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चिन्मय विज़न प्रोग्राम(CVP)
 
चिन्मय विज़न प्रोग्राम(CVP)
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चिन्मय मिशन ने सी वी पी, शिक्षा-कार्यक्रम शुरू किया है, जो स्कूलों और कॉलेजों में, उनके सामान्य पाठ्यक्रम में एक पूरक के रूप में जोड़ा गया है । चिन्मय विज़न प्रोग्राम इतना सफल हुआ है कि भारत में ५०० से अधिक स्कूलों ने, जो चिन्मय मिशन से संबद्ध नहीं हैं, अपनी शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए इसका उपयोग किया है ।
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चिन्मय मिशन ने सी वी पी, शिक्षा-कार्यक्रम आरम्भ किया है, जो स्कूलों और कॉलेजों में, उनके सामान्य पाठ्यक्रम में एक पूरक के रूप में जोड़ा गया है । चिन्मय विज़न प्रोग्राम इतना सफल हुआ है कि भारत में ५०० से अधिक स्कूलों ने, जो चिन्मय मिशन से संबद्ध नहीं हैं, अपनी शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए इसका उपयोग किया है ।
    
सी वी पी एक व्यापक शैक्षणिक कार्यक्रम है,जो यह विचार करता है कि शैक्षणिक पद्धति ट्वारा,बच्चों को केवल एक साक्षर (literate) व्यक्ति के रूप में ही बाहर नहीं लाना है,बल्कि उसे सच्चे अर्थों में एक शिक्षित,संतुलित और संतुष्ट व्यक्ति बनाना है ।
 
सी वी पी एक व्यापक शैक्षणिक कार्यक्रम है,जो यह विचार करता है कि शैक्षणिक पद्धति ट्वारा,बच्चों को केवल एक साक्षर (literate) व्यक्ति के रूप में ही बाहर नहीं लाना है,बल्कि उसे सच्चे अर्थों में एक शिक्षित,संतुलित और संतुष्ट व्यक्ति बनाना है ।
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शुरू किये गये ईशा होम स्कूल की संकल्पना का आधार जानने को मिला । यह सदू गुरु द्वारा शुरू किया गया, शिक्षा के क्षेत्र में बेशक एक अनूठा प्रयोग है पर भारत भर में इसे फैलाना संभव नहीं है ऐसा सद्गुरु स्वयं कहते हैं । जाने-माने फिल्म निर्माता और निर्देशक शेखर कपूर को दिये गये एक साक्षात्कार में उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि ईशा होम स्कूल जैसे और स्कूल खोलना संभव नहीं हो पायेगा, हांलाकि वो चाहते हैं कि भारत में दक्षिण के अलावा उत्तर,पश्चिम और पूर्व में कम से कम तीन और स्कूल खुलें । इसका कारण है कि आज भारत ही नहीं,विश्व भर में ऐसे समर्पित व्यक्ति दुर्लभ हो गये हैं...जो एक अच्छे शिक्षक बन सकें । वर्तमान में एक बहुत बड़ी चुनौती है । मेरे अपने विचार से ईशा होम स्कूल का प्रभाव आज की तारीख में चार हज़ार बच्चों पर दिखाई दे सकता है लेकिन दसवीं ,बारहवीं क्लास के बाद वो उसी शिक्षा पद्धति से शिक्षा लेंगे जहाँ प्रतिस्पर्धा है । सदू गुरु स्वयं कहते हैं कि शिक्षा पद्धति में स्पर्धा नहीं होनी चाहिए ।
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आरम्भ किये गये ईशा होम स्कूल की संकल्पना का आधार जानने को मिला । यह सदू गुरु द्वारा आरम्भ किया गया, शिक्षा के क्षेत्र में बेशक एक अनूठा प्रयोग है पर भारत भर में इसे फैलाना संभव नहीं है ऐसा सद्गुरु स्वयं कहते हैं । जाने-माने फिल्म निर्माता और निर्देशक शेखर कपूर को दिये गये एक साक्षात्कार में उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि ईशा होम स्कूल जैसे और स्कूल खोलना संभव नहीं हो पायेगा, हांलाकि वो चाहते हैं कि भारत में दक्षिण के अलावा उत्तर,पश्चिम और पूर्व में कम से कम तीन और स्कूल खुलें । इसका कारण है कि आज भारत ही नहीं,विश्व भर में ऐसे समर्पित व्यक्ति दुर्लभ हो गये हैं...जो एक अच्छे शिक्षक बन सकें । वर्तमान में एक बहुत बड़ी चुनौती है । मेरे अपने विचार से ईशा होम स्कूल का प्रभाव आज की तारीख में चार हज़ार बच्चों पर दिखाई दे सकता है लेकिन दसवीं ,बारहवीं क्लास के बाद वो उसी शिक्षा पद्धति से शिक्षा लेंगे जहाँ प्रतिस्पर्धा है । सदू गुरु स्वयं कहते हैं कि शिक्षा पद्धति में स्पर्धा नहीं होनी चाहिए ।
    
आज की शिक्षा, सिर्फ़ जानकारी देती है,सक्रिय विवेक नहीं देती । ऐसी जानकारी,सिर्फ़ जीवन-निर्वाह के लिए धन अर्जित करने के उद्देश्य से तो उपयोगी हो सकती है लेकिन आंतरिक शक्ति के विकास के लिए प्रेरणा नहीं देती | (Information vs Inspiration).
 
आज की शिक्षा, सिर्फ़ जानकारी देती है,सक्रिय विवेक नहीं देती । ऐसी जानकारी,सिर्फ़ जीवन-निर्वाह के लिए धन अर्जित करने के उद्देश्य से तो उपयोगी हो सकती है लेकिन आंतरिक शक्ति के विकास के लिए प्रेरणा नहीं देती | (Information vs Inspiration).
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देव संस्कृति विश्वविद्यालय :
 
देव संस्कृति विश्वविद्यालय :
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मानव-निर्माण के उद्देश्य को लेकर शुरू हुआ है ये अनोखा विश्वविद्यालय.
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मानव-निर्माण के उद्देश्य को लेकर आरम्भ हुआ है ये अनोखा विश्वविद्यालय.
    
बी.एस.जी.पी.- विद्यार्थियो: को सुसंस्कृत बनाना :
 
बी.एस.जी.पी.- विद्यार्थियो: को सुसंस्कृत बनाना :
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बन्दर जैसे थे और हम प्रगति कर रहे हैं । इन गृहस्थ भक्तों ने निश्चय किया कि यह सब गलत बातें वे अपने बच्चों को कतई नहीं सिखा सकतें और न तो वे अपने बच्चों को ऐसे लोगों के साथ रखेंगे जो ऐसे विचारों से ग्रस्त हो । इसके अलावा उन्होंने देखा कि स्कूलों में पढ़ें बच्चों का चरित्र निश्चित रूप से नष्ट हो जाता है। इस बात को समझना उनके लिये सरल था क्योंकि उन्होंने स्वयम्‌ स्कूल में पढ़कर अपना चरित्र बिगाड़ा था और फिर प्रभुपाद कि पुस्तकों के माध्यम से भक्त बनने के बाद सही चरित्र के बारे में समझकर स्वयं को सुधारा था |  
 
बन्दर जैसे थे और हम प्रगति कर रहे हैं । इन गृहस्थ भक्तों ने निश्चय किया कि यह सब गलत बातें वे अपने बच्चों को कतई नहीं सिखा सकतें और न तो वे अपने बच्चों को ऐसे लोगों के साथ रखेंगे जो ऐसे विचारों से ग्रस्त हो । इसके अलावा उन्होंने देखा कि स्कूलों में पढ़ें बच्चों का चरित्र निश्चित रूप से नष्ट हो जाता है। इस बात को समझना उनके लिये सरल था क्योंकि उन्होंने स्वयम्‌ स्कूल में पढ़कर अपना चरित्र बिगाड़ा था और फिर प्रभुपाद कि पुस्तकों के माध्यम से भक्त बनने के बाद सही चरित्र के बारे में समझकर स्वयं को सुधारा था |  
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अतः छह परिवारों ने अपने बच्चों को स्कूल में न भेजकर स्वयं पढ़ाना शुरू किया । लेकिन उनको पता था कि श्री प्रभुपाद चाहते थे कि बच्चों को वैदिक गुरुकुल पद्धति से पढ़ाया जाय जिसमें मुख्य ग्रन्थ हो श्रीमटूभागवतम्‌ और भगवदूगीता । इसलिये थोड़े समय बाद (४ साल पहले) उन्होने साथ मिलकर अवन्ति आश्रम नामक एक गुरुकुल की स्थापना की । उनको यह भी पता था कि श्री प्रभुपादने बच्चों को मात्र आध्यात्मिक शिक्षा देने को ही नहीं अपितु जीवन यापन हेतुं कोइ न कोइ वैदिक ग्रामीण व्यवसाय भी सिखाने को बताया है । श्री प्रभुपाद की तीव्र इच्छा थी कि वैदिक वर्णश्रिम व्यवस्था पुनः स्थापित हो जिससे हमारी सभी आवश्यकताएँ - आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक - पूर्ण हो जाय और हरे कृष्ण कीर्तन एवं भक्ति के माध्यम से हम सब आध्यात्मिक प्रगति कर जीवन के ध्येय को प्राप्त करें । इसको पुनः स्थापित करने के लिये उन्होंने अपनी पुस्तकों में प्रचुर मात्रा में व्यावहारिक मार्गदर्शन दिया है । इस मार्गदर्शन का पालन करते हुए इन भक्तों ने नन्दग्राम परियोजना की स्थापना की (अवन्ति गुरुकुल इस परियोजना का एक भाग है) । शरुआत में इस परियोजना में ४ गृहस्थ परिवार और ७ बच्चे थे । इन परिवारों ने अपनी उच्च तनखा वाली नौकरीयाँ (१ लाख रुपया प्रति मास) छोड दी और पूर्णतः वैदिक जीवन जीने का संकल्प किया ।
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अतः छह परिवारों ने अपने बच्चों को स्कूल में न भेजकर स्वयं पढ़ाना आरम्भ किया । लेकिन उनको पता था कि श्री प्रभुपाद चाहते थे कि बच्चों को वैदिक गुरुकुल पद्धति से पढ़ाया जाय जिसमें मुख्य ग्रन्थ हो श्रीमटूभागवतम्‌ और भगवदूगीता । इसलिये थोड़े समय बाद (४ साल पहले) उन्होने साथ मिलकर अवन्ति आश्रम नामक एक गुरुकुल की स्थापना की । उनको यह भी पता था कि श्री प्रभुपादने बच्चों को मात्र आध्यात्मिक शिक्षा देने को ही नहीं अपितु जीवन यापन हेतुं कोइ न कोइ वैदिक ग्रामीण व्यवसाय भी सिखाने को बताया है । श्री प्रभुपाद की तीव्र इच्छा थी कि वैदिक वर्णश्रिम व्यवस्था पुनः स्थापित हो जिससे हमारी सभी आवश्यकताएँ - आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक - पूर्ण हो जाय और हरे कृष्ण कीर्तन एवं भक्ति के माध्यम से हम सब आध्यात्मिक प्रगति कर जीवन के ध्येय को प्राप्त करें । इसको पुनः स्थापित करने के लिये उन्होंने अपनी पुस्तकों में प्रचुर मात्रा में व्यावहारिक मार्गदर्शन दिया है । इस मार्गदर्शन का पालन करते हुए इन भक्तों ने नन्दग्राम परियोजना की स्थापना की (अवन्ति गुरुकुल इस परियोजना का एक भाग है) । शरुआत में इस परियोजना में ४ गृहस्थ परिवार और ७ बच्चे थे । इन परिवारों ने अपनी उच्च तनखा वाली नौकरीयाँ (१ लाख रुपया प्रति मास) छोड दी और पूर्णतः वैदिक जीवन जीने का संकल्प किया ।
    
परियोजना के दो विभाग
 
परियोजना के दो विभाग
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१, आर्ष पाठविधि सर्वोत्तम पाठविधि है [इसका उद्देश्य है,  'मानव को 'मानव' बनाना, एक धार्मिक एवं नैतिक नागरिक बनाना । धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष की सिद्धि करना । धमार्जिन करना, धर्मपूर्वक अर्थप्राप्ति करना, अर्थ से काम अर्थात् आवश्यकताओं की पूर्ति करना और इस प्रकार मोक्ष प्राप्ति करने के योग्य बनाना । इस प्रकार यह भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ अध्यात्मवाद की पाठविधि है । इसका विस्तार परमाणु से लेकर परमेश्वर पर्यन्त है । इतनी व्यापकता किसी पाठविधि में नहीं मिलती ।
 
१, आर्ष पाठविधि सर्वोत्तम पाठविधि है [इसका उद्देश्य है,  'मानव को 'मानव' बनाना, एक धार्मिक एवं नैतिक नागरिक बनाना । धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष की सिद्धि करना । धमार्जिन करना, धर्मपूर्वक अर्थप्राप्ति करना, अर्थ से काम अर्थात् आवश्यकताओं की पूर्ति करना और इस प्रकार मोक्ष प्राप्ति करने के योग्य बनाना । इस प्रकार यह भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ अध्यात्मवाद की पाठविधि है । इसका विस्तार परमाणु से लेकर परमेश्वर पर्यन्त है । इतनी व्यापकता किसी पाठविधि में नहीं मिलती ।
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२. यह एक विशेषज्ञता की पाठविधि है । विशेषज्ञता का यह कार्य प्रारम्भ से ही शुरू हो जाता है । विशेषज्ञता के लिए एक मुख्य विषय क्रमश: पढ़ा जाता है ।
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२. यह एक विशेषज्ञता की पाठविधि है । विशेषज्ञता का यह कार्य प्रारम्भ से ही आरम्भ हो जाता है । विशेषज्ञता के लिए एक मुख्य विषय क्रमश: पढ़ा जाता है ।
    
३. सबके लिए अनिवार्य शिक्षा होनी चाहिए । यदि कोई माता, पिता बालक-बालिका को आठ वर्षकी आयु तक गुरुकुल/आश्रम में न भेजें तो शासन की ओर से दण्डनीय हों ।
 
३. सबके लिए अनिवार्य शिक्षा होनी चाहिए । यदि कोई माता, पिता बालक-बालिका को आठ वर्षकी आयु तक गुरुकुल/आश्रम में न भेजें तो शासन की ओर से दण्डनीय हों ।
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मिली, अनुकूल प्रतिसाद मिला तो समाज के अन्य २०-२५ बालकों के साथ साबरमती में ही सिद्धाचल वाटिका नाम से संस्कृत पाठशाला शुरू की । कालांतर में जिससे चार गुरुकुल प्रारंभ हुए। हेमचंद्राचार्थ पाठशाला के साथ अहमदाबाद में ही बहिनों हेतु एक, तथा सूरत व मुंबई में एक-एक गुरुकुल प्रारंभ हुआ । वर्तमान में इन सबमें कुल मिलाकर ५०० से अधिक विद्यार्थी हैं । तथाकथित आधुनिक शिक्षा को त्यागकर, डिग्री-विहीन शिक्षण की सफलता से प्रेरित होकर ही उन्होंने दिनांक  ३१-१२-२००८ को निःशुल्क और आवासीय शिक्षा प्रदान करने हेतु विधिवत रूप से हेमचंद्राचार्य गुरूकुलम का शुभारम्भ किया । प्रथम ६ वर्ष प्रचार से दूर रहते हुए , उत्तम परिणाम की प्रतीक्षा की । आधुनिक घरों से आये बालकों में गुरुकुलीय प्राचीन शिक्षा द्वारा अपेक्षित परिवर्तन, और भवितव्य का सौंदर्य दिखा तो पिछले १-२ वर्षों में इसका प्रचार कार्य शुरू किया । स्थिति यह है कि आज प्रत्येक दिन औसतन कम से कम एक से दो बालक यहाँ प्रवेश हेतु आते हैं, ऐसे लगभग ३०० बालक स्थानाभाव के कारण एक वर्ष से प्रतीक्षा-सूची-रत हैं ।
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मिली, अनुकूल प्रतिसाद मिला तो समाज के अन्य २०-२५ बालकों के साथ साबरमती में ही सिद्धाचल वाटिका नाम से संस्कृत पाठशाला आरम्भ की । कालांतर में जिससे चार गुरुकुल प्रारंभ हुए। हेमचंद्राचार्थ पाठशाला के साथ अहमदाबाद में ही बहिनों हेतु एक, तथा सूरत व मुंबई में एक-एक गुरुकुल प्रारंभ हुआ । वर्तमान में इन सबमें कुल मिलाकर ५०० से अधिक विद्यार्थी हैं । तथाकथित आधुनिक शिक्षा को त्यागकर, डिग्री-विहीन शिक्षण की सफलता से प्रेरित होकर ही उन्होंने दिनांक  ३१-१२-२००८ को निःशुल्क और आवासीय शिक्षा प्रदान करने हेतु विधिवत रूप से हेमचंद्राचार्य गुरूकुलम का शुभारम्भ किया । प्रथम ६ वर्ष प्रचार से दूर रहते हुए , उत्तम परिणाम की प्रतीक्षा की । आधुनिक घरों से आये बालकों में गुरुकुलीय प्राचीन शिक्षा द्वारा अपेक्षित परिवर्तन, और भवितव्य का सौंदर्य दिखा तो पिछले १-२ वर्षों में इसका प्रचार कार्य आरम्भ किया । स्थिति यह है कि आज प्रत्येक दिन औसतन कम से कम एक से दो बालक यहाँ प्रवेश हेतु आते हैं, ऐसे लगभग ३०० बालक स्थानाभाव के कारण एक वर्ष से प्रतीक्षा-सूची-रत हैं ।
    
कार्य-पद्धति
 
कार्य-पद्धति
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गुरुकुल की दिनचर्या में प्रातः ५ बजे कक्षाएं प्रारंभ होती हैं जो रात्रि ९.३० तक चलती हैं । उत्तमभाई की योजना में ७२ कलाओं का ज्ञान ही यहाँ का पाठ्यक्रम है । आधुनिक भवन को सम्पूर्ण रूप से गौ के गोबर से लीपा गया है, जहाँ विद्यार्थी निवास व अध्ययन करते हैं । गुरुकुल की गौशाला में ५० से अधिक गिर-वंश कि गायें हैं । भोजन सूर्योदय से सूर्यास्त के मध्य ही होता है । सभी सामग्री जैविक खेती से उपजाई ही उपयोग में लायी जाती है । भोजन पकाने हेतु कंडे व लकड़ी का प्रयोग किया जाता है । किसी भी प्रकार के आधुनिक उपकरण, एलपीजी, या अन्य कोई इलेक्ट्रिक सामान यहाँ उपयोग में नहीं लाया जाता है । आहारशास्त्र व आरोग्यशास्त्र कि दृष्टि से बैठकर पीतल व कांस्य के बर्तनों में ही भोजन कराया जाता है । सभी व्यवस्थाएं धार्मिकता यानि प्रकृति के कम से कम दोहन और सहस्तित्व पर आधारित ही हैं । स्थानाभाव के कारण इतना ही कहना उचित होगा कि यह गुरुकुल स्वयं देखकर आने का विषय है क्योंकि जो स्पष्टटा, आनन्द और अनुभूति गुरुकुल का प्रत्यक्ष अध्ययन करने से होगी वह किसी भी लेख से प्राप्त नहीं की जा सकती, वर्ष भर और प्रतिदिन देश-भर से अतिथिगण इस गुरुकुल को जानने हेतु यहाँ पधारते ही हैं ।
 
गुरुकुल की दिनचर्या में प्रातः ५ बजे कक्षाएं प्रारंभ होती हैं जो रात्रि ९.३० तक चलती हैं । उत्तमभाई की योजना में ७२ कलाओं का ज्ञान ही यहाँ का पाठ्यक्रम है । आधुनिक भवन को सम्पूर्ण रूप से गौ के गोबर से लीपा गया है, जहाँ विद्यार्थी निवास व अध्ययन करते हैं । गुरुकुल की गौशाला में ५० से अधिक गिर-वंश कि गायें हैं । भोजन सूर्योदय से सूर्यास्त के मध्य ही होता है । सभी सामग्री जैविक खेती से उपजाई ही उपयोग में लायी जाती है । भोजन पकाने हेतु कंडे व लकड़ी का प्रयोग किया जाता है । किसी भी प्रकार के आधुनिक उपकरण, एलपीजी, या अन्य कोई इलेक्ट्रिक सामान यहाँ उपयोग में नहीं लाया जाता है । आहारशास्त्र व आरोग्यशास्त्र कि दृष्टि से बैठकर पीतल व कांस्य के बर्तनों में ही भोजन कराया जाता है । सभी व्यवस्थाएं धार्मिकता यानि प्रकृति के कम से कम दोहन और सहस्तित्व पर आधारित ही हैं । स्थानाभाव के कारण इतना ही कहना उचित होगा कि यह गुरुकुल स्वयं देखकर आने का विषय है क्योंकि जो स्पष्टटा, आनन्द और अनुभूति गुरुकुल का प्रत्यक्ष अध्ययन करने से होगी वह किसी भी लेख से प्राप्त नहीं की जा सकती, वर्ष भर और प्रतिदिन देश-भर से अतिथिगण इस गुरुकुल को जानने हेतु यहाँ पधारते ही हैं ।
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भविष्य की कार्ययोजना में वर्तमान छात्रों को स्वरोजगार, व्यवसाय कि दृष्टि से व्यावहारिक प्रशिक्षण तो है ही, गुरुकुल में और अधिक संख्या में छात्र अध्ययन करें इस दृष्टि से सभी व्यवस्थाओं का विस्तारीकरण भी चल रहा है । साथ ही देश भर में ऐसे अन्य संस्थान शुरू करने हेतु यह गुरुकुल हर संभावित सहायता को तत्पर है । अतः पूरे देश में नए गुरुकुल शुरू करने हेतु कार्यकर्ता देश-भर में प्रवास करते हुए प्रचार और अन्य प्रयास कर रहे हैं। गुरुकुल का अगला प्रयास आर्यगप्राम की योजना है। आर्यग्राम कुछ एकड़ स्थान पर बसाया हुआ एक छोटा सा ग्राम होगा जिसमें चारों वर्ण के लोग पूर्णतः प्रकृति के सानिध्य में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व से रहेंगे । मुख्य केंद्र गुरुकुल होगा, ग्राम के सभी संसाधन नैसर्गिक हों, कृषि मुख्य व्यवसाय हो, किसी भी वस्तु के लिए दूसरों पर निर्भरता न हो, ऐसी योजना है और इस प्रकल्प की सारी तैयारियां लगभग पूर्ण हो चुकी हैं। भूमि के अनेक विकल्पों में से किसी एक उपयुक्त का चुनाव शेष है । इसका एक उद्देश्य यह है कि जो शिक्षा गुरुकुल में दी जाती है, उसका जीवन में व्यवहार्य हो, भारत के ग्रामों के समक्ष एक आदर्श उद्हारण प्रस्तुत किया जा सके ।
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भविष्य की कार्ययोजना में वर्तमान छात्रों को स्वरोजगार, व्यवसाय कि दृष्टि से व्यावहारिक प्रशिक्षण तो है ही, गुरुकुल में और अधिक संख्या में छात्र अध्ययन करें इस दृष्टि से सभी व्यवस्थाओं का विस्तारीकरण भी चल रहा है । साथ ही देश भर में ऐसे अन्य संस्थान आरम्भ करने हेतु यह गुरुकुल हर संभावित सहायता को तत्पर है । अतः पूरे देश में नए गुरुकुल आरम्भ करने हेतु कार्यकर्ता देश-भर में प्रवास करते हुए प्रचार और अन्य प्रयास कर रहे हैं। गुरुकुल का अगला प्रयास आर्यगप्राम की योजना है। आर्यग्राम कुछ एकड़ स्थान पर बसाया हुआ एक छोटा सा ग्राम होगा जिसमें चारों वर्ण के लोग पूर्णतः प्रकृति के सानिध्य में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व से रहेंगे । मुख्य केंद्र गुरुकुल होगा, ग्राम के सभी संसाधन नैसर्गिक हों, कृषि मुख्य व्यवसाय हो, किसी भी वस्तु के लिए दूसरों पर निर्भरता न हो, ऐसी योजना है और इस प्रकल्प की सारी तैयारियां लगभग पूर्ण हो चुकी हैं। भूमि के अनेक विकल्पों में से किसी एक उपयुक्त का चुनाव शेष है । इसका एक उद्देश्य यह है कि जो शिक्षा गुरुकुल में दी जाती है, उसका जीवन में व्यवहार्य हो, भारत के ग्रामों के समक्ष एक आदर्श उद्हारण प्रस्तुत किया जा सके ।
    
गुरुकुल शिक्षा का आदर्श
 
गुरुकुल शिक्षा का आदर्श
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६. ऐसा करने के लिये असोसिएशन या संगठन की आवश्यकता रहेगी । पाठ्यक्रमों और पाठन पद्धति के लिये भी सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता रहेगी ।
 
६. ऐसा करने के लिये असोसिएशन या संगठन की आवश्यकता रहेगी । पाठ्यक्रमों और पाठन पद्धति के लिये भी सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता रहेगी ।
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७. आज तो धनवान मातापिता के बच्चों के लिये केवल महानगरों में यह प्रयोग शुरू हुआ है परन्तु इसका प्रसार भी हो सकता है ।
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७. आज तो धनवान मातापिता के बच्चों के लिये केवल महानगरों में यह प्रयोग आरम्भ हुआ है परन्तु इसका प्रसार भी हो सकता है ।
    
संक्षेप में इस संकल्पना को अधिक ठोस बनाने की आवश्यकता है |
 
संक्षेप में इस संकल्पना को अधिक ठोस बनाने की आवश्यकता है |

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