प्रखर प्रतिकारक, आजीवन कठोर यातनाओं को सहर्ष भोगने वाले अद्वितीय साहसी, प्रतिभावान् कवि, सशक्त लेखक, ओजस्वी वक्ता स्वातंत्र्य-वीर विनायक दामोदर सावरकर ने भारत से ब्रिटिश सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए सशस्त्र क्रान्ति के आन्दोलन में भाग लिया और देश तथा विदेश में अनेक तरुण विद्यार्थियों को विदेशी सत्ता के प्रतिकार की प्रेरणा दी। ब्रिटिश सत्ता का प्रखर विरोध करने और क्रान्तिकारी गतिविधियों का संचालन करने के कारण उन्हें जब इंग्लैंड से बंदी बनाकर भारत लाया जा रहा था तो उन्होंने समुद्र में कुदकर भागने का प्रयत्न किया। दो आजीवन कारावासों का दंड देकर उन्हें अंडमान भेजा गया। रत्नागिरि में नजरबंद रहते हुए उन्होंने अस्पृश्यता—निवारण जैसे सामाजिक कार्य किये। युगाब्द 4958 (सन्1857) में ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध भारतवासियों के संघर्ष को उन्होंने स्वातंत्र्य-समर की संज्ञा दी। वीर सावरकर अनेक वर्षों तक हिन्दूमहासभा के अध्यक्ष रहे। हिन्दु राष्ट्रीयता का उन्होंने आधुनिक शब्दावली में सशक्त एवं तर्कशुद्ध मंडन किया।
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'''<big>ठक्कर बाप्पा [युगाब्द 4960-5052 (1859-1951 ई०)]</big>'''
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प्रसिद्ध समाज-सेवक, जिन्होंने वनवासियों की दुर्दशा से द्रवित होकर अपना सम्पूर्ण जीवन उन्हीं की दशा सुधारने और सेवा करने में लगा दिया। इनका जन्म गुजरात के भावनगर में एक समाजसेवा-परायण व्यक्ति विट्ठलदास ठक्कर के घर हुआ था। ठक्कर बाप्पा का पूरा नाम अमृतलाल ठक्कर था। इन्होंने वरिष्ठ अभियंता पद त्याग कर पूर्णकालिक सेवा-व्रत लिया। वे ' भारत सेवक समाज ' के माध्यम से सेवाव्रती बने। उन्होंने ' भील सेवा मंडल' की स्थापना की, जो रचनात्मक कार्य की गंगोत्री बन गया। अपने समाज के उपेक्षित बन्धुओं – वनवासी अथवा ' आदिम' जाति के लोगों – की आर्त अवस्था से कातर होकर ठक्कर बाप्पा उन्हीं के हो गये।
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'''<big>भीमराव अम्बेडकर [युगाब्द4992-5057 (1891-1956 ई०)]</big>'''
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महाराष्ट्र की महार जाति में जन्मे भीमराव ने जातिगत भेदभाव का तीव्र दंश स्वयं अनुभव किया था। उन्होंने विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्त की और अपने उपेक्षित बन्धुओं को सम्मान और अधिकारप्राप्त कराने के लिए आजीवन अथक प्रयत्न किया। वे वित्त और विधिशास्त्र (कानून) के उच्चकोटि के विद्वान् थे। द्वितीय गोलमेज सम्मेलन [युगाब्द 5032 (1931 ई०)] में डा० अम्बेडकरने हरिजनों के लिएपृथक निर्वाचक-मंडल की माँग की थी। किन्तुआगे चलकर'पूना पैक्ट' को स्वीकार करते हुएउन्होंने अपना यह आग्रह छोड़ दिया और संयुक्त निर्वाचक-मंडल को स्वीकृतिदेकरहिन्दूसमाज को'सवर्ण' और'हरिजन'मेंबँटने से बचालिया। उन्होंने मुस्लिम और ईसाई प्रलोभनों को ठुकराकर अपने अनुयायियों सहित बौद्धमत स्वीकार किया। उनका स्पष्ट कहना था कि धर्मान्तरण करके विदेशी मूल के सम्प्रदायों में जाने से राष्ट्रनिष्ठा समाप्त होती है। स्वतंत्र भारत के संविधान-निर्माण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
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'''<big>ज्योतिराव फुले [युगाब्द 4928-4991 (1827-1890 ई०)]</big>'''
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महाराष्ट्र के महान् समाज-सुधारक ज्योतिराव फुले ने उपेक्षितों, अछूतों और स्त्रियों की अवस्था सुधारने के लिए कठिन प्रयास किये। शिक्षा के द्वारा उपेक्षितों और स्त्रियों की अवस्था उन्नत की जा सकती है,ऐसी उनकी मान्यता थी। हरिजनों तथास्त्रियों कीशिक्षा केलिएविद्यालय खोलने वाले वे प्रथम समाज-सुधारक माने जाते हैं। हंटर कमीशन के सामने उन्होंने अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा दिये जाने की माँग भी की थी। वे सामाजिक समता के पक्षधर थे। छुआछूत के विरुद्धउन्होंने डटकर संघर्षकिया। युगाब्द4975 (सन् 1874 ई०) मेंउन्होंने'सत्यशोधक समाज' की स्थापना की ताकि लोगों की विशाल मानवधर्म की शिक्षा दी जा सके। विधवा स्त्रियों का मुंडन कर देने की प्रथा (केशवपन) का उन्होंने कड़ा विरोध किया। अनाथ बालकों और निराधार स्त्रियों के लिए 'अनाथाश्रम' और 'सूतिका-गृह' चलाये। रूढ़िवाद और अंधश्रद्धा पर प्रहार कर ज्योतिबा ने बुद्धिवाद की शिक्षा दी।
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'''<big>नारायण गुरु [युगाब्द 4954-5029 (1853-1928 ई०)]</big>'''
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हिन्दूसमाज की धार्मिक आस्था पर अनैतिक साधनों से आक्रमण करके हिन्दुओं को ईसाई बनाने की गतिविधियाँचलाने वाले ईसाई पादरियों की कृट योजनाओं का प्रतिकार एवं निवारण करने और इस हेतु केरल में तथाकथित अछूतों के लिए मन्दिरों की स्थापना करने वाले नारायण गुरु का जन्म केरल में एक अछूत कहलाने वाली जाति में हुआ था। संस्कृत भाषा और वेदान्त का गहन अध्ययन कर उन्होंने योग-साधना और तपस्या की तथा रोगी, निर्धन, अस्पृश्य एवं वनवासी बन्धुओं की सेवा-सुश्रुषामें अपने को खपादिया। उनकेबनवाये मन्दिर हिन्दूसंगठन के केन्द्र बन गये। केरल मेंहिन्दू समाज के धर्मान्तरण की प्रवृत्तिको रोकने का चिरस्मरणीय कार्य यदि नारायण गुरु ने न किया होता तो केरल का हिन्दू समाज बहुसंख्या में धर्मभ्रष्ट हो गया होता।
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