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=== विद्यालय में मध्यावकाश का भोजन ===
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== विद्यालय में मध्यावकाश का भोजन ==
 
1. विद्यालय में मध्यावकाश के भोजन सम्बन्ध में कितने प्रकार की व्यवस्था होती है<ref>भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला ३), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref> ?  
 
1. विद्यालय में मध्यावकाश के भोजन सम्बन्ध में कितने प्रकार की व्यवस्था होती है<ref>भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला ३), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref> ?  
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10. छात्रों ने क्या खाना चाहिये और क्या नहीं खाना चाहिये ?
 
10. छात्रों ने क्या खाना चाहिये और क्या नहीं खाना चाहिये ?
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==== प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर ====
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=== प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर ===
 
महाराष्ट्र के एक विद्यालय से १२ शिक्षक एवं ९ अभिभावकों ने यह प्रश्नावली भरकर भेजी है, जिससे कुल १० प्रश्न थे ।  
 
महाराष्ट्र के एक विद्यालय से १२ शिक्षक एवं ९ अभिभावकों ने यह प्रश्नावली भरकर भेजी है, जिससे कुल १० प्रश्न थे ।  
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बाकी बचे ९ प्रश्नों के उत्तर सभी उत्तरदाताओंने सही ढंग से, आदर्श व्यवहार के रूप में लिखे हैं । परन्तु आदर्शों का वर्णन करना और उनका प्रत्यक्ष व्यवहार इन दोनों में बहुत अंतर नजर आता है । उपदेश देना सरल है परंतु तदनुसार व्यवहार मे आचरण करना कठिन होता है; उसके प्रति आग्रही रहना चाहिये । शिक्षा की आधी समस्‍यायें खत्म हो जाएगी । घर और विद्यालयों में भारतीय विचारों का आदर्श रखना परंतु पाश्चात्य खानपान का सेवन करना यह तो अपने आपको दिया गया धोखा है । उसके ही परिणाम हम भुगत रहे हैं ऐसा लगता है ।
 
बाकी बचे ९ प्रश्नों के उत्तर सभी उत्तरदाताओंने सही ढंग से, आदर्श व्यवहार के रूप में लिखे हैं । परन्तु आदर्शों का वर्णन करना और उनका प्रत्यक्ष व्यवहार इन दोनों में बहुत अंतर नजर आता है । उपदेश देना सरल है परंतु तदनुसार व्यवहार मे आचरण करना कठिन होता है; उसके प्रति आग्रही रहना चाहिये । शिक्षा की आधी समस्‍यायें खत्म हो जाएगी । घर और विद्यालयों में भारतीय विचारों का आदर्श रखना परंतु पाश्चात्य खानपान का सेवन करना यह तो अपने आपको दिया गया धोखा है । उसके ही परिणाम हम भुगत रहे हैं ऐसा लगता है ।
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===== अभिमत =====
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==== अभिमत ====
 
विद्यालय में मध्यावकाश के भोजन के लिए स्वतंत्र भोजन शाला हो, जहाँ पढ़ना उसी कक्षा में भोजन करना ठीक नहीं है । यह भोजनशाला स्वच्छ, खुली हवा में, गोबर से लिपी हुई हो तो अच्छा है । सब छात्र पंगती में बैठकर भोजन कर सके इतनी पर्याप्त भोजनपड्टी, भोजनमंत्र और गाय के लिए खाना निकालने की व्यवस्था हो सकती है।
 
विद्यालय में मध्यावकाश के भोजन के लिए स्वतंत्र भोजन शाला हो, जहाँ पढ़ना उसी कक्षा में भोजन करना ठीक नहीं है । यह भोजनशाला स्वच्छ, खुली हवा में, गोबर से लिपी हुई हो तो अच्छा है । सब छात्र पंगती में बैठकर भोजन कर सके इतनी पर्याप्त भोजनपड्टी, भोजनमंत्र और गाय के लिए खाना निकालने की व्यवस्था हो सकती है।
    
अन्न से शरीर मे बल आता है, प्राण भी बलवान होते हैं । योग्य आहार से शरीर स्वास्थ्य बना रहता है । चित्त पर संस्कार होते है इसलिए भोजन शुद्ध हो रुचिपूर्ण हो तामसी न हो । भोजन करते समय मन प्रसन्न होना चाहिये ।
 
अन्न से शरीर मे बल आता है, प्राण भी बलवान होते हैं । योग्य आहार से शरीर स्वास्थ्य बना रहता है । चित्त पर संस्कार होते है इसलिए भोजन शुद्ध हो रुचिपूर्ण हो तामसी न हो । भोजन करते समय मन प्रसन्न होना चाहिये ।
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===== विमर्श =====
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==== विमर्श ====
    
===== अन्नब्रह्म का भाव जगाना =====
 
===== अन्नब्रह्म का भाव जगाना =====
 
विद्यालय मे भोजन करते समय छात्र आसनपट्टी पर ततिमें बैठे या छोटे छोटे मंडल बनाकर अपने मित्रों के साथ भोजन का आस्वाद लें । बैठकर ही भोजन करे । डिब्बे में कुछ न छोडे एवं नीचे कुछ न गिराये । किसी का जूठा नहीं खाना, इधर उधर घूमते भागते भोजन नहीं करना, आराम से प्रसन्नता से भोजन करे । भोजनमंत्र के बाद ही भोजन प्रारंभ करे । मध्यावकाश में घर में बनाया भोजन ही लाना । पेक्‍ड  या होटल की चीजें डिब्बे में न दे । भोजन शाकाहारी हो एवं पर्याप्त हो। ऐसी महत्त्वपूर्ण बातें अभिभावकों को बतानी चाहिए । भोजन के पूर्व एवं पश्चात भोजन की जगह झाड़ू पोछा लगाना अवश्य हो । नीचे गिरा हुआ अन्न झाड़ू से फेंकना नहीं, हाथ से उठाना । भोजन करते समय कंठस्थ श्लोक अथवा सुभाषित व्यक्तिगत रूप से बोल सकते हैं । अन्न पवित्र है उसे पाँव नहीं लगने देना । दाहिने हाथ से ही भोजन करना, जिसके पास डिब्बा नहीं उसे औरों में समाना, भूखा नहीं रखना भोजन का मंत्रगान करना संस्कारपूर्ण भोजन के लक्षण है । छात्रोंने क्या खाना क्या नहीं यह विषय उनके अभ्यास मे आना चाहिए। अन्न के प्रति अन्नब्रह्म है ऐसा भाव और तदनुसार व्यवहार हो ।
 
विद्यालय मे भोजन करते समय छात्र आसनपट्टी पर ततिमें बैठे या छोटे छोटे मंडल बनाकर अपने मित्रों के साथ भोजन का आस्वाद लें । बैठकर ही भोजन करे । डिब्बे में कुछ न छोडे एवं नीचे कुछ न गिराये । किसी का जूठा नहीं खाना, इधर उधर घूमते भागते भोजन नहीं करना, आराम से प्रसन्नता से भोजन करे । भोजनमंत्र के बाद ही भोजन प्रारंभ करे । मध्यावकाश में घर में बनाया भोजन ही लाना । पेक्‍ड  या होटल की चीजें डिब्बे में न दे । भोजन शाकाहारी हो एवं पर्याप्त हो। ऐसी महत्त्वपूर्ण बातें अभिभावकों को बतानी चाहिए । भोजन के पूर्व एवं पश्चात भोजन की जगह झाड़ू पोछा लगाना अवश्य हो । नीचे गिरा हुआ अन्न झाड़ू से फेंकना नहीं, हाथ से उठाना । भोजन करते समय कंठस्थ श्लोक अथवा सुभाषित व्यक्तिगत रूप से बोल सकते हैं । अन्न पवित्र है उसे पाँव नहीं लगने देना । दाहिने हाथ से ही भोजन करना, जिसके पास डिब्बा नहीं उसे औरों में समाना, भूखा नहीं रखना भोजन का मंत्रगान करना संस्कारपूर्ण भोजन के लक्षण है । छात्रोंने क्या खाना क्या नहीं यह विषय उनके अभ्यास मे आना चाहिए। अन्न के प्रति अन्नब्रह्म है ऐसा भाव और तदनुसार व्यवहार हो ।
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=== विद्यालय में भोजन की शिक्षा ===
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== विद्यालय में भोजन की शिक्षा ==
 
सामान्य विद्यालयों में और आवासीय विद्यालयों में भोजन शिक्षा का बहुत बडा विषय है । आज जितना और जैसा ध्यान उसकी ओर दिया जाना चाहिये उतना नहीं दिया जाता । ध्यान दिया जाने लगता है तो विद्यार्थी की अध्ययन क्षमता के लिये भी वह लाभकारी है ।  
 
सामान्य विद्यालयों में और आवासीय विद्यालयों में भोजन शिक्षा का बहुत बडा विषय है । आज जितना और जैसा ध्यान उसकी ओर दिया जाना चाहिये उतना नहीं दिया जाता । ध्यान दिया जाने लगता है तो विद्यार्थी की अध्ययन क्षमता के लिये भी वह लाभकारी है ।  
    
भोजन के सम्बन्ध में व्यावहारिक विचार कुछ इस प्रकार किया जा सकता है:
 
भोजन के सम्बन्ध में व्यावहारिक विचार कुछ इस प्रकार किया जा सकता है:
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==== क्या खायें ====
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=== क्या खायें ===
 
जैसा अन्न वैसा मन, और आहार वैसे विचार ये बहुत प्रचलित उक्तियाँ हैं । विचारवान लोग इन्हें मानते भी हैं । इसका तात्पर्य यह है कि अन्न का प्रभाव मन पर होता है । इसलिये जो मन को अच्छा बनाये वह खाना चाहिये, मन को खराब करे उसका त्याग करना चाहिये ।  
 
जैसा अन्न वैसा मन, और आहार वैसे विचार ये बहुत प्रचलित उक्तियाँ हैं । विचारवान लोग इन्हें मानते भी हैं । इसका तात्पर्य यह है कि अन्न का प्रभाव मन पर होता है । इसलिये जो मन को अच्छा बनाये वह खाना चाहिये, मन को खराब करे उसका त्याग करना चाहिये ।  
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मोटे तौर पर जिसमें चिकनाई अधिक है उसे स्निग्ध आहार कहते हैं। घी, तेल, मक्खन, दूध, तेल जिससे निकलता है ऐसे तिल, नारियेल, बादाम आदि स्निग्ध माने जाते हैं । स्निग्धता से शरीर के जोड, स्नायु, त्वचा आदि में नरमाई बनी रहती है। त्वचा मुलायम बनती है।
 
मोटे तौर पर जिसमें चिकनाई अधिक है उसे स्निग्ध आहार कहते हैं। घी, तेल, मक्खन, दूध, तेल जिससे निकलता है ऐसे तिल, नारियेल, बादाम आदि स्निग्ध माने जाते हैं । स्निग्धता से शरीर के जोड, स्नायु, त्वचा आदि में नरमाई बनी रहती है। त्वचा मुलायम बनती है।
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===== बल भी बढ़ता है। =====
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==== बल भी बढ़ता है। ====
 
परन्तु यह केवल शारीरिक स्तर की स्निग्धता है सात्त्विक आहार का सम्बन्ध शरीर से अधिक मन के साथ है। आहार तैयार होने की प्रक्रिया में जिन जिन की सहभागिता होती है उनके हृदय में यदि स्नेह है तो आहार स्नेहयुक्त अर्थात् स्निग्ध बनता है। ऐसा स्निग्ध आहार सात्त्विक होता है।
 
परन्तु यह केवल शारीरिक स्तर की स्निग्धता है सात्त्विक आहार का सम्बन्ध शरीर से अधिक मन के साथ है। आहार तैयार होने की प्रक्रिया में जिन जिन की सहभागिता होती है उनके हृदय में यदि स्नेह है तो आहार स्नेहयुक्त अर्थात् स्निग्ध बनता है। ऐसा स्निग्ध आहार सात्त्विक होता है।
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यहाँ एक बात स्पष्ट होती है कि सात्त्विक आहार पौष्टिक और शुद्ध दोनो होता है ।
 
यहाँ एक बात स्पष्ट होती है कि सात्त्विक आहार पौष्टिक और शुद्ध दोनो होता है ।
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=== कब खायें ===
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== कब खायें ==
 
आहार लेने के बाद उसका पाचन होनी चाहिये । शरीर में पाचनतन्त्र होता है। साथ ही अन्न को पचाकर उसका रस बनाने वाला जठराग्नि होता है । आंतें, आमाशय, अन्ननलिका, दाँत आदि तथा विभिन्न प्रकार के पाचनरस अपने आप अन्न को नहीं पचाते, जठराग्नि ही अन्न को पचाती है। शरीर के अंग पात्र हैं और विभिन्न पाचक रस मानो मसाले हैं । जठराग्नि नहीं है तो पात्र और मसाले क्या काम आयेंगे ?
 
आहार लेने के बाद उसका पाचन होनी चाहिये । शरीर में पाचनतन्त्र होता है। साथ ही अन्न को पचाकर उसका रस बनाने वाला जठराग्नि होता है । आंतें, आमाशय, अन्ननलिका, दाँत आदि तथा विभिन्न प्रकार के पाचनरस अपने आप अन्न को नहीं पचाते, जठराग्नि ही अन्न को पचाती है। शरीर के अंग पात्र हैं और विभिन्न पाचक रस मानो मसाले हैं । जठराग्नि नहीं है तो पात्र और मसाले क्या काम आयेंगे ?
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इन सभी बातों को समझकर विद्यालय में आहारविषयक व्यवस्था करनी चाहिये । विद्यालय के साथ साथ घर में भी इसी प्रकार से योजना बननी चाहिये । आजकाल मातापिता को भी आहार विषयक अधिक जानकारी नहीं होती है । अतः भोजन के सम्बन्ध में परिवार को भी मार्गदर्शन करने का दायित्व विद्यालय का ही होता है।
 
इन सभी बातों को समझकर विद्यालय में आहारविषयक व्यवस्था करनी चाहिये । विद्यालय के साथ साथ घर में भी इसी प्रकार से योजना बननी चाहिये । आजकाल मातापिता को भी आहार विषयक अधिक जानकारी नहीं होती है । अतः भोजन के सम्बन्ध में परिवार को भी मार्गदर्शन करने का दायित्व विद्यालय का ही होता है।
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=== विद्यालय में भोजन व्यवस्था ===
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== विद्यालय में भोजन व्यवस्था ==
 
विद्यालय में विद्यार्थी घर से भोजन लेकर आते हैं। इस सम्बन्ध में इतनी बातों की ओर ध्यान देना चाहिये...  
 
विद्यालय में विद्यार्थी घर से भोजन लेकर आते हैं। इस सम्बन्ध में इतनी बातों की ओर ध्यान देना चाहिये...  
 
# प्लास्टीक के डिब्बे में या थैली में खाना और प्लास्टीक की बोतल में पानी का निषेध होना चाहिये । इस सम्बन्ध में आग्रहपूर्वक प्रशिक्षण भी होना चाहिये। इस सम्बन्ध में आग्रहपूर्वक प्रशिक्षण भी होना चाहिये।  
 
# प्लास्टीक के डिब्बे में या थैली में खाना और प्लास्टीक की बोतल में पानी का निषेध होना चाहिये । इस सम्बन्ध में आग्रहपूर्वक प्रशिक्षण भी होना चाहिये। इस सम्बन्ध में आग्रहपूर्वक प्रशिक्षण भी होना चाहिये।  
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* भोजन का स्वास्थ्य, संस्कार और संस्कृति के साथ सम्बन्ध है इस बात का विस्मरण हो गया है।
 
* भोजन का स्वास्थ्य, संस्कार और संस्कृति के साथ सम्बन्ध है इस बात का विस्मरण हो गया है।
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=== भारतीय इन्स्टंट फ़ूड एवं जंक फ़ूड ===
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== भारतीय इन्स्टंट फ़ूड एवं जंक फ़ूड ==
 
इन सभी समस्याओं का समाधान विद्यालय में विभिन्न स्तरों पर सोचा जाना चाहिये । विद्यालय में भोजन केवल विद्यार्थियों के नास्ते तक सीमित नहीं है, भोजन से सम्बन्धित कार्य, भोजन से सम्बन्धित दृष्टि एवं मानसिकता तथा भोजन विषयक समस्याओं एवं उनके समाधान आदि सभी विषयों का समावेश इसमें होता है।
 
इन सभी समस्याओं का समाधान विद्यालय में विभिन्न स्तरों पर सोचा जाना चाहिये । विद्यालय में भोजन केवल विद्यार्थियों के नास्ते तक सीमित नहीं है, भोजन से सम्बन्धित कार्य, भोजन से सम्बन्धित दृष्टि एवं मानसिकता तथा भोजन विषयक समस्याओं एवं उनके समाधान आदि सभी विषयों का समावेश इसमें होता है।
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को अभिभावकों को तथा स्वयं शिक्षा को परीक्षा के चंगुल से किंचित् मात्रा में मुक्त करने के माध्यम ये बन सकते हैं।
 
को अभिभावकों को तथा स्वयं शिक्षा को परीक्षा के चंगुल से किंचित् मात्रा में मुक्त करने के माध्यम ये बन सकते हैं।
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==== १. इन्स्टण्ट फूड ====
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=== इन्स्टण्ट फूड ===
 
इन्स्टण्ट फूड का अर्थ है झटपट तैयार होने वाला पदार्थ। झटपट अर्थात् दो मिनिट से लेकर पन्द्रह-बीस मिनिट में तैयार हो जाने वाला।
 
इन्स्टण्ट फूड का अर्थ है झटपट तैयार होने वाला पदार्थ। झटपट अर्थात् दो मिनिट से लेकर पन्द्रह-बीस मिनिट में तैयार हो जाने वाला।
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छाप ऐसी पडती है कि इन्स्टण्ट फूड का आविष्कार आज के जमाने में ही हुआ है। परन्तु ऐसा है नही। झटपट भोजन की आवश्यकता तो कहीं भी और कभी भी रह सकती है। इसलिये भारतीय गृहिणी भी इस कला में माहिर होगी ही। ऐसे कई पदार्थों की सूची यहाँ दी गई है। यह सूची सबको परिचित है, घर घर में प्रचलित भी है। परन्तु ध्यान इस बातकी ओर आकर्षित करना है कि ये सब पदार्थ झटपट तैयार होने वाले होने के साथ साथ पोषक एवं स्वादिष्ट भी होते हैं, बनाने में सरल हैं और आर्थिक दृष्टि से देखा जाय तो सर्वसामान्य गृहिणी बना सकेगी ऐसे भी हैं।  
 
छाप ऐसी पडती है कि इन्स्टण्ट फूड का आविष्कार आज के जमाने में ही हुआ है। परन्तु ऐसा है नही। झटपट भोजन की आवश्यकता तो कहीं भी और कभी भी रह सकती है। इसलिये भारतीय गृहिणी भी इस कला में माहिर होगी ही। ऐसे कई पदार्थों की सूची यहाँ दी गई है। यह सूची सबको परिचित है, घर घर में प्रचलित भी है। परन्तु ध्यान इस बातकी ओर आकर्षित करना है कि ये सब पदार्थ झटपट तैयार होने वाले होने के साथ साथ पोषक एवं स्वादिष्ट भी होते हैं, बनाने में सरल हैं और आर्थिक दृष्टि से देखा जाय तो सर्वसामान्य गृहिणी बना सकेगी ऐसे भी हैं।  
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===== १. हलवा =====
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==== हलवा ====
 
आटे को घी में सेंककर उसमें पानी तथा गुड या शक्कर मिलाकर पकाया जाता है वह हलवा है।
 
आटे को घी में सेंककर उसमें पानी तथा गुड या शक्कर मिलाकर पकाया जाता है वह हलवा है।
    
आबालवृध्ध सब खा सकते हैं। मेहमान को भी परोस सकते हैं, किसी भी समय पर किसी भी ऋतु में किसी भी अवसर पर नाश्ते अथवा भोजन में भी खाया जाता है। किसी भी पदार्थ के साथ खाया जाता है, जो सादा भी होता है, पानी के स्थान पर दूध मिलाकर भी हो सकता है, उसमें बदाम-केसर-पिस्ता चारोली इलायची जैसा सूखा मेवा भी डाल सकते हैं। और सत्यनारायण का प्रसाद भी बन सके ऐसा यह अदभुत पदार्थ बनाने में सरल, झटपट, स्वाद में रुचिकर और पाचन में भी लघु और पौष्टिक है।  
 
आबालवृध्ध सब खा सकते हैं। मेहमान को भी परोस सकते हैं, किसी भी समय पर किसी भी ऋतु में किसी भी अवसर पर नाश्ते अथवा भोजन में भी खाया जाता है। किसी भी पदार्थ के साथ खाया जाता है, जो सादा भी होता है, पानी के स्थान पर दूध मिलाकर भी हो सकता है, उसमें बदाम-केसर-पिस्ता चारोली इलायची जैसा सूखा मेवा भी डाल सकते हैं। और सत्यनारायण का प्रसाद भी बन सके ऐसा यह अदभुत पदार्थ बनाने में सरल, झटपट, स्वाद में रुचिकर और पाचन में भी लघु और पौष्टिक है।  
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===== २. सुखडी =====
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==== सुखडी ====
 
आटे को घी में सेंककर उसमें गुड मिलाकर थाली में डालकर सुखडी तैयार हो जाती है। कोई गुड की चाशनी बनाता है, कोई आटा सेंकता है और कोई नहीं भी सेंकता है। यह सुखडी डिब्बे में भरकर कई दिनों तक रखी भी जाती है। यात्रा में साथ ले जा सकते हैं। ताजा, गरमागरम भी खा सकते हैं और आठ दस दिन बाद भी खा सकते हैं। अकाल अथवा तत्सम प्राकृतिक विपदा के समय विपुल मात्रा में बनाकर दूर दूर के प्रदेशों में पहुँचा भी सकते हैं।
 
आटे को घी में सेंककर उसमें गुड मिलाकर थाली में डालकर सुखडी तैयार हो जाती है। कोई गुड की चाशनी बनाता है, कोई आटा सेंकता है और कोई नहीं भी सेंकता है। यह सुखडी डिब्बे में भरकर कई दिनों तक रखी भी जाती है। यात्रा में साथ ले जा सकते हैं। ताजा, गरमागरम भी खा सकते हैं और आठ दस दिन बाद भी खा सकते हैं। अकाल अथवा तत्सम प्राकृतिक विपदा के समय विपुल मात्रा में बनाकर दूर दूर के प्रदेशों में पहुँचा भी सकते हैं।
    
बनाने में सरल, स्वादमें उत्तम, पचने में सामान्य, अत्यंत पोषक, किसी भी पदार्थ के साथ खा सकते हैं। भोजन में कम परन्तु अल्पहार में अधिक चलने वाली यह सुखड़ी देश के प्रत्येक राज्य तथा प्रदेशों में भिन्न नाम एवं रूप से प्रचलित और आवकार्य है।  
 
बनाने में सरल, स्वादमें उत्तम, पचने में सामान्य, अत्यंत पोषक, किसी भी पदार्थ के साथ खा सकते हैं। भोजन में कम परन्तु अल्पहार में अधिक चलने वाली यह सुखड़ी देश के प्रत्येक राज्य तथा प्रदेशों में भिन्न नाम एवं रूप से प्रचलित और आवकार्य है।  
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===== ३. कुलेर =====
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==== कुलेर ====
 
बाजरे अथवा चावल का आटा सेंककर अथवा बिना सेंके घी और गुड़ के साथ मिलाकर बनाया हुआ लड्डू कुलेर  कहा जाता है। सुख़डी की अपेक्षा कम प्रचलित परन्तु कभी भी बनाई और खाई जा सकती है।  
 
बाजरे अथवा चावल का आटा सेंककर अथवा बिना सेंके घी और गुड़ के साथ मिलाकर बनाया हुआ लड्डू कुलेर  कहा जाता है। सुख़डी की अपेक्षा कम प्रचलित परन्तु कभी भी बनाई और खाई जा सकती है।  
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===== ४. बेसन के लड्ड =====
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==== बेसन के लड्ड ====
 
चने की दाल का आटा अर्थात् बेसन के मोटे आटे को घी में सेंककर उसमें पीसी हुई शक्कर मिलाकर बनाया गया लड्डू अर्थात् बेसन का लड्डू। अत्यंत स्वादिष्ट, पौष्टिक, मात्रा में साथ ले जा सकते हैं, कभी भी खा सकते हैं। वैष्णव एवं स्वामीनारायण पंथ का यह प्रिय प्रसाद है।
 
चने की दाल का आटा अर्थात् बेसन के मोटे आटे को घी में सेंककर उसमें पीसी हुई शक्कर मिलाकर बनाया गया लड्डू अर्थात् बेसन का लड्डू। अत्यंत स्वादिष्ट, पौष्टिक, मात्रा में साथ ले जा सकते हैं, कभी भी खा सकते हैं। वैष्णव एवं स्वामीनारायण पंथ का यह प्रिय प्रसाद है।
    
कहा जाता है। सुख़डी की अपेक्षा कम प्रचलित परन्तु कभी भी बनाई और खाई जा सकती है। ४. बेसन के लड्ड, चने की दाल का आटा अर्थात् बेसन के मोटे आटे को घी में सेंककर उसमें पीसी हुई शक्कर मिलाकर बनाया गया लड्डू अर्थात् बेसन का लड्डू। अत्यंत स्वादिष्ट, पौष्टिक, मात्रा में साथ ले जा सकते हैं, कभी भी खा सकते हैं। वैष्णव एवं स्वामीनारायण पंथ का यह प्रिय प्रसाद है।
 
कहा जाता है। सुख़डी की अपेक्षा कम प्रचलित परन्तु कभी भी बनाई और खाई जा सकती है। ४. बेसन के लड्ड, चने की दाल का आटा अर्थात् बेसन के मोटे आटे को घी में सेंककर उसमें पीसी हुई शक्कर मिलाकर बनाया गया लड्डू अर्थात् बेसन का लड्डू। अत्यंत स्वादिष्ट, पौष्टिक, मात्रा में साथ ले जा सकते हैं, कभी भी खा सकते हैं। वैष्णव एवं स्वामीनारायण पंथ का यह प्रिय प्रसाद है।
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===== ५. राब =====
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==== राब ====
 
घी में आटा सेंककर उसमें पानी और गुड मिलाकर उसे उबालने पर पीने जैसा जो तरल पदार्थ बनता है वह है राब । हलवा बनाने में प्रयुक्त सभी पदार्थ इसमें होते हैं परन्तु राब पतली होती है। पीने योग्य है।
 
घी में आटा सेंककर उसमें पानी और गुड मिलाकर उसे उबालने पर पीने जैसा जो तरल पदार्थ बनता है वह है राब । हलवा बनाने में प्रयुक्त सभी पदार्थ इसमें होते हैं परन्तु राब पतली होती है। पीने योग्य है।
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कुछ लोग इसमें अजवाईन अथवा सुंठ भी डालते है। पीपरीमूल का चूर्ण मिलाने से यही राब औषधीगुण धारण करती है। कोई बारीक आटे की बनाता है तो कोई मोटे आटे की। कोई गेहूँ के आटे की बनाता है तो कोई बाजरी अथवा चावल के आटे की, जैसी जिसकी रुचि और सुविधा।  
 
कुछ लोग इसमें अजवाईन अथवा सुंठ भी डालते है। पीपरीमूल का चूर्ण मिलाने से यही राब औषधीगुण धारण करती है। कोई बारीक आटे की बनाता है तो कोई मोटे आटे की। कोई गेहूँ के आटे की बनाता है तो कोई बाजरी अथवा चावल के आटे की, जैसी जिसकी रुचि और सुविधा।  
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===== ६. चीला =====
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==== चीला ====
 
चावल अथवा बेसन के आटे को पानी में घोलकर उसमें नमक, हलदी, मिर्ची इत्यादि मसाले मिलाकर अच्छी तरह से फेंटा जाता है। बाद में तवे पर तेल छोडकर उस पर चम्मच से आटे का तैयार घोल डालकर रोटी की तरह फैलाया जाता है। उसके किनारे पर थोडा थोडा तेल छोडकर उसे मध्यम आँच पर पकाया जाता है। एक दो मिनिट में एक ओर से पक जाने पर उसे दूसरी ओर से भी सेंका जाता है। यह पदार्थ मीठा अचार, खट्टी-मीठी चटनी के साथ बहुत स्वादिष्ट लगता है। ख़ाने में कुछ वायुकारक मध्यम प्रमाण में पोषक, बनाने में अत्यंत सरल, शीघ्र और खाने में अति स्वादिष्ट ।  
 
चावल अथवा बेसन के आटे को पानी में घोलकर उसमें नमक, हलदी, मिर्ची इत्यादि मसाले मिलाकर अच्छी तरह से फेंटा जाता है। बाद में तवे पर तेल छोडकर उस पर चम्मच से आटे का तैयार घोल डालकर रोटी की तरह फैलाया जाता है। उसके किनारे पर थोडा थोडा तेल छोडकर उसे मध्यम आँच पर पकाया जाता है। एक दो मिनिट में एक ओर से पक जाने पर उसे दूसरी ओर से भी सेंका जाता है। यह पदार्थ मीठा अचार, खट्टी-मीठी चटनी के साथ बहुत स्वादिष्ट लगता है। ख़ाने में कुछ वायुकारक मध्यम प्रमाण में पोषक, बनाने में अत्यंत सरल, शीघ्र और खाने में अति स्वादिष्ट ।  
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===== ७. मालपुआ =====
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==== मालपुआ ====
 
गेहूं के आटे को पानी में भिगोकर घोल तैयार किया जाता है। उसमें गुड मिलाया जाता है। बादमें चीले की तरह ही पकाया जाता है। इसमें तेलके स्थान पर घी का उपयोग होता है।
 
गेहूं के आटे को पानी में भिगोकर घोल तैयार किया जाता है। उसमें गुड मिलाया जाता है। बादमें चीले की तरह ही पकाया जाता है। इसमें तेलके स्थान पर घी का उपयोग होता है।
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घर में भी अनेक लोगों को पसंद होने पर भी चीले जितना यह पदार्थ प्रसिद्ध एवं प्रचलित नहीं है।
 
घर में भी अनेक लोगों को पसंद होने पर भी चीले जितना यह पदार्थ प्रसिद्ध एवं प्रचलित नहीं है।
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===== ८. पकोड़े =====
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==== पकोड़े ====
 
बेसन के आटे का घोल बनाते हैं। आलू, केला, बेंगन, मिर्ची, प्याज ऐसी कई सब्जियों से पतले टुकडे कर उन्हें घोल में डूबोकर तलने से पकोडे तैयार होते हैं। इसका पोषणमूल्य कम है पर खाने में अतिशय स्वादिष्ट है। बनाने में सरल, अल्पाहार एवं भोजन दोनो में चलते हैं। मेहमानदारी भी की जा सकती है। गृहिणी कुशल है तो सोडा जैसी कोई चीज डाले बिना भी पकोडे खस्ता हो सकते हैं।  
 
बेसन के आटे का घोल बनाते हैं। आलू, केला, बेंगन, मिर्ची, प्याज ऐसी कई सब्जियों से पतले टुकडे कर उन्हें घोल में डूबोकर तलने से पकोडे तैयार होते हैं। इसका पोषणमूल्य कम है पर खाने में अतिशय स्वादिष्ट है। बनाने में सरल, अल्पाहार एवं भोजन दोनो में चलते हैं। मेहमानदारी भी की जा सकती है। गृहिणी कुशल है तो सोडा जैसी कोई चीज डाले बिना भी पकोडे खस्ता हो सकते हैं।  
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===== ९. बड़ा =====
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==== बड़ा ====
 
बेसन का थोडा मोटा आटा लेकर उसमें सब मसालों के साथ लौकी, मेथी अथवा उपलब्धता एवं रुचि के अनुसार अन्य कोई सब्जी मिलाकर पकोडे की तरह तेल में तलने पर बड़े तैयार होते हैं। वह किसी भी प्रकार की चटनी के साथ खाये जाते है।
 
बेसन का थोडा मोटा आटा लेकर उसमें सब मसालों के साथ लौकी, मेथी अथवा उपलब्धता एवं रुचि के अनुसार अन्य कोई सब्जी मिलाकर पकोडे की तरह तेल में तलने पर बड़े तैयार होते हैं। वह किसी भी प्रकार की चटनी के साथ खाये जाते है।
    
पोषणमूल्य कम, कभी कभी अस्वास्थ्यकर, जब चाहे तब और चाहे जितना नहीं खा सकते। स्वाद में लिज्जतदार, अल्पाहारमें ठीक हैं। बनाने में सरल।  
 
पोषणमूल्य कम, कभी कभी अस्वास्थ्यकर, जब चाहे तब और चाहे जितना नहीं खा सकते। स्वाद में लिज्जतदार, अल्पाहारमें ठीक हैं। बनाने में सरल।  
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===== ९. पोहे =====
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==== पोहे ====
 
पोहे पानी में धो कर उसमें से पूरा पानी निकाल कर दो-पाँच मिनिट रहने देते हैं। बादमें उसमें नमक, मिर्च, शक्कर, हल्दी इत्यादि मसाले मिलाकर बघारते हैं। दो तीन मिनिट ढक्कन रख कर पकाते हैं। इतने पर पोहे खाने के लिये तैयार हो जाते हैं।
 
पोहे पानी में धो कर उसमें से पूरा पानी निकाल कर दो-पाँच मिनिट रहने देते हैं। बादमें उसमें नमक, मिर्च, शक्कर, हल्दी इत्यादि मसाले मिलाकर बघारते हैं। दो तीन मिनिट ढक्कन रख कर पकाते हैं। इतने पर पोहे खाने के लिये तैयार हो जाते हैं।
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स्वादिष्ट, पौष्टिक, बनाने में सरल, कभी भी खाये जा सकते हैं, परन्तु गरमागरम ही अच्छे लगते हैं। पाचन में अति भारी नहीं। पेटभर खा सकें ऐसा नाश्ता। महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश में अधिक प्रचलित ।  
 
स्वादिष्ट, पौष्टिक, बनाने में सरल, कभी भी खाये जा सकते हैं, परन्तु गरमागरम ही अच्छे लगते हैं। पाचन में अति भारी नहीं। पेटभर खा सकें ऐसा नाश्ता। महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश में अधिक प्रचलित ।  
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===== १०. मुरमुरे की चटपटी =====
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==== मुरमुरे की चटपटी ====
 
मुरमुरे भीगोकर पूरा पानी निकालकर सब मसाले एवं गाजर, पत्ता गोभी इत्यादि को मिलाकर थोडी देर पकाया हुआ पदार्थ। मनचाहे मसाले डालकर स्वादिष्ट बनाया जाता है।  माध्यम पौष्टिक, बनाने में सरल परन्तु पोहे से कम प्रचलित।  
 
मुरमुरे भीगोकर पूरा पानी निकालकर सब मसाले एवं गाजर, पत्ता गोभी इत्यादि को मिलाकर थोडी देर पकाया हुआ पदार्थ। मनचाहे मसाले डालकर स्वादिष्ट बनाया जाता है।  माध्यम पौष्टिक, बनाने में सरल परन्तु पोहे से कम प्रचलित।  
 
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हुआ पदार्थ । मनचाहे मसाले डालकर स्वादिष्ट बनाया जाता है। मध्यम पौष्टिक, बनाने में सरल परन्तु पोहे से कम
 
हुआ पदार्थ । मनचाहे मसाले डालकर स्वादिष्ट बनाया जाता है। मध्यम पौष्टिक, बनाने में सरल परन्तु पोहे से कम
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===== ११. उपमा =====
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==== उपमा ====
 
सूजी सेंककर पानी बघारकर उसमें आवश्यक मसाले डालकर उबलने के बाद उसमें सेंकी हुइ सूजी डालकर पकाया गया पदार्थ। उसे नमकीन हलवा भी कह सकते हैं। इसमें भी आलू, प्याज, टमाटर, मटर, मूंगफली, तिल, नारियल, नीबू, कढीपत्ता, धनिया, इन सबका रुचि के अनुसार उपयोग किया जाता है। सूजी के स्थान पर गेहूँ का थोडा मोटा आटा, चावल अथवा ज्वार का आटा भी उपयोग में लिया जा सकता है। स्वादिष्ट, पौष्टिक, झटपट तैयार होनेवाला कभी भी खा सकें ऐसा सुलभ, सस्ता और सर्वसामान्य रुप से सबको पसंद ऐसा पदार्थ । इसका प्रचलन महाराष्ट्र और संपूर्ण दक्षिण भारतमें है। उत्तर एवं पूर्व में कम प्रचलित तो कभी कभी अप्रचलित भी।  
 
सूजी सेंककर पानी बघारकर उसमें आवश्यक मसाले डालकर उबलने के बाद उसमें सेंकी हुइ सूजी डालकर पकाया गया पदार्थ। उसे नमकीन हलवा भी कह सकते हैं। इसमें भी आलू, प्याज, टमाटर, मटर, मूंगफली, तिल, नारियल, नीबू, कढीपत्ता, धनिया, इन सबका रुचि के अनुसार उपयोग किया जाता है। सूजी के स्थान पर गेहूँ का थोडा मोटा आटा, चावल अथवा ज्वार का आटा भी उपयोग में लिया जा सकता है। स्वादिष्ट, पौष्टिक, झटपट तैयार होनेवाला कभी भी खा सकें ऐसा सुलभ, सस्ता और सर्वसामान्य रुप से सबको पसंद ऐसा पदार्थ । इसका प्रचलन महाराष्ट्र और संपूर्ण दक्षिण भारतमें है। उत्तर एवं पूर्व में कम प्रचलित तो कभी कभी अप्रचलित भी।  
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===== १२. खीच =====
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==== खीच ====
 
पानी उबालकर उसमें जीरे का चूर्ण, नमक, थोडी हिंग, हरी अथवा लाल मिर्च, हलदी मिलाकर उसमें चावल का आटा मिलाकर अच्छे से हिलाकर भाप से पकाया गया पदार्थ । गरम रहते उसमें तेल डालकर खाया जाता है। ऐसा भापसे पकाया आटा स्वादिष्ट, पौष्टिक, सुलभ और सरल होता है। इसी आटेके पापड अथवा सेवईर्या भी बनाई जाती हैं।  
 
पानी उबालकर उसमें जीरे का चूर्ण, नमक, थोडी हिंग, हरी अथवा लाल मिर्च, हलदी मिलाकर उसमें चावल का आटा मिलाकर अच्छे से हिलाकर भाप से पकाया गया पदार्थ । गरम रहते उसमें तेल डालकर खाया जाता है। ऐसा भापसे पकाया आटा स्वादिष्ट, पौष्टिक, सुलभ और सरल होता है। इसी आटेके पापड अथवा सेवईर्या भी बनाई जाती हैं।  
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===== १३. चीकी =====
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==== चीकी ====
 
मूंगफली, तिल, नारियेल, बदाम, काजू इत्यादि के टूकडे अथवा अलग अलग लेकर एकदम बारीक टुकडे कर शक्कर अथवा गुड की चाशनी बनाकर उसमें ये चीजें डालकर उसके चौकोन टुकडे बनाये जाते हैं। ठण्डा होने पर कडक चीकी तैयार हो जाती है।
 
मूंगफली, तिल, नारियेल, बदाम, काजू इत्यादि के टूकडे अथवा अलग अलग लेकर एकदम बारीक टुकडे कर शक्कर अथवा गुड की चाशनी बनाकर उसमें ये चीजें डालकर उसके चौकोन टुकडे बनाये जाते हैं। ठण्डा होने पर कडक चीकी तैयार हो जाती है।
    
खाने में स्वादिष्ट, पचने में भारी, कफकारक, अतिशय ठण्ड में ही खाने योग्य, बनाने में सरल पदार्थ ।
 
खाने में स्वादिष्ट, पचने में भारी, कफकारक, अतिशय ठण्ड में ही खाने योग्य, बनाने में सरल पदार्थ ।
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===== १४. पूरी, थेपला इत्यादि =====
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==== पूरी, थेपला इत्यादि ====
 
गेहूं का आटा मोन लगाकर, आवश्यक मसाला डालकर, आवश्यकता के अनुसार पानी से गूंदकर बेलकर के बनाया जाता हैं। पूरी अथवा थेपला, जो बनाना है उसके अनुसार उसका आकार छोटा या बडा, पतला या मोटा हो सकता है। ऐसा बेलने के बाद पूरी बनानी है तो कडाईमे तेल लेकर तलना होता है। और थेपला बनाना है तो तवे पर तेल डालकर सेंकना होता है। खट्टे अथवा मीठे अचार के साथ, दूध अथवा चाय के साथ अथवा सब्जी के साथ भी खा सकते हैं।
 
गेहूं का आटा मोन लगाकर, आवश्यक मसाला डालकर, आवश्यकता के अनुसार पानी से गूंदकर बेलकर के बनाया जाता हैं। पूरी अथवा थेपला, जो बनाना है उसके अनुसार उसका आकार छोटा या बडा, पतला या मोटा हो सकता है। ऐसा बेलने के बाद पूरी बनानी है तो कडाईमे तेल लेकर तलना होता है। और थेपला बनाना है तो तवे पर तेल डालकर सेंकना होता है। खट्टे अथवा मीठे अचार के साथ, दूध अथवा चाय के साथ अथवा सब्जी के साथ भी खा सकते हैं।
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गुजरात से लेकर समग्र उत्तर भारत में रोटी अथवा पराठा के विविध रुपों में यह पदार्थ प्रचलित है, परिचित है, और प्रतिष्ठित भी है।  
 
गुजरात से लेकर समग्र उत्तर भारत में रोटी अथवा पराठा के विविध रुपों में यह पदार्थ प्रचलित है, परिचित है, और प्रतिष्ठित भी है।  
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===== १५. खमण =====
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==== खमण ====
 
चने के आटे को पानी में भीगोकर, घोल बनाकर उसमें सोडाबायकार्ब और नीबू का रस समप्रमाण में डालकर फेंटकर जब वह फूला हुआ है तभी एक थाली में तेल लगाकर उसमें डाला जाता है। बाद में उसे भाप देकर पकाया जाता है। पक जाने के बाद चाकू से उसके समचौकोन टुकडे काट कर उस पर लाल अथवा हरीमिर्च, हिंग, तिल, राई इत्यादि डाल कर छोंक डाला जाता है।
 
चने के आटे को पानी में भीगोकर, घोल बनाकर उसमें सोडाबायकार्ब और नीबू का रस समप्रमाण में डालकर फेंटकर जब वह फूला हुआ है तभी एक थाली में तेल लगाकर उसमें डाला जाता है। बाद में उसे भाप देकर पकाया जाता है। पक जाने के बाद चाकू से उसके समचौकोन टुकडे काट कर उस पर लाल अथवा हरीमिर्च, हिंग, तिल, राई इत्यादि डाल कर छोंक डाला जाता है।
    
खमण शीघ्र बनता है, खाने में स्वादिष्ट है परन्तु पौष्टिकता निम्नकक्षा की है। खाने में अतिशय संयम बरतना पडता है।  
 
खमण शीघ्र बनता है, खाने में स्वादिष्ट है परन्तु पौष्टिकता निम्नकक्षा की है। खाने में अतिशय संयम बरतना पडता है।  
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===== १६. थालीपीठ =====
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==== थालीपीठ ====
 
बाजरी, चावल, गेहूं, चने की दाल, ज्वारी, धनियाजीरा इत्यादि सब पदार्थ आवश्यक अनुपात में अलग अलग सेंककर ठण्डा होने के बाद एकत्र कर चक्की में पिसना होता है। उस आटे को 'भाजनी' कहे है। गरम पानी में नरम सा आटा गूंदकर गरम तवे पर तेल लगाकर उसपर यह आटेका गोला रखकर हाथसे थपथपाकर रोटी जैसा बनाया जाता है । आटे में स्वाद के लिये आवश्यकता के अनुसार मसाले डाले जाते हैं। लौकी, मेथी अथवा प्याज भी डाल सकते हैं।
 
बाजरी, चावल, गेहूं, चने की दाल, ज्वारी, धनियाजीरा इत्यादि सब पदार्थ आवश्यक अनुपात में अलग अलग सेंककर ठण्डा होने के बाद एकत्र कर चक्की में पिसना होता है। उस आटे को 'भाजनी' कहे है। गरम पानी में नरम सा आटा गूंदकर गरम तवे पर तेल लगाकर उसपर यह आटेका गोला रखकर हाथसे थपथपाकर रोटी जैसा बनाया जाता है । आटे में स्वाद के लिये आवश्यकता के अनुसार मसाले डाले जाते हैं। लौकी, मेथी अथवा प्याज भी डाल सकते हैं।
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यहाँ तो केवल नमूने के लिये पदार्थ बताये गये हैं। भारत के प्रत्येक प्रान्त में एसे अनेकविध पदार्थ बनते हैं। थोडा अवलोकन करने पर ज्ञात होगा कि झटपट बनने वाले सस्ते, सुलभ, स्वादिष्ट और पौष्टिक एसे विविध पदार्थों बनाने में भारत की गृहणी कुशल है। आधुनिक युग ही इन्सटन्ट फूड का है ऐसा नहीं है, प्राचीन समय से यह प्रथा चली आ रही है।
 
यहाँ तो केवल नमूने के लिये पदार्थ बताये गये हैं। भारत के प्रत्येक प्रान्त में एसे अनेकविध पदार्थ बनते हैं। थोडा अवलोकन करने पर ज्ञात होगा कि झटपट बनने वाले सस्ते, सुलभ, स्वादिष्ट और पौष्टिक एसे विविध पदार्थों बनाने में भारत की गृहणी कुशल है। आधुनिक युग ही इन्सटन्ट फूड का है ऐसा नहीं है, प्राचीन समय से यह प्रथा चली आ रही है।
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==== २. प्रचलित जंकफूड ====
+
==== प्रचलित जंकफूड ====
 
जंकफूड से तात्पर्य है ऐसे पदार्थ जो स्वाद में तो बहुत चटाकेदार लगते हैं परन्तु जिनका पोषणमूल्य बहुत कम होता है। साथ ही ये बासी पदार्थ होते हैं। मुख्य भोजन में से बचे हुए पदार्थों से पुनःप्रक्रिया करने के बाद तैयार किये जाते हैं।
 
जंकफूड से तात्पर्य है ऐसे पदार्थ जो स्वाद में तो बहुत चटाकेदार लगते हैं परन्तु जिनका पोषणमूल्य बहुत कम होता है। साथ ही ये बासी पदार्थ होते हैं। मुख्य भोजन में से बचे हुए पदार्थों से पुनःप्रक्रिया करने के बाद तैयार किये जाते हैं।
    
इस दृष्टि से भारत में प्रचलित रुप से बनने वाले जंकफूड कुछ इस प्रकार हैं।  
 
इस दृष्टि से भारत में प्रचलित रुप से बनने वाले जंकफूड कुछ इस प्रकार हैं।  
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===== १. रोटीचूरा =====
+
===== रोटीचूरा =====
 
रात के भोजन से बची हुई रोटी को मसलकर उसका या तो चूर्ण बनाया जाता है, या छोटे छोटे टुकडे। उसमें नमक, मिर्च आदि मनपसन्द मसाला डालकर छौंककर गरम किया जाता है। उसे रोटी का उपमा कह सकते हैं। उसी प्रकार छाछ छौंक कर उसमें रोटी के थोडे बडे टुकडे डाले जाते हैं और रुचि के अनुसार मसाले डाले जाते है।  
 
रात के भोजन से बची हुई रोटी को मसलकर उसका या तो चूर्ण बनाया जाता है, या छोटे छोटे टुकडे। उसमें नमक, मिर्च आदि मनपसन्द मसाला डालकर छौंककर गरम किया जाता है। उसे रोटी का उपमा कह सकते हैं। उसी प्रकार छाछ छौंक कर उसमें रोटी के थोडे बडे टुकडे डाले जाते हैं और रुचि के अनुसार मसाले डाले जाते है।  
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===== २. रोटी का लड्ड =====
+
===== रोटी का लड्ड =====
 
बची हुई रोटी को मसलकर उसका बारीक चूर्ण बनाकर उसमे घी और गुड मिलाकर, गरम कर अथवा बिना गरम किये लड्डु बनाये जाते हैं।  
 
बची हुई रोटी को मसलकर उसका बारीक चूर्ण बनाकर उसमे घी और गुड मिलाकर, गरम कर अथवा बिना गरम किये लड्डु बनाये जाते हैं।  
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===== ३. खिचडी के पराठे, पकौडे =====
+
===== खिचडी के पराठे, पकौडे =====
 
बची हुई खिचडी में गेहूं का आटा मिलाकर, अच्छी तरह गँधकर उसके पराठे बनाये जाते हैं। उसमें बेसन मिलाकर पकौडे तले जाते हैं या गेहूँ चने आदि दो तीन प्रकार का आटा मिलाकर उसके छोटे छोटे गोले बनाकर, उन्हे भाँप पर पकाकर फिर छौंक कर बडे या बडियाँ बनाई जाती हैं। खिचडी में इसी प्रकार से आटा मिलाकर, उसे गूंधकर खाखरा या सूखी रोटी बनाई जाती है।  
 
बची हुई खिचडी में गेहूं का आटा मिलाकर, अच्छी तरह गँधकर उसके पराठे बनाये जाते हैं। उसमें बेसन मिलाकर पकौडे तले जाते हैं या गेहूँ चने आदि दो तीन प्रकार का आटा मिलाकर उसके छोटे छोटे गोले बनाकर, उन्हे भाँप पर पकाकर फिर छौंक कर बडे या बडियाँ बनाई जाती हैं। खिचडी में इसी प्रकार से आटा मिलाकर, उसे गूंधकर खाखरा या सूखी रोटी बनाई जाती है।  
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===== ४. दालभात मिक्स =====
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===== दालभात मिक्स =====
 
बचे हुए चावल और दाल अच्छी तरह मिलाकर छौंककर गरम किया जाता है।
 
बचे हुए चावल और दाल अच्छी तरह मिलाकर छौंककर गरम किया जाता है।
    
इसी प्रकार चावल या खिचडी भी मसाला डालकर छौंकी जाती है।  
 
इसी प्रकार चावल या खिचडी भी मसाला डालकर छौंकी जाती है।  
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===== ५. दाल पापडी =====
+
===== दाल पापडी =====
 
बची हुई दाल को छौंककर उसे पानी डालकर पतली बनाकर उसमें मसालेदार आटे की रोटी बेलकर उसके छोटे छोटे टुकडे डालकर उबाले जाते हैं और उस पर छौंक लगाई जाती है।
 
बची हुई दाल को छौंककर उसे पानी डालकर पतली बनाकर उसमें मसालेदार आटे की रोटी बेलकर उसके छोटे छोटे टुकडे डालकर उबाले जाते हैं और उस पर छौंक लगाई जाती है।
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===== ६. कटलेस =====
+
===== कटलेस =====
 
बचे हुए दाल, चावल, सब्जी, चूरा बनाई हुई रोटी आदि को मिलाकर, मसलकर उसमें आवश्यकता के अनुसार सूजी या मोटा आटा मिलाकर छोटी छोटी कटलेस सेंकी या तली जाती हैं।  
 
बचे हुए दाल, चावल, सब्जी, चूरा बनाई हुई रोटी आदि को मिलाकर, मसलकर उसमें आवश्यकता के अनुसार सूजी या मोटा आटा मिलाकर छोटी छोटी कटलेस सेंकी या तली जाती हैं।  
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===== ७. भेल =====
+
===== भेल =====
 
दीपावली, जन्माष्टमी, आदि त्योहारों पर जब विविध प्रकार के व्यंजन थोडे थोडे बचे हुए होते हैं तब सबको मिलाकर खट्टी मीठी चटनी के साथ खाया जाता है।  
 
दीपावली, जन्माष्टमी, आदि त्योहारों पर जब विविध प्रकार के व्यंजन थोडे थोडे बचे हुए होते हैं तब सबको मिलाकर खट्टी मीठी चटनी के साथ खाया जाता है।  
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===== ८. सखडी =====
+
===== सखडी =====
 
जितने भी पदार्थ भोजन में बने हैं उन सबको अच्छी तरह मिलाकर नमक मिर्च तेल डालकर खाया जाता है।  
 
जितने भी पदार्थ भोजन में बने हैं उन सबको अच्छी तरह मिलाकर नमक मिर्च तेल डालकर खाया जाता है।  
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===== ९. रात की बची हुई रोटी =====
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===== रात की बची हुई रोटी =====
बासी रोटी और दही बहुत लोगों को बहुत अच्छा लगता है। इसलिये सुबह खाने के लिये रात्रि में बनाकर बासी बनाकर खाई जाती है।
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बासी रोटी और दही बहुत लोगों को बहुत अच्छा लगता है। इसलिये सुबह खाने के लिये रात्रि में बनाकर बासी बनाकर खाई जाती है।ये सारे जंकफूड के नमूने हैं क्यों कि ये बासी और बचे हुए पदार्थों से ही बनते हैं। आयुर्वेद इन्हें खाने के लिये स्पष्ट मना करता है क्यों कि स्वास्थ्यकारक आहार की परिभाषा में इसका स्थान नहीं है।
 
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ये सारे जंकफूड के नमूने हैं क्यों कि ये बासी और बचे हुए पदार्थों से ही बनते हैं। आयुर्वेद इन्हें खाने के लिये स्पष्ट मना करता है क्यों कि स्वास्थ्यकारक आहार की परिभाषा में इसका स्थान नहीं है।
      
फिर भी प्रत्येक घर में ये प्रतिष्ठा प्राप्त हैं। इसका एक कारण यह है कि खाने वाले को ये अत्यन्त रुचिकर लगते हैं। इस प्रकार से ही उसका रुपान्तरण होता है। दूसरा कारण यह है कि बचे हुए पदार्थो को फैंकना गृहिणी को अच्छा नहीं लगता है। आर्थिक रुप से भी वह परवडता नहीं है। अतः बचे हुए अन्न का उपयोग करने में गृहिणी अपना कौशल दिखाती है।
 
फिर भी प्रत्येक घर में ये प्रतिष्ठा प्राप्त हैं। इसका एक कारण यह है कि खाने वाले को ये अत्यन्त रुचिकर लगते हैं। इस प्रकार से ही उसका रुपान्तरण होता है। दूसरा कारण यह है कि बचे हुए पदार्थो को फैंकना गृहिणी को अच्छा नहीं लगता है। आर्थिक रुप से भी वह परवडता नहीं है। अतः बचे हुए अन्न का उपयोग करने में गृहिणी अपना कौशल दिखाती है।
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सम्पूर्ण भारत में घर घर में जंकफूड का प्रचलन है। भारत की गृहिणियाँ भाँति भाँति के जंक व्यंजन बनाने में माहिर होती हैं। घर के सदस्य भी उन्हे चाव से खाते हैं।
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सम्पूर्ण भारत में घर घर में जंकफूड का प्रचलन है। भारत की गृहिणियाँ भाँति भाँति के जंक व्यंजन बनाने में माहिर होती हैं। घर के सदस्य भी उन्हे चाव से खाते हैं। परन्तु ये पदार्थ बासी हैं और अनारोग्यकर हैं यह बात हमेशा ध्यान में रखना आवश्यक है।
 
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परन्तु ये पदार्थ बासी हैं और अनारोग्यकर हैं यह बात हमेशा ध्यान में रखना आवश्यक है।
      
=== अन्न विचार ===
 
=== अन्न विचार ===
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[[File:Image 20 .png|none|thumb|1008x1008px]]
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=== विद्यालय में पानी की व्यवस्था ===
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== विद्यालय में पानी की व्यवस्था ==
 
# विद्यालय में पानी की व्यवस्था क्यों होनी चाहिये ?  
 
# विद्यालय में पानी की व्यवस्था क्यों होनी चाहिये ?  
 
# पानी की व्यवस्था में सुविधा की दृष्टि से क्या क्या उपाय करने चाहिये ?  
 
# पानी की व्यवस्था में सुविधा की दृष्टि से क्या क्या उपाय करने चाहिये ?  
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# पानी का आर्थिक पक्ष क्या है ?
 
# पानी का आर्थिक पक्ष क्या है ?
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==== '''प्रश्नावली से पाप्त उत्तर''' ====
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=== '''प्रश्नावली से पाप्त उत्तर''' ===
 
इस प्रश्नावली में कुल १० प्रश्न थे। ८ शिक्षक, २ प्रधानाचार्य और २४ अभिभावकों ने इन प्रश्नों से सम्बन्धित अपने मत व्यक्त किये हैं।  
 
इस प्रश्नावली में कुल १० प्रश्न थे। ८ शिक्षक, २ प्रधानाचार्य और २४ अभिभावकों ने इन प्रश्नों से सम्बन्धित अपने मत व्यक्त किये हैं।  
 
# पाँच घण्टे की विद्यालय अवधि में पीने के पानी की व्यवस्था होनी ही चाहिए । छात्रों को भोजनोपरान्त पीने का पानी चाहिए । इसलिए विद्यालय में पीने के पानी की व्यवस्था होना अनिवार्य है । यह मत सबका था ।  
 
# पाँच घण्टे की विद्यालय अवधि में पीने के पानी की व्यवस्था होनी ही चाहिए । छात्रों को भोजनोपरान्त पीने का पानी चाहिए । इसलिए विद्यालय में पीने के पानी की व्यवस्था होना अनिवार्य है । यह मत सबका था ।  
Line 333: Line 329:  
# पानी का अपव्यय रोकने के लिए, जितना चाहिए उतना ही पानी लेना । यह संस्कार दृढ़ करना चाहिए । जो पानी बह गया वह पौधों व वृक्षों में ही जाना चाहिए । आदि सुझाव बताये ।  
 
# पानी का अपव्यय रोकने के लिए, जितना चाहिए उतना ही पानी लेना । यह संस्कार दृढ़ करना चाहिए । जो पानी बह गया वह पौधों व वृक्षों में ही जाना चाहिए । आदि सुझाव बताये ।  
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==== अभिमत : ====
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==== अभिमत ====
 
अन्य प्रश्नावलियों से प्राप्त उत्तरों की तुलना में इस विद्यालय से प्राप्त उत्तर सही एवं भारतीय दृष्टि की पहचान बताने वाले थे । इसका कारण यह था कि इस विद्यालय में समग्र विकास अभ्यासक्रमानुसार शिक्षण होता है । जब शिक्षा से सही दृष्टि मिलती है तो व्यवहार भी तद्नुसार सही ही होता है। दसरी महत्त्वपूर्ण बात यह कि इस प्रश्नावली में अभिभावकों की सहभागिता अधिक रही। उनमें से कुछ अभिभावक कम पढे लिखे भी थे. फिर भी अनेक उत्तर एकदम सटीक थे । यह आश्चर्य की बात थी । अल्पशिक्षित व्यक्ति भी अच्छा व्यवहार कर सकता है बात को उन्होंने सत्यसिद्ध किया।
 
अन्य प्रश्नावलियों से प्राप्त उत्तरों की तुलना में इस विद्यालय से प्राप्त उत्तर सही एवं भारतीय दृष्टि की पहचान बताने वाले थे । इसका कारण यह था कि इस विद्यालय में समग्र विकास अभ्यासक्रमानुसार शिक्षण होता है । जब शिक्षा से सही दृष्टि मिलती है तो व्यवहार भी तद्नुसार सही ही होता है। दसरी महत्त्वपूर्ण बात यह कि इस प्रश्नावली में अभिभावकों की सहभागिता अधिक रही। उनमें से कुछ अभिभावक कम पढे लिखे भी थे. फिर भी अनेक उत्तर एकदम सटीक थे । यह आश्चर्य की बात थी । अल्पशिक्षित व्यक्ति भी अच्छा व्यवहार कर सकता है बात को उन्होंने सत्यसिद्ध किया।
   Line 372: Line 368:  
९. पानी के सम्यक उपयोग का ज्ञान भी देने की आवश्यकता है। पानी निकासी की व्यवस्था भी गम्भीरतापूर्वक करनी चाहिये । इसकी चर्चा भी स्वतन्त्र रूप से अन्यत्र की गई है।
 
९. पानी के सम्यक उपयोग का ज्ञान भी देने की आवश्यकता है। पानी निकासी की व्यवस्था भी गम्भीरतापूर्वक करनी चाहिये । इसकी चर्चा भी स्वतन्त्र रूप से अन्यत्र की गई है।
   −
=== पानी के विषय में शिक्षा ===
+
== पानी के विषय में शिक्षा ==
 
विद्यालय में केवल पानी की व्यवस्था करना ही पर्याप्त नहीं है, पानी के प्रयोग की शिक्षा देना भी अत्यन्त आवश्यक है। छोटी आयु से ही पानी के विषय में शिक्षा नहीं देने का परिणाम इतना भीषण हो रहा है कि लोग अब कह रहे हैं कि तीसरा विश्वयुद्ध पानी को लेकर होगा । इसका अर्थ यह है कि वैश्विक स्तर पर पानी का संकट बढ गया है। इस वैश्विक संकट को विद्यालयीन शिक्षा के साथ जोडकर समस्या के हल का विचार करना चाहिये ।
 
विद्यालय में केवल पानी की व्यवस्था करना ही पर्याप्त नहीं है, पानी के प्रयोग की शिक्षा देना भी अत्यन्त आवश्यक है। छोटी आयु से ही पानी के विषय में शिक्षा नहीं देने का परिणाम इतना भीषण हो रहा है कि लोग अब कह रहे हैं कि तीसरा विश्वयुद्ध पानी को लेकर होगा । इसका अर्थ यह है कि वैश्विक स्तर पर पानी का संकट बढ गया है। इस वैश्विक संकट को विद्यालयीन शिक्षा के साथ जोडकर समस्या के हल का विचार करना चाहिये ।
   −
==== शिक्षा योजना के बिन्दु ====
+
=== शिक्षा योजना के बिन्दु ===
 
पानी के सम्बन्ध में शिक्षा की योजना करते समय इन बिन्दुओं को ध्यान में लेना आवश्यक है ।  
 
पानी के सम्बन्ध में शिक्षा की योजना करते समय इन बिन्दुओं को ध्यान में लेना आवश्यक है ।  
   Line 392: Line 388:  
७. सभी विषयों की शिक्षा की तरह पानी विषयक शिक्षा भी ज्ञान, भावना और क्रिया के रूप में देनी चाहिये । स्वाभाविक रूप से ही प्रथम क्रियात्मक, दूसरे क्रम में भावात्मक और बाद में ज्ञानात्मक शिक्षा देनी चाहिये ।
 
७. सभी विषयों की शिक्षा की तरह पानी विषयक शिक्षा भी ज्ञान, भावना और क्रिया के रूप में देनी चाहिये । स्वाभाविक रूप से ही प्रथम क्रियात्मक, दूसरे क्रम में भावात्मक और बाद में ज्ञानात्मक शिक्षा देनी चाहिये ।
   −
==== पानी के सम्बन्ध में क्रियात्मक शिक्षा ====
+
=== पानी के सम्बन्ध में क्रियात्मक शिक्षा ===
 
१. पानी को हमेशा शुद्ध रखे, अशुद्ध न करें, शुद्ध पानी ही पियें ।  
 
१. पानी को हमेशा शुद्ध रखे, अशुद्ध न करें, शुद्ध पानी ही पियें ।  
   Line 444: Line 440:  
# पानी की निकासी के विषय में इतनी सावधानी रखनी चाहिये कि एक बंद भी बर्बाद न हो।
 
# पानी की निकासी के विषय में इतनी सावधानी रखनी चाहिये कि एक बंद भी बर्बाद न हो।
   −
==== पानी को शुद्ध करने के प्राकृतिक उपाय ====
+
== पानी को शुद्ध करने के प्राकृतिक उपाय ==
 
# मोटे खादी के कपडे से पानी को छानना चाहिये । यह कपडा और पानी भरने का पात्र स्वच्छ ही हो यह पहले ही सुनिश्चित करना चाहिये ।  
 
# मोटे खादी के कपडे से पानी को छानना चाहिये । यह कपडा और पानी भरने का पात्र स्वच्छ ही हो यह पहले ही सुनिश्चित करना चाहिये ।  
 
# पानी में यदि अशुद्धि धुलमिल गई हो तो उसमें फिटकरी घुमाना चाहिये । उससे अशुद्धि नीचे बैठ जाती है। उसके बाद पानी को छानना चाहिये ।  
 
# पानी में यदि अशुद्धि धुलमिल गई हो तो उसमें फिटकरी घुमाना चाहिये । उससे अशुद्धि नीचे बैठ जाती है। उसके बाद पानी को छानना चाहिये ।  
Line 457: Line 453:  
# सार्वजनिक स्थानों पर जो पानी होता है उसे भी अशुद्ध होने से बचाना चाहिये ।
 
# सार्वजनिक स्थानों पर जो पानी होता है उसे भी अशुद्ध होने से बचाना चाहिये ।
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==== पानी को लेकर अनुचित आदतें इस प्रकार हैं । ====
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=== पानी को लेकर अनुचित आदतें इस प्रकार हैं । ===
 
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उन्हें दूर करने की आवश्यकता है ।
==== उन्हें दूर करने की आवश्यकता है । ====
   
# खडे खडे पानी पीना । यह आदत सार्वत्रिक दिखाई देती है। यह स्वास्थ्य के लिये जरा भी उचित नहीं है। पानी पीने वाले ने इस आदत का त्याग करना चाहिये और पानी पिलाने वाले पीने वाले बैठकर पी सकें ऐसी व्यवस्था करनी चाहिये ।
 
# खडे खडे पानी पीना । यह आदत सार्वत्रिक दिखाई देती है। यह स्वास्थ्य के लिये जरा भी उचित नहीं है। पानी पीने वाले ने इस आदत का त्याग करना चाहिये और पानी पिलाने वाले पीने वाले बैठकर पी सकें ऐसी व्यवस्था करनी चाहिये ।
 
# कूलर और फ्रीज का पानी पीना । यह प्राकृतिक सीमा से अधिक ठण्डा पानी स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। यह अज्ञान इतना बढ़ गया है कि अब रेलवे स्थानक जैसी जगहों पर भी कूलर का ठण्डा पानी मिलता है । कूलर और फ्रीज पर्यावरण के लिये तो घातक हैं ही।
 
# कूलर और फ्रीज का पानी पीना । यह प्राकृतिक सीमा से अधिक ठण्डा पानी स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। यह अज्ञान इतना बढ़ गया है कि अब रेलवे स्थानक जैसी जगहों पर भी कूलर का ठण्डा पानी मिलता है । कूलर और फ्रीज पर्यावरण के लिये तो घातक हैं ही।

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