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५१. विदेशी भाषा, विदेशी रहनसहन, विदेशी वस्तुओं के मोह में नहीं फैँसना चाहिये । विदेशों में हमारी पहचान एक सच्चे भारतीय के नाते कैसी बने इसकी स्पष्ट कल्पना बननी चाहिये ।
५१. विदेशी भाषा, विदेशी रहनसहन, विदेशी वस्तुओं के मोह में नहीं फैँसना चाहिये । विदेशों में हमारी पहचान एक सच्चे भारतीय के नाते कैसी बने इसकी स्पष्ट कल्पना बननी चाहिये ।
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५२. एक व्यक्ति के नाते स्वकेन्द्री बनकर दुनिया का विचार नहीं करना चाहिये । दुनिया मेरे लिये कितनी उपयोगी हो सकती है यह अभारतीय विचार है, मैं दुनिया के लिये कितना उपयोगी बन सकता हूँ यह भारतीय विचार है । अपने व्यक्तिगत जीवन की रचना इस सूत्र पर आधारित होनी चाहिये ।
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५२. एक व्यक्ति के नाते स्वकेन्द्री बनकर दुनिया का विचार नहीं करना चाहिये । दुनिया मेरे लिये कितनी उपयोगी हो सकती है यह अधार्मिक विचार है, मैं दुनिया के लिये कितना उपयोगी बन सकता हूँ यह भारतीय विचार है । अपने व्यक्तिगत जीवन की रचना इस सूत्र पर आधारित होनी चाहिये ।
५३. जात-पाँत का भेद नहीं रखना चाहिये । सभी जातियों का सम्मान करना चाहिये |
५३. जात-पाँत का भेद नहीं रखना चाहिये । सभी जातियों का सम्मान करना चाहिये |