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| == उद्देश्य == | | == उद्देश्य == |
− | एक कहावत है 'पहला सुख, निरोगी काया' अर्थात् शरीर का आरोग्य अच्छा हो तभी सुख का अनुभव होता है<ref>प्रारम्भिक पाठ्यक्रम एवं आचार्य अभिभावक निर्देशिका - अध्याय ८, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखिका: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। अन्य किसी भी प्रकार का सुख यदि शरीर स्वस्थ न हो तो भोगा नहीं जा सकता है। संस्कृत में एक उक्ति है, 'शरीरमाद्यं खल धर्मसाधनम' धर्म के आचरण के लिए पहला साधन शरीर है। हमारा जीवन व्यवहार चलाने में महत्तम उपयोग शरीर का ही होता है। शरीर के बिना हमारा जीवन चल ही नहीं सकता। इसलिए शरीर का स्वस्थ होना ईश्वर का ही मूल्यवान आशीर्वाद है। शरीर को स्वस्थ रखना प्रत्येक व्यक्ति का प्रथम कर्तव्य है। | + | एक कहावत है 'पहला सुख, निरोगी काया' अर्थात् शरीर का आरोग्य अच्छा हो तभी सुख का अनुभव होता है<ref>प्रारम्भिक पाठ्यक्रम एवं आचार्य अभिभावक निर्देशिका - अध्याय ८, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखिका: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। अन्य किसी भी प्रकार का सुख यदि शरीर स्वस्थ न हो तो भोगा नहीं जा सकता है। संस्कृत में एक उक्ति है, 'शरीरमाद्यं खल धर्मसाधनम' धर्म के आचरण के लिए पहला साधन शरीर है। हमारा जीवन व्यवहार चलाने में महत्तम उपयोग शरीर का ही होता है। शरीर के बिना हमारा जीवन चल ही नहीं सकता। अतः शरीर का स्वस्थ होना ईश्वर का ही मूल्यवान आशीर्वाद है। शरीर को स्वस्थ रखना प्रत्येक व्यक्ति का प्रथम कर्तव्य है। |
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| शरीर स्वस्थ बने एवं रहे इस दृष्टि से विद्यालयों में शारीरिक शिक्षण की व्यवस्था की जाती है। परंतु स्वस्थ शरीर का अर्थ क्या है ? केवल सुन्दर होना ही स्वस्थ शरीर का मापदंड नहीं है। अच्छे स्वस्थ शरीर के लक्षण इस प्रकार है। | | शरीर स्वस्थ बने एवं रहे इस दृष्टि से विद्यालयों में शारीरिक शिक्षण की व्यवस्था की जाती है। परंतु स्वस्थ शरीर का अर्थ क्या है ? केवल सुन्दर होना ही स्वस्थ शरीर का मापदंड नहीं है। अच्छे स्वस्थ शरीर के लक्षण इस प्रकार है। |
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| # शरीर की भिन्न भिन्न स्थितियाँ योग्य बनें। अर्थात् उन्हें बैठने की, खड़े रहने की, लेटने की, सोने की, चलने की योग्य पद्धति सिखाना। | | # शरीर की भिन्न भिन्न स्थितियाँ योग्य बनें। अर्थात् उन्हें बैठने की, खड़े रहने की, लेटने की, सोने की, चलने की योग्य पद्धति सिखाना। |
| # ज्ञानेन्द्रियों को अनुभव लेना, एवं कर्मेन्द्रियों को कुशलतापूर्वक काम करना सिखाना। कुल पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं - दृश्येन्द्रिय, श्रवणेन्द्रिय, स्वादेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय एवं स्पर्शेन्द्रिय। पाँचों ज्ञानेन्द्रियों के विषय हैं - देखना, सुनना, चखना, सुंघना एवं स्पर्श करना। इन पाँचों अनुभवों की खूबियाँ व विशेषताएँ सीखना। पाँच कर्मेन्द्रियाँ हैं - हाथ, पैर, वाणी, आयु एवं उपस्थ । इन में से तीन कर्मेन्द्रियों की कुशलता सिखाना चाहिए। ये तीन कर्मेन्द्रियाँ हैं हाथ, पैर एवं वाणी। हाथ की कुशलताएँ इस प्रकार हैं - पकड़ना, गूंथना, लिखना, फैंकना, उठाना, दबाना, घसीटना, खींचना, ढकेलना, उछालना, चित्र बनाना, कूटना, रंगना इत्यादि। इनमें से गूंथना, चित्र बनाना, पीसना, कूटना, रंगना उद्योग के विषय में पहले समावेश पा चुका है। 'लिखने' का समावेश [[शिक्षा पाठ्यक्रम एवं निर्देशिका-भाषा-3|भाषा]] में होगा। शेष कुशलताओं का समावेश शारीरिक शिक्षा के विषय में होगा। पैर की कुशलताएँ इस प्रकार हैं: खड़े रहना, चलना, दौड़ना, ठोकर मारना, पैरों से दबाना, कूदना, छलांग लगाना, नृत्य करना, पेडल मारना, चढ़ना, उतरना, पालथी लगाना इत्यादि। इनमें से नृत्य करने का समावेश [[शिक्षा पाठ्यक्रम एवं निर्देशिका-संगीत-5|संगीत]] में होता है। एवं पालथी लगाने का समावेश [[शिक्षा पाठ्यक्रम एवं निर्देशिका-योग-1|योग]] में होता है। शेष सभी कुशलताएँ शारीरिक शिक्षा का भाग हैं। बोलना व गाना वाणी की कुशलताएँ हैं। इनमें से बोलना [[शिक्षा पाठ्यक्रम एवं निर्देशिका-भाषा-3|भाषाशिक्षण]] एवं गाना [[शिक्षा पाठ्यक्रम एवं निर्देशिका-संगीत-5|संगीत]] विषय का भाग है। इस तरह कुशलता की दृष्टि से देखा जाय तो पैर व हाथ की कुशलताओं के प्रति ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है। | | # ज्ञानेन्द्रियों को अनुभव लेना, एवं कर्मेन्द्रियों को कुशलतापूर्वक काम करना सिखाना। कुल पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं - दृश्येन्द्रिय, श्रवणेन्द्रिय, स्वादेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय एवं स्पर्शेन्द्रिय। पाँचों ज्ञानेन्द्रियों के विषय हैं - देखना, सुनना, चखना, सुंघना एवं स्पर्श करना। इन पाँचों अनुभवों की खूबियाँ व विशेषताएँ सीखना। पाँच कर्मेन्द्रियाँ हैं - हाथ, पैर, वाणी, आयु एवं उपस्थ । इन में से तीन कर्मेन्द्रियों की कुशलता सिखाना चाहिए। ये तीन कर्मेन्द्रियाँ हैं हाथ, पैर एवं वाणी। हाथ की कुशलताएँ इस प्रकार हैं - पकड़ना, गूंथना, लिखना, फैंकना, उठाना, दबाना, घसीटना, खींचना, ढकेलना, उछालना, चित्र बनाना, कूटना, रंगना इत्यादि। इनमें से गूंथना, चित्र बनाना, पीसना, कूटना, रंगना उद्योग के विषय में पहले समावेश पा चुका है। 'लिखने' का समावेश [[शिक्षा पाठ्यक्रम एवं निर्देशिका-भाषा-3|भाषा]] में होगा। शेष कुशलताओं का समावेश शारीरिक शिक्षा के विषय में होगा। पैर की कुशलताएँ इस प्रकार हैं: खड़े रहना, चलना, दौड़ना, ठोकर मारना, पैरों से दबाना, कूदना, छलांग लगाना, नृत्य करना, पेडल मारना, चढ़ना, उतरना, पालथी लगाना इत्यादि। इनमें से नृत्य करने का समावेश [[शिक्षा पाठ्यक्रम एवं निर्देशिका-संगीत-5|संगीत]] में होता है। एवं पालथी लगाने का समावेश [[शिक्षा पाठ्यक्रम एवं निर्देशिका-योग-1|योग]] में होता है। शेष सभी कुशलताएँ शारीरिक शिक्षा का भाग हैं। बोलना व गाना वाणी की कुशलताएँ हैं। इनमें से बोलना [[शिक्षा पाठ्यक्रम एवं निर्देशिका-भाषा-3|भाषाशिक्षण]] एवं गाना [[शिक्षा पाठ्यक्रम एवं निर्देशिका-संगीत-5|संगीत]] विषय का भाग है। इस तरह कुशलता की दृष्टि से देखा जाय तो पैर व हाथ की कुशलताओं के प्रति ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है। |
− | # शरीर का संतुलन व संचालन: शरीर के सभी अंग एक साथ मिलकर काम करते हैं, अकेले अकेले अलग अलग नहीं करते हैं। इसलिए सभी तरह की हलचल व्यवस्थित रूप से हो, इसके लिए शरीर पर नियंत्रण प्राप्त होना आवश्यक है। जीवन व्यवहार के सभी कार्य हाथ, पैर, वाणी का एकसाथ उपयोग करके ही होते हैं। जैसे हलचल आवश्यक है, उसी तरह बिना हिले स्थिर बैठना भी आवश्यक है। संकरी जगह में खड़े रहना, चलना भी जरुरी है। कम जगह में सिकुड़कर बैठना भी आवश्यक है, अचानक धक्का लगने पर लुढ़क न जाएँ यह भी आवश्यक है, अचानक कोई पत्थर अपनी तरफ आता हो तो उससे बचना भी आवश्यक है, निशाना लगाना भी आवश्यक है। यह सब शरीर के संतुलन एवं शरीर के नियंत्रण से हो सकता है। | + | # शरीर का संतुलन व संचालन: शरीर के सभी अंग एक साथ मिलकर काम करते हैं, अकेले अकेले अलग अलग नहीं करते हैं। अतः सभी तरह की हलचल व्यवस्थित रूप से हो, इसके लिए शरीर पर नियंत्रण प्राप्त होना आवश्यक है। जीवन व्यवहार के सभी कार्य हाथ, पैर, वाणी का एकसाथ उपयोग करके ही होते हैं। जैसे हलचल आवश्यक है, उसी तरह बिना हिले स्थिर बैठना भी आवश्यक है। संकरी जगह में खड़े रहना, चलना भी जरुरी है। कम जगह में सिकुड़कर बैठना भी आवश्यक है, अचानक धक्का लगने पर लुढ़क न जाएँ यह भी आवश्यक है, अचानक कोई पत्थर अपनी तरफ आता हो तो उससे बचना भी आवश्यक है, निशाना लगाना भी आवश्यक है। यह सब शरीर के संतुलन एवं शरीर के नियंत्रण से हो सकता है। |
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| == शरीर परिचय == | | == शरीर परिचय == |
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| ## कम से कम समय पैर लटकाकर बैठना पड़े इसका ख्याल रखें। | | ## कम से कम समय पैर लटकाकर बैठना पड़े इसका ख्याल रखें। |
| ## ध्यान में रखने योग्य बातें: | | ## ध्यान में रखने योग्य बातें: |
− | ### बचपन में स्वाभाविक रूप से ही शरीर लचीला होता है। इसलिए योग्य स्थिति की आदत बचपन से ही डालना चाहिए। जैसे जैसे आयु बढ़ती है, पुरानी आदतों को बदलना या भुलाना मुश्किल होता जाता है। | + | ### बचपन में स्वाभाविक रूप से ही शरीर लचीला होता है। अतः योग्य स्थिति की आदत बचपन से ही डालना चाहिए। जैसे जैसे आयु बढ़ती है, पुरानी आदतों को बदलना या भुलाना मुश्किल होता जाता है। |
| ### सीधे बैठा जा सके इसके लिए लिखने के लिए, काम करने के लिए सामने चौकी होना आवश्यक है। नहीं तो कार्य करने के लिए भी शरीर विकृत रूप से ढ़लता जाता है। | | ### सीधे बैठा जा सके इसके लिए लिखने के लिए, काम करने के लिए सामने चौकी होना आवश्यक है। नहीं तो कार्य करने के लिए भी शरीर विकृत रूप से ढ़लता जाता है। |
| # खड़े रहना | | # खड़े रहना |
− | ## दोनों पैरों पर समान भार रहे इस तरह खड़े रहना चाहिए। यह एक बहुत ही उपयोगी आदत है। परंतु इस ओर ध्यान न देने के कारण लोग डेढ़ पैर पर खड़े रहना सीखते हैं। इसलिए ऐसी आदत विशेष रूप से डालना चाहिए। | + | ## दोनों पैरों पर समान भार रहे इस तरह खड़े रहना चाहिए। यह एक बहुत ही उपयोगी आदत है। परंतु इस ओर ध्यान न देने के कारण लोग डेढ़ पैर पर खड़े रहना सीखते हैं। अतः ऐसी आदत विशेष रूप से डालना चाहिए। |
| ## दोनों पैर एकसाथ जुड़े हों, या दो पैरों के मध्य दो कंधों के मध्य जितनी दूरी होती है, उतनी दूरी रखना चाहिए। | | ## दोनों पैर एकसाथ जुड़े हों, या दो पैरों के मध्य दो कंधों के मध्य जितनी दूरी होती है, उतनी दूरी रखना चाहिए। |
| ## खड़े रहते समय एडी अंदर की ओर एवं पंजा बाहर की ओर रहे यही सही स्थिति है। उस ओर ध्यान दें। आदर्श स्थिति यह है कि एड़ी को जोड़कर यदि शरीर के समकोण पर सीधी रेखा खींची आए तो पंजों के मध्य का कोण बनना चाहिए। यदी एडी जुड़ी हो तो दोनों के मध्य ३०° का कोण बनना चाहिए। | | ## खड़े रहते समय एडी अंदर की ओर एवं पंजा बाहर की ओर रहे यही सही स्थिति है। उस ओर ध्यान दें। आदर्श स्थिति यह है कि एड़ी को जोड़कर यदि शरीर के समकोण पर सीधी रेखा खींची आए तो पंजों के मध्य का कोण बनना चाहिए। यदी एडी जुड़ी हो तो दोनों के मध्य ३०° का कोण बनना चाहिए। |
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| ### मैले या पोलीस्टर के कपड़े पहनकर नहीं सोना चाहिए। | | ### मैले या पोलीस्टर के कपड़े पहनकर नहीं सोना चाहिए। |
| ### हाथपैर धोकर ही सोना चाहिए। | | ### हाथपैर धोकर ही सोना चाहिए। |
− | ### निद्रा शरीर के पोषण व स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इसलिए उसके प्रति पर्याप्त ध्यान देना चाहिए। | + | ### निद्रा शरीर के पोषण व स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। अतः उसके प्रति पर्याप्त ध्यान देना चाहिए। |
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| == ज्ञानेन्द्रियाँ == | | == ज्ञानेन्द्रियाँ == |
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| === आँख === | | === आँख === |
− | # आँखें रंग व आकृति की पहचान करती है। इसलिए छात्रों को भिन्न भिन्न रंगों व आकारों का परिचय व पहचान करवाना चाहिए। | + | # आँखें रंग व आकृति की पहचान करती है। अतः छात्रों को भिन्न भिन्न रंगों व आकारों का परिचय व पहचान करवाना चाहिए। |
| # आँख को धूप व धुएँ से बचाना चाहिए। | | # आँख को धूप व धुएँ से बचाना चाहिए। |
| # आँखों को टी.वी. से तो खास बचाने की आवश्यकता है। | | # आँखों को टी.वी. से तो खास बचाने की आवश्यकता है। |
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| === नाक === | | === नाक === |
− | नाक गंध परखती है। इसलिए भिन्न भिन्न प्रकार की गंधों का परिचय करवाना चाहिए। जैसे | + | नाक गंध परखती है। अतः भिन्न भिन्न प्रकार की गंधों का परिचय करवाना चाहिए। जैसे |
| # सुगंध व दुर्गंध | | # सुगंध व दुर्गंध |
| # फूल, फल, सब्जी व मिठाई की सुगंध | | # फूल, फल, सब्जी व मिठाई की सुगंध |
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| === जिह्वा === | | === जिह्वा === |
− | जिह्वा स्वाद परखती है। इसलिए भिन्न-भिन्न प्रकार के स्वाद का परिचय करवाना चाहिए। जैसे : | + | जिह्वा स्वाद परखती है। अतः भिन्न-भिन्न प्रकार के स्वाद का परिचय करवाना चाहिए। जैसे : |
| # मीठा, खट्टा, तीखा, नमकीन, कडुवा व कसैला। | | # मीठा, खट्टा, तीखा, नमकीन, कडुवा व कसैला। |
| # अलग अलग स्वाद का मिश्रण। | | # अलग अलग स्वाद का मिश्रण। |
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| === त्वचा === | | === त्वचा === |
− | त्वचा भिन्न भिन्न स्पर्श पहचानती है। इसलिए भिन्न भिन्न प्रकार के स्पर्श का परिचय करवाना चाहिए। जैसे: | + | त्वचा भिन्न भिन्न स्पर्श पहचानती है। अतः भिन्न भिन्न प्रकार के स्पर्श का परिचय करवाना चाहिए। जैसे: |
| # ठंडा व गर्म | | # ठंडा व गर्म |
| # खुरदरा व मुलायम | | # खुरदरा व मुलायम |
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| == कर्मेन्द्रियाँ == | | == कर्मेन्द्रियाँ == |
− | आगे बताए गए अनुसार पाँच कर्मेन्द्रियों में से यहाँ सिर्फ दो ही कर्मेन्द्रियों के बारे में हमें सोचना है। वे कर्मेन्द्रियाँ हाथ व पैर हैं। इनमें भी हाथ के कुछ कौशलों के बारे में उद्योग विषय में सोचा गया है। इसलिए शेष हाथ के कौशल व पैर के कौशल के बारे में यहाँ विचार करना है। | + | आगे बताए गए अनुसार पाँच कर्मेन्द्रियों में से यहाँ सिर्फ दो ही कर्मेन्द्रियों के बारे में हमें सोचना है। वे कर्मेन्द्रियाँ हाथ व पैर हैं। इनमें भी हाथ के कुछ कौशलों के बारे में उद्योग विषय में सोचा गया है। अतः शेष हाथ के कौशल व पैर के कौशल के बारे में यहाँ विचार करना है। |
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| === हाथ === | | === हाथ === |
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| === कुछ ध्यान में रखने योग्य बातें === | | === कुछ ध्यान में रखने योग्य बातें === |
| # शारीरिक शिक्षण की कुछ बातें विद्यालय में करने के लिए हैं, तो कुछ घरमें करने के लिये हैं। विद्यालय में करने योग्य बातों को अच्छी तरह करवाने की जिम्मेदारी शिक्षकों की है तथा घरमें करने योग्य बातों की जिम्मेदारी मातापिता की है यह अच्छी तरह समझने की आवश्यकता है। | | # शारीरिक शिक्षण की कुछ बातें विद्यालय में करने के लिए हैं, तो कुछ घरमें करने के लिये हैं। विद्यालय में करने योग्य बातों को अच्छी तरह करवाने की जिम्मेदारी शिक्षकों की है तथा घरमें करने योग्य बातों की जिम्मेदारी मातापिता की है यह अच्छी तरह समझने की आवश्यकता है। |
− | # शारीरिक शिक्षा पढ़ने व याद रखने के लिए नहीं अपितु समझने व करने के लिए है। इसलिए इसका स्वरूप क्रियात्मक ही होना चाहिए। | + | # शारीरिक शिक्षा पढ़ने व याद रखने के लिए नहीं अपितु समझने व करने के लिए है। अतः इसका स्वरूप क्रियात्मक ही होना चाहिए। |
| # शारीरिक शिक्षा की उपेक्षा न करें। उसे कम अहमियत न दें। वर्तमान समय में ऐसा करने के कारण ही हमारे बच्चे दुर्बल व बीमार लगते हैं। परिणाम स्वरूप उनका मन भी बीमार रहता है। | | # शारीरिक शिक्षा की उपेक्षा न करें। उसे कम अहमियत न दें। वर्तमान समय में ऐसा करने के कारण ही हमारे बच्चे दुर्बल व बीमार लगते हैं। परिणाम स्वरूप उनका मन भी बीमार रहता है। |
| # छात्र घर पर काम करें यह आवश्यक है। साथ ही उन्हें मैदान पर खेलने के लिए भी समय देना चाहिए व प्रोत्साहित भी करना चाहिए। | | # छात्र घर पर काम करें यह आवश्यक है। साथ ही उन्हें मैदान पर खेलने के लिए भी समय देना चाहिए व प्रोत्साहित भी करना चाहिए। |