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भारत की ७५% जनता गाँवों में रहती है, लेकिन अपनी खोयी हुई क्षमता के कारण गाँव के अधिकतर लोग देश के योगदान में सहयोग नहीं दे पाते । उनकी इस क्षमता
 
भारत की ७५% जनता गाँवों में रहती है, लेकिन अपनी खोयी हुई क्षमता के कारण गाँव के अधिकतर लोग देश के योगदान में सहयोग नहीं दे पाते । उनकी इस क्षमता
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का विकास शिक्षा द्वारा ही संभव है पर भारत के ९५% सरकारी स्कूलों का संचालन ठीक से नहीं हो पा रहा । इसलिए स्थानीय भाषा में शिक्षा पानेवाले अधिकतर विद्यार्थियों में आधारभूत कुशलता(बेसिक स्किल्‍्स) की कमी होती है और वे न तो नौकरी पाने के योग्य हो पाते हैं और न ही उनमें उच्च शिक्षा पाने का सामर्थ्य होता है ।
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का विकास शिक्षा द्वारा ही संभव है पर भारत के ९५% सरकारी स्कूलों का संचालन ठीक से नहीं हो पा रहा । अतः स्थानीय भाषा में शिक्षा पानेवाले अधिकतर विद्यार्थियों में आधारभूत कुशलता(बेसिक स्किल्‍्स) की कमी होती है और वे न तो नौकरी पाने के योग्य हो पाते हैं और न ही उनमें उच्च शिक्षा पाने का सामर्थ्य होता है ।
    
भारत की २००७ की शिक्षा रिपोर्ट की वार्षिक स्थिति (ASER... Annual Status of Education Report) दर्शाती है ....
 
भारत की २००७ की शिक्षा रिपोर्ट की वार्षिक स्थिति (ASER... Annual Status of Education Report) दर्शाती है ....
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श्री सत्य साई हायर सेकेन्डरी स्कूल स्वयं भगवान श्री सत्य साई बाबा की प्रेरणा से इनका शुभारंभ हुआ...वही उनका जीवन. और आत्मा हैं, प्रेरणा और लक्ष्य हैं। बच्चों के मन को सुमन बनाने के लिए, उनके इस मिशन की शुरुआत १५ जून, सन्‌ १९८१ में हुई।
 
श्री सत्य साई हायर सेकेन्डरी स्कूल स्वयं भगवान श्री सत्य साई बाबा की प्रेरणा से इनका शुभारंभ हुआ...वही उनका जीवन. और आत्मा हैं, प्रेरणा और लक्ष्य हैं। बच्चों के मन को सुमन बनाने के लिए, उनके इस मिशन की शुरुआत १५ जून, सन्‌ १९८१ में हुई।
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भगवान के शैक्षणिक संस्थानों की शिक्षा पद्धति में, भारत की प्राचीन गुरुकुल पद्धति का प्रतिबिम्ब देखने को मिलता है। उस काल के गुरु यह जानते थे कि विद्यार्थियों को जीवन-निर्वाह हेतु धन कमाने के लिए, केवल सांसारिक ज्ञान प्राप्त करना ही पर्याप्त नहीं होता । शिक्षा पाकर उन्हें अपने जीवन में सच्चा आनन्द भी मिलना चाहिए।इसलिए उन्होंने ऐसे ज्ञान पर जोर दिया, जो समाज की सेवा करने में काम आ सके और छात्र एक सही और ज़िम्मेदार व्यक्ति बनकर अपना जीवन जी सकें। चरित्र- निर्माण को शिक्षा का आदर्श माना जाता था।
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भगवान के शैक्षणिक संस्थानों की शिक्षा पद्धति में, भारत की प्राचीन गुरुकुल पद्धति का प्रतिबिम्ब देखने को मिलता है। उस काल के गुरु यह जानते थे कि विद्यार्थियों को जीवन-निर्वाह हेतु धन कमाने के लिए, केवल सांसारिक ज्ञान प्राप्त करना ही पर्याप्त नहीं होता । शिक्षा पाकर उन्हें अपने जीवन में सच्चा आनन्द भी मिलना चाहिए।अतः उन्होंने ऐसे ज्ञान पर जोर दिया, जो समाज की सेवा करने में काम आ सके और छात्र एक सही और ज़िम्मेदार व्यक्ति बनकर अपना जीवन जी सकें। चरित्र- निर्माण को शिक्षा का आदर्श माना जाता था।
    
शिक्षा का अंतिम लक्ष्य सा विद्या या विमुक्तये। इस आध्यात्मिक उक्ति के अनुरूप हुआ करता था । आज, हमारे देश की शिक्षा पद्धति इस आदर्श के बिल्कुल विपरीत है। शिक्षा के क्षेत्र के मूर्खतापूर्ण व्यवसायीकरण से, हम एक ऐसी स्थिति की ओर तेज़ी से बढ़ रहे हैं जहाँ समाज, आर्थिक दृष्टि से तो समृद्ध है लेकिन नैतिकता की दृष्टि से दिवालिया होता जा रहा है।
 
शिक्षा का अंतिम लक्ष्य सा विद्या या विमुक्तये। इस आध्यात्मिक उक्ति के अनुरूप हुआ करता था । आज, हमारे देश की शिक्षा पद्धति इस आदर्श के बिल्कुल विपरीत है। शिक्षा के क्षेत्र के मूर्खतापूर्ण व्यवसायीकरण से, हम एक ऐसी स्थिति की ओर तेज़ी से बढ़ रहे हैं जहाँ समाज, आर्थिक दृष्टि से तो समृद्ध है लेकिन नैतिकता की दृष्टि से दिवालिया होता जा रहा है।

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