शंखविज्ञान
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शंख का नाम सुनते ही हमारे मन-मस्तिष्क में भगवान की आरती का चित्र उभर आता है । शंख विषयक हमारी धारणा यही है कि यह तो मात्र भगवान की पूजा के काम में आता है। परन्तु वास्तविकता यह है कि शंख धार्मिक-वैज्ञानिक सभी दृष्टिभं से अत्यन्त उपयोगी रत्न है। हम इस रत्न की उत्पत्ति, इसके प्रकार, इसका आध्यात्मिक-वैज्ञानिक महत्त्व, इसकी उपयोगिता व लाभ आदि बिन््दुओं के अन्तर्गत् जानकारी प्राप्त करेंगे :
. शंख की उत्पत्ति : श्रीमदू भागवत महापुराण में वर्णित समुद्रमंथन के समय समुद्र में से चौदह रत्नों की प्राप्ति हुई थी । उन चौदह रत्नों में आँठवाँ रत्न शंख था । पुराणों में एक वाद्य के नाते घोषणा करने के लिए उपयोगी साधन के रूप में इसका बार-बार उल्लेख मिलता है । हिन्दु देवता विष्णु के चतुर्भुज रूप में स्थित शंख, चक्र, गदा व पद्म में इसका प्रथम स्थान है। ऐसी भी मान्यता है कि सर्वप्रथम पूज्य देव श्री गणेश के आकार वाले गणेश शंख का प्रादुर्भाव हुआ, जिसे गणेशशंख कहा जाता है । इसे भगवान श्री गणेश का प्रतीक माना जाता है । यह शंख सफेद अथवा पीली आगभा युक्त होता है । इसकी लम्बाई ३ से ४ इंच होती है । गणेश शंख भगवान श्रीगणेश के समान ही अपने भक्तों का विघ्न विनाशक है ।
. शास्त्रों में शंख की उपयोगिता : रामायण एवं महाभारत की कथाओं में सप्राटों के राज्याभिषेक करते समय शंख में पवित्र गंगाजल भरकर सम्राट के मस्तक पर अभिषेक किया जाता था । इसी प्रकार युद्ध के समय भी विविध प्रकार के शंख बजाये जाते थे । महाभारत के युद्ध में प्रातःकाल शंखनाद के साथ युद्ध आरम्भ होता था और संध्याकाल के शंखनाद के साथ युद्धविराम होता था । महाभारत के युद्ध का प्रारंभ भीष्म-पितामहने भयंकर शंखनाद से किया था | उसके प्रत्युत्तर में भगवान श्रीकृष्णने पाँचजन्य नामक शंख बजाया था । पाँचजन्य शंख बहुत ही चमत्कारी था, समग्र सृष्टि में अपने गुणों के कारण विख्यात था । इसका आकार भी बहुत बड़ा था । पाँचजन्य शंख की ध्वनि युद्ध भूमि से अनेक मील दूर तक सुनाई देती थी । प्रत्येक पाण्डब के साथ उसका अपना प्रिय शंख रहता था । युधिष्टिर के पास अनन्त विजय, अर्जुन के ora ‘caer’, भीम के पास *पौण्ड्र', नकुल के पास “सुघोष', तथा सहदेव के पास *“मणिपुष्पक' नाम के शंख थे, जो उन्होंने क्रमशः बजाये थे ।
विज्ञान के अनुसार शंख क्या है ?
शंख समुद्र में रहनेवाला एक जलचर है । और अधिक स्पष्ट कहना हो तो शंख खारे पानी में रहनेवाले प्राणी का एक रक्षात्मक कवच है । प्राणीशास्त्र के वर्गीकरण के अनुसार उसका मृदुकाय (Mollusks) वर्गमें समावेश होता है ।
वैज्ञानिक पद्धति के अनुसार मात्र स्ट्रोम्बिडी (Strombidae) Ha का एवं स्ट्रोम्बस गौत्र के प्राणी ही सच्चे शंख माने जाते हैं । परन्तु सामान्य बोलचाल में इस आकार के सभी प्राणिओं की शंख के रूप में ही पहचान होती है । भारत में सोमनाथ, द्वारका, गोवा, रामेश्वर, मद्रास, पुरी आदि समुद्री किनारों पर शंख व शीप आदि मिलते हैं ।
शंख की शरीर रचना
हम जिसे शंख नाम से जानते हैं, वह वास्तव में मृदुकाय प्राणी का कवच है । यह कवच सामान्यतया बायीं ओर के वलय समान रचना है । परन्तु दायीं ओर के वलय समान रचना भी मिलती है । यह कवच मुख्य रूप से
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कोल्सियम कार्बोनेट (CaCo3) अर्थात् चूने का बना होता है ।
शंख के शरीर में एक पतली एवं लम्बी खाँच होती है । शरीर का पोला भाग एक लम्बी नली के आकार का होता है । जिसमें वह प्राणी रहता है । शंख जब पूर्णता को पहुँचता है तब खाँच का खुले होंठ जैसा भाग बनता है । शंख अपने दाँतों के आकार के पादरन्घ्रों द्वारा सपाटी ऊपर चलता है और श्लेश्मय लम्बे सूत्र से जुड़े हुए अण्डे देता है ।
शंख का वैज्ञानिक महत्त्व
किसी भी मांगलिक कार्य से पूर्व शंखनाद किया जाता है । शंखनाद से वातावरण में फैले हुए रोगाणु नष्ट होते हैं । शंखनाद करने से हानिकारक किटाणु एवं सूक्ष्मजीव (जो आँखों से दिखाई नहीं देते) तुरन्त नष्ट हो जाते हैं । शंख का चमत्कारिक महत्त्व यह है कि इसे बजाने से वातावरण का खोया हुआ सन्तुलन फिर से प्राप्त हो जाता है। शंखनाद से मलेरिया जैसे रोगों को समाप्त किया जा सकता है । शंखनाद् वातावरण को स्वच्छ एवं शुद्ध रखने का एक इंजेक्शन है । शंखनाद यह केवल धार्मिक क्रिया मात्र नहीं है, अपितु वातावरण को स्वच्छ एवं शुद्ध रखने का एक प्राकृतिक उपाय भी है । शंखनाद से वातावरण में स्थित नकारात्मक प्रभाव को भस्मीभूत कर उसे सात्त्विक बना देता है । इसी प्रकार शंख में रखे हुए पानी को हम पवित्र मानते हैं, इसी पवित्रता के बारे में विज्ञान कहता है कि शंख का जल व्यक्ति के रुधिराभिसरण की गति को नियमित करने में बहुत उपयोगी होता है ।
शरीर स्वास्थ्य हेतु उपयोगी शंख
शंख केवल पर्यावरण शुद्धि का व्यक्ति के रुधिराभिसरणतन्त्र ही ठीक करनेवाला नहीं अपितु सम्पूर्ण शरीर स्वास्थ्य के लिये उपयोगी है । आगे के बिन््दुओं में हम जानेंगे कि शरीर के विभिन्न अंगों में शंख का क्या प्रभाव होता है :
१, शंखनाद का मस्तिष्क पर चमत्कारी प्रभाव
जब शंख बजाया जाता है, उस समय मस्तिष्क पर उसका अद्भुत प्रभाव होता है । दिमाग के रोगियों पर इसका बहुत प्रभावी परिणाम होता है । जिन भाई-बहनों को याद नहीं रहता उनकी याददास्त बढ़ती है । मस्तिष्क में यदि रक्त संचार ठीक से नहीं होता हो तो होने लग जाता है । मस्तिष्क के स्नायु जैसे : पोस्टेरिअर, पेरिटल कॉन्टेक्स, प्राइमरी सोर्टर कॉन्टेक्स, सप्लीमेन्ट्रीमीटर एरिया, प्रिमोटर कॉन्टेक्स, डोर्सीलेटरस, प्रिक्रोंटल एसोसिएटिव कोन्टेक्स, सोमाटो सेन्सोरी कॉन्टेक्स को मजबूत और सक्रीय बनाता है ।
सारी दुनियाँ मानसिक रोग से पीड़ित है । दिमाग के ऊपर काम का बोझ, घर के विवाद जैसे ही स्वयं के स्वार्थ पूर्ति के विचारों के कारण व्यक्ति के पास सब कुछ होते हुए भी भगवान के दिये हुए सुन्दर जीवन को ठीक से जी भी नहीं सकता । आत्महत्या करने को उद्यत है, दिमागी रोग जैसे - मेनीगटीज, इन्सेफेलिटीज, ब्रेनएबसेंस, कोन्क्युजन, इन्स्ट्रासेलेब्स, हेमोरहेग, हाइड्रोसेफालस, ईस्केनिक अटेक एवं अन्य अनेक रोगों का समाधान के लिए एक ही उपाय है कि शंखनाद दिमाग के इन रोगों से मुक्त रख सकता है ।
२. शंख का आँख पर तेजस्वी प्रभाव
आँख से आसपास काले घेरे बन जाते हैं । आँखो के नम्बर बढ़ना, आँख में झाँख पड़ने जैसे कितने ही आँख के रोगों का समाधान शंखनाद में है । जब शंखनाद होता है तब फोबिया, मेकुला, ओप्टिक नर्व, रेटिना, लेंस, प्युपिल और एरिस को उनके कार्य में प्रवृत्त करता है, जिससे आँख का तेज बना रहता है । शंखनाद करने से मोतिया नहीं आता । और आँख की बार-बार झपकने वाली पलकें रुक जाती हैं ।
३. कान के रोगों में उपयोगी
कान के तीन मुख्य भाग होते हैं - बाहर का, मध्य का व अन्दर का । इन तीनों भागों का सुनने की क्रिया में महत्त्वपूर्ण सहभाग होता है । बाहर से आवाज कान के अगले भाग में आती है। अगला भाग आवाज को मध्यभाग तक पहुंचाता है | जो कान के पर्दों को वाईब्रेट करता है । यह वाइब्रेशन कान के तीन छोटे-छोटे मस्तिष्क
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जैसे या ओसीलेस (ossicles) उनके बाद आवाज आगे बढ़ती है, जो स्नेल जैसे आकार का है, उसके द्वारा ब्रेन में पहुँचती है । उसके बाद आपका मस्तिष्क इस आवाज को पहचानता है। कान का अन्दर का भाग आवाज को नियन्त्रि करता है । कान के रोगो जैसे कि ईअर इन्फेक्शन, त्रिनीटस, मेनीर्सीस, बेरोट्रोन, ब्लोकेज, ओटोक्लेरोसिस आदि कान के रोगों को समाप्त करता है ।
४. शंखनाद का गले के ऊपर असरदार परिणाम
शंखनाद की ध्वनि गले की बीमारियों जैसे कफ अधिक होना, गले में जलन, जीभ के स्वाद में अभिवृत्ति, आवाज में स्पष्टता एवं थाइराइड जैसे रोगों को समूह नष्ट करता है । शंखनाद करने से आवाज स्पष्ट एवं मधुर बनती है । गीत-संगीत से जुड़े लोग अपनी आवाज अच्छी और मधुर बनाने के लिए रोज शंख नाद करते हैं ।
गले के रोगों - सोरश्रोट, श्रोटस्वेब, कल्चर फेरन, गोटीस, विरल, स्ट्रेपटटोकोकल, अपर एरवेब्रायोप्सी, जैसे गले के सभी रोगों के लिए यह एक सरल व सहज उपचार है । शंखनाद से स्वाद में अभिवृद्धि होती है, आवाज स्पष्ट व मधुर बनती है । गले के रोगों के लिए तो यह रामबाण दवा है तथा थाईराइड़ जैसे रोगों को तो जड़़ से ही मिटाती है ।
५. शंखनाद से फेफड़ों व छाती पर मजबूत असर
शंखनाद से फेफड़ों के रोग दूर होते हैं । फेफड़ों का व्यायाम होता है, छाती मजबूत होती है । किसी साहसिक कार्य में डर नहीं लगता । शंखनाद विजयघोष के लिए उत्तम साधन माना जाता है ।
६. शंखनाद से हृदय की बीमारियों पर सकारात्मक प्रभाव
यदि शंखनाद प्रतिदिन किया जाय तो हृदय की कोई भी नली (नस) ब्लोक नहीं होती । किसी भी प्रकार की सर्जरी करने की आवश्यकता नहीं पड़ती । जबकि आज सारी दुनियाँ हृदय की बीमारियों से त्रस्त है । शंखनाद कोरोनरी हार्टडीजीज, आरटरी हार्ड डीजीज, कारडियो मेयोपथी, हार्डपरटेन्सीव हार्ट डीजीज, हार्ट फैल्यर, कोर पलमोनल, काड्रिंक डिसरेथमिअल, एण्डोकार्डीटीज, कोन्जेनीटकल हार्ट डीजीज, ह्युमेटिक हार्ट डीजीज जैसे रोगों को दूर करता है ।
७. शंखनाद का पेट ऊपर सकारात्मक प्रभाव
शंखनाद करने से आँतड़ियों की कसरत होती है । छोटी आँत और बड़ी आँत दोनों मजबूत होती है । आमाशय कभी भी सिकुड़ता नहीं । भूख बराबर लगती है । परिणाम स्वरूप पेट की कोई बीमारी नहीं होती । कहावत भी है, जिसका पेट अच्छा उसका सब अच्छा । शंखनाद से. स्टमकपेन, अल्सर, रफीलस, कोस्टीपेशन, क्रोन््सडीजीज जैसे पेट के रोगों से मुक्ति मिल सकती है । पेट सभी रोगों का मूल है अगर पेट ठीक नहीं होता तो गेस, पेटदर्द, एसीडीटी जैसे रोग हो जाते हैं, इन्हें दूर करने के लिए शंखनाद अवश्य करना चाहिए ।
८. शंखनाद का किडनी ऊपर प्रबल प्रभाव
शंखनाद करने से किडनी की कोई बीमारी होती नहीं और होने की कोई सम्भावना भी नहीं रहती । किडनी मजबूत होगी तो थकान नहीं होगी, अधिक काम कर सकोगे । हमारे शरीर में किड़नी के आधार पर अनेक अंग काम करते हैं । अतः किडनी का मजबूत होना आवश्यक है । किड़नी की मजबूती को बनाये रखने के लिए शंखनाद चरक का काम करता है ।
. हिन्दु धर्म और शंख : हिन्दु धर्म में शंख का विशेष स्थान है । हिन्दु पूजा सामग्री में शंख अनिवार्य है । मंदिर में अथवा घर में भगवान के द्वार खोलने से पूर्व शंख बजाया जाता है । पूजा में रखा जाने वाला शंख स्वर्ण या रजत से मंडित कर उसे सुशोभित किया जाता है ।
. पवित्र शंख : ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शंखध्वनि से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है । शंख की भस्म का औषधीय उपयोग करने से असाध्य रोग से भी मुक्ति
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मिल जाती है । घर में स्थापना-पूजन करने से सुख-समृद्धि तथा शांति आती है । शंख जातक की तमाम प्रकार की मुश्किलों, कष्ट, बाधाओं व अआअशान्ति को दूर करता है ।
. शंख बाजे बलाएँ भागे : शंखध्वनि से रोगों, राक्षसों, पिशाचों और शत्रुओं से रक्षा होती है । शंख बजाने से दरिद्रता तथा दुःख दूर होते हैं । आयु बढ़ती है। एक मात्र शंख बजाने से प्राणायाम की तीनों क्रियाए पूरक, रेचक व कुम्भक एक साथ सम्पन्न होती है, जिससे स्वास्थ्य उत्तम रहता है । वास्तुशास्त्र के अनुसार प्रातःकाल में तथा संध्याकाल में घर तथा मंदिर में शंखध्वनि करने से चारों तरफ की नकारात्मक शक्तियाँ भाग जाती हैं ।
. शंख के लक्षण एवं प्रकार : शंख के मुख्य रूप से दो प्रकार हैं - वामावर्ती शंख और दक्षिणावर्ती शंख । इन्हें बाँयी बाजू का शंख और दायीं बाजू का शंख भी कहते हैं । इन्हें नरशंख और मादा शंख भी कहते हैं । नरशंख दायें हाथ में तथा मादाशंख बायें हाथ में धारण किया जाता है । मान्यता के अनुसार पुरुष के लिए नर शंख और ख्री के लिए मादा शंख सुखदायक एवं लाभकारक होते हैं। शास्त्रीय मान्यतानुसार नर शंख स्त्री, धन, सम्पत्ति, वाहन, प्रतिष्ठा और यश दिलाने वाले होते हैं । इनके घर सर्वगुण सम्पन्न पुत्र की प्राप्ति होती है । उस शंख को “नारायण शंख' या “विष्णु शंख' के रूप में पहचाना जाता है । मादा शंख धन-धान्य की वृद्धि करनेवाला है। खियों को यह मादा शंख अपने बायें हाथ में धारण करना चाहिए । इसे धारण करने से वे अखण्ड सौभाग्यवती एवं सौन्दर्यशालिनी बनती हैं । इस शंख को श्री महालक्ष्मीजी अपने चार आयुरधों में धारण करती हैं। इस शंख को “महालक्ष्मी शंख या “श्रीशंख' भी कहते हैं ।
. शंख धारण करने की शास्त्रोक्तविधि : शंख को श्रद्धा और विश्वास के साथ विधिपूर्वक धारण करना चाहिए । शुभ दिवस और शुभ नक्षत्र देखकर शंख धारण करना चाहिए । भगवान विष्णु की षोडशोपचार पूजा करके शंख धारण करना चाहिए । श्रीशंख को धारण करते समय लक्ष्मीजी की मूर्ति या चित्र रखकर शंख की स्थापना करना और “३3% नमो नारायणाय' इस मूल मंत्र का उच्चार करके शंख धारण करना चाहिए । विष्णुगायत्री का पाठ दस से बारह बार करना चाहिए । शंख के पवित्र जल से मन की प्रसन्नता मिलती है । शंख बजाना यह बहुत कठिन कार्य है। छाती में बहुत सारी हवा भरकर शंख बजाया जाता है । इससे रक्त संचार बराबर होता है ।
. गणेश शेख के लाभ : श्री गणेश जैसी आकृतिवाले शंख को गणेश शंख कहते हैं । जहाँ पर भी गणेश शंख होता है, उस स्थान पर गणेशजी की कृपा सदैव रहती है । इसके अनेक लाभ हैं :
१. गणेश शंख के प्रतिदिन दर्शन करने से बाधाएँ दूर होती हैं और कार्य में सफलता मिलती है ।
२. यदि व्यापारी को व्यापार में बार-बार हानि होती हो तो उसे गणेश शंख का पूजन करना चाहिए । पूजन करने से व्यापार में हानि बन्द होकर लाभ होना आरम्भ हो जायेगा । गणेश शंख की बुधवार के दिन घर अथवा व्यवसाय स्थल के पूजाघर में स्थापना करनी चाहिए |
३. जिस व्यक्ति को बीमारियाँ घेरे रहतीं हैं, वह गणेश शंख में पानी भरकर उसे पीए तो उसके रोगों का शमन हो जाता है ।
४. गणेश शंख में काली गाय का दूध भरकर पीने से संतान सुख मिलता है । वे दम्पति जो संतान सुख से वंचित हैं, यदि वे यह प्रयोग करें तो उनकी संतान सुख की कामना पूरी होती है ।
५. जिन्हें गणेश शंख बजाना नहीं आता, वे प्रतिदिन उसका दर्शन करे तो उसे बुद्धिजीवियों की सहायता मिलती है और उसकी बुद्धि कभी भ्रमित नहीं होती ।
६. किसी भी स्थान पर गणेश शंख की स्थापना पीलेवस्त् पर ही करनी चाहिए |
. सुख-सौभाग्यदायक शंख की महिमा : हमारी
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धार्मिक संस्कृति वेदों, उपनिषदों व पुराणों से समृद्ध है । हमारी इस धार्मिक संस्कृति में सभी देव-देवियाँ अपने अनेक विविध आयुध धारण करते हैं । प्रत्येक देव व देवी की आराधना करने के लिए अपने धर्म शास्त्रों में विविध मास बताये गये हैं ।
(अ) भगवान शंकर एवं श्रीकृष्ण की आराधना का श्रावण मास ।
(आ) देवी आराधना के लिए चैत्र एवं आश्चिन मास ।
(इ) गणपति की आराधना के लिए भाद्रपद मास |
(ई) भगवान श्री विष्णु की आराधना के लिए मार्गशीर्ष मास है । इसी प्रकार भगवान शंकर चन्द्र, सर्प, गंगा, डमरू, त्रिशुल और स्ट्राक्ष धारण करते हैं । माताजी शंख, चन्द्र, त्रिशूल और तलवार धारण करती हैं । और विश्व के पालन हार भगवान विष्णु शंख, चक्र, गदा व पदूम धारण करते हैं ।
. योग्य शंख का चयन : शंख में ऐसी चमत्कारी शक्तियाँ होती हैं, जो आपकी प्रत्येक इच्छा पूर्ण कर सकती है । किन्तु यह तभी सम्भव है, जब आपने अपनी इच्छापूर्ति हेतु योग्य शंख का चयन किया हो । शास्त्रों में बतलाया गया है कि प्रत्येक शंख की अपनी एक विशेषता होती है। उस विशेषता के अनुसार उनके अलग-अलग नाम होते हैं । यहाँ हम ऐसे ही विभिन्न नामों वाले चमत्कारी शंखों की जानकारी करेंगे :
(क) देवी लक्ष्मी का प्रियशंख : ऐसा कहा जाता है कि देवी लक्ष्मी के हाथ में शोभित शंख दाक्षिणावर्ती शंख है। इसका मुख दायीं ओर होता है । सामान्यतया मिलने वाले शंखों का मुख बायीं ओर ही होता है । यह शंख कष्टों का निवारण करता है । घर में सुख- शान्ति और समृद्धि के लिए इस शंख को देवी लक्ष्मी के चित्र या मूर्ति के समक्ष लालवस्त्र पर रखकर उसकी पूजा करनी चाहिए । ऐसा करने से घर में देवी लक्ष्मी का वास रहता है और दिनोंदिन उन्नति होती है ।
(ख) प्रेम बढ़ाने वाला चमत्कारी शंख : प्रेम में आनेवाली मुश्किलें, या जीवनसाथी के साथ विवाद होता हो तो ऐसे लोगोंं के लिए हीरा शंख लाभदायक होता है । ऐसी मान्यता है कि इस शंख से शुक्र ग्रह से सम्बन्धित दोष दूर हो जाते हैं और प्रेम बढ़ता है । इस शंख को अभिमन्त्रि कर शयन कक्ष में रखने से शुक्रग्रह अनुकूल रहता है। और दाम्पत्यजीवन सुख-समृद्धि से भर जाता है ।
(ग.) गरीबी दूर करनेवाला विष्णु शंख : इस शंख की आकृति अर्द्धचन्द्राकार होने के कारण से चन्द्रशंख भी कहते हैं । जिसके पास यह शंख होता है वह कभी गरीब नहीं होता । इस व्यक्ति की सुख-समृद्धि में वृद्धि होती हैं ।
(घ) हृदय के लिए गुणकारी शंख : जिस व्यक्ति को हृद्यरोग अथवा श्वास सम्बन्धी तकलीफ हो, उसे अपने घर में मोती शंख रखना चाहिए । ऐसा माना जाता है कि इस शंख में गंगाजल भरकर पीने से हृदय स्वस्थ रहता है । श्वास सम्बन्धी तकलीफ भी दूर हो जाती है ।
(ड) विद्यार्थियों तथा व्यापारियों हेतु लाभदायक शंख : प्रकृति में एक ऐसा शंख मिलता है, जिसकी आकृति गणेश जी जैसी होती है । इसे गणेश शंख कहते हैं । यह शंख विद्याप्राप्ति में सहायक होता है । व्यापारी इसे अपने व्यापारस्थल में अथवा अपने पूजाघर में इस शंख की विधिवत् स्थापना करे तो उसे आर्थिक लाभ होता है और उसका व्यापार बढ़ता है ।
. शंख का धार्मिक महत्त्व : शंख का धार्मिक महत्त्व बहुत अधिक है। ज्योतिष शाख््र में शंख को अत्यधिक शुभ माना है। शंख के साथ अनेक ज्योतिषीय प्रयोग जुड़े हुए हैं । शंख की भस्म का औषधीय उपयोग करके असाध्य रोगों से मुक्ति पा सकते हैं । विष्णु पुराण के अनुसार पावन शंख माता महालक्ष्मी का शभ्राता है । समुद्रमंथन के समय मिले चौदह रत्नों में से एक रत्न शंख है । अतः ऐसी मान्यता है कि शेष तेरह रत्नों में जितने गुण हैं, वे
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सभी गुण शंख में भी हैं । अतः विविध प्रयोजन वाले विविध शंखों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार हैं :
(च) कलानिधि शंख : कमजोर आर्थिक स्थितिवालों को धन प्राप्ति करवाने वाला शंख ।
(छ) ऐरावत शंख : नारदमुनि द्वारा सिद्ध किये हुए इस शंख के दर्शन मात्र से समस्त मनोरथ पूर्ण होते हैं ।
(ज) देवेग्य शंख : इस शंख का पूजन करने से पाप-शाप से मुक्ति एवं जादू-टोने से बचाव होता है ।
(झ) दक्षिणावर्ती शंख : यह शंख है तो दुर्लभ परन्तु अत्यन्त चमत्कारिक है । इसके स्थापन एवं पूजन से घर में सुख-शान्ति व धन-समद्धि में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है ।
(अ) विष्णु शंख : घर के मंदिर में इस शंख की स्थापना एवं प्रतिदिन पूजन से घर के लोगोंं की मनोदशा में सुधार, गृह-कलह से मुक्ति एवं रोगों से रक्षा होती है ।
(ट) नीलकंठ शंख : साँप, बिच्छु या अन्य किसी जहरीले जन्तु के काटने पर इस शंख में गौमुत्र भरकर उसे काटे हुए स्थान पर लगाने से जहर शीघ्रता से उतर जाता है ।
(ठ) कामधेनु गोमुखी शंख : यह गाय के सींग जैसी आकृति वाला होने से बजाने में अत्याधिक कठिन होता है । परन्तु जो लोग इसे बजा लेते हैं, उनके फेफड़ों सम्बन्धी रोग नष्ट हो जाते हैं ।
ड) वाघ शंख : इस शंख को घर में रखने से हिंसक प्राणियों का भय नहीं रहता । इसके पूजन से भूत-प्रेत की बाधाएँ दूर होती हैं ।
(द) हीरा शंख : हीरा शंख के स्थापन एवं पूजन से शुक्रग्रह के दोष दूर होकर दाम्पत्य जीवन के सुख में वृद्धि होती है ।
(ण) शनि शंख : जिन्हें शनि की साडा साती या देया चल रही हो, वे इस शंख को अपने पास रखें तो शनि का प्रकोप शान्त होता है और उन्हें आकस्मिक लाभ होता है ।
(त) सूर्य शंख : इस शंख को अपने पास रखनेवाला व्यक्ति दरिद्रता एवं गरीबी से सदा दूर रहता है ।
(थ) अन्नपूर्णा शंख : जिस घर में अन्नपूर्णा शंख होता है, वहाँ किसी वस्तु का अभाव नहीं होता । माता अत्रपूर्णा का साक्षात् वास इस शंख में होता है । इस शंख में रात्रि में पानी भरकर रखना और सवेरे उस पानी को पीने से पेट के विकारों से छुटकारा मिलता है ।
(द) मोती शंख : इस शंख में गंगाजल भरकर पीने से हृदय एवं श्वास सम्बन्धी रोगों से छुटकारा मिलता है । मोती शंख की स्थापना एवं पूजन से चन्द्रदेव की कृपा सदैव बनी रहती है ।
(घ) पाँचजन्य शंख : वास्तुदोष की शांति के लिए पाँचजन्य शंख बहुत अधिक प्रभावशाली है । इसका शंखनाद विजय प्राप्ति का द्योतक है । इसके स्थापन- पूजन से शत्रुओं से रक्षा होती है ।
(न) सीप शंख : इसे घर में रखने से आरोग्य की प्राप्ति होती है । जिसकी कुंडली में चन्द्र निर्बल हो या अशुभ प्रभाव देता हो, उसे चन्द्र की दशा में सीप शंख धारण करना चाहिए ।
(प) गुरु शंख : इस शंख में जल भर कर शालिग्रामजी को स्नान करवाने से एवं तुलसी दल समर्पण करने से स्मरणशक्ति तेज होती है । और शिक्षा क्षेत्र में शीघ्रता से प्रगति होती है । कमजोर विद्यार्थियों के लिए तो इस शंख का पूजन बहुत लाभकारी है ।
वस्तुतः शंख एक बहुगुणी यंत्र है, इसे सदा घर में रखना चाहिए । जो जातक शंख का प्रतिदिन तुलसीदल से पूजन करता है उस घर में रोग, अशान्ति, क्लेश तथा तनाव नहीं रहते । शंख के सूर हमें अनेक प्रकार से सशक्त एवं सम्पन्न बनाते हैं ।
शंख के विविध सफल नुस्खे
१. रोज सवेरे-सवेरे दक्षिणावर्ती शंख में थोड़ा गंगाजल डालकर घर के चारों कोणों में छिटकने से भूतप्रेत तथा दुष्ात्माओं को अशुभ गति से मुक्ति मिलती है । तथा घर में सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश करती है ।
२. एक काँच के प्याले में मोती शंख रखकर उसे गद्दे या पलंग के पास रखने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है,
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और दाम्पत्य सुख में अनोखा अनुभव मिलता है । पति-पत्नी इस शंख के जल से आचमन कर अपने शिर पर अभिषेक करे तो परस्पर वैमनस्य दूर होता है ।
३. घर में दक्षिणावर्ती शंख हो तो लक्ष्मीजी का घर में स्थिर वास होता है । इस शंख का विधि-विधान पूर्वक पूजन करने से तथा अपने व्यवसाय स्थल पर रखने से सदा शुभ परिणाम एवं क्रणमुक्ति मिलती है ।
४. अपनी माता से अक्षत (चावल) भरा हुआ मोती शंख लो, उसे विदेश यात्रा सम्बन्धित कागजों या दस्तावेजों के पास रखो । ऐसा करने से तुम्हारी बाधाएँ दूर होंगी और शीघ्र ही विदेश यात्रा कर सकोगे ।
५. व्यापार - व्यवसाय स्थल पर भगवान विष्णु की मूर्ति के नीचे एक दृक्षिणावर्ती शंख रखकर उसका प्रतिदिन पूजन करने से तथा उस शंख में रखे हुए गंगाजल का छिड़काव करने से समस्त प्रकार की बाधाएँ दूर होती हैं और व्यापार में उन्नति होने लगती है ।
६. किसी भी शंख में पूरी रात पानी भरकर रखना और सुबह उस पानी को पीने से रोग दूर भाग जाते हैं । मृत्युतुल्य पीड़ा से पीड़ित व्यक्ति भी स्वस्थ हो जाता है ।
७. शंख घिसकर आँखों पर लगाने से आँख की सूजन तथा बीमारी दूर होती है । शंख की भस्म का योग्य मात्रा में सेवन करने से शूल, वात, पित्त और कफ से सम्बन्धित विकार नष्ट होते हैं ।
८. खेत में पानी की सिंचाई करते समय शुभ मुहूर्त में १०८ शंखोदक मिला देने से फसल में वृद्धि होगी । अनाज भंडार में कीडे-मकौड़ों से अनाज को बचाने के लिए मंगलवार के दिन वहाँ शंखनाद करना चाहिए |
९. त्वचा रोग हो गाय हो तो शंख की भस्म को नारियल के तेल में मिलाकर रात्रि में वह शंख भस्म लगानें और सवेरे स्नान करने के बाद शंखोदक से साफ कर लें । इतना करने से त्वचा रोग से मुक्ति मिलती है ।
१०. शंख की भस्म के साथ करेले के रस में गाय का दूध सेवन किया जाय तो मधुमेह में राहत मिलती है ।
११. किसी भी शंख में पानी भरकर रखो रात्रि भोजन से आधे घण्टे पहले वह पानी पी जाओ । ऐसा तीन दिन करने से कब्जी से मुक्ति मिलती है ।
१२. अन्नपूर्णा शंख में गंगाजल भर कर प्रतिदिन सुबह- सुबह पीने से शरीर के विकार दूर होते हैं ।
कुछ विचारणीय बिन्दु
. पाश्चात्य शिक्षा से प्रभावित-शिक्षित वर्ग आज भी धार्मिक ज्ञान को अवैज्ञानिक और अन्धविश्वास से भरा मानकर उसे नकारता है ।
. हमारे देश में जीवन से जुड़ी प्रत्येक बात को धर्म व अध्यात्म से जोड़कर कहा गया है । धर्म एवं विज्ञान में विरोधाभास नहीं है । तथापि आज धार्मिक बातों को विज्ञान सम्मत नहीं माना जाता है ।
. चिकित्सा के क्षेत्र में भी एलोपैथी ही सर्वमान्य बनी हुई है। आयुर्वेद की उपेक्षा की गई, आज भी चिकित्साविभाग के सम्पूर्ण बजट का मात्र ४ प्रतिशत बजट आुयर्वेद् एवं अन्य पैशियों को मिलता है ।
. हमारे देश में आयुर्वेद के आधार पर घर-घर में दादी- नानी के घरेलू नुस्खे बहुत ही लाभदायक थे । ये सभी घरेलू नुस्खे हमारे पुरखों के वर्षों से आजमाए हुए सफल अनुभूत प्रयोग थे । किन्तु एलोपैथी डॉक्टर की कही हुई बात पर विश्वास कर उन घरेलू नुस्खों को हम भी नकारते हैं ।
. उपर्युक्त लेख “शंख विज्ञान' भी एसा ही विषय है । आप इसे किस दृष्टि से देखेंगे, यह आप पर निर्भर है ।
. हमारा सुधी पाठकों से विनम्र निवेदन है कि यदि आपकी धार्मिक संस्कृति, धार्मिक शास्त्रों एवं धार्मिक चिकित्सा पद्धति में श्रद्धा और विश्वास है तो इस लेख को आयुर्वेद से जुड़े लोगोंं को पढ़ायें तथा उन्हें शंख विज्ञान' पर अध्ययन - अनुसंधान करने के लिए प्रेरित करें । यही कृतिशील देशभक्ति है ।