व्यक्ति को स्वपर्याप्त, पृथक एवं असम्बद्ध प्राणी मानने के फलस्वरूप सामाजिक संस्थाओं व सम्बन्धों को पवित्रता की दृष्टि से नहीं, वरन् उपयोगिता की दृष्टि से देखा जाता है। आधुनिक समाजशास्त्र, राजशास्त्र व नीतिशास्त्र में अनुबन्धवादी व्यवहारिकतावादी, उपयोगितावादी एवं परिणामवादी सिद्धांतों की जो बाढ़ आई उसका कारण व्यष्टि और समष्टि के अन्तर्सम्बन्ध को समझने की सम्यक् दृष्टि का अभाव है। स्वकेन्द्रित व्यक्ति की अवधारणा पर आधारित समाज व्यवस्था अधिकार, स्वतंत्रता व समानता; अर्थ व्यवस्था भोग व लाभ; साहित्य, कला प्राकृत जन के स्तुतिगान और ज्ञानविज्ञान भौतिक उपलब्धियों पर केंद्रित हों यह स्वाभाविक ही है। स्पष्ट: मानवीय पुरुषार्थ को भौतिक एवं आर्थिक हितों व लक्ष्यों तक सीमित रखने का यह उपक्रम ईसा के इस उपदेश के नितान्त विरुद्ध है जिसमें उन्होनें यह घोषित किया कि मानव जीवन केवल रोटी के लिए नहीं है। | व्यक्ति को स्वपर्याप्त, पृथक एवं असम्बद्ध प्राणी मानने के फलस्वरूप सामाजिक संस्थाओं व सम्बन्धों को पवित्रता की दृष्टि से नहीं, वरन् उपयोगिता की दृष्टि से देखा जाता है। आधुनिक समाजशास्त्र, राजशास्त्र व नीतिशास्त्र में अनुबन्धवादी व्यवहारिकतावादी, उपयोगितावादी एवं परिणामवादी सिद्धांतों की जो बाढ़ आई उसका कारण व्यष्टि और समष्टि के अन्तर्सम्बन्ध को समझने की सम्यक् दृष्टि का अभाव है। स्वकेन्द्रित व्यक्ति की अवधारणा पर आधारित समाज व्यवस्था अधिकार, स्वतंत्रता व समानता; अर्थ व्यवस्था भोग व लाभ; साहित्य, कला प्राकृत जन के स्तुतिगान और ज्ञानविज्ञान भौतिक उपलब्धियों पर केंद्रित हों यह स्वाभाविक ही है। स्पष्ट: मानवीय पुरुषार्थ को भौतिक एवं आर्थिक हितों व लक्ष्यों तक सीमित रखने का यह उपक्रम ईसा के इस उपदेश के नितान्त विरुद्ध है जिसमें उन्होनें यह घोषित किया कि मानव जीवन केवल रोटी के लिए नहीं है। |