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| == आवश्यकता के अनुसार शिक्षा == | | == आवश्यकता के अनुसार शिक्षा == |
− | कुटुंब में जिसे जिस बात की आवश्यकता होती है, | + | कुटुंब में जिसे जिस बात की आवश्यकता होती है, जब जिस बात की आवश्यकता होती है उसे उस समय उस बात की शिक्षा प्राप्त होती है । विद्यालय में जो नियत किया गया है वह पढना है, घर में जो आवश्यक है वह पढ़ना है । विद्यार्थी को किस बात की आवश्यकता है यह जानने वाले उसके स्वजन होते हैं । उन्हें समझ भी होती है और सरोकार भी होता है । नित्य साथ रहने के कारण उसकी सीखने की प्रगति देखना भी उनके लिये सम्भव होता है । सिखाने वाले भी एक से अधिक होते हैं इसलिये योग्य शिक्षक भी अपने आप उपलब्ध हो जाते हैं । कुटुम्ब में क्या क्या सीखने की आवश्यकता होतीहै ? इस प्रश्न को दूसरे शब्दों में कहें तो कुटुम्ब में क्या सीखना चाहिये ? |
− | | + | * जीवन जीने की अत्यंत प्राथमिक स्वरूप की बातें, जैसे कि खाना, सोना, नहाना, चलना, बोलना, उठना, बैठना, खेलना, गाना आदि । यह सब हमारे |
− | जब जिस बात की आवश्यकता होती है उसे उस समय उस | |
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− | बात की शिक्षा प्राप्त होती है । विद्यालय में जो नियत | |
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− | किया गया है वह पढना है, घर में जो आवश्यक है वह | |
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− | पढ़ना है । विद्यार्थी को किस बात की आवश्यकता है यह | |
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− | जानने वाले उसके स्वजन होते हैं । उन्हें समझ भी होती है | |
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− | और सरोकार भी होता है । नित्य साथ रहने के कारण | |
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− | उसकी सीखने की प्रगति देखना भी उनके लिये सम्भव | |
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− | होता है । सिखाने वाले भी एक से अधिक होते हैं इसलिये | |
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− | योग्य शिक्षक भी अपने आप उपलब्ध हो जाते हैं । | |
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− | कुटुम्ब में क्या क्या सीखने की आवश्यकता होती | |
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− | है ? इस प्रश्न को दूसरे शब्दों में He a Hera में क्या
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− | क्या सीखना चाहिये ?
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− | e जीवन जीने की आत्यन्त प्राथमिक स्वरूप की बातें,
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− | जैसे कि खाना, सोना, नहाना, चलना, बोलना, | |
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− | उठना, बैठना, खेलना, गाना आदि । यह सब हमारे | |
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− | हैं। परन्तु कुटुम्ब के सन्दर्भ में हर | + | हैं। परन्तु कुटुम्ब के सन्दर्भ में हर व्यक्ति की विशेष पहचान होती है । वह किसी का पुत्र होता है, किसी का भाई, किसी का पिता होता है, किसी का दादा, किसी का भतीजा होता है किसी का भानजा, किसी का देवर होता है, किसी का बहनोई । यह पहचान कुटुम्ब से ही प्राप्त होती है यह तो स्पष्ट ही है । कौटुम्बिक सम्बन्धों की यह शृंखला बहुत लम्बी चौड़ी होती है । यह भारत की विशेषता है, अन्यत्र नहीं देखी जाती | दूसरों के सन्दर्भ में ही पहचान बनना बहुत बड़ी बात है । इसका सांस्कृतिक मूल्य बहुत ऊँचा है । हर व्यक्ति को अपना जीवन इस पहचान के अनुरूप बनाना होता है। अपने सम्बन्ध को जानना और उसे निभाना शिक्षा का महत्त्वपूर्ण आयाम है । इस भूमिका को निभाने में कर्तव्यों की एक लम्बी मालिका बनती है | मातापिता का सन्तानों के प्रति, सन्तानों का मातापिता के प्रति, भाईबहनों का एकदूसरे के प्रति विभिन्न रिश्तेदारों के प्रति क्या कर्तव्य है यह सीखना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । इसके कौशलात्मक और भावात्मक दोनों पक्ष समान रूप से महत्त्वपूर्ण हैं । भारत में इसे सीखने को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना गया है । इन सम्बन्धों के स्वरूप के महत्त्व को दर्शाने वाले कुछ सूत्र ध्यान देने योग्य हैं । |
− | | + | * गृहिणी गृहमुच्यते । गृहिणी ही घर है । |
− | व्यक्ति की विशेष पहचान होती है । वह किसी का पुत्र | + | * माता प्रथमो गुरु: । माता प्रथम गुरु है । |
− | | + | * माता शत्रुः पिता बैरी येन बालो न पाठितः । बच्चों को नहीं पढ़ाने वाली माता शत्रु और पिता बैरी के समान है । |
− | होता है, किसी का भाई, किसी का पिता होता है, किसी | + | * बड़ी भाभी माता समान । छोटे देवर-ननद पुत्र-पुत्री समान । |
− | | + | * मातृ देवो भव । पितृ देवो भव । माता और पिता के प्रति देवत्व का भाव रखो । |
− | का दादा, किसी का भतीजा होता है किसी का भानजा, | + | इन सब सूत्रों को सीखकर आत्मसात् करना कुटुम्ब में प्राप्त होने वाली शिक्षा का महत्त्वपूर्ण कदाचित सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण आयाम है । व्यक्ति के व्यक्तिगत परिचय से भी इस कौटुम्बिक परिचय का महत्त्व विशेष है । व्यक्ति कैसा भी हो तब भी |
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− | किसीका देवर होता है, किसी का बहनोई । यह पहचान
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− | कुटुम्ब से ही प्राप्त होती है यह तो स्पष्ट ही है । कौट्म्बिक | |
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− | सम्बन्धों की यह शृंखला बहुत लम्बी चौड़ी होती है । यह | |
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− | भारत की विशेषता है, अन्यत्र नहीं देखी जाती | | |
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− | दूसरों के सन्दर्भ में ही पहचान बनना बहुत बड़ी बात | |
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− | है । इसका सांस्कृतिक मूल्य बहुत ऊँचा है । हर व्यक्ति को | |
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− | अपना जीवन इस पहचान के अनुरूप बनाना होता है। | |
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− | अपने सम्बन्ध को जानना और उसे निभाना शिक्षा का | |
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− | महत्त्वपूर्ण आयाम है । इस भूमिका को निभाने में कर्तव्यों | |
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− | की एक लम्बी मालिका बनती है | मातापिता का सन्तानों | |
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− | के प्रति, सन्तानों का मातापिता के प्रति, भाईबहनों का | |
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− | एकदूसरे के प्रति विभिन्न रिश्तेदारों के प्रति क्या कर्तव्य है | |
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− | यह सीखना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । इसके कौशलात्मक | |
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− | और भावात्मक दोनों पक्ष समान रूप से महत्त्वपूर्ण हैं । | |
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− | भारत में इसे सीखने को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना गया है । | |
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− | इन सम्बन्धों के स्वरूप के महत्त्व को दर्शाने वाले कुछ सूत्र | |
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− | ध्यान देने योग्य हैं । | |
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− | ०... गृहिणी गृहमुच्यते । गृहिणी ही घर है ।
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− | © माता प्रथमो गुरु: । माता प्रथम गुरु है ।
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− | ०". माता शत्रुः पिता बैरी येन बालो न पाठितः । बच्चों
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− | को नहीं पढ़ाने वाली माता शत्रु और पिता बैरी के | |
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− | समान है । | |
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− | ०... बड़ी भाभी माता समान । छोटे देवर-ननद पुत्र-पुत्री
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− | समान । | |
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− | ०. मातृ देवो भव । पितृ देवो भव । माता और पिता के
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− | प्रति देवत्व का भाव रखो । | |
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− | इन सब सूत्रों को सीखकर आत्मसात् करना Hers | |
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− | में प्राप्त होने वाली शिक्षा का महत्त्वपूर्ण कदाचित सर्वाधिक | |
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− | महत्त्वपूर्ण आयाम है । | |
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− | व्यक्ति के व्यक्तिगत परिचय से भी इस कौट्म्बिक | |
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