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== कठिन विषय को सरल बनाने के कुछ उदाहरण देखें ==
== कठिन विषय को सरल बनाने के कुछ उदाहरण देखें ==
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# भगवान रामकृष्ण परमहंस आत्मसाक्षात्कार का अनुभव समझाने के लिए कहते हैं कि नमक की पुतली खारे पानी के समुद्र में उतर गई । अब उसे क्या अनुभव हुआ वह कैसे बतायेगी ? वे कहना चाहते हैं कि नमक की पुतली तो समुद्र के पानी में एकरूप हो गई है, अब बताने के लिए कौन बचा है ? नमक की पुतली जैसा ही आत्मसाक्षात्कार का अनुभव होता है ।
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# मुनि उद्दालक अपने पुत्र को, ब्रह्म से ही जगत सृजित हुआ है, इसे समझाने के लिए उसे वटवृक्ष का एक फल लाने को कहते हैं । श्वेतकेतु फल लाता है । पिता उसे फल को तोड़कर अन्दर क्या है यह देखने को कहते हैं । श्वेतकेतु फल तोड़कर देखता है तो उसमें असंख्य छोटे छोटे काले बीज हैं । पिता एक बीज को लेकर उसे तोड़ने के लिए कहते हैं । श्रेतकेतु वैसा ही करता है और कहता है कि उस बीज के अन्दर कुछ नहीं है । पिता कहते हैं कि उस बीज के अन्दर जो “कुछ नहीं' है उसमें से ही यह विशालकाय वटवृक्ष बना है । उसी प्रकार अव्यक्त ब्रह्म से ही यह विराट विश्व बना है।
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# ब्रह्मा और सृष्टि की एकरूपता समझाने के लिए स्वामी विवेकानन्द कहते हैं कि माया के बिलोरी काँच की एक ओर ब्रह्म है और दूसरी ओर से उसे देखने से सृष्टि दिखाई देती है, जिस प्रकार सूर्य की सफ़ेद किरण त्रिपार्थ काँच से गुजरने पर सात रंगों में दिखाई देती है । जिस प्रकार सफ़ेद और सात रंग अलग नहीं हैं उसी प्रकार ब्रह्म और सृष्टि भी अलग नहीं हैं ।
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# लगता है कि हमारे द्रष्टा ऋषि अध्यात्म को बड़े सरल तरीके से समझाने में माहिर थे ।
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# महाकवि कालीदास वाकू और अर्थ का तथा शिव और पार्वती का सम्बन्ध एक जैसा है ऐसा बताते हैं । जो शिव और पार्वती के सम्बन्ध को जानता है वह वाक् और अर्थ की एकात्मता को समझ सकता है और जो वाक् और अर्थ के सम्बन्ध को जानता है वह शिव और पार्वती के सम्बन्ध को समझ सकता है।
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# ज्ञान और विज्ञान का अन्तर और सम्बन्ध समझाने के लिए एक शिक्षक ने छात्रों को पानी में नमक डालकर चम्मच से पानी को हिलाने के लिए कहा | छात्रों ने वैसा ही किया । फिर शिक्षक ने पूछा कि नमक कहाँ है । छात्रों ने कहा कि नमक पानी के अन्दर है । शिक्षक ने पूछा कि कैसे पता चला । छात्रों ने चखने से पता चला ऐसा कहा । तब शिक्षक ने कहा कि अब नमक पानी में सर्वत्र है । वह पानी से अलग दिखाई नहीं देता परन्तु स्वादेंद्रिय के अनुभव से उसके अस्तित्व का पता चलता है। शिक्षक ने कहा कि इसे घुलना कहते हैं । प्रयोग कर के स्वादेंद्रिय से चखकर घुलने की प्रक्रिया तो समझ में आती है परन्तु घुलना क्या होता है इसका पता कैसे चलेगा ? घुलने का अनुभव तो नमक को हुआ है और अब वह बताने के लिए नमक तो है नहीं । घुलने की प्रक्रिया जानना विज्ञान है परन्तु घुलने का अनुभव करना ज्ञान है । विज्ञान ज्ञान तक पहुँचने में सहायता करता है परन्तु विज्ञान स्वयं ज्ञान नहीं है ।
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# गणित की एक कक्षा में क्षेत्रफल के सवाल चल रहे थे । शिक्षक क्षेत्रफल का नियम बता रहे थे । आगंतुक व्यक्ति ने एक छात्र से पूछा कि चार फीट लम्बे और तीन फिट चौड़े टेबल का क्षेत्रफल कितना होगा । छात्रों ने नियम लागू कर के कहा कि बारह वर्ग फीट । आगंतुक ने पूछ कि चार गुणा तीन कितना होता है । छात्रों ने कहा बारह । आगंतुक ने पूछा चार फीट गुणा तीन फिट बारह फीट होगा कि नहीं । छात्रों ने हाँ कहा । आगंतुक ने पूछा कि फिर उसमें वर्ग फीट कहाँ से आ गया | छात्रों को उत्तर नहीं आता था । वे नियम जानते थे और गुणाकार भी जानते थे परन्तु एक परिमाण और द्विपरिमाण का अन्तर नहीं जानते थे । आगंतुक उन्हें बाहर मैदान में ले गया । वहाँ छात्रों को चार फीट लंबा और तीन फीट चौड़ा आयत बनाने के लिए कहा । छात्रों ने बनाया । अब आगंतुक ने कहा कि यह रेखा नहीं है । चार फिट की दो और तीन फीट की दो रेखायें जुड़ी हुई हैं जो जगह घेरती हैं । इस जगह को क्षेत्र कहते हैं । अब चार और तीन फीट में एक एक फुट
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भगवान WAP परमहंस आत्मसाक्षात्कार का
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वाला शिक्षक रोटी का समग्रता में परिचय देता है । वह रोटी को केवल विज्ञान या पाकशास्त्र का विषय नहीं बनाता |
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अनुभव समझाने के लिए कहते हैं कि नमक की
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न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण का नियम खोजा, आइन्स्टाइन ने सापेक्षता का सिद्धान्त सवा, जगदीशचन्द्र बसु ने वनस्पति में भी जीव है यह सिद्ध किया परन्तु गुरुत्वाकर्षण का सृजन किसने किया, सापेक्षता की रचना किसने की, वनस्पति में जीव कैसे आया आदि प्रश्न जगाकर इस विश्व की रचना की ओर ले जाने का अर्थात “विज्ञान' से “अध्यात्म' की ओर ले जाने का काम कुशल शिक्षक करता है ।
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पुतली खारे पानी के समुद्र में उतर गई । अब उसे
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नारियल के वृक्ष को समुद्र का खारा पानी चाहिये । वह खारा पानी जड़ से अन्दर जाकर फल तक पहुँचते पहुँचते मीठा हो जाता है । बिना स्वाद का पानी विभिन्न पदार्थों में विभिन्न स्वाद वाला हो जाता है । यह केवल रासायनिक प्रक्रिया नहीं है अपितु रसायनों को बनाने वाले की कमाल है । यदि केवल रासायनिक प्रक्रिया मानें तो रसायनशास्त्र ही अध्यात्म है ऐसा ही कहना होगा ।
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क्या अनुभव हुआ वह कैसे बतायेगी ? वे कहना
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चाहते हैं कि नमक की पुतली तो समुद्र के पानी में
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एकरूप हो गई है, अब बताने के लिए कौन बचा
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है ? नमक की पुतली जैसा ही आत्मसाक्षात्कार का
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अनुभव होता है ।
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मुनि उद्दालक अपने पुत्र को ब्रह्म से ही जगत सृजित
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हुआ है इसे समझाने के लिए उसे वटवृक्ष का एक
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फल लाने को कहते हैं । श्वेतकेतु फल लाता है ।
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पिता उसे फल को तोड़कर अन्दर क्या है यह देखने
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को कहते हैं । श्वेतकेतु फल तोड़कर देखता है तो
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उसमें असंख्य छोटे छोटे काले बीज हैं । पिता एक
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बीज को लेकर उसे तोड़ने के लिए कहते हैं ।
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श्रेतकेतु वैसा ही करता है और कहता है कि उस
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बीज के अन्दर कुछ नहीं है । पिता कहते हैं कि उस
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बीज के अन्दर जो “कुछ नहीं' है उसमें से ही यह
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विशालकाय वटवृक्ष बना है । उसी प्रकार अव्यक्त
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ब्रह्म से ही यह विराट विश्व बना
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है।
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ब्रह्मा और सृष्टि की एकरूपता समझाने के लिए
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स्वामी विवेकानन्द कहते हैं कि माया के बिलोरी
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काँच की एक ओर ब्रह्म है और दूसरी ओर से उसे
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देखने से सृष्टि दिखाई देती है, जिस प्रकार सूर्य की
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सफ़ेद किरण त्रिपार्थ काँच से गुजरने पर सात रंगों में
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दिखाई देती है । जिस प्रकार सफ़ेद और सात रंग
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अलग नहीं हैं उसी प्रकार ब्रह्म और सृष्टि भी अलग
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नहीं हैं ।
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लगता है कि हमारे द्रष्टा ऋषि अध्यात्म को बड़े
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सरल तरीके से समझाने में माहिर थे ।
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महाकवि कालीदास वाकू और अर्थ का तथा शिव
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और पार्वती का सम्बन्ध एक जैसा है ऐसा बताते हैं ।
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जो शिव और पार्वती के सम्बन्ध को जानता है वह
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are और अर्थ की एकात्मता को समझ सकता है
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और जो वाक् और अर्थ के सम्बन्ध को जानता है
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वह शिव और पार्वती के सम्बन्ध को समझ सकता
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है।
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ज्ञान और विज्ञान का अन्तर और सम्बन्ध समझाने
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के लिए एक शिक्षक ने छात्रों को पानी में नमक
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डालकर चम्मच से पानी को हिलाने के लिए Ha |
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छात्रों ने वैसा ही किया । फिर शिक्षक ने पूछा कि
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नमक कहाँ है । छात्रों ने कहा कि नमक पानी के
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अन्दर है । शिक्षक ने पूछा कि कैसे पता चला ।
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छात्रों ने चखने से पता चला ऐसा कहा । तब शिक्षक
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ने कहा कि अब नमक पानी में सर्वत्र है । वह पानी
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से अलग दिखाई नहीं देता परन्तु स्वार्देट्रिय॒ के
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अनुभव से उसके अस्तित्व का पता चलता है।
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शिक्षक ने कहा कि इसे घुलना कहते हैं । प्रयोग कर
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के स्वारदेट्रिय से चखकर घुलने की प्रक्रिया तो समझ
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में आती है परन्तु घुलना क्या होता है इसका पता
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कैसे चलेगा ? घुलने का अनुभव तो नमक को हुआ
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है और अब वह बताने के लिए नमक तो है नहीं ।
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घुलने की प्रक्रिया जानना विज्ञान है
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परन्तु घुलने का अनुभव करना ज्ञान है । विज्ञान ज्ञान
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तक पहुँचने में सहायता करता है परन्तु विज्ञान स्वयं
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ज्ञान नहीं है ।
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गणित की एक कक्षा में क्षेत्रफल के सवाल चल रहे
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थे । शिक्षक क्षेत्रफल का नियम बता रहे थे ।
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आगंतुक व्यक्ति ने एक छात्र से पूछा कि चार फीट
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लम्बे और तीन फिट चौड़े टेबल का क्षेत्रफल कितना
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होगा । छात्रों ने नियम लागू कर के कहा कि बारह
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वर्ग फीट । आगंतुक ने पूछ कि चार गुणा तीन
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कितना होता है । छात्रों ने कहा बारह । आगंतुक ने
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पूछा चार फीट गुणा तीनफिट बारह फीट होगा कि
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नहीं । छात्रों ने हाँ कहा । आगंतुक ने पूछा कि फिर
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उसमें वर्ग फीट कहाँ से आ गया | छात्रों को उत्तर
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नहीं आता था । वे नियम जानते थे और गुणाकार भी
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जानते थे परन्तु एक परिमाण और दट्रिपरिमाण का
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अन्तर नहीं जानते थे । आगंतुक उन्हें बाहर मैदान में
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ले गया । वहाँ छात्रों को चार फीट लंबा और तीन
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फीट चौड़ा आयत बनाने के लिए कहा । छात्रों ने
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बनाया । अब आगंतुक ने कहा कि यह रेखा नहीं
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है । चार फिट की दो और तीन फीट की दो रेखायें
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जुड़ी हुई हैं जो जगह घेरती हैं । इस जगह को क्षेत्र
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कहते हैं । अब चार और तीन फीट में एक एक फुट
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भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
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वाला शिक्षक रोटी का समग्रता में परिचय देता है ।
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वह रोटी को केवल विज्ञान या पाकशास्त्र का विषय
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नहीं बनाता |
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न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण का नियम खोजा, आइन्स्टाइन
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ने सापेक्षता का सिद्धान्त सवा, जगदीशचन्द्र बसु ने
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वनस्पति में भी जीव है यह सिद्ध किया परन्तु
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गुरुत्वाकर्षण का सृजन किसने किया, सापेक्षता की
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रचना किसने की, वनस्पति में जीव कैसे आया आदि
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प्रश्न जगाकर इस विश्व की रचना की ओर ले जाने
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का अर्थात “विज्ञान' से “अध्यात्म' की ओर ले जाने
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का काम कुशल शिक्षक करता है ।
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नारियल के वृक्ष को समुद्र का खारा पानी चाहिये ।
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वह खारा पानी जड़ से अन्दर जाकर फल तक
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पहुँचते पहुँचते मीठा हो जाता है । बिना स्वाद का
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पानी विभिन्न पदार्थों में विभिन्न स्वाद वाला हो जाता
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है । यह केवल रासायनिक प्रक्रिया नहीं है अपितु
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रसायनों को बनाने वाले की कमाल है । यदि केवल
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रासायनिक प्रक्रिया मानें तो रसायनशास्त्र ही अध्यात्म
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है ऐसा ही कहना होगा ।
== अध्यापन की आदर्श स्थिति ==
== अध्यापन की आदर्श स्थिति ==