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| == समग्रता में सिखाना == | | == समग्रता में सिखाना == |
− | अध्ययन हमेशा समग्रता में होता है । आज अध्ययन | + | * अध्ययन हमेशा समग्रता में होता है। आज अध्ययन खण्ड खण्ड में करने का प्रचलन इतना बढ़ गया है कि इस बात को बार बार समझना आवश्यक हो गया है । उदाहरण के लिये शिक्षक रोटी के बारे में बता रहा है तो आहारशास्त्र, कृषिशास्त्र, वनस्पतिशास्त्र, अर्थशास्त्र और पाकशास्त्र को जोड़कर ही पढ़ाता है । केवल अर्थशास्त्र केवल आहार शास्त्र आदि टुकड़ो में नहीं पढ़ाता। आहार की बात करता है तो सात्विकता, पौष्टिकता, स्वादिष्टता, उपलब्धता, सुलभता आदि सभी आयामों की एक साथ बात करता है और भोजन बनाने की कुशलता भी सिखाता है । समग्रता में सिखाना इतना स्वाभाविक है कि इसे विशेष रूप से बताने की आवश्यकता ही नहीं होती है । परन्तु आज इसका इतना विपर्यास हुआ है कि इसे समझाना पड़ता है । इस विपर्यास के कारण शिक्षा, शिक्षा ही नहीं रह गई है। |
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− | श्घ्डे
| + | * शिक्षक विद्यार्थी को ज्ञान नहीं देता, ज्ञान प्राप्त करने की युक्ति देता है । जिस प्रकार मातापिता बालक को हमेशा गोद में उठाकर ही एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं ले जाते या हमेशा खाना नहीं खिलाते अपितु उसे अपने पैरों से चलना सिखाते हैं और अपने हाथों से खाना सिखाते हैं उसी प्रकार शिक्षक विद्यार्थी को ज्ञान प्राप्त करना सिखाता है । जिस प्रकार माता हमेशा पुत्री को खाना बनाकर खिलाती ही नहीं है या पिता हमेशा पुत्रों के लिये अथार्जिन करके नहीं देता है अपितु पुत्री को खाना बनाना सिखाती है और पुत्रों को थर्जिन करना सिखाता है । ( यहाँ कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि पुत्री को खाना ही बनाना है और पुत्रों को अथर्जिन ही करना है। पुत्रों को भी खाना बनाना सिखाया जा सकता है और पुत्रियों को भी अथर्जिन सिखाया जा सकता है। ) अर्थात जीवन व्यवहार में भावी पीढ़ी को स्वतन्त्र बनाया जाता है । स्वतन्त्र बनाना ही अच्छी शिक्षा है । उसी प्रकार ज्ञान के क्षेत्र में शिक्षक विद्यार्थी को स्वतन्त्रता सिखाता है । |
| + | ''जिस प्रकार मातापिता...'' |
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− | खण्ड खण्ड में करने का प्रचलन
| + | == ''अध्ययन अध्यापन की कुशलता'' == |
| + | ''अपनी संतानों के लिये आवश्यक है तब तक काम गत अध्याय में हमने शिक्षक और विद्यार्थी के'' |
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− | इतना बढ़ गया है कि इस बात को बार बार समझना
| + | ''करके देते हैं और धीरे धीरे साथ काम करते करते. सम्बन्ध के विषय में विचार किया । सम्बन्ध और'' |
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− | आवश्यक हो गया है । उदाहरण के लिये शिक्षक
| + | ''काम करना सिखाते हैं उसी प्रकार शिक्षक भी... विद्याप्रीति आधारूप है । उसके अभाव में अध्ययन हो ही'' |
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− | रोटी के बारे में बता रहा है Wt serene,
| + | ''आवश्यक है तब तक तैयार सामाग्री देकर धीरे धीरे. नहीं सकता । परन्तु उसके साथ कुशलता भी चाहिये ।'' |
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− | कृषिशास्त्र, वनस्पतिशास्त्र, अर्थशास्त्र और पाकशास्त्
| + | ''पढ़ने की कला भी सिखाता है । जीवन के और ज्ञान. कुशलता दोनों में चाहिये ।'' |
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− | को साथ जोड़कर ही पढ़ाता है । केवल अर्थशास्त्र | + | ''के क्षेत्र में विद्यार्थी को स्वतन्त्र बनाना ही उत्तम'' |
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− | केवल आहारशास््र आदि टुकड़ोमें नहीं पढ़ाता ।
| + | ''शिक्षा है।'' |
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− | आहार की बात करता है तो सात्विकता, पौष्टिकता,
| + | === ''शिक्षक की कुशलता किसमें है ?'' === |
| + | ''०. शिक्षक से उत्तम शिक्षा प्राप्त हो सके इसलिये... ०... हर विषय को सिखाने के भिन्न भिन्न तरीके होते हैं ।'' |
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− | स्वादिष्टता, उपलब्धता, सुलभता आदि सभी आयामों
| + | ''विद्यार्थी के लिये कुछ निर्देश भगवद्टीता में बताये गए सुनकर, बोलकर, पढ़कर और लिखकर भाषा के'' |
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− | की एकसाथ बात करता है और भोजन बनाने की
| + | ''हैं । श्री भगवान कहते हैं कौशल सीखे जाते हैं । गिनती करने से गणित सीखी'' |
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− | कुशलता भी सिखाता है । समग्रता में सिखाना इतना
| + | ''तद्िद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया । जाती है । कहानी सुनकर इतिहास सीखा जाता है ।'' |
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− | स्वाभाविक है कि इसे विशेष रूप से बताने की
| + | ''अर्थात प्रयोग करके भौतिक विज्ञान सीखा जाता है । हाथ से'' |
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− | आवश्यकता ही नहीं होती है । परन्तु आज इसका
| + | ''ज्ञान प्राप्त करना है तो ज्ञान देने वाले को प्रश्न पूछना काम कर कारीगरी सीखी जाती है । गाकर संगीत'' |
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− | इतना विपर्यास हुआ है कि इसे समझाना पड़ता है ।
| + | ''चाहिये, उसे प्रणिपात करना चाहिये और उसकी सेवा करनी सीखा जाता है विषय और विषयवस्तु के अनुसार'' |
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− | इस विपर्यास के कारण शिक्षा, शिक्षा ही नहीं रह गई
| + | ''चाहिये । प्रश्न पूछने से तात्पर्य है सीखने वाले में जिज्ञासा क्रियाओं को जानने की कुशलता । अर्थात कुछ'' |
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− | है।
| + | ''होनी चाहिये । प्रणिपात का अर्थ है विद्यार्थी में नप्रता होनी विषयों में कर्मन्द्रियाँ, कुछ में ज्ञानेन्द्रियाँ, कुछ में'' |
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− | शिक्षक विद्यार्थी को ज्ञान नहीं देता, ज्ञान प्राप्त करने
| + | ''चाहिये । सेवा का अर्थ केवल परिचर्या नहीं है । अर्थात बुद्धि आदि की प्रमुख भूमिका होती है । कुछ में'' |
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− | की युक्ति देता है । जिस प्रकार मातापिता बालक को
| + | ''शिक्षक का आसन बिछाना, शिक्षक के पैर दबाना या कण्ठस्थीकरण का तो कुछ में अभ्यास का, कुछ में'' |
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− | हमेशा गोद में उठाकर ही एक स्थान से दूसरे स्थान
| + | ''उसके कपड़े धोना या उसके लिये भोजन बनाना नहीं है । मनन का तो कुछ में परीक्षण का महत्त्व होता है ।'' |
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− | पर नहीं ले जाते या हमेशा खाना नहीं खिलाते अपितु
| + | ''सेवा का अर्थ है शिक्षक के अनुकूल होना, उसे ईच्छित है विषय और विषयवस्तु के अनुरूप क्रियाओं और'' |
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− | उसे अपने पैरों से चलना सिखाते हैं और अपने हाथों
| + | ''ऐसा व्यवहार करना, उसका आशय समझना । जो शिक्षक प्रक्रियाओं को चुनने का कौशल शिक्षक में होना'' |
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− | से खाना सिखाते हैं उसी प्रकार शिक्षक विद्यार्थी को
| + | ''के बताने के बाद भी नहीं करता वह विद्यार्थी निकृष्ट है, जो चाहिये ।'' |
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− | ज्ञान प्राप्त करना सिखाता है । जिस प्रकार माता
| + | ''बताने के बाद करता है वह मध्यम है और जो बिना बताए... ०... एक ही विषय को आयु की अवस्था के अनुसार'' |
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− | हमेशा पुत्री को खाना बनाकर खिलाती ही नहीं है या
| + | ''केवल आशय समझकर करता है वह उत्तम विद्यार्थी है । भिन्न भिन्न प्रकार से प्रस्तुत करने की कुशलता'' |
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− | पिता हमेशा पुत्रों के लिये अथार्जिन करके नहीं देता है
| + | ''उत्तम विद्यार्थी को ज्ञान सुलभ होता है । विद्यार्थी निकृष्ट है शिक्षक में होनी चाहिये । उदाहरण के लिए शिवाजी'' |
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− | अपितु पुत्री को खाना बनाना सिखाती है और पुत्रों
| + | ''तो शिक्षक के चाहने पर और प्रयास करने पर भी विद्यार्थी महाराज आएग्रा के कैदखाने से मिठाई की टोकरियों में'' |
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− | को अधथर्जिन करना सिखाता है । ( यहाँ कहने का
| + | ''ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता । इसीको कहते हैं कि शिक्षक छीपकर भाग निकले और अपनी राजधानी रायगढ़'' |
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− | तात्पर्य यह नहीं है कि पुत्री को खाना ही बनाना है
| + | ''विद्यार्थीपरायण और विद्यार्थी शिक्षकपरायण होना चाहिये । पहुँच गये । इस घटना को शिशु कक्षाओं में चित्र'' |
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− | और पुत्रों को अथर्जिन ही करना है। पुत्रों को भी | + | ''<nowiki>*</nowiki>... जब शिक्षक और विद्यार्थी का सम्बन्ध आत्मीय नहीं और कहानी बताकर, बाल अवस्था के छात्रों को'' |
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− | खाना बनाना सिखाया जा सकता है और पुत्रियों को
| + | ''होता तभी सामग्री, पद्धति, सुविधा आदि के प्रश्र अद्भुत रस और शौर्य भावना से युक्त वर्णन सुनाकर,'' |
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− | भी अथर्जिन सिखाया जा सकता है। ) अर्थात
| + | ''निर्माण होते हैं। दोनों में यदि विद्याप्रीति है और किशोर अवस्था के छात्रों को शिवाजी महाराज का'' |
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− | जीवन व्यवहार में भावी पीढ़ी को स्वतन्त्र बनाया
| + | ''परस्पर विश्वास है तो प्रश्न बहुत कम निर्माण होते हैं । आत्मविश्वास और साहस का निरूपण कर और तरुण'' |
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− | जाता है । स्वतन्त्र बनाना ही अच्छी शिक्षा है । उसी
| + | ''अध्ययन बहुत सहजता से चलता है | अवस्था के छात्रों को शिवाजी महाराज चारों ओर'' |
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− | प्रकार ज्ञान के क्षेत्र में शिक्षक विद्यार्थी को स्वतन्त्रता
| + | ''श्घ्ढ'' |
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| + | शत्रुओं का राज्य था तब भी हजार मील की यात्रा कर कैसे अपने गढ़ पर पहुंचे होंगे और यात्रा में उनकी सहायता करने वाले कौन लोग होंगे इसकी जानकारी प्राप्त करने का प्रकल्प देकर बताया जा सकता है । अधिकांश शिक्षक अत्यन्त कर्तव्यनिष्ठ और भावनाशील होने के बाद भी पढ़ाने की कला में अकुशल सिद्ध होते हैं। कई बार अत्यन्त विद्वान व्यक्ति भी पढ़ाने की कला से अवगत नहीं होते । वे विषय को कठिन तरीके से तो प्रस्तुत कर सकते हैं परन्तु सरल और सरस बनाकर प्रस्तुत करना उनके लिए बहुत कठिन होता है। कभी कभी तो विषयवस्तु बहुत अच्छा होता है परन्तु प्रस्तुति बहुत ही जटिल होती है । |
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− | भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
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− | सिखाता है । जिस प्रकार मातापिता...
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− | == अध्ययन अध्यापन की कुशलता ==
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− | अपनी संतानों के लिये आवश्यक है तब तक काम गत अध्याय में हमने शिक्षक और विद्यार्थी के
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− | करके देते हैं और धीरे धीरे साथ काम करते करते. सम्बन्ध के विषय में विचार किया । सम्बन्ध और
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− | काम करना सिखाते हैं उसी प्रकार शिक्षक भी... विद्याप्रीति आधारूप है । उसके अभाव में अध्ययन हो ही
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− | आवश्यक है तब तक तैयार सामाग्री देकर धीरे धीरे. नहीं सकता । परन्तु उसके साथ कुशलता भी चाहिये ।
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− | पढ़ने की कला भी सिखाता है । जीवन के और ज्ञान. कुशलता दोनों में चाहिये ।
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− | के क्षेत्र में विद्यार्थी को स्वतन्त्र बनाना ही उत्तम
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− | शिक्षा है।
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− | === शिक्षक की कुशलता किसमें है ? ===
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− | ०. शिक्षक से उत्तम शिक्षा प्राप्त हो सके इसलिये... ०... हर विषय को सिखाने के भिन्न भिन्न तरीके होते हैं ।
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− | विद्यार्थी के लिये कुछ निर्देश भगवद्टीता में बताये गए सुनकर, बोलकर, पढ़कर और लिखकर भाषा के
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− | हैं । श्री भगवान कहते हैं कौशल सीखे जाते हैं । गिनती करने से गणित सीखी
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− | तद्िद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया । जाती है । कहानी सुनकर इतिहास सीखा जाता है ।
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− | अर्थात प्रयोग करके भौतिक विज्ञान सीखा जाता है । हाथ से
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− | ज्ञान प्राप्त करना है तो ज्ञान देने वाले को प्रश्न पूछना काम कर कारीगरी सीखी जाती है । गाकर संगीत
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− | चाहिये, उसे प्रणिपात करना चाहिये और उसकी सेवा करनी सीखा जाता है विषय और विषयवस्तु के अनुसार
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− | चाहिये । प्रश्न पूछने से तात्पर्य है सीखने वाले में जिज्ञासा क्रियाओं को जानने की कुशलता । अर्थात कुछ
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− | होनी चाहिये । प्रणिपात का अर्थ है विद्यार्थी में नप्रता होनी विषयों में कर्मन्द्रियाँ, कुछ में ज्ञानेन्द्रियाँ, कुछ में
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− | चाहिये । सेवा का अर्थ केवल परिचर्या नहीं है । अर्थात बुद्धि आदि की प्रमुख भूमिका होती है । कुछ में
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− | शिक्षक का आसन बिछाना, शिक्षक के पैर दबाना या कण्ठस्थीकरण का तो कुछ में अभ्यास का, कुछ में
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− | उसके कपड़े धोना या उसके लिये भोजन बनाना नहीं है । मनन का तो कुछ में परीक्षण का महत्त्व होता है ।
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− | सेवा का अर्थ है शिक्षक के अनुकूल होना, उसे ईच्छित है विषय और विषयवस्तु के अनुरूप क्रियाओं और
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− | ऐसा व्यवहार करना, उसका आशय समझना । जो शिक्षक प्रक्रियाओं को चुनने का कौशल शिक्षक में होना
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− | के बताने के बाद भी नहीं करता वह विद्यार्थी निकृष्ट है, जो चाहिये ।
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− | बताने के बाद करता है वह मध्यम है और जो बिना बताए... ०... एक ही विषय को आयु की अवस्था के अनुसार
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− | केवल आशय समझकर करता है वह उत्तम विद्यार्थी है । भिन्न भिन्न प्रकार से प्रस्तुत करने की कुशलता
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− | उत्तम विद्यार्थी को ज्ञान सुलभ होता है । विद्यार्थी निकृष्ट है शिक्षक में होनी चाहिये । उदाहरण के लिए शिवाजी
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− | तो शिक्षक के चाहने पर और प्रयास करने पर भी विद्यार्थी महाराज आएग्रा के कैदखाने से मिठाई की टोकरियों में
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− | ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता । इसीको कहते हैं कि शिक्षक छीपकर भाग निकले और अपनी राजधानी रायगढ़
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− | विद्यार्थीपरायण और विद्यार्थी शिक्षकपरायण होना चाहिये । पहुँच गये । इस घटना को शिशु कक्षाओं में चित्र
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− | <nowiki>*</nowiki>... जब शिक्षक और विद्यार्थी का सम्बन्ध आत्मीय नहीं और कहानी बताकर, बाल अवस्था के छात्रों को
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− | होता तभी सामग्री, पद्धति, सुविधा आदि के प्रश्र अद्भुत रस और शौर्य भावना से युक्त वर्णन सुनाकर,
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− | निर्माण होते हैं। दोनों में यदि विद्याप्रीति है और किशोर अवस्था के छात्रों को शिवाजी महाराज का
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− | परस्पर विश्वास है तो प्रश्न बहुत कम निर्माण होते हैं । आत्मविश्वास और साहस का निरूपण कर और तरुण
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− | अध्ययन बहुत सहजता से चलता है | अवस्था के छात्रों को शिवाजी महाराज चारों ओर
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− | श्घ्ढ
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− | पर्व ४ : शिक्षक, विद्यार्थी एवं अध्ययन
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− | शत्रुओं का राज्य था तब भी हजार मील की यात्रा | |
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− | कर कैसे अपने गढ़ पर पहुंचे होंगे और यात्रा में | |
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− | उनकी सहायता करने वाले कौन लोग होंगे इसकी | |
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− | जानकारी प्राप्त करने का प्रकल्प देकर बताया जा | |
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− | सकता है । अधिकांश शिक्षक अत्यन्त कर्तव्यनिष्ठ | |
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− | और भावनाशील होने के बाद भी पढ़ाने की कला में | |
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− | अकुशल सिद्ध होते हैं। कई बार अत्यन्त विद्वान | |
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− | व्यक्ति भी पढ़ाने की कला से अवगत नहीं होते । वे | |
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− | विषय को कठिन तरीके से तो प्रस्तुत कर सकते हैं | |
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− | परन्तु सरल और सरस बनाकर प्रस्तुत करना उनके | |
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− | लिए बहुत कठिन होता है। कभी कभी तो | |
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− | विषयवस्तु बहुत अच्छा होता है परन्तु प्रस्तुति बहुत | |
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− | ही जटिल होती है । | |
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| == कठिन विषय को सरल बनाने के कुछ उदाहरण देखें == | | == कठिन विषय को सरल बनाने के कुछ उदाहरण देखें == |