| # ज्ञानेन्द्रियों को अनुभव लेना, एवं कर्मेन्द्रियों को कुशलतापूर्वक काम करना सिखाना। कुल पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं - दृश्येन्द्रिय, श्रवणेन्द्रिय, स्वादेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय एवं स्पर्शेन्द्रिय। पाँचों ज्ञानेन्द्रियों के विषय हैं - देखना, सुनना, चखना, सुंघना एवं स्पर्श करना। इन पाँचों अनुभवों की खूबियाँ व विशेषताएँ सीखना। पाँच कर्मेन्द्रियाँ हैं - हाथ, पैर, वाणी, आयु एवं उपस्थ । इन में से तीन कर्मेन्द्रियों की कुशलता सिखाना चाहिए। ये तीन कर्मेन्द्रियाँ हैं हाथ, पैर एवं वाणी। हाथ की कुशलताएँ इस प्रकार हैं - पकड़ना, गूंथना, लिखना, फैंकना, उठाना, दबाना, घसीटना, खींचना, ढकेलना, उछालना, चित्र बनाना, कूटना, रंगना इत्यादि। इनमें से गूंथना, चित्र बनाना, पीसना, कूटना, रंगना उद्योग के विषय में पहले समावेश पा चुका है। 'लिखने' का समावेश [[शिक्षा पाठ्यक्रम एवं निर्देशिका-भाषा-3|भाषा]] में होगा। शेष कुशलताओं का समावेश शारीरिक शिक्षा के विषय में होगा। पैर की कुशलताएँ इस प्रकार हैं: खड़े रहना, चलना, दौड़ना, ठोकर मारना, पैरों से दबाना, कूदना, छलांग लगाना, नृत्य करना, पेडल मारना, चढ़ना, उतरना, पालथी लगाना इत्यादि। इनमें से नृत्य करने का समावेश [[शिक्षा पाठ्यक्रम एवं निर्देशिका-संगीत-5|संगीत]] में होता है। एवं पालथी लगाने का समावेश [[शिक्षा पाठ्यक्रम एवं निर्देशिका-योग-1|योग]] में होता है। शेष सभी कुशलताएँ शारीरिक शिक्षा का भाग हैं। बोलना व गाना वाणी की कुशलताएँ हैं। इनमें से बोलना [[शिक्षा पाठ्यक्रम एवं निर्देशिका-भाषा-3|भाषाशिक्षण]] एवं गाना [[शिक्षा पाठ्यक्रम एवं निर्देशिका-संगीत-5|संगीत]] विषय का भाग है। इस तरह कुशलता की दृष्टि से देखा जाय तो पैर व हाथ की कुशलताओं के प्रति ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है। | | # ज्ञानेन्द्रियों को अनुभव लेना, एवं कर्मेन्द्रियों को कुशलतापूर्वक काम करना सिखाना। कुल पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं - दृश्येन्द्रिय, श्रवणेन्द्रिय, स्वादेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय एवं स्पर्शेन्द्रिय। पाँचों ज्ञानेन्द्रियों के विषय हैं - देखना, सुनना, चखना, सुंघना एवं स्पर्श करना। इन पाँचों अनुभवों की खूबियाँ व विशेषताएँ सीखना। पाँच कर्मेन्द्रियाँ हैं - हाथ, पैर, वाणी, आयु एवं उपस्थ । इन में से तीन कर्मेन्द्रियों की कुशलता सिखाना चाहिए। ये तीन कर्मेन्द्रियाँ हैं हाथ, पैर एवं वाणी। हाथ की कुशलताएँ इस प्रकार हैं - पकड़ना, गूंथना, लिखना, फैंकना, उठाना, दबाना, घसीटना, खींचना, ढकेलना, उछालना, चित्र बनाना, कूटना, रंगना इत्यादि। इनमें से गूंथना, चित्र बनाना, पीसना, कूटना, रंगना उद्योग के विषय में पहले समावेश पा चुका है। 'लिखने' का समावेश [[शिक्षा पाठ्यक्रम एवं निर्देशिका-भाषा-3|भाषा]] में होगा। शेष कुशलताओं का समावेश शारीरिक शिक्षा के विषय में होगा। पैर की कुशलताएँ इस प्रकार हैं: खड़े रहना, चलना, दौड़ना, ठोकर मारना, पैरों से दबाना, कूदना, छलांग लगाना, नृत्य करना, पेडल मारना, चढ़ना, उतरना, पालथी लगाना इत्यादि। इनमें से नृत्य करने का समावेश [[शिक्षा पाठ्यक्रम एवं निर्देशिका-संगीत-5|संगीत]] में होता है। एवं पालथी लगाने का समावेश [[शिक्षा पाठ्यक्रम एवं निर्देशिका-योग-1|योग]] में होता है। शेष सभी कुशलताएँ शारीरिक शिक्षा का भाग हैं। बोलना व गाना वाणी की कुशलताएँ हैं। इनमें से बोलना [[शिक्षा पाठ्यक्रम एवं निर्देशिका-भाषा-3|भाषाशिक्षण]] एवं गाना [[शिक्षा पाठ्यक्रम एवं निर्देशिका-संगीत-5|संगीत]] विषय का भाग है। इस तरह कुशलता की दृष्टि से देखा जाय तो पैर व हाथ की कुशलताओं के प्रति ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है। |
− | # शरीर का संतुलन व संचालन: शरीर के सभी अंग एक साथ मिलकर काम करते हैं, अकेले अकेले अलग अलग नहीं करते हैं। इसलिए सभी तरह की हलचल व्यवस्थित रूप से हो, इसके लिए शरीर पर नियंत्रण प्राप्त होना आवश्यक है। जीवन व्यवहार के सभी कार्य हाथ, पैर, वाणी का एकसाथ उपयोग करके ही होते हैं। जैसे हलचल आवश्यक है, उसी तरह बिना हिले स्थिर बैठना भी जरूरी है। संकरी जगह में खड़े रहना, चलना भी जरुरी है। कम जगह में सिकुड़कर बैठना भी आवश्यक है, अचानक धक्का लगने पर लुढ़क न जाएँ यह भी आवश्यक है, अचानक कोई पत्थर अपनी तरफ आता हो तो उससे बचना भी आवश्यक है, निशाना लगाना भी जरूरी है। यह सब शरीर के संतुलन एवं शरीर के नियंत्रण से हो सकता है। | + | # शरीर का संतुलन व संचालन: शरीर के सभी अंग एक साथ मिलकर काम करते हैं, अकेले अकेले अलग अलग नहीं करते हैं। इसलिए सभी तरह की हलचल व्यवस्थित रूप से हो, इसके लिए शरीर पर नियंत्रण प्राप्त होना आवश्यक है। जीवन व्यवहार के सभी कार्य हाथ, पैर, वाणी का एकसाथ उपयोग करके ही होते हैं। जैसे हलचल आवश्यक है, उसी तरह बिना हिले स्थिर बैठना भी आवश्यक है। संकरी जगह में खड़े रहना, चलना भी जरुरी है। कम जगह में सिकुड़कर बैठना भी आवश्यक है, अचानक धक्का लगने पर लुढ़क न जाएँ यह भी आवश्यक है, अचानक कोई पत्थर अपनी तरफ आता हो तो उससे बचना भी आवश्यक है, निशाना लगाना भी आवश्यक है। यह सब शरीर के संतुलन एवं शरीर के नियंत्रण से हो सकता है। |
| # ठोकर मारना: पैरों से किसी वस्तु को दूर फेंकना ठोकर मारना कहलाता है। गेंद, पत्थर या ऐसी किसी भी वस्तु को ठोकर मारकर दूर फैंकना भी एक अहम कौशल है। ठोकर मारते समय वस्तु का वजन, कितनी दूर फैंकना है, उसका अंदाज, उसकी दिशा तथा उसके अनुसार पैरों की स्थिति आदि का एकसाथ ही ख्याल रखना पड़ता है। परंतु अभ्यास से ये सभी बातें आने लगती हैं। | | # ठोकर मारना: पैरों से किसी वस्तु को दूर फेंकना ठोकर मारना कहलाता है। गेंद, पत्थर या ऐसी किसी भी वस्तु को ठोकर मारकर दूर फैंकना भी एक अहम कौशल है। ठोकर मारते समय वस्तु का वजन, कितनी दूर फैंकना है, उसका अंदाज, उसकी दिशा तथा उसके अनुसार पैरों की स्थिति आदि का एकसाथ ही ख्याल रखना पड़ता है। परंतु अभ्यास से ये सभी बातें आने लगती हैं। |