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वास्तविकता में तो हमारे लिए हमारे कार्य का अर्थ नकारात्मक होना ही नहीं चाहिए कि उसकी भरपाई पैसों से की जा सके । गाँधीजीने अमूल्य सलाह दी थी, 'अपने कार्य का मूल्य पैसों में मत आँको । हमारा कार्य दूसरे लोगों की सेवा में काम आये, उसमें आँको । व्यक्ति को कार्य करने का आकर्षण यह होना चाहिए कि मेरा कार्य उसे पसन्द आया । दूसरों की सेवा करने के लिए स्वयं अपना तम मन लगा दे। और एक सच्चे सैनिक की भाँति समाज के लिए मरने को भी उद्यत हो जाय । क्योंकि अन्त में जो मरने के लिए तैयार नहीं, उसे क्या पता कि जीना क्या होता है ? '
 
वास्तविकता में तो हमारे लिए हमारे कार्य का अर्थ नकारात्मक होना ही नहीं चाहिए कि उसकी भरपाई पैसों से की जा सके । गाँधीजीने अमूल्य सलाह दी थी, 'अपने कार्य का मूल्य पैसों में मत आँको । हमारा कार्य दूसरे लोगों की सेवा में काम आये, उसमें आँको । व्यक्ति को कार्य करने का आकर्षण यह होना चाहिए कि मेरा कार्य उसे पसन्द आया । दूसरों की सेवा करने के लिए स्वयं अपना तम मन लगा दे। और एक सच्चे सैनिक की भाँति समाज के लिए मरने को भी उद्यत हो जाय । क्योंकि अन्त में जो मरने के लिए तैयार नहीं, उसे क्या पता कि जीना क्या होता है ? '
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ऐसा कब होगा ? कैसे होगा ? ऐसी आदर्श व्यवस्था किस प्रकार स्थापित हो ? इसका उत्तर हमने पहले विचारा है । आजकल बड़ी भारी मशीने और बड़े वैश्विक बाजार के लिए थोक उत्पादन का जो तंत्र है, उनके स्थान पर स्थानीय उपभोग हेतु स्थानीय उत्पादन तंत्र शुरु करके हो सकती है। और इसका प्रारम्भ गाँव में कपड़े का उत्पादन सादे चरखे के द्वारा हो सकता है। इस तरह से कपड़ें का उत्पादन करने से गाँव के लोगों का भी बहुत फायदा है तथा पैसे, तकनीक, सरकार तथा यह सब व्यवस्था करने वालों की गरज भी नहीं रहती । गाँव वाले स्वतन्त्रता पूर्वक अपना काम स्वयं कर सकते हैं।
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ऐसा कब होगा ? कैसे होगा ? ऐसी आदर्श व्यवस्था किस प्रकार स्थापित हो ? इसका उत्तर हमने पहले विचारा है । आजकल बड़ी भारी मशीने और बड़े वैश्विक बाजार के लिए थोक उत्पादन का जो तंत्र है, उनके स्थान पर स्थानीय उपभोग हेतु स्थानीय उत्पादन तंत्र आरम्भ करके हो सकती है। और इसका प्रारम्भ गाँव में कपड़े का उत्पादन सादे चरखे के द्वारा हो सकता है। इस तरह से कपड़ें का उत्पादन करने से गाँव के लोगों का भी बहुत फायदा है तथा पैसे, तकनीक, सरकार तथा यह सब व्यवस्था करने वालों की गरज भी नहीं रहती । गाँव वाले स्वतन्त्रता पूर्वक अपना काम स्वयं कर सकते हैं।
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कपड़े के कारण बाद में अन्य उद्योग भी शुरु होने से गाँव अति समृद्ध बन सकता है । प्रत्येक को उनमें कार्यकरने के अवसर मिल सकते हैं। मात्र कार्य मिलेगा इतना ही नहीं तो अर्थपूर्ण कार्य मिलेगा, कार्य करने का आनन्द मिलेगा। कार्य करके आजीविका मिलेगी इतना ही नहीं तो समाज को कुछ प्रदान करने का सन्तोष मिलेगा। गौरव मिलेगा। आजकल की गलाकाट स्पर्धा के वातावरण में प्रतिस्पर्धी को पछाड़ने का हेतु मुख्य होता है । उसके स्थान पर किसी का शोषण किये बिना और अपना भी शोषण हुए बिना सब कार्य कर सकें। जिससे कार्य का बोझ मिटकर प्रेमपूर्वक तथा आनन्दपूर्वक सबकी सेवा हो सके । ऐसा कार्य करने से जीवन की सार्थकता मिलती है।
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कपड़े के कारण बाद में अन्य उद्योग भी आरम्भ होने से गाँव अति समृद्ध बन सकता है । प्रत्येक को उनमें कार्यकरने के अवसर मिल सकते हैं। मात्र कार्य मिलेगा इतना ही नहीं तो अर्थपूर्ण कार्य मिलेगा, कार्य करने का आनन्द मिलेगा। कार्य करके आजीविका मिलेगी इतना ही नहीं तो समाज को कुछ प्रदान करने का सन्तोष मिलेगा। गौरव मिलेगा। आजकल की गलाकाट स्पर्धा के वातावरण में प्रतिस्पर्धी को पछाड़ने का हेतु मुख्य होता है । उसके स्थान पर किसी का शोषण किये बिना और अपना भी शोषण हुए बिना सब कार्य कर सकें। जिससे कार्य का बोझ मिटकर प्रेमपूर्वक तथा आनन्दपूर्वक सबकी सेवा हो सके । ऐसा कार्य करने से जीवन की सार्थकता मिलती है।
    
कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुरने कहा है कि 'जिन दिनों संस्कृति विविध रूपा नहीं होती, उन दिनों में विद्वान और ऋषि, वीर और दानवीर धनवान की तुलना में अधिक पूजे जाते हैं। उन्हें सम्मान देकर मानवता स्वयं सम्मान पाती है। मात्र पैसा कमाने वाले को तो लोग शंका की नजरों से देखते...'
 
कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुरने कहा है कि 'जिन दिनों संस्कृति विविध रूपा नहीं होती, उन दिनों में विद्वान और ऋषि, वीर और दानवीर धनवान की तुलना में अधिक पूजे जाते हैं। उन्हें सम्मान देकर मानवता स्वयं सम्मान पाती है। मात्र पैसा कमाने वाले को तो लोग शंका की नजरों से देखते...'

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