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| सात्विक स्वभाव के मनुष्यों को जो प्रिय है वह सात्विक आहार है ऐसा श्रीमद भगवदगीता <ref name=":0">श्रीमद भगवदगीता श्लोक 17.8 </ref><ref name=":0" />में कहा है । ऐसे आहार का वर्णन इस प्रकार किया गया है: <blockquote>आयुःसत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः।</blockquote><blockquote>रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः सात्त्विकप्रियाः।।17.8।।</blockquote><blockquote>अर्थात् आयु, सत्त्व (शुद्धि), बल, आरोग्य, सुख और प्रीति को प्रवृद्ध करने वाले एवं रसयुक्त, स्निग्ध ( घी आदि की चिकनाई से युक्त) स्थिर तथा मन को प्रसन्न करने वाले आहार अर्थात् भोज्य पदार्थ सात्त्विक पुरुषों को प्रिय होते हैं।।<ref name=":1"><nowiki>https://www.gitasupersite.iitk.ac.in/srimad?language=dv&field_chapter_value=17&field_nsutra_value=8&htrskd=1&httyn=1&htshg=1&scsh=1&etsiva=1&etpurohit=1</nowiki> (स्वामी तेजोमायानंद द्वारा हिन्दी अनुवाद) </ref><ref name=":1" /></blockquote> | | सात्विक स्वभाव के मनुष्यों को जो प्रिय है वह सात्विक आहार है ऐसा श्रीमद भगवदगीता <ref name=":0">श्रीमद भगवदगीता श्लोक 17.8 </ref><ref name=":0" />में कहा है । ऐसे आहार का वर्णन इस प्रकार किया गया है: <blockquote>आयुःसत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः।</blockquote><blockquote>रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः सात्त्विकप्रियाः।।17.8।।</blockquote><blockquote>अर्थात् आयु, सत्त्व (शुद्धि), बल, आरोग्य, सुख और प्रीति को प्रवृद्ध करने वाले एवं रसयुक्त, स्निग्ध ( घी आदि की चिकनाई से युक्त) स्थिर तथा मन को प्रसन्न करने वाले आहार अर्थात् भोज्य पदार्थ सात्त्विक पुरुषों को प्रिय होते हैं।।<ref name=":1"><nowiki>https://www.gitasupersite.iitk.ac.in/srimad?language=dv&field_chapter_value=17&field_nsutra_value=8&htrskd=1&httyn=1&htshg=1&scsh=1&etsiva=1&etpurohit=1</nowiki> (स्वामी तेजोमायानंद द्वारा हिन्दी अनुवाद) </ref><ref name=":1" /></blockquote> |
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− | ===== स्निग्ध आहार किसे कहते हैं ? सात्त्विक आहार क्या-क्या बढ़ाता है ? =====
| + | ==== स्निग्ध आहार किसे कहते हैं ? सात्त्विक आहार क्या-क्या बढ़ाता है ? ==== |
| * आयुष्य बढाने वाला | | * आयुष्य बढाने वाला |
| * सत्व में वृद्धि करने वाला | | * सत्व में वृद्धि करने वाला |
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| * प्रसन्नता बढाने वाला होता है । | | * प्रसन्नता बढाने वाला होता है । |
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− | ===== सात्त्विक आहार के गुण क्या-क्या हैं =====
| + | ==== सात्त्विक आहार के गुण क्या-क्या हैं ==== |
| * रस्य अर्थात् रसपूर्ण | | * रस्य अर्थात् रसपूर्ण |
| * स्निग्ध अर्थात् चिकनाई वाला | | * स्निग्ध अर्थात् चिकनाई वाला |
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| सात्त्विक आहार के ये गुण अद्भुत हैं। इनमें पौष्टिकता का भी समावेश हो जाता है। | | सात्त्विक आहार के ये गुण अद्भुत हैं। इनमें पौष्टिकता का भी समावेश हो जाता है। |
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− | ===== रस्य आहार का क्या अर्थ है ? =====
| + | ==== रस्य आहार का क्या अर्थ है ? ==== |
| सामान्य रूप से जिसमें तरलता की मात्रा अधिक है ऐसे पदार्थ को रसपूर्ण अथवा रस्य कहने की पद्धति बन गई है । इस अर्थ में पानी, दूध, खीर, दाल आदि रस्य आहार कहे जायेंगे । परन्तु यह बहुत सीमित अर्थ है । | | सामान्य रूप से जिसमें तरलता की मात्रा अधिक है ऐसे पदार्थ को रसपूर्ण अथवा रस्य कहने की पद्धति बन गई है । इस अर्थ में पानी, दूध, खीर, दाल आदि रस्य आहार कहे जायेंगे । परन्तु यह बहुत सीमित अर्थ है । |
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| हम जो भी पदार्थ खाते हैं वह पचने पर दो भागों में बँट जाता है । जो शरीर के लिये उपयोगी होता है वही रस बनता है और जो निरुपयोगी होता है वह कचरा अर्थात्म ल है । रस रक्त में मिल जाता है और रक्त में ही परिवर्तित हो जाता है। जिस आहार से रस अधिक बनता है और कचरा कम बचता है वह रस्य आहार है। उदाहरण के लिये आटा जब अच्छी तरह सेंका जाता है और उसका हलुवा बनाया जाता है तब वह रस्य होता है जबकि अच्छी तरह से नहीं पकी दाल उतनी रस्य नहीं होती। रस शरीर के सप्तधातुओं में एक धातु है । आहार से सब से पहले रस बनता है, बाद में रक्त । रस जिससे अधिक बनता है वह रस्य आहार है । सात्त्विक आहार का प्रथम लक्षण उसका रस्य होना है। | | हम जो भी पदार्थ खाते हैं वह पचने पर दो भागों में बँट जाता है । जो शरीर के लिये उपयोगी होता है वही रस बनता है और जो निरुपयोगी होता है वह कचरा अर्थात्म ल है । रस रक्त में मिल जाता है और रक्त में ही परिवर्तित हो जाता है। जिस आहार से रस अधिक बनता है और कचरा कम बचता है वह रस्य आहार है। उदाहरण के लिये आटा जब अच्छी तरह सेंका जाता है और उसका हलुवा बनाया जाता है तब वह रस्य होता है जबकि अच्छी तरह से नहीं पकी दाल उतनी रस्य नहीं होती। रस शरीर के सप्तधातुओं में एक धातु है । आहार से सब से पहले रस बनता है, बाद में रक्त । रस जिससे अधिक बनता है वह रस्य आहार है । सात्त्विक आहार का प्रथम लक्षण उसका रस्य होना है। |
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− | ===== स्निग्ध आहार किसे कहते हैं ? =====
| + | ==== स्निग्ध आहार किसे कहते हैं ? ==== |
| मोटे तौर पर जिसमें चिकनाई अधिक है उसे स्निग्ध आहार कहते हैं। घी, तेल, मक्खन, दूध, तेल जिससे निकलता है ऐसे तिल, नारियेल, बादाम आदि स्निग्ध माने जाते हैं । स्निग्धता से शरीर के जोड, स्नायु, त्वचा आदि में नरमाई बनी रहती है। त्वचा मुलायम बनती है। | | मोटे तौर पर जिसमें चिकनाई अधिक है उसे स्निग्ध आहार कहते हैं। घी, तेल, मक्खन, दूध, तेल जिससे निकलता है ऐसे तिल, नारियेल, बादाम आदि स्निग्ध माने जाते हैं । स्निग्धता से शरीर के जोड, स्नायु, त्वचा आदि में नरमाई बनी रहती है। त्वचा मुलायम बनती है। |
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| यह बात तो ठीक ही है कि आवश्यकता से अधिक, अनुचित प्रक्रिया के लिये, अनुचित पद्धति से किया गया प्रयोग लाभकारी नहीं होता । परन्तु यह तो सभी अच्छी बातों के लिये समान रूप से लागू है। | | यह बात तो ठीक ही है कि आवश्यकता से अधिक, अनुचित प्रक्रिया के लिये, अनुचित पद्धति से किया गया प्रयोग लाभकारी नहीं होता । परन्तु यह तो सभी अच्छी बातों के लिये समान रूप से लागू है। |
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− | अच्छा आहार भी भूख से अधिक लिया तो लाभ नहीं करता। | + | अच्छा आहार भी भूख से अधिक लिया तो लाभ नहीं करता। नींद आवश्यक है परन्तु आवश्यकता से अधिक नींद लाभकारी नहीं है। व्यायाम अच्छा है परन्तु आवश्यकता से अधिक व्यायाम लाभकारी नहीं है। आटे में तेल का मोयन, छोंक में आवश्यकता है उतना तेल, बेसन के पदार्थों में कुछ अधिक मात्रा में तेल लाभकारी है परन्तु तली हुई पूरी, पकौडी, कचौरी जैसी वस्तुयें लाभकारी नहीं होतीं। अर्थात् घी और तेल का विवेकपूर्ण प्रयोग लाभकारी होता है। अतः विद्यार्थियों को सात्त्विक आहार शरीर, मन, बुद्धि, आदि की शक्ति बढाने के लिये आवश्यक होता है । |
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− | नींद आवश्यक है परन्तु आवश्यकता से अधिक नींद लाभकारी नहीं है।
| + | स्थिर आहार शरीर और मन को स्थिरता देता है, चंचलता कम करता है । शरीर की हलचल को सन्तुलित और लयबद्ध बनाता है, मन को एकाग्र होने में सहायता करता है। हृद्य आहार मन को प्रसन्न रखता है । अच्छे मन से, अच्छी सामग्री से, अच्छी पद्धति से, अच्छे पात्रों में बनाया गया आहार हृद्य होता है। ऐसे आहार से सुख, आयु, बल और प्रेम बढ़ता है । |
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− | व्यायाम अच्छा है परन्तु आवश्यकता से अधिक व्यायाम लाभकारी नहीं है।
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− | आटे में तेल का मोयन, छोंक में आवश्यकता है उतना तेल, बेसन के पदार्थों में कुछ अधिक मात्रा में तेल लाभकारी है परन्तु तली हुई पूरी, पकौडी, कचौरी जैसी वस्तुयें लाभकारी नहीं होतीं ।
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− | अर्थात् घी और तेल का विवेकपूर्ण प्रयोग लाभकारी होता है।
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− | अतः विद्यार्थियों को सात्त्विक आहार शरीर, मन, बुद्धि, आदि की शक्ति बढाने के लिये आवश्यक होता है ।
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− | स्थिर आहार शरीर और मन को स्थिरता देता है, चंचलता कम करता है । शरीर की हलचल को सन्तुलित और लयबद्ध बनाता है, मन को एकाग्र होने में सहायता करता है। | |
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− | हृद्य आहार मन को प्रसन्न रखता है । अच्छे मन से, अच्छी सामग्री से, अच्छी पद्धति से, अच्छे पात्रों में बनाया गया आहार हृद्य होता है। | |
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− | ऐसे आहार से सुख, आयु, बल और प्रेम बढ़ता है । | |
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| यहाँ एक बात स्पष्ट होती है कि सात्त्विक आहार पौष्टिक और शुद्ध दोनो होता है । | | यहाँ एक बात स्पष्ट होती है कि सात्त्विक आहार पौष्टिक और शुद्ध दोनो होता है । |
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− | ==== कब खायें ====
| + | === कब खायें === |
| आहार लेने के बाद उसका पाचन होनी चाहिये । शरीर में पाचनतन्त्र होता है। साथ ही अन्न को पचाकर उसका रस बनाने वाला जठराग्नि होता है । आंतें, आमाशय, अन्ननलिका, दाँत आदि तथा विभिन्न प्रकार के पाचनरस अपने आप अन्न को नहीं पचाते, जठराग्नि ही अन्न को पचाती है। शरीर के अंग पात्र हैं और विभिन्न पाचक रस मानो मसाले हैं । जठराग्नि नहीं है तो पात्र और मसाले क्या काम आयेंगे ? | | आहार लेने के बाद उसका पाचन होनी चाहिये । शरीर में पाचनतन्त्र होता है। साथ ही अन्न को पचाकर उसका रस बनाने वाला जठराग्नि होता है । आंतें, आमाशय, अन्ननलिका, दाँत आदि तथा विभिन्न प्रकार के पाचनरस अपने आप अन्न को नहीं पचाते, जठराग्नि ही अन्न को पचाती है। शरीर के अंग पात्र हैं और विभिन्न पाचक रस मानो मसाले हैं । जठराग्नि नहीं है तो पात्र और मसाले क्या काम आयेंगे ? |
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| इन सभी बातों को समझकर विद्यालय में आहारविषयक व्यवस्था करनी चाहिये । विद्यालय के साथ साथ घर में भी इसी प्रकार से योजना बननी चाहिये । आजकाल मातापिता को भी आहार विषयक अधिक जानकारी नहीं होती है । अतः भोजन के सम्बन्ध में परिवार को भी मार्गदर्शन करने का दायित्व विद्यालय का ही होता है। | | इन सभी बातों को समझकर विद्यालय में आहारविषयक व्यवस्था करनी चाहिये । विद्यालय के साथ साथ घर में भी इसी प्रकार से योजना बननी चाहिये । आजकाल मातापिता को भी आहार विषयक अधिक जानकारी नहीं होती है । अतः भोजन के सम्बन्ध में परिवार को भी मार्गदर्शन करने का दायित्व विद्यालय का ही होता है। |
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− | ==== विद्यालय में भोजन व्यवस्था ====
| + | === विद्यालय में भोजन व्यवस्था === |
| विद्यालय में विद्यार्थी घर से भोजन लेकर आते हैं। इस सम्बन्ध में इतनी बातों की ओर ध्यान देना चाहिये... | | विद्यालय में विद्यार्थी घर से भोजन लेकर आते हैं। इस सम्बन्ध में इतनी बातों की ओर ध्यान देना चाहिये... |
| # प्लास्टीक के डिब्बे में या थैली में खाना और प्लास्टीक की बोतल में पानी का निषेध होना चाहिये । इस सम्बन्ध में आग्रहपूर्वक प्रशिक्षण भी होना चाहिये। इस सम्बन्ध में आग्रहपूर्वक प्रशिक्षण भी होना चाहिये। | | # प्लास्टीक के डिब्बे में या थैली में खाना और प्लास्टीक की बोतल में पानी का निषेध होना चाहिये । इस सम्बन्ध में आग्रहपूर्वक प्रशिक्षण भी होना चाहिये। इस सम्बन्ध में आग्रहपूर्वक प्रशिक्षण भी होना चाहिये। |