८२. बुद्धि मानों में ही ऐसी समझ का विकास होता है इसलिये अपनी बुद्धि का विकास हो इसलिये नित्य प्रयासरत रहना चाहिये ।
८२. बुद्धि मानों में ही ऐसी समझ का विकास होता है इसलिये अपनी बुद्धि का विकास हो इसलिये नित्य प्रयासरत रहना चाहिये ।
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८३. स्तोत्र, मंत्र, भोजन आदि न आते हों यह कल्पना भी नहीं बननी चाहिये । संस्कृत के ही स्तोत्र आदि आते हों तो अच्छा ही है परन्तु अनिवार्य नहीं है । अपनी भाषा के आना अनिवार्य है । इनका पाठ करना भी जरूरी है ।
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८३. स्तोत्र, मंत्र, भोजन आदि न आते हों यह कल्पना भी नहीं बननी चाहिये । संस्कृत के ही स्तोत्र आदि आते हों तो अच्छा ही है परन्तु अनिवार्य नहीं है । अपनी भाषा के आना अनिवार्य है । इनका पाठ करना भी आवश्यक है ।
८४. किसी भी रूप में, किसी भी भाषा में श्रीमदू भगवदूगीता न पढ़ी और न समझी हो यह भी किसी के लिये सम्भव नहीं होना चाहिये ।
८४. किसी भी रूप में, किसी भी भाषा में श्रीमदू भगवदूगीता न पढ़ी और न समझी हो यह भी किसी के लिये सम्भव नहीं होना चाहिये ।