शुचिता के समान और दो गुण हैं दया और दान। भिखारी को भीख देना, भूखे को खाना देना, मरीज की सेवा करना आदि मानवीयता से सम्पन्न सुसंस्कृत मानव के कर्तव्य हैं। भारत का हर गृहस्थ उन कर्तव्यों को वैयक्तिक तौर पर निभाता गया। धीरे धीरे वह समविचारी साथियों के सहयोग से अधिक लोगों को उनकी सेवा का लाभ मिले इस दृष्टि से योग्य व्यवस्थाएँ और संस्थाएँ बनाता गया। उससे सार्वजनिक कुँआ, प्याऊ, लंगरखाना, चिकित्सालय, अनाथालय, धर्मशाला आदि का निर्माण हुआ। भारत के इस पुरातन देश में प्राचीन काल से ही यह चलता आया। आचार्य चाणक्य के ग्रंथ में इसका स्पष्ट उल्लेख है। उसी प्रकार यहाँ आये विदेशी यात्रियों के अनुभव कथनों में भी इसका विवरण पर्याप्त मात्रा में है। उससे उनका निष्कर्ष था कि भारत की सभ्यता उच्च कोटि की थी। | शुचिता के समान और दो गुण हैं दया और दान। भिखारी को भीख देना, भूखे को खाना देना, मरीज की सेवा करना आदि मानवीयता से सम्पन्न सुसंस्कृत मानव के कर्तव्य हैं। भारत का हर गृहस्थ उन कर्तव्यों को वैयक्तिक तौर पर निभाता गया। धीरे धीरे वह समविचारी साथियों के सहयोग से अधिक लोगों को उनकी सेवा का लाभ मिले इस दृष्टि से योग्य व्यवस्थाएँ और संस्थाएँ बनाता गया। उससे सार्वजनिक कुँआ, प्याऊ, लंगरखाना, चिकित्सालय, अनाथालय, धर्मशाला आदि का निर्माण हुआ। भारत के इस पुरातन देश में प्राचीन काल से ही यह चलता आया। आचार्य चाणक्य के ग्रंथ में इसका स्पष्ट उल्लेख है। उसी प्रकार यहाँ आये विदेशी यात्रियों के अनुभव कथनों में भी इसका विवरण पर्याप्त मात्रा में है। उससे उनका निष्कर्ष था कि भारत की सभ्यता उच्च कोटि की थी। |