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# सार्वजनिक स्थानों पर जो पानी होता है उसे भी अशुद्ध होने से बचाना चाहिये ।
 
# सार्वजनिक स्थानों पर जो पानी होता है उसे भी अशुद्ध होने से बचाना चाहिये ।
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=== पानी को लेकर अनुचित आदतें इस प्रकार हैं । ===
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== पानी को लेकर अनुचित आदतें ==
 
उन्हें दूर करने की आवश्यकता है ।
 
उन्हें दूर करने की आवश्यकता है ।
 
# खडे खडे पानी पीना । यह आदत सार्वत्रिक दिखाई देती है। यह स्वास्थ्य के लिये जरा भी उचित नहीं है। पानी पीने वाले ने इस आदत का त्याग करना चाहिये और पानी पिलाने वाले पीने वाले बैठकर पी सकें ऐसी व्यवस्था करनी चाहिये ।
 
# खडे खडे पानी पीना । यह आदत सार्वत्रिक दिखाई देती है। यह स्वास्थ्य के लिये जरा भी उचित नहीं है। पानी पीने वाले ने इस आदत का त्याग करना चाहिये और पानी पिलाने वाले पीने वाले बैठकर पी सकें ऐसी व्यवस्था करनी चाहिये ।
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# पानी का मुख्य स्रोत वर्षा है। संग्रहित पानी का प्राकृतिक स्रोत नदियाँ हैं। संग्रहित पानी का मानवसर्जिक स्रोत तालाब, कुएँ, बावडी आदि हैं । संग्रहित पानी के इससे भी कृत्रिम स्रोत पानी की टँकियों से लेकर घर के छोटे मटकों तक के पात्र हैं । वर्षा की और नदियों की स्तुति के अनुष्टान किये जाने चाहिये तथा मानव सर्जित पानी के संग्रहस्थानों के सम्बन्ध में विवेकपूर्ण विचार होना चाहिये । यहीं से पानी के विषय में ज्ञानात्मक शिक्षा शुरू होती है ।
 
# पानी का मुख्य स्रोत वर्षा है। संग्रहित पानी का प्राकृतिक स्रोत नदियाँ हैं। संग्रहित पानी का मानवसर्जिक स्रोत तालाब, कुएँ, बावडी आदि हैं । संग्रहित पानी के इससे भी कृत्रिम स्रोत पानी की टँकियों से लेकर घर के छोटे मटकों तक के पात्र हैं । वर्षा की और नदियों की स्तुति के अनुष्टान किये जाने चाहिये तथा मानव सर्जित पानी के संग्रहस्थानों के सम्बन्ध में विवेकपूर्ण विचार होना चाहिये । यहीं से पानी के विषय में ज्ञानात्मक शिक्षा शुरू होती है ।
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==== पानी के विषय में ज्ञानात्मक शिक्षा ====
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== पानी के विषय में ज्ञानात्मक शिक्षा ==
क्रिया और भावना के साथ ज्ञान नहीं जुडा तो क्रिया कर्मकाण्ड बन जाती है और भावना निरुद्धेश्य । दोनों ही अपनी सार्थकता खो बैठते हैं । इसलिये ज्ञानात्मक पक्ष का भी विचार अनिवार्य रूप से करना चाहिये, ज्ञानात्मक शिक्षा के पहलु इस प्रकार सोचे जा सकते हैं...
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क्रिया और भावना के साथ ज्ञान नहीं जुडा तो क्रिया कर्मकाण्ड बन जाती है और भावना निरुद्धेश्य । दोनों ही अपनी सार्थकता खो बैठते हैं । इसलिये ज्ञानात्मक पक्ष का भी विचार अनिवार्य रूप से करना चाहिये, ज्ञानात्मक शिक्षा के पहलु इस प्रकार सोचे जा सकते हैं:
 
# क्रियात्मक और भावनात्मक शिक्षा के बाद ही अथवा कम से कम साथ ही ज्ञानात्मक शिक्षा होनी चाहिये । आज के सन्दर्भ में तो इस बात की ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि आज की शिक्षा क्रियाशून्य और भावनाशून्य हो गई है, केवल जानकारी प्राप्त कर, उसे याद कर, परीक्षा में लिखकर अंक प्राप्त करने तक सीमित हो गई है। इससे अधिक निरर्थक या अनर्थक क्या हो सकता है ? अतः क्रियात्मक और भावनात्मक शिक्षा का क्रम प्रथम होना अनिवार्य है।  
 
# क्रियात्मक और भावनात्मक शिक्षा के बाद ही अथवा कम से कम साथ ही ज्ञानात्मक शिक्षा होनी चाहिये । आज के सन्दर्भ में तो इस बात की ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि आज की शिक्षा क्रियाशून्य और भावनाशून्य हो गई है, केवल जानकारी प्राप्त कर, उसे याद कर, परीक्षा में लिखकर अंक प्राप्त करने तक सीमित हो गई है। इससे अधिक निरर्थक या अनर्थक क्या हो सकता है ? अतः क्रियात्मक और भावनात्मक शिक्षा का क्रम प्रथम होना अनिवार्य है।  
 
# पानी कहाँ से आता है, पानी के क्या क्या उपयोग हैं, पानी शुद्ध और अशुद्द कैसे होता है, पानी को शुद्ध किस प्रकार किया जाना चाहिये आदि बातों का ज्ञान प्रारम्भिक स्तर पर देना चाहिये ।  
 
# पानी कहाँ से आता है, पानी के क्या क्या उपयोग हैं, पानी शुद्ध और अशुद्द कैसे होता है, पानी को शुद्ध किस प्रकार किया जाना चाहिये आदि बातों का ज्ञान प्रारम्भिक स्तर पर देना चाहिये ।  

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