Changes

Jump to navigation Jump to search
m
Text replacement - "इसलिए" to "अतः"
Line 106: Line 106:  
कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुरने कहा है कि 'जिन दिनों संस्कृति विविध रूपा नहीं होती, उन दिनों में विद्वान और ऋषि, वीर और दानवीर धनवान की तुलना में अधिक पूजे जाते हैं। उन्हें सम्मान देकर मानवता स्वयं सम्मान पाती है। मात्र पैसा कमाने वाले को तो लोग शंका की नजरों से देखते...'
 
कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुरने कहा है कि 'जिन दिनों संस्कृति विविध रूपा नहीं होती, उन दिनों में विद्वान और ऋषि, वीर और दानवीर धनवान की तुलना में अधिक पूजे जाते हैं। उन्हें सम्मान देकर मानवता स्वयं सम्मान पाती है। मात्र पैसा कमाने वाले को तो लोग शंका की नजरों से देखते...'
   −
जिस प्रकार आज की राजनीति में राष्ट्रों के अनहद अहम का टकराव बन गया है, उसी प्रकार आजीविका प्राप्त करने का तरीका भी व्यक्ति की आत्यन्तिक स्पर्धा की खटपट बन गई है ....... और फिर व्यक्ति तो व्यक्ति है । इसलिए इसे अपने धन्धे में मात्र रोजरोज की रोटी ही नहीं अपितु सनातन सत्य भी कमाना है।  
+
जिस प्रकार आज की राजनीति में राष्ट्रों के अनहद अहम का टकराव बन गया है, उसी प्रकार आजीविका प्राप्त करने का तरीका भी व्यक्ति की आत्यन्तिक स्पर्धा की खटपट बन गई है ....... और फिर व्यक्ति तो व्यक्ति है । अतः इसे अपने धन्धे में मात्र रोजरोज की रोटी ही नहीं अपितु सनातन सत्य भी कमाना है।  
 
# गाँधी, मोहनदास करमचन्द, सर्वोदय (रस्किन का अन टु दि लास्ट से साभार) अहमदाबाद, नवजीवन प्रकाशन मंदिर, १९२२, पृ. १७, १९५७ की आवृत्ति में ।  
 
# गाँधी, मोहनदास करमचन्द, सर्वोदय (रस्किन का अन टु दि लास्ट से साभार) अहमदाबाद, नवजीवन प्रकाशन मंदिर, १९२२, पृ. १७, १९५७ की आवृत्ति में ।  
 
# टोवर्ड्स युनिवर्सिल मेन, नई दिल्ली : एशिया पब्लिसिंग हाउस, १९६१ पृष्ठ ३१-३२ और ४९ से व्यथा और विकल्प से साभार
 
# टोवर्ड्स युनिवर्सिल मेन, नई दिल्ली : एशिया पब्लिसिंग हाउस, १९६१ पृष्ठ ३१-३२ और ४९ से व्यथा और विकल्प से साभार

Navigation menu