वास्तविकता में तो हमारे लिए हमारे कार्य का अर्थ नकारात्मक होना ही नहीं चाहिए कि उसकी भरपाई पैसों से की जा सके । गाँधीजीने अमूल्य सलाह दी थी, 'अपने कार्य का मूल्य पैसों में मत आँको । हमारा कार्य दूसरे लोगों की सेवा में काम आये, उसमें आँको । व्यक्ति को कार्य करने का आकर्षण यह होना चाहिए कि मेरा कार्य उसे पसन्द आया । दूसरों की सेवा करने के लिए स्वयं अपना तम मन लगा दे। और एक सच्चे सैनिक की भाँति समाज के लिए मरने को भी उद्यत हो जाय । क्योंकि अन्त में जो मरने के लिए तैयार नहीं, उसे क्या पता कि जीना क्या होता है ? ' | वास्तविकता में तो हमारे लिए हमारे कार्य का अर्थ नकारात्मक होना ही नहीं चाहिए कि उसकी भरपाई पैसों से की जा सके । गाँधीजीने अमूल्य सलाह दी थी, 'अपने कार्य का मूल्य पैसों में मत आँको । हमारा कार्य दूसरे लोगों की सेवा में काम आये, उसमें आँको । व्यक्ति को कार्य करने का आकर्षण यह होना चाहिए कि मेरा कार्य उसे पसन्द आया । दूसरों की सेवा करने के लिए स्वयं अपना तम मन लगा दे। और एक सच्चे सैनिक की भाँति समाज के लिए मरने को भी उद्यत हो जाय । क्योंकि अन्त में जो मरने के लिए तैयार नहीं, उसे क्या पता कि जीना क्या होता है ? ' |