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ऊर्जा के विषय में भी पुर्नविचार की आवश्यकता है। भारत ऊर्जा के क्षेत्र में पशु, कोयला, लकडी एवं लकडी के कोयले जैसी वस्तुओं पर निर्भर है। दिनों दिन ईंधन के लिए ही योग्य लकडी का उपयोग करने के स्थान पर जंगल कटते जा रहे है एवं नीलगिरी जैसे वृक्षों की उपज एवं बुआई बढ़ती जा रही है। देश के ८० से ९० प्रतिशत लोगों को तो ऊर्जा प्राप्त नहीं होती है। उनके लिए सूर्यप्रकाश ही ऊर्जा का स्रोत है। वास्तव में भारत जैसे भरपूर सूर्यप्रकाशवाले देश में ऊर्जा की आवश्यकता कम ही होनी चाहिए, ऊर्जा की अधिक आवश्यकता तो सूर्यप्रकाश के विषय में इतने सद्भागी नहीं है ऐसे देशों को पड़नी चाहिए। परन्तु इतनी बड़ी कृपा का लाभ उठाया जा सके इस प्रकार की लोगों की जीवन शैली एवं स्वाभाविक कुशल रचना भी होनी चाहिए। भारत की जीवनशैली मूलतः ऐसी ही थी, परन्तु अठारहवीं, उन्नीसवीं शताब्दी से इसमें बहुत विकृति आई है। अब लोगों की जीवनशैली एवं रचना में पुनः परिवर्तन हो तब तक वर्तमान परिस्थिति में भी ऊर्जा का पुनर्वितरण जरुरी है। व्यक्तिगत उपयोग के लिए, बड़े बड़े प्रकल्पों के लिए, योजनाओं के लिए सौर ऊर्जा का अधिक से अधिक उपयोग करने की आवश्यकता है।
 
ऊर्जा के विषय में भी पुर्नविचार की आवश्यकता है। भारत ऊर्जा के क्षेत्र में पशु, कोयला, लकडी एवं लकडी के कोयले जैसी वस्तुओं पर निर्भर है। दिनों दिन ईंधन के लिए ही योग्य लकडी का उपयोग करने के स्थान पर जंगल कटते जा रहे है एवं नीलगिरी जैसे वृक्षों की उपज एवं बुआई बढ़ती जा रही है। देश के ८० से ९० प्रतिशत लोगों को तो ऊर्जा प्राप्त नहीं होती है। उनके लिए सूर्यप्रकाश ही ऊर्जा का स्रोत है। वास्तव में भारत जैसे भरपूर सूर्यप्रकाशवाले देश में ऊर्जा की आवश्यकता कम ही होनी चाहिए, ऊर्जा की अधिक आवश्यकता तो सूर्यप्रकाश के विषय में इतने सद्भागी नहीं है ऐसे देशों को पड़नी चाहिए। परन्तु इतनी बड़ी कृपा का लाभ उठाया जा सके इस प्रकार की लोगों की जीवन शैली एवं स्वाभाविक कुशल रचना भी होनी चाहिए। भारत की जीवनशैली मूलतः ऐसी ही थी, परन्तु अठारहवीं, उन्नीसवीं शताब्दी से इसमें बहुत विकृति आई है। अब लोगों की जीवनशैली एवं रचना में पुनः परिवर्तन हो तब तक वर्तमान परिस्थिति में भी ऊर्जा का पुनर्वितरण जरुरी है। व्यक्तिगत उपयोग के लिए, बड़े बड़े प्रकल्पों के लिए, योजनाओं के लिए सौर ऊर्जा का अधिक से अधिक उपयोग करने की आवश्यकता है।
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जिन जिन क्षेत्रों में तीसरे विश्व के समान भारत को अन्य देशों के व्यवहार को ही केन्द्रस्थान पर रखने की जरूरत है वहीं भिन्न रूप से सोचने की भी जरूरत है। आज समग्र विश्व में बल का प्रयोग सबसे महत्वपूर्ण कारक माना जाता है। इस विषय में भारत को एक विशेष दृष्टि विकसित करने की जरूरत है। महात्मा गांधी ने अहिंसा पर आधारित विश्व रचना की, एवं संयम पर आधारित व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन रचना की बात की थी। विश्व में अनेकानेक लोगों ने इस बात को समझकर अपनाया है।
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जिन जिन क्षेत्रों में तीसरे विश्व के समान भारत को अन्य देशों के व्यवहार को ही केन्द्रस्थान पर रखने की आवश्यकता है वहीं भिन्न रूप से सोचने की भी आवश्यकता है। आज समग्र विश्व में बल का प्रयोग सबसे महत्वपूर्ण कारक माना जाता है। इस विषय में भारत को एक विशेष दृष्टि विकसित करने की आवश्यकता है। महात्मा गांधी ने अहिंसा पर आधारित विश्व रचना की, एवं संयम पर आधारित व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन रचना की बात की थी। विश्व में अनेकानेक लोगों ने इस बात को समझकर अपनाया है।
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आज भी इन्ही सूत्रों को आधार बनाकर आज के संदर्भ में उसके विभिन्न विकल्पों को छाँटकर उसे व्यावहारिक बनाने की जरूरत है। इस विषय में भारत पहल कर सकता है एवं रास्ता भी दिखा सकता है, परन्तु ऐसे प्रयास सफल होने तक भारत को स्वाभाविक रूप से ही अपनी सुरक्षा की ओर ध्यान देना ही पड़ेगा। एवं उसके लिए आवश्यक सभी उपायों का भी आयोजन करना पड़ेगा। इस विषय में भारत को आज विश्व में प्रबल भौतिक संसाधन, अनुसंधान, उपकरण एवं उससे प्राप्त होनेवाला सामर्थ्य भी प्राप्त करना पड़ेगा।
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आज भी इन्ही सूत्रों को आधार बनाकर आज के संदर्भ में उसके विभिन्न विकल्पों को छाँटकर उसे व्यावहारिक बनाने की आवश्यकता है। इस विषय में भारत पहल कर सकता है एवं रास्ता भी दिखा सकता है, परन्तु ऐसे प्रयास सफल होने तक भारत को स्वाभाविक रूप से ही अपनी सुरक्षा की ओर ध्यान देना ही पड़ेगा। एवं उसके लिए आवश्यक सभी उपायों का भी आयोजन करना पड़ेगा। इस विषय में भारत को आज विश्व में प्रबल भौतिक संसाधन, अनुसंधान, उपकरण एवं उससे प्राप्त होनेवाला सामर्थ्य भी प्राप्त करना पड़ेगा।
    
अभी तक तो भारत जैसे देशों ने अपने व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक जीवन में आधुनिक पाश्चात्य वैज्ञानिक एवं तांत्रिक ज्ञान को दखल देने से रोके रखा है, या बेमन से कुछ कुछ अपनाया है। इसमें असफलता ही प्राप्त हुई है। भारत की मानसिक एवं आध्यात्मिक स्थिति आज उलझ गई है। यूरोप के सैनिकी, राजनैतिक एवं बौद्धिक आक्रमण का यह परिणाम है। इस स्थिति में विज्ञान एवं तन्त्रज्ञान को उचित रूप से अपनाने में असफलता प्राप्त होना स्वाभाविक है। यूरोप का यह आक्रमण इतना प्रबल है कि महात्मा गाँधी के निकटतम अनुयायी एवं उनकी ही प्रेरणा से कार्य करनेवाली सभी संस्थाएँ अपने शत्रु की ही विचारधारा, व्यवहारप्रणाली एवं पद्धतियों का अनुसरण एवं अनुकरण करते हैं। ब्रिटिश राज्यतन्त्र द्वारा निर्मित ढाँचे, नीतिनियम, पद्धति एवं प्रक्रियाओं को उन्होंने अपना लिया है। उन लोगों को होश ही नहीं है कि उद्देश्य चाहे लोगों का भला करने का ही हो परन्तु होता तो नुकसान ही है।
 
अभी तक तो भारत जैसे देशों ने अपने व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक जीवन में आधुनिक पाश्चात्य वैज्ञानिक एवं तांत्रिक ज्ञान को दखल देने से रोके रखा है, या बेमन से कुछ कुछ अपनाया है। इसमें असफलता ही प्राप्त हुई है। भारत की मानसिक एवं आध्यात्मिक स्थिति आज उलझ गई है। यूरोप के सैनिकी, राजनैतिक एवं बौद्धिक आक्रमण का यह परिणाम है। इस स्थिति में विज्ञान एवं तन्त्रज्ञान को उचित रूप से अपनाने में असफलता प्राप्त होना स्वाभाविक है। यूरोप का यह आक्रमण इतना प्रबल है कि महात्मा गाँधी के निकटतम अनुयायी एवं उनकी ही प्रेरणा से कार्य करनेवाली सभी संस्थाएँ अपने शत्रु की ही विचारधारा, व्यवहारप्रणाली एवं पद्धतियों का अनुसरण एवं अनुकरण करते हैं। ब्रिटिश राज्यतन्त्र द्वारा निर्मित ढाँचे, नीतिनियम, पद्धति एवं प्रक्रियाओं को उन्होंने अपना लिया है। उन लोगों को होश ही नहीं है कि उद्देश्य चाहे लोगों का भला करने का ही हो परन्तु होता तो नुकसान ही है।

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