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| | == कुटुम्ब में आजीवन शिक्षा == | | == कुटुम्ब में आजीवन शिक्षा == |
| − | जिस प्रकार मनुष्य एक क्षण भी कर्म किये बिना नहीं रह सकता उसी प्रकार वह कुछ न कुछ सीखे बिना भी नहीं रह सकता । मनुष्य के जीवन की अवस्थायें इस प्रकार होती हैं: | + | जिस प्रकार मनुष्य एक क्षण भी कर्म किये बिना नहीं रह सकता उसी प्रकार वह कुछ न कुछ सीखे बिना भी नहीं रह सकता । मनुष्य के जीवन की अवस्थायें इस प्रकार होती हैं: १. गर्भावस्था, 2. शिशुअवस्था, ३. किशोरअवस्था, ४. तरुण अवस्था, ५. युवावस्था, ६. प्रौढावस्था और ७. वृद्धावस्था । |
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| − | १. गर्भावस्था, 2. शिशुअवस्था, ३. किशोरअवस्था, ४. तरुण अवस्था, ५. युवावस्था, ६. प्रौढावस्था और ७. वृद्धावस्था । इन सभी
| + | इन सभी अवस्थाओं में उसकी सीखने की पद्धति और विषयवस्तु भिन्न रहेंगे, तथापि सीखना तो चलता ही रहता है । शिक्षा को विद्यालय के साथ ही जोडने का हमारा अभ्यास इतना पक्का हो गया है कि हम पुस्तकों के पठन और परीक्षों में उत्तीर्ण होकर पदवी प्राप्त करने को ही शिक्षा कहने लगे हैं। परन्तु पुस्तकों और परीक्षाओं से परे जाकर शिक्षा होती है इसको स्वीकार करने की मानसिकता बनानी होगी । ऐसी मानसिकता बनने से आज शिक्षा को लेकर जो चिन्तायें एवं कठिनाइयाँ पैदा हो गई हैं उनसे हमें मुक्ति मिलेगी। |
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| − | अवस्थाओं में उसकी सीखने की पद्धति और विषयवस्तु
| + | विद्यालयीन शिक्षा जानकारी की शिक्षा होती है, शास्त्रों की शिक्षा होती है, ज्ञानार्जन के करणों के विकास की शिक्षा होती है। कुटुम्ब की शिक्षा आजीवन शिक्षा होती है । प्रथम दृष्टि से ही विद्यालयीन शिक्षा आजीवन शिक्षा का एक अंग ही है । शास्त्रों के अध्ययन को एक ओर रखें तो विद्यालयों में होने वाली शिक्षा घर में भी हो सकती है । गुरुकुल में भी जब शास्त्रों के ज्ञान के साथ साथ घर की व्यावहारिक शिक्षा दी जाती है तभी वह सम्पूर्ण होती है । बहुत स्पष्ट है कि गुरुकुलों में यदि घर के कामों की सम्यक् शिक्षा न दी जाय तो गुरुकुल भी आज के समय के छात्रावासों के समान ही होंगे । |
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| − | भिन्न रहेंगे, तथापि सीखना तो चलता ही रहता है । शिक्षा
| + | कुटुम्ब में आजीवन शिक्षा सम्भव होने का स्वाभाविक कारण है । घर में सब परिवार भावना से अर्थात् आत्मीयता से रहते हैं। आत्मीयता अथवा अपनापन सिखाने की आवश्यकता नहीं होती । वह स्वाभाविक होती है। पति को पत्नी, पत्नी को पति, मातापिता को संतानें, संतानों को मातापिता, भाइयों को बहनें, बहनों को भाई स्वाभाविक ही प्रिय होते हैं । यह प्रेम निर्हेतुक होता है । साथ रहने के लिये इस प्रेम के अलावा और किसी प्रयोजन की आवश्यकता नहीं होती । हम शिक्षक और विद्यार्थी में परस्पर ऐसा ही सम्बन्ध बने ऐसी अपेक्षा करते हैं । ऐसे सम्बन्ध को ही हम ज्ञानार्जन प्रक्रिया का आधार मानते हैं । यह कुटुम्ब में सहज ही होता है । |
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| − | को विद्यालय के साथ ही जोडने का हमारा अभ्यास इतना
| + | दूसरा महत्त्वपूर्ण आयाम यह है कि कुटुम्ब में आयु की सभी अवस्थाओं के विद्यार्थी एक साथ रहते हैं । सब एकदूसरे के शिक्षक होते हैं । सीखना और सिखाना साथ साथ चलता है । विद्यालयों में विद्यार्थी-शिक्षक की संख्या का अनुपात कभी कभी चिन्ता का विषय बनता है । एक शिक्षक कितने विद्यार्थियों को पढ़ा सकता है इसकी चर्चा होती है । बड़े विद्यार्थी शिक्षक के सहायक बनकर अपने से छोटे विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं ऐसी व्यवस्था को अच्छी व्यवस्था माना गया है । कुटुम्ब में हर आयु के लोग एक साथ रहते हैं, उनकी संख्या का अनुपात भी आदर्श ही रहता है । कुटुम्ब अच्छा शिक्षा केन्द्र होने का यह दूसरा कारण है । |
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| − | पक्का हो गया है कि हम पुस्तकों के पठन और परीक्षों में
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| − | उत्तीर्ण होकर पदवी प्राप्त करने को ही शिक्षा कहने लगे
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| − | हैं। परन्तु पुस्तकों और परीक्षाओं से परे जाकर शिक्षा
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| − | होती है इसको स्वीकार करने की मानसिकता बनानी
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| − | होगी । ऐसी मानसिकता बनने से आज शिक्षा को लेकर
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| − | जो चिन्तायें एवं कठिनाइयाँ पैदा हो गई हैं उनसे हमें मुक्ति
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| − | विद्यालयीन शिक्षा जानकारी की शिक्षा होती है,
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| − | शास्त्रों की शिक्षा होती है, ज्ञानार्जन के करणों के विकास
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| − | की शिक्षा होती है। कुटुम्ब की शिक्षा आजीवन शिक्षा
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| − | होती है । प्रथम दृष्टि से ही विद्यालयीन शिक्षा आजीवन
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| − | शिक्षा का एक अंग ही है । शास्त्रों के अध्ययन को एक
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| − | ओर रखें तो विद्यालयों में होने वाली शिक्षा घर में भी हो
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| − | सकती है । गुरुकुल में भी जब शास्त्रों के ज्ञान के साथ
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| − | साथ घर की व्यावहारिक शिक्षा दी जाती है तभी वह
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| − | सम्पूर्ण होती है । बहुत स्पष्ट है कि गुरुकुलों में यदि घर के
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| − | कामों की सम्यक् शिक्षा न दी जाय तो गुरुकुल भी आज
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| − | के समय के छात्रावासों के समान ही होंगे ।
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| − | कुटुम्ब में आजीवन शिक्षा सम्भव होने का
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| − | स्वाभाविक कारण है । घर में सब परिवार भावना से
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| − | अर्थात् आत्मीयता से रहते हैं। आत्मीयता अथवा
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| − | अपनापन सिखाने की आवश्यकता नहीं होती । वह
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| − | स्वाभाविक होती है। पति को पत्नी, पत्नी को पति,
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| − | मतापिता al Ga, Geel को मातापिता, भाइयों को
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| − | बहनें, बहनों को भाई स्वाभाविक ही प्रिय होते हैं । यह
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| − | प्रेम निहतुक होता है । साथ रहने के लिये इस प्रेम के
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| − | श्८८
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| − | भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
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| − | अलावा और किसी प्रयोजन की आवश्यकता नहीं होती ।
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| − | हम शिक्षक और विद्यार्थी में परस्पर ऐसा ही सम्बन्ध बने
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| − | ऐसी अपेक्षा करते हैं । ऐसे सम्बन्ध को ही हम ज्ञानार्जन
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| − | प्रक्रिया का आधार मानते हैं । यह कुटुम्ब में सहज ही
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| − | होता है ।
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| − | दूसरा महत्त्वपूर्ण आयाम यह है कि कुटुम्ब में आयु | |
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| − | की सभी अवस्थाओं के विद्यार्थी एक साथ रहते हैं । सब | |
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| − | एकदूसरे के शिक्षक होते हैं । सीखना और सिखाना साथ | |
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| − | साथ चलता है । विद्यालयों में विद्यार्थी-शिक्षक की संख्या | |
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| − | का अनुपात कभी कभी चिन्ता का विषय बनता है । एक | |
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| − | शिक्षक कितने विद्यार्थियों को पढ़ा सकता है इसकी चर्चा | |
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| − | होती है । बड़े विद्यार्थी शिक्षक के सहायक बनकर अपने से | |
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| − | छोटे विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं ऐसी व्यवस्था को अच्छी | |
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| − | व्यवस्था माना गया है । कुटुम्ब में हर आयु के लोग एक | |
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| − | साथ रहते हैं, उनकी संख्या का अनुपात भी आदर्श ही | |
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| − | रहता है । कुटुम्ब अच्छा शिक्षा केन्द्र होने का यह दूसरा | |
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| − | कारण है । | |
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| | == आवश्यकता के अनुसार शिक्षा == | | == आवश्यकता के अनुसार शिक्षा == |
| − | aera में जिसे जिस बात की आवश्यकता होती है,
| + | कुटुंब में जिसे जिस बात की आवश्यकता होती है, |
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| | जब जिस बात की आवश्यकता होती है उसे उस समय उस | | जब जिस बात की आवश्यकता होती है उसे उस समय उस |