| 2. शिक्षा मनुष्य के जीवन के साथ प्रारम्भ से ही जुड़ी हुई है। मनुष्य अपना हर व्यवहार सीख सीख कर ही करता है। मनुष्य को पशु से भिन्न रखने के लिए प्रकृति ने ही ऐसी स्चना बनाई है। बिना शिक्षा के मनुष्य मनुष्य नहीं । | | 2. शिक्षा मनुष्य के जीवन के साथ प्रारम्भ से ही जुड़ी हुई है। मनुष्य अपना हर व्यवहार सीख सीख कर ही करता है। मनुष्य को पशु से भिन्न रखने के लिए प्रकृति ने ही ऐसी स्चना बनाई है। बिना शिक्षा के मनुष्य मनुष्य नहीं । |
− | 3. मनुष्य का सीखना गर्भाधान के क्षण से ही शुरू हो जाता है। गर्भाधान मनुष्य के जीवन का प्रथम संस्कार होता है । इस संस्कार के साथ मनुष्य का इस जन्म का जीवन शुरू होता है । तब से शुरू होकर शिक्षा अंत्येष्टि संस्कार तक निरन्तर चलती रहती है । अंत्येष्टि इस जन्म के जीवन का अन्तिम संस्कार है । | + | 3. मनुष्य का सीखना गर्भाधान के क्षण से ही आरम्भ हो जाता है। गर्भाधान मनुष्य के जीवन का प्रथम संस्कार होता है । इस संस्कार के साथ मनुष्य का इस जन्म का जीवन आरम्भ होता है । तब से आरम्भ होकर शिक्षा अंत्येष्टि संस्कार तक निरन्तर चलती रहती है । अंत्येष्टि इस जन्म के जीवन का अन्तिम संस्कार है । |
| 4. गर्भ, शिशु, बाल, किशोर, तरुण, युवा, प्रौढ़ और वृद्ध आदि सभी अवस्थाओं में शिक्षा निर्तर चलती रहती है । संस्कार, क्रिया, अनुभव, विचार, विवेक और अनुभूति इसके क्रमश: स्वरूप हैं। शिक्षा से जो ज्ञानार्जन होता है उसके ही ये विविध रूप हैं । | | 4. गर्भ, शिशु, बाल, किशोर, तरुण, युवा, प्रौढ़ और वृद्ध आदि सभी अवस्थाओं में शिक्षा निर्तर चलती रहती है । संस्कार, क्रिया, अनुभव, विचार, विवेक और अनुभूति इसके क्रमश: स्वरूप हैं। शिक्षा से जो ज्ञानार्जन होता है उसके ही ये विविध रूप हैं । |