Line 1:
Line 1:
{{ToBeEdited}}==== स्वायत्त शिक्षा ====
{{ToBeEdited}}==== स्वायत्त शिक्षा ====
−
1. शिक्षा धर्म सिखाती है । धर्म मनुष्य को पशु से भिन्न जीवन जीना सिखाता है। धर्म ही मनुष्य के मनुष्यत्व का मुख्य लक्षण है । इसलिए मनुष्य बिना शिक्षा के रह नहीं सकता |
+
1. शिक्षा धर्म सिखाती है । धर्म मनुष्य को पशु से भिन्न जीवन जीना सिखाता है। धर्म ही मनुष्य के मनुष्यत्व का मुख्य लक्षण है । अतः मनुष्य बिना शिक्षा के रह नहीं सकता |
2. शिक्षा मनुष्य के जीवन के साथ प्रारम्भ से ही जुड़ी हुई है। मनुष्य अपना हर व्यवहार सीख सीख कर ही करता है। मनुष्य को पशु से भिन्न रखने के लिए प्रकृति ने ही ऐसी स्चना बनाई है। बिना शिक्षा के मनुष्य मनुष्य नहीं ।
2. शिक्षा मनुष्य के जीवन के साथ प्रारम्भ से ही जुड़ी हुई है। मनुष्य अपना हर व्यवहार सीख सीख कर ही करता है। मनुष्य को पशु से भिन्न रखने के लिए प्रकृति ने ही ऐसी स्चना बनाई है। बिना शिक्षा के मनुष्य मनुष्य नहीं ।
Line 17:
Line 17:
==== समाज का सहयोग ====
==== समाज का सहयोग ====
−
9. भारत ज्ञान को पवित्रतम सत्ता मानता है। वह सत्ता, धन, बल आदि से परे है । इसलिए वह wa और विक्रय का साधन नहीं है । इस अर्थ में भारत में शिक्षा अर्थनिरपेक्ष रही है । वह अर्थनिरपेक्ष रहे इसकी चिन्ता शिक्षक को करनी है ।
+
9. भारत ज्ञान को पवित्रतम सत्ता मानता है। वह सत्ता, धन, बल आदि से परे है । अतः वह wa और विक्रय का साधन नहीं है । इस अर्थ में भारत में शिक्षा अर्थनिरपेक्ष रही है । वह अर्थनिरपेक्ष रहे इसकी चिन्ता शिक्षक को करनी है ।
10. शिक्षक और विद्यार्थी के मध्य होने वाला अध्ययन और अध्यापन स्वेच्छा, स्वतन्त्रता, जिज्ञासा, श्रद्धा और ज्ञाननिष्ठा से चलता है । विवशता, बाध्यता, स्वार्थ, अविनय, उदरपूर्ति का लक्ष्य इन्हें दूषित करते हैं । भारत में कभी ऐसा नहीं होता ।
10. शिक्षक और विद्यार्थी के मध्य होने वाला अध्ययन और अध्यापन स्वेच्छा, स्वतन्त्रता, जिज्ञासा, श्रद्धा और ज्ञाननिष्ठा से चलता है । विवशता, बाध्यता, स्वार्थ, अविनय, उदरपूर्ति का लक्ष्य इन्हें दूषित करते हैं । भारत में कभी ऐसा नहीं होता ।