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शून्यावकाश को मनोरंजन से भरने का प्रयास वह करता है परन्तु बिना काम किये केवल मनोरंजन भी अधिक समय तक आनन्द नहीं दे सकता | क्या करना यह सूझना बंन्द हो जाता है ।
 
शून्यावकाश को मनोरंजन से भरने का प्रयास वह करता है परन्तु बिना काम किये केवल मनोरंजन भी अधिक समय तक आनन्द नहीं दे सकता | क्या करना यह सूझना बंन्द हो जाता है ।
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२५. काम करवाने वाला काम करनेवाले से अधिक से अधिक काम करवाना चाहता है जिससे उसके खर्च की बचत हो । इसमें से शोषण शुरू होता है । यन्त्रों के कारण से अब काम के लिये मनुष्यों की आवश्यकता कम पडने लगती है, इससे बेरोजगारी बढती है और नौकरियों के लिये स्पर्धा शुरू होती है। इसके परिणामस्वरूप शोषण की और बढावा मिलता है ।
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२५. काम करवाने वाला काम करनेवाले से अधिक से अधिक काम करवाना चाहता है जिससे उसके खर्च की बचत हो । इसमें से शोषण आरम्भ होता है । यन्त्रों के कारण से अब काम के लिये मनुष्यों की आवश्यकता कम पडने लगती है, इससे बेरोजगारी बढती है और नौकरियों के लिये स्पर्धा आरम्भ होती है। इसके परिणामस्वरूप शोषण की और बढावा मिलता है ।
    
२६. सरकारी व्यवस्था में काम के साथ सीधा सम्बन्ध किसी का भी नहीं होता । वहाँ कोई मालिक नहीं होता । इसलिये न काम करनेवालों को न करवाने वालों को काम से सम्बन्ध होता है । सम्बन्ध केवल वेतन से होता है । इसलिये सरकारी तन्त्र में कोई काम नहीं करता । करने की और करवाने की विवशतायें वहाँ भी होती हैं ।
 
२६. सरकारी व्यवस्था में काम के साथ सीधा सम्बन्ध किसी का भी नहीं होता । वहाँ कोई मालिक नहीं होता । इसलिये न काम करनेवालों को न करवाने वालों को काम से सम्बन्ध होता है । सम्बन्ध केवल वेतन से होता है । इसलिये सरकारी तन्त्र में कोई काम नहीं करता । करने की और करवाने की विवशतायें वहाँ भी होती हैं ।

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