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===== अन्नब्रह्म का भाव जगाना =====
 
===== अन्नब्रह्म का भाव जगाना =====
विद्यालय मे भोजन करते समय छात्र आसनपट्टी पर ततिमें बैठे या छोटे छोटे मंडल बनाकर अपने मित्रों के साथ भोजन का आस्वाद लें । बैठकर ही भोजन करे । डिब्बे में कुछ न छोडे एवं नीचे कुछ न गिराये । किसी का जूठा नहीं खाना, इधर उधर घूमते भागते भोजन नहीं करना, आराम से प्रसन्नता से भोजन करे । भोजनमंत्र के बाद ही भोजन प्रारंभ करे । मध्यावकाश में घर में बनाया भोजन ही लाना । पेक्‍ड  या होटल की चीजें डिब्बे में न दे । भोजन शाकाहारी हो एवं पर्याप्त हो। ऐसी महत्त्वपूर्ण बातें अभिभावकों को बतानी चाहिए । भोजन के पूर्व एवं पश्चात भोजन की जगह झाड़ू पोछा लगाना अवश्य हो । नीचे गिरा हुआ अन्न झाड़ू से फेंकना नहीं, हाथ से उठाना । भोजन करते समय कंठस्थ श्लोक अथवा सुभाषित व्यक्तिगत रूप से बोल सकते हैं । अन्न पवित्र है उसे पाँव नहीं लगने देना । दाहिने हाथ से ही भोजन करना, जिसके पास डिब्बा नहीं उसे औरों में समाना, भूखा नहीं रखना भोजन का मंत्रगान करना संस्कारपूर्ण भोजन के लक्षण है । छात्रोंने क्या खाना क्या नहीं यह विषय उनके अभ्यास मे आना चाहिए। अन्न के प्रति अन्नब्रह्म है ऐसा भाव और तदनुसार व्यवहार हो ।
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विद्यालय मे भोजन करते समय छात्र आसनपट्टी पर तति में बैठे या छोटे छोटे मंडल बनाकर अपने मित्रों के साथ भोजन का आस्वाद लें । बैठकर ही भोजन करे । डिब्बे में कुछ न छोड़े एवं नीचे कुछ न गिराये । किसी का जूठा नहीं खाना, इधर उधर घूमते भागते भोजन नहीं करना, आराम से प्रसन्नता से भोजन करे । भोजनमंत्र के बाद ही भोजन प्रारंभ करे । मध्यावकाश में घर में बनाया भोजन ही लाना । पेक्‍ड  या होटल की चीजें डिब्बे में न दे । भोजन शाकाहारी हो एवं पर्याप्त हो। ऐसी महत्त्वपूर्ण बातें अभिभावकों को बतानी चाहिए । भोजन के पूर्व एवं पश्चात भोजन की जगह झाड़ू पोछा लगाना अवश्य हो । नीचे गिरा हुआ अन्न झाड़ू से फेंकना नहीं, हाथ से उठाना । भोजन करते समय कंठस्थ श्लोक अथवा सुभाषित व्यक्तिगत रूप से बोल सकते हैं । अन्न पवित्र है उसे पाँव नहीं लगने देना । दाहिने हाथ से ही भोजन करना, जिसके पास डिब्बा नहीं उसे औरों में समाना, भूखा नहीं रखना भोजन का मंत्रगान करना संस्कारपूर्ण भोजन के लक्षण है । छात्रोंने क्या खाना क्या नहीं यह विषय उनके अभ्यास मे आना चाहिए। अन्न के प्रति अन्नब्रह्म है ऐसा भाव और तदनुसार व्यवहार हो ।
    
== विद्यालय में भोजन की शिक्षा ==
 
== विद्यालय में भोजन की शिक्षा ==
सामान्य विद्यालयों में और आवासीय विद्यालयों में भोजन शिक्षा का बहुत बडा विषय है । आज जितना और जैसा ध्यान उसकी ओर दिया जाना चाहिये उतना नहीं दिया जाता । ध्यान दिया जाने लगता है तो विद्यार्थी की अध्ययन क्षमता के लिये भी वह लाभकारी है
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सामान्य विद्यालयों में और आवासीय विद्यालयों में भोजन शिक्षा का बहुत बडा विषय है । आज जितना और जैसा ध्यान उसकी ओर दिया जाना चाहिये उतना नहीं दिया जाता । ध्यान दिया जाने लगता है तो विद्यार्थी की अध्ययन क्षमता के लिये भी वह लाभकारी है ।भोजन के सम्बन्ध में व्यावहारिक विचार कुछ इस प्रकार किया जा सकता है:  
 
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भोजन के सम्बन्ध में व्यावहारिक विचार कुछ इस प्रकार किया जा सकता है:
      
=== क्या खायें ===
 
=== क्या खायें ===
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# इसी प्रकार भले घर में बना हो तब भी बासी भोजन नहीं लाना चाहिये । जिसमें पानी है ऐसा दाल, चावल, रसदार सब्जी बनने के बाद चार घण्टे में बासी हो जाती है। विद्यालय में भोजन का समय और घर में भोजन बनने का समय देखकर कैसा भोजन साथ लायें यह निश्चित करना चाहिये ।  
 
# इसी प्रकार भले घर में बना हो तब भी बासी भोजन नहीं लाना चाहिये । जिसमें पानी है ऐसा दाल, चावल, रसदार सब्जी बनने के बाद चार घण्टे में बासी हो जाती है। विद्यालय में भोजन का समय और घर में भोजन बनने का समय देखकर कैसा भोजन साथ लायें यह निश्चित करना चाहिये ।  
 
# विद्यार्थी और अध्यापक दोनों ही ज्ञान के उपासक ही हैं। अतः दोनों का आहार सात्त्विक ही होना चाहिये ।
 
# विद्यार्थी और अध्यापक दोनों ही ज्ञान के उपासक ही हैं। अतः दोनों का आहार सात्त्विक ही होना चाहिये ।
# भोजन के साथ संस्कार भी जुडे हैं । इसलिये इन बातों का ध्यान करना चाहिये...
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# भोजन के साथ संस्कार भी जुडे हैं । इसलिये इन बातों का ध्यान करना चाहिये
* प्रार्थना करके ही भोजन करना चाहिये ।  
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## प्रार्थना करके ही भोजन करना चाहिये ।  
* पंक्ति में बैठकर भोजन करना चाहिये ।  
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## पंक्ति में बैठकर भोजन करना चाहिये ।  
* बैठकर ही भोजन करना चाहिये ।
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## बैठकर ही भोजन करना चाहिये। कई आवासीय विद्यालयों में, महाविद्यालयों में, शोध संस्थानों में, घरों में कुर्सी टेबलपर बैठकर ही भोजन करने का प्रचलन है। यह पद्धति व्यापक बन गई है । परन्तु यह पद्धति स्वास्थ्य के लिये सही नहीं है। इस पद्धति को बदलने का प्रारम्भ विद्यालय में होना चाहिये । विद्यालय से यह पद्धति घर तक पहुँचनी चाहिये
कई आवासीय विद्यालयों में, महाविद्यालयों में, शोध संस्थानों में, घरों में कुर्सी टेबलपर बैठकर ही भोजन करने का प्रचलन है। यह पद्धति व्यापक बन गई है । परन्तु यह पद्धति स्वास्थ्य के लिये सही नहीं है। इस पद्धति को बदलने का प्रारम्भ विद्यालय में होना चाहिये । विद्यालय से यह पद्धति घर तक पहुँचनी चाहिये ।।
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# भोजन प्रारम्भ करने से पूर्व गोग्रास तथा पक्षियों, चींटियों आदि के लिये हिस्सा निकालना चाहिये ।  
* भोजन प्रारम्भ करने से पूर्व गोग्रास तथा पक्षियों, चींटियों आदि के लिये हिस्सा निकालना चाहिये ।  
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# नीचे आसन बिछाकर ही बैठना चाहिये ।  
* नीचे आसन बिछाकर ही बैठना चाहिये ।  
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# सुखासन में ही बैठना चाहिये ।  
* सुखासन में ही बैठना चाहिये ।  
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# पात्र में जितना भोजन है उतना पूरा खाना चाहिये ।  जूठा छोडना नहीं चाहिये । इस दृष्टि से उचित मात्रा में ही भोजन लाना चाहिये । भोजन के बाद हाथ धोकर पोंछने के लिये कपडा साथ में लाना ही चाहिये ।
* पात्र में जितना भोजन है उतना पूरा खाना चाहिये ।  जूठा छोडना नहीं चाहिये । इस दृष्टि से उचित मात्रा में ही भोजन लाना चाहिये । भोजन के बाद हाथ धोकर पोंछने के लिये कपडा साथ में लाना ही चाहिये ।
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# भोजन के बाद हाथ धोकर पोंछने के लिये कपडा साथ में लाना ही चाहिये ।  
* भोजन के बाद हाथ धोकर पोंछने के लिये कपडा साथ में लाना ही चाहिये ।  
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# विद्यालय में भोजन करने का स्थान सुनिश्चित होना चाहिये।  
* विद्यालय में भोजन करने का स्थान सुनिश्चित होना चाहिये।  
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# विद्यार्थियों को भोजन करने के साथ साथ भोजन बनाने की ओर परोसने की शिक्षा भी दी जानी चाहिये । इस दृष्टि से सभी स्तरों पर सभी कक्षाओं में आहारशास्त्र पाठ्यक्रम का हिस्सा बनना चाहिये ।  
* विद्यार्थियों को भोजन करने के साथ साथ भोजन बनाने की ओर परोसने की शिक्षा भी दी जानी चाहिये । इस दृष्टि से सभी स्तरों पर सभी कक्षाओं में आहारशास्त्र पाठ्यक्रम का हिस्सा बनना चाहिये ।  
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# आवासीय विद्यालयों में भोजन बनाने की विधिवत् शिक्षा देने का प्रबन्ध होना चाहिये । भोजन सामग्री की परख, खरीदी, सफाई. मेन बनाना. पाकक्रिया. परोसना, भोजन पूर्व की तथा बाद की सफाई का शास्त्रीय तथा व्यावहारिक ज्ञान विद्यार्थियों को मिलना चाहिये । सामान्य विद्यालयों में भी यह ज्ञान देना तो चाहिये ही परन्तु वह विद्यालय और घर दोनों स्थानों पर विभाजित होगा। विद्यालय के निर्देश के अनुसार अथवा विद्यालय में प्राप्त शिक्षा के अनुसार विद्यार्थी घर में भोजन बनायेंगे, करवायेंगे और करेंगे।
* आवासीय विद्यालयों में भोजन बनाने की विधिवत् शिक्षा देने का प्रबन्ध होना चाहिये । भोजन सामग्री की परख, खरीदी, सफाई. मेन बनाना. पाकक्रिया. परोसना, भोजन पूर्व की तथा बाद की सफाई का शास्त्रीय तथा व्यावहारिक ज्ञान विद्यार्थियों को मिलना चाहिये । सामान्य विद्यालयों में भी यह ज्ञान देना तो चाहिये ही परन्तु वह विद्यालय और घर दोनों स्थानों पर विभाजित होगा। विद्यालय के निर्देश के अनुसार अथवा विद्यालय में प्राप्त शिक्षा के अनुसार विद्यार्थी घर में भोजन बनायेंगे, करवायेंगे और करेंगे।
   
वास्तव में भोजन सम्बन्धी यह विषय घर का है परन्तु आज घरों में उचित पद्धति से उसका निर्वहन होता नहीं है इसलिये उसे ठीक करने की जिम्मेदारी विद्यालय की हो जाती है।
 
वास्तव में भोजन सम्बन्धी यह विषय घर का है परन्तु आज घरों में उचित पद्धति से उसका निर्वहन होता नहीं है इसलिये उसे ठीक करने की जिम्मेदारी विद्यालय की हो जाती है।
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भोजन को लेकर समस्याओं तथा उनके समाधान विषयक ज्ञान
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== भोजन को लेकर समस्याओं तथा उनके समाधान विषयक ज्ञान ==
 
   
भोजन की सारी व्यवस्था आज अस्तव्यस्त हो गई है। इस भारी गडबड का स्वरूप प्रथम ध्यान में आना चाहिये । कुछ बिन्दु इस प्रकार है ।
 
भोजन की सारी व्यवस्था आज अस्तव्यस्त हो गई है। इस भारी गडबड का स्वरूप प्रथम ध्यान में आना चाहिये । कुछ बिन्दु इस प्रकार है ।
 
* अन्न पवित्र है ऐसा अब नहीं माना जाता है। वह एक जड पदार्थ है।
 
* अन्न पवित्र है ऐसा अब नहीं माना जाता है। वह एक जड पदार्थ है।

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