− | २०. हमें स्थापित ढाँचे के बाहर निकलकर भी विचार करना होगा । जरा सा विचार करने पर ध्यान में आता है कि व्यक्तिविकास की हो या राष्ट्रनिरमाण की, चस्रिनिर्माण की हो या कौशलबविकास की, अधथर्जिन के लायक बनाने की हो या व्यवहारज्ञान की, अधिकांश शिक्षा परिवार में होती है । चरित्रनिर्माण की शिक्षा तो गर्भावस्था में और शिशु-अवस्था में होती है । सभी प्रकार की इस शिक्षा को देने वाले होते हैं मातापिता । हमारे शास्त्र, हमारी परम्परा, हमारा अनुभव और हमारी सामान्य बुद्धि कहती है कि माता बालक की प्रथम गुरु है । दूसरा क्रम पिता का है । शिक्षक का क्रम तीसरा होता है । अधिकांश शिक्षा घर में शिशु अवस्था में मिलने वाले संस्कारों के माध्यम से ही होती रही है । परिवार का एक और भी बड़ा महत्त्वपूर्ण योगदान है । वंशपस्म्परा के माध्यम से और भी अनेक प्रकार की परम्परायें बनाए रखने का कार्य भी परिवार में ही होता है । अत: परिवार संस्कृति रक्षा का, न केवल रक्षा का, संस्कृति के संवर्धन का भी बहुत बड़ा केन्द्र है । परिवारव्यवस्था विश्व के समाजजीवन को दी हुई भारत की अनुपम देन है । जीवन का समग्रता में आकलन करने वाली बुद्धि की यह देन है। मातापिता का स्थान शिक्षक नहीं ले सकता और घर का स्थान विद्यालय नहीं ले सकता । आज परिवारव्यवस्था शिथिल हो गई है और परिवार में मिलने वाली शिक्षा भी प्रभावी नहीं रही है । इस स्थिति में हमें परिवारव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने की व्यवस्था शिक्षा के माध्यम से करनी होगी । परिवार धार्मिक समाजरचना की मूल इकाई है । इसलिए परिवार के सुदूृढ़ीकरण से राष्ट्र जीवन भी सुल्यवस्थित होगा । | + | २०. हमें स्थापित ढाँचे के बाहर निकलकर भी विचार करना होगा । जरा सा विचार करने पर ध्यान में आता है कि व्यक्तिविकास की हो या राष्ट्रनिरमाण की, चस्रिनिर्माण की हो या कौशलबविकास की, अधथर्जिन के लायक बनाने की हो या व्यवहारज्ञान की, अधिकांश शिक्षा परिवार में होती है । चरित्रनिर्माण की शिक्षा तो गर्भावस्था में और शिशु-अवस्था में होती है । सभी प्रकार की इस शिक्षा को देने वाले होते हैं मातापिता । हमारे शास्त्र, हमारी परम्परा, हमारा अनुभव और हमारी सामान्य बुद्धि कहती है कि माता बालक की प्रथम गुरु है । दूसरा क्रम पिता का है । शिक्षक का क्रम तीसरा होता है । अधिकांश शिक्षा घर में शिशु अवस्था में मिलने वाले संस्कारों के माध्यम से ही होती रही है । परिवार का एक और भी बड़ा महत्त्वपूर्ण योगदान है । वंशपस्म्परा के माध्यम से और भी अनेक प्रकार की परम्परायें बनाए रखने का कार्य भी परिवार में ही होता है । अत: परिवार संस्कृति रक्षा का, न केवल रक्षा का, संस्कृति के संवर्धन का भी बहुत बड़ा केन्द्र है । परिवारव्यवस्था विश्व के समाजजीवन को दी हुई भारत की अनुपम देन है । जीवन का समग्रता में आकलन करने वाली बुद्धि की यह देन है। मातापिता का स्थान शिक्षक नहीं ले सकता और घर का स्थान विद्यालय नहीं ले सकता । आज परिवारव्यवस्था शिथिल हो गई है और परिवार में मिलने वाली शिक्षा भी प्रभावी नहीं रही है । इस स्थिति में हमें परिवारव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने की व्यवस्था शिक्षा के माध्यम से करनी होगी । परिवार धार्मिक समाजरचना की मूल इकाई है । अतः परिवार के सुदूृढ़ीकरण से राष्ट्र जीवन भी सुल्यवस्थित होगा । |