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# अच्छे स्वस्थ शरीर का दूसरा लक्षण बल है। शरीर में ताकत भी होना चाहिए। तभी वह भारी कार्यों को करने में समर्थ बन पायेगा। अधिक कार्य कर पायेगा। लंबे समय तक कार्य कर पायेगा। थकान कम लगेगी. बीमारी कम आएगी। यदि बीमारी आए तो जल्दी से स्वस्थ हो जाएगा। ताकत हो तो वह अधिक वजन उठा सकेगा, दौड़ में ज्यादा दूरी तय कर पायेगा, चल सकेगा,एवं साहसपूर्ण कार्य भी कर पाएगा।  
 
# अच्छे स्वस्थ शरीर का दूसरा लक्षण बल है। शरीर में ताकत भी होना चाहिए। तभी वह भारी कार्यों को करने में समर्थ बन पायेगा। अधिक कार्य कर पायेगा। लंबे समय तक कार्य कर पायेगा। थकान कम लगेगी. बीमारी कम आएगी। यदि बीमारी आए तो जल्दी से स्वस्थ हो जाएगा। ताकत हो तो वह अधिक वजन उठा सकेगा, दौड़ में ज्यादा दूरी तय कर पायेगा, चल सकेगा,एवं साहसपूर्ण कार्य भी कर पाएगा।  
 
# अच्छे शरीर का तीसरा लक्षण है काम करने की कुशलता। अंग्रेजी में इसे (Skill) कहते हैं। कुशलता को इतना मूल्यवान माना गया है कि श्रीमद् भगवद्गीता में कहा है, 'योगः कर्मसु कौशलम्' अर्थात् कार्य करने की कुशलता ही योग है। हमारी ज्ञानेन्द्रियां एवं कर्मेन्द्रियां अपना अपना कार्य सही रूप से करें, तेजी से करें, एवं उसमें नयापन हो तो उसे कुशलता कहा जाएगा। कुशलतापूर्वक कार्य करने से ही कलाकारीगरी का विकास होता है। अपने कार्य में कुशलता होने के कारण ही कुम्हार नये-नये प्रकार के विविध आकार के गहने बनाता है। एक कुशल दर्जी नए नए फैशन के कपड़े सीता है। एक कुशल माता विविध प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन बनाकर खिलाती है। एक कुशल लिपिक सुंदर अक्षर से लिखता है। संक्षेप में देखा जाए तो व्यावहारिक जीवन में कशलता बहत बड़ी चीज है।  
 
# अच्छे शरीर का तीसरा लक्षण है काम करने की कुशलता। अंग्रेजी में इसे (Skill) कहते हैं। कुशलता को इतना मूल्यवान माना गया है कि श्रीमद् भगवद्गीता में कहा है, 'योगः कर्मसु कौशलम्' अर्थात् कार्य करने की कुशलता ही योग है। हमारी ज्ञानेन्द्रियां एवं कर्मेन्द्रियां अपना अपना कार्य सही रूप से करें, तेजी से करें, एवं उसमें नयापन हो तो उसे कुशलता कहा जाएगा। कुशलतापूर्वक कार्य करने से ही कलाकारीगरी का विकास होता है। अपने कार्य में कुशलता होने के कारण ही कुम्हार नये-नये प्रकार के विविध आकार के गहने बनाता है। एक कुशल दर्जी नए नए फैशन के कपड़े सीता है। एक कुशल माता विविध प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन बनाकर खिलाती है। एक कुशल लिपिक सुंदर अक्षर से लिखता है। संक्षेप में देखा जाए तो व्यावहारिक जीवन में कशलता बहत बड़ी चीज है।  
# अच्छे शरीर का चौथा लक्षण है - तितिक्षा, अर्थात् सहनशक्ति। सर्दी, गर्मी, वर्षा, भूख, प्यास, जागरण, थकान, इत्यादि शरीर पर पड़ने वाले कष्ट हैं। जानबूझकर इन कष्टों को नहीं भोगना चाहिए परंतु स्थिति आने पर यदि ऐसा कष्ट आ जाए तो उसे सह सकने की क्षमतावाला शरीर होना चाहिए। बीच जंगल में गाड़ी कहीं रूक जाए, आसपास कहीं भी पानी या खानेकी व्यवस्था न हो तो दसबीस घंटों तक बिना भोजन पानी के रह सकनेवाला शरीर होना चाहिए। कभी किसी उत्सव की तैयारी में सारी रात जगना पड़े तो भी दूसरे दिन ताजा ही रहे ऐसा शरीर होना चाहिए। इस तरह के शरीर को ही अच्छा शरीर कहा जाएगा।  
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# अच्छे शरीर का चौथा लक्षण है - तितिक्षा, अर्थात् सहनशक्ति। सर्दी, गर्मी, वर्षा, भूख, प्यास, जागरण, थकान, इत्यादि शरीर पर पड़ने वाले कष्ट हैं। जानबूझकर इन कष्टों को नहीं भोगना चाहिए परंतु स्थिति आने पर यदि ऐसा कष्ट आ जाए तो उसे सह सकने की क्षमतावाला शरीर होना चाहिए। मध्य जंगल में गाड़ी कहीं रूक जाए, आसपास कहीं भी पानी या खानेकी व्यवस्था न हो तो दसबीस घंटों तक बिना भोजन पानी के रह सकनेवाला शरीर होना चाहिए। कभी किसी उत्सव की तैयारी में सारी रात जगना पड़े तो भी दूसरे दिन ताजा ही रहे ऐसा शरीर होना चाहिए। इस तरह के शरीर को ही अच्छा शरीर कहा जाएगा।  
 
# अच्छे शरीर का पाँचवाँ लक्षण है -लचीलापन। अर्थात् शरीर को जैसे भी मोडना हो. मोडा जा सके ऐसा लचीलापन हो तो ही अच्छा खेल सकते हैं. अच्छा नृत्य कर सकते हैं, अच्छी तरह काम कर सकते हैं।  
 
# अच्छे शरीर का पाँचवाँ लक्षण है -लचीलापन। अर्थात् शरीर को जैसे भी मोडना हो. मोडा जा सके ऐसा लचीलापन हो तो ही अच्छा खेल सकते हैं. अच्छा नृत्य कर सकते हैं, अच्छी तरह काम कर सकते हैं।  
 
शरीर को ऐसे पाँच गुणों से युक्त बनाना ही शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य है।  
 
शरीर को ऐसे पाँच गुणों से युक्त बनाना ही शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य है।  
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## सीधे बैठना : सीधे बैठना अर्थात् सिर का पीछे का हिस्सा, पीठ एवं कमर सीधी रेखा में रहे इस तरह बैठना। ऐसी आदत बचपन से ही डालना चाहिए।
 
## सीधे बैठना : सीधे बैठना अर्थात् सिर का पीछे का हिस्सा, पीठ एवं कमर सीधी रेखा में रहे इस तरह बैठना। ऐसी आदत बचपन से ही डालना चाहिए।
 
## शिथिल होकर बैठना : सीधे बैठने का सिखाने पर छात्र तनकर बैठने लगते हैं। इस तनाव को कम करवाना चाहिए। शिथिल बैठना अर्थात् ढलकर बैठना एवं सीधा बैठना अर्थात तनकर बैठना - ऐसा अर्थ न करें।
 
## शिथिल होकर बैठना : सीधे बैठने का सिखाने पर छात्र तनकर बैठने लगते हैं। इस तनाव को कम करवाना चाहिए। शिथिल बैठना अर्थात् ढलकर बैठना एवं सीधा बैठना अर्थात तनकर बैठना - ऐसा अर्थ न करें।
## बैठक व धरती (जमीन) के बीच में कोई अंतर (दूरी) न रहे इस प्रकार बैठना चाहिए। पालथी लगाकर बैठे हों या पैरों के बल पर बैठे हों। तब पैर जमीन से स्पर्श करते हों इसका खास ख्याल रखें।
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## बैठक व धरती (जमीन) के मध्य में कोई अंतर (दूरी) न रहे इस प्रकार बैठना चाहिए। पालथी लगाकर बैठे हों या पैरों के बल पर बैठे हों। तब पैर जमीन से स्पर्श करते हों इसका खास ख्याल रखें।
 
## कम से कम समय पैर लटकाकर बैठना पड़े इसका ख्याल रखें।
 
## कम से कम समय पैर लटकाकर बैठना पड़े इसका ख्याल रखें।
 
## ध्यान में रखने योग्य बातें:
 
## ध्यान में रखने योग्य बातें:
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# खड़े रहना
 
# खड़े रहना
 
## दोनों पैरों पर समान भार रहे इस तरह खड़े रहना चाहिए। यह एक बहुत ही उपयोगी आदत है। परंतु इस ओर ध्यान न देने के कारण लोग डेढ़ पैर पर खड़े रहना सीखते हैं। इसलिए ऐसी आदत विशेष रूप से डालना चाहिए।
 
## दोनों पैरों पर समान भार रहे इस तरह खड़े रहना चाहिए। यह एक बहुत ही उपयोगी आदत है। परंतु इस ओर ध्यान न देने के कारण लोग डेढ़ पैर पर खड़े रहना सीखते हैं। इसलिए ऐसी आदत विशेष रूप से डालना चाहिए।
## दोनों पैर एकसाथ जुड़े हों, या दो पैरों के बीच दो कंधों के बीच जितनी दूरी होती है, उतनी दूरी रखना चाहिए।
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## दोनों पैर एकसाथ जुड़े हों, या दो पैरों के मध्य दो कंधों के मध्य जितनी दूरी होती है, उतनी दूरी रखना चाहिए।
## खड़े रहते समय एडी अंदर की ओर एवं पंजा बाहर की ओर रहे यही सही स्थिति है। उस ओर ध्यान दें। आदर्श स्थिति यह है कि एड़ी को जोड़कर यदि शरीर के समकोण पर सीधी रेखा खींची आए तो पंजों के बीच का कोण बनना चाहिए। यदी एडी जुड़ी हो तो दोनों के बीच ३०° का कोण बनना चाहिए।
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## खड़े रहते समय एडी अंदर की ओर एवं पंजा बाहर की ओर रहे यही सही स्थिति है। उस ओर ध्यान दें। आदर्श स्थिति यह है कि एड़ी को जोड़कर यदि शरीर के समकोण पर सीधी रेखा खींची आए तो पंजों के मध्य का कोण बनना चाहिए। यदी एडी जुड़ी हो तो दोनों के मध्य ३०° का कोण बनना चाहिए।
 
## सीधे खड़े रहना चाहिए। कमर या कंधे दबे हुए या झुके हुए न हों इसका ध्यान रखना चाहिए। इस ओर आजकल लोगों का ध्यान न होने के कारण अनेकों लोगो का सीना दबा होता है, या कंधे झुके होते हैं, या कमर बैठी हुई होती है, या तो पेट बाहर की ओर निकला हुआ होता है।
 
## सीधे खड़े रहना चाहिए। कमर या कंधे दबे हुए या झुके हुए न हों इसका ध्यान रखना चाहिए। इस ओर आजकल लोगों का ध्यान न होने के कारण अनेकों लोगो का सीना दबा होता है, या कंधे झुके होते हैं, या कमर बैठी हुई होती है, या तो पेट बाहर की ओर निकला हुआ होता है।
 
# चलना
 
# चलना
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## दांत स्वच्छ करना, शौच व स्नान करना चाहिए।
 
## दांत स्वच्छ करना, शौच व स्नान करना चाहिए।
 
## सुबह एक घण्टा पढ़ाई करना चाहिए। कुछ नया पढ़ना चाहिए, माता को काम में सहायता करना चाहिए।
 
## सुबह एक घण्टा पढ़ाई करना चाहिए। कुछ नया पढ़ना चाहिए, माता को काम में सहायता करना चाहिए।
## दोपहर में ११ से १२ के बीच भोजन करना चाहिए।
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## दोपहर में ११ से १२ के मध्य भोजन करना चाहिए।
 
## भोजन के बाद थोड़ा आराम करना चाहिए।
 
## भोजन के बाद थोड़ा आराम करना चाहिए।
 
## शाम को मैदान में दौड़-पकड़ जैसे खेल खेलना चाहिए।
 
## शाम को मैदान में दौड़-पकड़ जैसे खेल खेलना चाहिए।
 
## संध्यासमय में प्रार्थना करना चाहिए।
 
## संध्यासमय में प्रार्थना करना चाहिए।
 
## पढ़ना चाहिए व गृहकार्य करना चाहिए।
 
## पढ़ना चाहिए व गृहकार्य करना चाहिए।
## शाम को ७ से ७.३० के बीच भोजन करना चाहिए।
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## शाम को ७ से ७.३० के मध्य भोजन करना चाहिए।
 
## रात को ९ बजे तक सो जाना चाहिए।
 
## रात को ९ बजे तक सो जाना चाहिए।
 
## सोते समय प्रार्थना करना चाहिए।
 
## सोते समय प्रार्थना करना चाहिए।

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