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. शंख की उत्पत्ति : श्रीमदू भागवत महापुराण में वर्णित समुद्रमंथन के समय समुद्र में से चौदह रत्नों की प्राप्ति हुई थी । उन चौदह रत्नों में आँठवाँ रत्न शंख था । पुराणों में एक वाद्य के नाते घोषणा करने के लिए उपयोगी साधन के रूप में इसका बार-बार उल्लेख मिलता है । हिन्दु देवता विष्णु के चतुर्भुज रूप में स्थित शंख, चक्र, गदा व पद्म में इसका प्रथम स्थान है। ऐसी भी मान्यता है कि सर्वप्रथम पूज्य देव श्री गणेश के आकार वाले गणेश शंख का प्रादुर्भाव हुआ, जिसे गणेशशंख कहा जाता है । इसे भगवान श्री गणेश का प्रतीक माना जाता है । यह शंख सफेद अथवा पीली आगभा युक्त होता है । इसकी लम्बाई ३ से ४ इंच होती है । गणेश शंख भगवान श्रीगणेश के समान ही अपने भक्तों का विघ्न विनाशक है ।
 
. शंख की उत्पत्ति : श्रीमदू भागवत महापुराण में वर्णित समुद्रमंथन के समय समुद्र में से चौदह रत्नों की प्राप्ति हुई थी । उन चौदह रत्नों में आँठवाँ रत्न शंख था । पुराणों में एक वाद्य के नाते घोषणा करने के लिए उपयोगी साधन के रूप में इसका बार-बार उल्लेख मिलता है । हिन्दु देवता विष्णु के चतुर्भुज रूप में स्थित शंख, चक्र, गदा व पद्म में इसका प्रथम स्थान है। ऐसी भी मान्यता है कि सर्वप्रथम पूज्य देव श्री गणेश के आकार वाले गणेश शंख का प्रादुर्भाव हुआ, जिसे गणेशशंख कहा जाता है । इसे भगवान श्री गणेश का प्रतीक माना जाता है । यह शंख सफेद अथवा पीली आगभा युक्त होता है । इसकी लम्बाई ३ से ४ इंच होती है । गणेश शंख भगवान श्रीगणेश के समान ही अपने भक्तों का विघ्न विनाशक है ।
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. शाख्रों में शंख की उपयोगिता : रामायण एवं महाभारत की कथाओं में सप्राटों के राज्याभिषेक करते समय शंख में पवित्र गंगाजल भरकर सम्राट के मस्तक पर अभिषेक किया जाता था । इसी प्रकार युद्ध के समय भी विविध प्रकार के शंख बजाये जाते थे । महाभारत के युद्ध में प्रातःकाल शंखनाद के साथ युद्ध शुरू होता था और संध्याकाल के शंखनाद के साथ युद्धविराम होता था । महाभारत के युद्ध का प्रारंभ भीष्म-पितामहने भयंकर शंखनाद से किया था | उसके प्रत्युत्तर में भगवान श्रीकृष्णने पाँचजन्य नामक शंख बजाया था । पाँचजन्य शंख बहुत ही चमत्कारी था, समग्र सृष्टि में अपने गुणों के कारण विख्यात था । इसका आकार भी बहुत बड़ा था । पाँचजन्य शंख की ध्वनि युद्ध भूमि से अनेक मील दूर तक सुनाई देती थी । प्रत्येक पाण्डब के साथ उसका अपना प्रिय शंख रहता था । युधिष्टिर के पास अनन्त विजय, अर्जुन के ora ‘caer’, भीम के पास *पौण्ड्र', नकुल के पास “सुघोष', तथा सहदेव के पास *“मणिपुष्पक' नाम के शंख थे, जो उन्होंने क्रमशः बजाये थे ।
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. शास्त्रों में शंख की उपयोगिता : रामायण एवं महाभारत की कथाओं में सप्राटों के राज्याभिषेक करते समय शंख में पवित्र गंगाजल भरकर सम्राट के मस्तक पर अभिषेक किया जाता था । इसी प्रकार युद्ध के समय भी विविध प्रकार के शंख बजाये जाते थे । महाभारत के युद्ध में प्रातःकाल शंखनाद के साथ युद्ध शुरू होता था और संध्याकाल के शंखनाद के साथ युद्धविराम होता था । महाभारत के युद्ध का प्रारंभ भीष्म-पितामहने भयंकर शंखनाद से किया था | उसके प्रत्युत्तर में भगवान श्रीकृष्णने पाँचजन्य नामक शंख बजाया था । पाँचजन्य शंख बहुत ही चमत्कारी था, समग्र सृष्टि में अपने गुणों के कारण विख्यात था । इसका आकार भी बहुत बड़ा था । पाँचजन्य शंख की ध्वनि युद्ध भूमि से अनेक मील दूर तक सुनाई देती थी । प्रत्येक पाण्डब के साथ उसका अपना प्रिय शंख रहता था । युधिष्टिर के पास अनन्त विजय, अर्जुन के ora ‘caer’, भीम के पास *पौण्ड्र', नकुल के पास “सुघोष', तथा सहदेव के पास *“मणिपुष्पक' नाम के शंख थे, जो उन्होंने क्रमशः बजाये थे ।
    
=== विज्ञान के अनुसार शंख क्या है ? ===
 
=== विज्ञान के अनुसार शंख क्या है ? ===

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