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११. अंग्रेजों ने जब राज्य छीन लिये तब वह केवल राज्यसत्ता का हस्तान्तरण नहीं था, व्यवस्थाओं में परिवर्तन का प्रारम्भ भी था । राज्य चलाने की पद्धति भी ब्रिटीश होने लगी ।. प्रशासन व्यवस्था, करव्यवस्था, न्यायव्यवस्था, दण्डव्यवस्था बदल गई । उन्होंने न केवल ब्रिटन में थीं वैसी व्यवस्थायें बनाई, अपने लिये अनूकूल थीं वैसी बनाई । भारत में राजा और प्रजा के मध्य जिस प्रकार के सम्बन्धों की कल्पना की गई है इसका अंशमात्र उसमें नहीं था ।
 
११. अंग्रेजों ने जब राज्य छीन लिये तब वह केवल राज्यसत्ता का हस्तान्तरण नहीं था, व्यवस्थाओं में परिवर्तन का प्रारम्भ भी था । राज्य चलाने की पद्धति भी ब्रिटीश होने लगी ।. प्रशासन व्यवस्था, करव्यवस्था, न्यायव्यवस्था, दण्डव्यवस्था बदल गई । उन्होंने न केवल ब्रिटन में थीं वैसी व्यवस्थायें बनाई, अपने लिये अनूकूल थीं वैसी बनाई । भारत में राजा और प्रजा के मध्य जिस प्रकार के सम्बन्धों की कल्पना की गई है इसका अंशमात्र उसमें नहीं था ।
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१२. इन व्यवस्थाओं का परिणाम समाजजीवन पर होना ही था । सामाजिक रीतिरिवाज, स्थानिक स्तर पर न्याय और दण्ड की व्यवस्था, आपसी अर्थव्यवहार और लेनदेन की पद्धति, विवाह तथा कुट्म्ब व्यवस्था, रहनसहन आदि में भी परिवर्तन हुआ क्योंकि अब वे अपनी दृष्टि से इन व्यवस्थाओं को देखते थे, जहाँ भी उनका सम्बन्ध आता था वहाँ परिवर्तन करवाते थे और अन्य बातों की आलोचना, उपहास और तिरस्कार करते थे ।
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१२. इन व्यवस्थाओं का परिणाम समाजजीवन पर होना ही था । सामाजिक रीतिरिवाज, स्थानिक स्तर पर न्याय और दण्ड की व्यवस्था, आपसी अर्थव्यवहार और लेनदेन की पद्धति, विवाह तथा कुटुम्ब व्यवस्था, रहनसहन आदि में भी परिवर्तन हुआ क्योंकि अब वे अपनी दृष्टि से इन व्यवस्थाओं को देखते थे, जहाँ भी उनका सम्बन्ध आता था वहाँ परिवर्तन करवाते थे और अन्य बातों की आलोचना, उपहास और तिरस्कार करते थे ।
    
१३. इन सबका सिरमौर था शिक्षाव्यवस्था का नाश और परिवर्तन । शेष सारे परिवर्तनों को स्थायीरूप देने वाला यह परिवर्तन था । प्रथम उन्होंने भारत की शिक्षा और शिक्षाव्यवस्था को नष्ट किया और फिर अपनी शिक्षा और अपनी व्यवस्था प्रस्थापित की । यदि शिक्षा और शिक्षाव्यवस्था में परिवर्तन नहीं किया होता तो हम शेष व्यवस्थाओं को तो शीघ्र ही पुर्पस्थापित कर देते। परन्तु शिक्षा और शिक्षाव्यवस्था के पश्चिमीकरण से वे सारी व्यवस्थायें दृढमूल हो गईं । सम्पूर्ण देश में बाह्य रूप में और हमारे मन और बुद्धि में आन्तरिक रूप में उसने aS जमा लीं । उससे आज भी हम मुक्त नहीं हो पा रहे हैं। यदि वह केवल बाह्म रूप में ही स्थापित हुई होती तो उन्हें बदलना इतना कठिन नहीं होता वह मन और बुद्धि में बैठ गई है इसलिये कठिन लग रहा हैं |
 
१३. इन सबका सिरमौर था शिक्षाव्यवस्था का नाश और परिवर्तन । शेष सारे परिवर्तनों को स्थायीरूप देने वाला यह परिवर्तन था । प्रथम उन्होंने भारत की शिक्षा और शिक्षाव्यवस्था को नष्ट किया और फिर अपनी शिक्षा और अपनी व्यवस्था प्रस्थापित की । यदि शिक्षा और शिक्षाव्यवस्था में परिवर्तन नहीं किया होता तो हम शेष व्यवस्थाओं को तो शीघ्र ही पुर्पस्थापित कर देते। परन्तु शिक्षा और शिक्षाव्यवस्था के पश्चिमीकरण से वे सारी व्यवस्थायें दृढमूल हो गईं । सम्पूर्ण देश में बाह्य रूप में और हमारे मन और बुद्धि में आन्तरिक रूप में उसने aS जमा लीं । उससे आज भी हम मुक्त नहीं हो पा रहे हैं। यदि वह केवल बाह्म रूप में ही स्थापित हुई होती तो उन्हें बदलना इतना कठिन नहीं होता वह मन और बुद्धि में बैठ गई है इसलिये कठिन लग रहा हैं |

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