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समय बीतने पर गुलामी निरस्त हुई एवं उमरावशाही ने उसका स्थान लिया। उमरावशाही की जड़ें अनेक हैं, वे सभी विवाद का विषय भी हैं। इंग्लैंड में तो ग्यारहवीं शताब्दी के मध्य में नोर्मन विजय के बाद उमरावशाही प्रस्थापित हुई। अन्य देशों में उसके प्रस्थापित होने के अनेक कारण हैं। कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एन्जल्स, एवं अन्यों के मतानुसार टेक्नोलोजी में होनेवाला बड़ा परिवर्तन भी एक कारण है। अब तक गुलामों की जो स्थिति थी वही अब सर्फ एवं विलियन्स के रूप में पहचाने जानेवाले विशाल संख्या के लोगों की थी। जिनकी संपत्ति में वृद्धि हुई उनकी सत्ता में भी वृद्धि हुई। सत्ता एवं संपत्ति ने मिलकर यूरोप में विशाल भवन एवं जहाजों का निर्माण करके और अधिक संपत्ति प्राप्त करने का जतन किया।
 
समय बीतने पर गुलामी निरस्त हुई एवं उमरावशाही ने उसका स्थान लिया। उमरावशाही की जड़ें अनेक हैं, वे सभी विवाद का विषय भी हैं। इंग्लैंड में तो ग्यारहवीं शताब्दी के मध्य में नोर्मन विजय के बाद उमरावशाही प्रस्थापित हुई। अन्य देशों में उसके प्रस्थापित होने के अनेक कारण हैं। कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एन्जल्स, एवं अन्यों के मतानुसार टेक्नोलोजी में होनेवाला बड़ा परिवर्तन भी एक कारण है। अब तक गुलामों की जो स्थिति थी वही अब सर्फ एवं विलियन्स के रूप में पहचाने जानेवाले विशाल संख्या के लोगों की थी। जिनकी संपत्ति में वृद्धि हुई उनकी सत्ता में भी वृद्धि हुई। सत्ता एवं संपत्ति ने मिलकर यूरोप में विशाल भवन एवं जहाजों का निर्माण करके और अधिक संपत्ति प्राप्त करने का जतन किया।
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यूरोप ने विश्वविजय के परिणाम स्वरूप औद्योगिकरण किया। अठारहवीं शताब्दी के अंत में शुरू हुआ औद्योगिकरण ऐसे विजय के बिना संभव ही नहीं था। यह तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि विजय के फलस्वरूप नई खोजें, नई टेक्नोलोजी की आवश्यकता का निर्माण हुआ। जो हमेशा कहा जाता है कि युद्धों के कारण विज्ञान एवं तन्त्रज्ञान को गति प्राप्त होती है वह यूरोप के अंतिम कुछ शताब्दियों के अनुभवों का ही परिणाम है।
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यूरोप ने विश्वविजय के परिणाम स्वरूप औद्योगिकरण किया। अठारहवीं शताब्दी के अंत में आरम्भ हुआ औद्योगिकरण ऐसे विजय के बिना संभव ही नहीं था। यह तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि विजय के फलस्वरूप नई खोजें, नई टेक्नोलोजी की आवश्यकता का निर्माण हुआ। जो हमेशा कहा जाता है कि युद्धों के कारण विज्ञान एवं तन्त्रज्ञान को गति प्राप्त होती है वह यूरोप के अंतिम कुछ शताब्दियों के अनुभवों का ही परिणाम है।
    
अर्थात् आधुनिक विज्ञान गुलामी प्रथा, उमरावशाही, विश्वविजय एवं अत्याचार तथा आधिपत्य की ही उपज है। इनके लक्षण समान हैं। पिछले २००० वर्षों की अपेक्षा आज के यूरोप का चेहरा एकदम भिन्न लगता हो तो भी उसकी असलियत वही है। महात्मा गांधी को एक बार कहा गया था कि 'प्रत्येक अमेरिकन के पास ३६ गुलाम हैं क्यों कि उसके पास जो यंत्र है वह ३६ गुलामों के बराबर काम करता है।' प्राचीन यूरोप की अपेक्षा यह बहुत प्रगतिशील स्थिति मानी जाएगी क्यों कि एक ग्रीक नागरिक की आवश्यकता १६ गुलामों की थी। १९३० के दशक में लगभग प्रत्येक अमेरिकन नागरिक अधिकारों से सज्ज था एवं प्राचीन ग्रीस में नागरिक को जो सुविधाएँ प्राप्त होती थीं उससे कहीं अधिक सुविधाएँ उसे प्राप्त थीं। अमेरिका में मनुष्य के रूप में तो गुलामी निरस्त हो गई, परन्तु गुलामी का विचार निरस्त नहीं हुआ, इतना ही नहीं उसने अधिक आकर्षक रूप धारण किया। महात्मा गांधी को जब उपरोक्त वाक्य कहा गया तब उनका उत्तर था कि 'ठीक है, अमेरिकनों को गुलामों की आवश्यकता होगी, हमें नहीं। हम मानवता को गुलाम बनानेवाला औद्योगिकरण कर ही नहीं सकते।'
 
अर्थात् आधुनिक विज्ञान गुलामी प्रथा, उमरावशाही, विश्वविजय एवं अत्याचार तथा आधिपत्य की ही उपज है। इनके लक्षण समान हैं। पिछले २००० वर्षों की अपेक्षा आज के यूरोप का चेहरा एकदम भिन्न लगता हो तो भी उसकी असलियत वही है। महात्मा गांधी को एक बार कहा गया था कि 'प्रत्येक अमेरिकन के पास ३६ गुलाम हैं क्यों कि उसके पास जो यंत्र है वह ३६ गुलामों के बराबर काम करता है।' प्राचीन यूरोप की अपेक्षा यह बहुत प्रगतिशील स्थिति मानी जाएगी क्यों कि एक ग्रीक नागरिक की आवश्यकता १६ गुलामों की थी। १९३० के दशक में लगभग प्रत्येक अमेरिकन नागरिक अधिकारों से सज्ज था एवं प्राचीन ग्रीस में नागरिक को जो सुविधाएँ प्राप्त होती थीं उससे कहीं अधिक सुविधाएँ उसे प्राप्त थीं। अमेरिका में मनुष्य के रूप में तो गुलामी निरस्त हो गई, परन्तु गुलामी का विचार निरस्त नहीं हुआ, इतना ही नहीं उसने अधिक आकर्षक रूप धारण किया। महात्मा गांधी को जब उपरोक्त वाक्य कहा गया तब उनका उत्तर था कि 'ठीक है, अमेरिकनों को गुलामों की आवश्यकता होगी, हमें नहीं। हम मानवता को गुलाम बनानेवाला औद्योगिकरण कर ही नहीं सकते।'

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