Changes

Jump to navigation Jump to search
m
Line 149: Line 149:  
इन सभी समस्याओं का समाधान विद्यालय में विभिन्न स्तरों पर सोचा जाना चाहिये । विद्यालय में भोजन केवल विद्यार्थियों के नास्ते तक सीमित नहीं है, भोजन से सम्बन्धित कार्य, भोजन से सम्बन्धित दृष्टि एवं मानसिकता तथा भोजन विषयक समस्याओं एवं उनके समाधान आदि सभी विषयों का समावेश इसमें होता है।
 
इन सभी समस्याओं का समाधान विद्यालय में विभिन्न स्तरों पर सोचा जाना चाहिये । विद्यालय में भोजन केवल विद्यार्थियों के नास्ते तक सीमित नहीं है, भोजन से सम्बन्धित कार्य, भोजन से सम्बन्धित दृष्टि एवं मानसिकता तथा भोजन विषयक समस्याओं एवं उनके समाधान आदि सभी विषयों का समावेश इसमें होता है।
   −
कहने की आवश्यकता नहीं कि ये सब परीक्षा के _ विषय नहीं है, जीवन के विषय हैं । विद्यार्थियों को शिक्षकों
+
कहने की आवश्यकता नहीं कि ये सब परीक्षा के विषय नहीं है, जीवन के विषय हैं । विद्यार्थियों को शिक्षकों को अभिभावकों को तथा स्वयं शिक्षा को परीक्षा के चंगुल से किंचित् मात्रा में मुक्त करने के माध्यम ये बन सकते हैं।
 
  −
को अभिभावकों को तथा स्वयं शिक्षा को परीक्षा के चंगुल से किंचित् मात्रा में मुक्त करने के माध्यम ये बन सकते हैं।
      
=== इन्स्टण्ट फूड ===
 
=== इन्स्टण्ट फूड ===
Line 168: Line 166:  
आटे को घी में सेंककर उसमें गुड मिलाकर थाली में डालकर सुखडी तैयार हो जाती है। कोई गुड की चाशनी बनाता है, कोई आटा सेंकता है और कोई नहीं भी सेंकता है। यह सुखडी डिब्बे में भरकर कई दिनों तक रखी भी जाती है। यात्रा में साथ ले जा सकते हैं। ताजा, गरमागरम भी खा सकते हैं और आठ दस दिन बाद भी खा सकते हैं। अकाल अथवा तत्सम प्राकृतिक विपदा के समय विपुल मात्रा में बनाकर दूर दूर के प्रदेशों में पहुँचा भी सकते हैं।
 
आटे को घी में सेंककर उसमें गुड मिलाकर थाली में डालकर सुखडी तैयार हो जाती है। कोई गुड की चाशनी बनाता है, कोई आटा सेंकता है और कोई नहीं भी सेंकता है। यह सुखडी डिब्बे में भरकर कई दिनों तक रखी भी जाती है। यात्रा में साथ ले जा सकते हैं। ताजा, गरमागरम भी खा सकते हैं और आठ दस दिन बाद भी खा सकते हैं। अकाल अथवा तत्सम प्राकृतिक विपदा के समय विपुल मात्रा में बनाकर दूर दूर के प्रदेशों में पहुँचा भी सकते हैं।
   −
बनाने में सरल, स्वादमें उत्तम, पचने में सामान्य, अत्यंत पोषक, किसी भी पदार्थ के साथ खा सकते हैं। भोजन में कम परन्तु अल्पहार में अधिक चलने वाली यह सुखड़ी देश के प्रत्येक राज्य तथा प्रदेशों में भिन्न नाम एवं रूप से प्रचलित और आवकार्य है।  
+
बनाने में सरल, स्वाद में उत्तम, पचने में सामान्य, अत्यंत पोषक, किसी भी पदार्थ के साथ खा सकते हैं। भोजन में कम परन्तु अल्पहार में अधिक चलने वाली यह सुखड़ी देश के प्रत्येक राज्य तथा प्रदेशों में भिन्न नाम एवं रूप से प्रचलित और आवकार्य है।  
    
==== कुलेर ====
 
==== कुलेर ====
बाजरे अथवा चावल का आटा सेंककर अथवा बिना सेंके घी और गुड़ के साथ मिलाकर बनाया हुआ लड्डू कुलेर कहा जाता है। सुख़डी की अपेक्षा कम प्रचलित परन्तु कभी भी बनाई और खाई जा सकती है।  
+
बाजरे अथवा चावल का आटा सेंककर अथवा बिना सेंके घी और गुड़ के साथ मिलाकर बनाया हुआ लड्डू कुलेर कहा जाता है। सुख़डी की अपेक्षा कम प्रचलित परन्तु कभी भी बनाई और खाई जा सकती है।  
    
==== बेसन के लड्ड ====
 
==== बेसन के लड्ड ====
 
चने की दाल का आटा अर्थात् बेसन के मोटे आटे को घी में सेंककर उसमें पीसी हुई शक्कर मिलाकर बनाया गया लड्डू अर्थात् बेसन का लड्डू। अत्यंत स्वादिष्ट, पौष्टिक, मात्रा में साथ ले जा सकते हैं, कभी भी खा सकते हैं। वैष्णव एवं स्वामीनारायण पंथ का यह प्रिय प्रसाद है।
 
चने की दाल का आटा अर्थात् बेसन के मोटे आटे को घी में सेंककर उसमें पीसी हुई शक्कर मिलाकर बनाया गया लड्डू अर्थात् बेसन का लड्डू। अत्यंत स्वादिष्ट, पौष्टिक, मात्रा में साथ ले जा सकते हैं, कभी भी खा सकते हैं। वैष्णव एवं स्वामीनारायण पंथ का यह प्रिय प्रसाद है।
   −
कहा जाता है। सुख़डी की अपेक्षा कम प्रचलित परन्तु कभी भी बनाई और खाई जा सकती है। ४. बेसन के लड्ड, चने की दाल का आटा अर्थात् बेसन के मोटे आटे को घी में सेंककर उसमें पीसी हुई शक्कर मिलाकर बनाया गया लड्डू अर्थात् बेसन का लड्डू। अत्यंत स्वादिष्ट, पौष्टिक, मात्रा में साथ ले जा सकते हैं, कभी भी खा सकते हैं। वैष्णव एवं स्वामीनारायण पंथ का यह प्रिय प्रसाद है।
+
कहा जाता है। सुख़डी की अपेक्षा कम प्रचलित परन्तु कभी भी बनाई और खाई जा सकती है। बेसन के लड्ड, चने की दाल का आटा अर्थात् बेसन के मोटे आटे को घी में सेंककर उसमें पीसी हुई शक्कर मिलाकर बनाया गया लड्डू अर्थात् बेसन का लड्डू। अत्यंत स्वादिष्ट, पौष्टिक, मात्रा में साथ ले जा सकते हैं, कभी भी खा सकते हैं। वैष्णव एवं स्वामीनारायण पंथ का यह प्रिय प्रसाद है।
    
==== राब ====
 
==== राब ====
घी में आटा सेंककर उसमें पानी और गुड मिलाकर उसे उबालने पर पीने जैसा जो तरल पदार्थ बनता है वह है राब । हलवा बनाने में प्रयुक्त सभी पदार्थ इसमें होते हैं परन्तु राब पतली होती है। पीने योग्य है।
+
घी में आटा सेंककर उसमें पानी और गुड मिलाकर उसे उबालने पर पीने जैसा जो तरल पदार्थ बनता है वह है राब । हलवा बनाने में प्रयुक्त सभी पदार्थ इसमें होते हैं परन्तु राब पतली होती है। पीने योग्य है। स्वादिष्ट, पाचन में लघु, बीमारी के बाद भी पी सकते हैं, शरीरकी ताकत बनाये रखती है।
 
  −
स्वादिष्ट, पाचन में लघु, बीमारी के बाद भी पी सकते हैं, शरीरकी ताकत बनाये रखती है।
      
कुछ लोग इसमें अजवाईन अथवा सुंठ भी डालते है। पीपरीमूल का चूर्ण मिलाने से यही राब औषधीगुण धारण करती है। कोई बारीक आटे की बनाता है तो कोई मोटे आटे की। कोई गेहूँ के आटे की बनाता है तो कोई बाजरी अथवा चावल के आटे की, जैसी जिसकी रुचि और सुविधा।  
 
कुछ लोग इसमें अजवाईन अथवा सुंठ भी डालते है। पीपरीमूल का चूर्ण मिलाने से यही राब औषधीगुण धारण करती है। कोई बारीक आटे की बनाता है तो कोई मोटे आटे की। कोई गेहूँ के आटे की बनाता है तो कोई बाजरी अथवा चावल के आटे की, जैसी जिसकी रुचि और सुविधा।  
Line 191: Line 187:  
गेहूं के आटे को पानी में भिगोकर घोल तैयार किया जाता है। उसमें गुड मिलाया जाता है। बादमें चीले की तरह ही पकाया जाता है। इसमें तेलके स्थान पर घी का उपयोग होता है।
 
गेहूं के आटे को पानी में भिगोकर घोल तैयार किया जाता है। उसमें गुड मिलाया जाता है। बादमें चीले की तरह ही पकाया जाता है। इसमें तेलके स्थान पर घी का उपयोग होता है।
   −
मालपुआ बनाने में थोडा कौशल्य आवश्यक है। इसकी गणना मिष्टान्न में होती है और साधुओं को अतिप्रिय है। इसे दूधपाक के साथ खाया जाता है।
+
मालपुआ बनाने में थोडा कौशल्य आवश्यक है। इसकी गणना मिष्टान्न में होती है और साधुओं को अतिप्रिय है। इसे दूधपाक के साथ खाया जाता है। घर में भी अनेक लोगों को पसंद होने पर भी चीले जितना यह पदार्थ प्रसिद्ध एवं प्रचलित नहीं है।
 
  −
घर में भी अनेक लोगों को पसंद होने पर भी चीले जितना यह पदार्थ प्रसिद्ध एवं प्रचलित नहीं है।
      
==== पकोड़े ====
 
==== पकोड़े ====
Line 199: Line 193:     
==== बड़ा ====
 
==== बड़ा ====
बेसन का थोडा मोटा आटा लेकर उसमें सब मसालों के साथ लौकी, मेथी अथवा उपलब्धता एवं रुचि के अनुसार अन्य कोई सब्जी मिलाकर पकोडे की तरह तेल में तलने पर बड़े तैयार होते हैं। वह किसी भी प्रकार की चटनी के साथ खाये जाते है।
+
बेसन का थोडा मोटा आटा लेकर उसमें सब मसालों के साथ लौकी, मेथी अथवा उपलब्धता एवं रुचि के अनुसार अन्य कोई सब्जी मिलाकर पकोडे की तरह तेल में तलने पर बड़े तैयार होते हैं। वह किसी भी प्रकार की चटनी के साथ खाये जाते है। पोषणमूल्य कम, कभी कभी अस्वास्थ्यकर, जब चाहे तब और चाहे जितना नहीं खा सकते। स्वाद में लिज्जतदार, अल्पाहारमें ठीक हैं। बनाने में सरल।
 
  −
पोषणमूल्य कम, कभी कभी अस्वास्थ्यकर, जब चाहे तब और चाहे जितना नहीं खा सकते। स्वाद में लिज्जतदार, अल्पाहारमें ठीक हैं। बनाने में सरल।  
      
==== पोहे ====
 
==== पोहे ====
पोहे पानी में धो कर उसमें से पूरा पानी निकाल कर दो-पाँच मिनिट रहने देते हैं। बादमें उसमें नमक, मिर्च, शक्कर, हल्दी इत्यादि मसाले मिलाकर बघारते हैं। दो तीन मिनिट ढक्कन रख कर पकाते हैं। इतने पर पोहे खाने के लिये तैयार हो जाते हैं।
+
पोहे पानी में धो कर उसमें से पूरा पानी निकाल कर दो-पाँच मिनिट रहने देते हैं। बादमें उसमें नमक, मिर्च, शक्कर, हल्दी इत्यादि मसाले मिलाकर बघारते हैं। दो तीन मिनिट ढक्कन रख कर पकाते हैं। इतने पर पोहे खाने के लिये तैयार हो जाते हैं। इसके बघार में स्वाद एवं रुचि के अनुसार प्याज अथवा आलू और हरीमिर्च, टमाटर इत्यादि का उपयोग होता है। पोहे तैयार हो जाने पर परोसने के बाद उसे धनिया एवं नारियल के बूरे से सजाया जाता है।
 
  −
इसके बघार में स्वाद एवं रुचि के अनुसार प्याज अथवा आलू और हरीमिर्च, टमाटर इत्यादि का उपयोग होता है। पोहे तैयार हो जाने पर परोसने के बाद उसे धनिया एवं नारियल के बूरे से सजाया जाता है।
      
स्वादिष्ट, पौष्टिक, बनाने में सरल, कभी भी खाये जा सकते हैं, परन्तु गरमागरम ही अच्छे लगते हैं। पाचन में अति भारी नहीं। पेटभर खा सकें ऐसा नाश्ता। महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश में अधिक प्रचलित ।  
 
स्वादिष्ट, पौष्टिक, बनाने में सरल, कभी भी खाये जा सकते हैं, परन्तु गरमागरम ही अच्छे लगते हैं। पाचन में अति भारी नहीं। पेटभर खा सकें ऐसा नाश्ता। महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश में अधिक प्रचलित ।  
Line 227: Line 217:     
==== पूरी, थेपला इत्यादि ====
 
==== पूरी, थेपला इत्यादि ====
गेहूं का आटा मोन लगाकर, आवश्यक मसाला डालकर, आवश्यकता के अनुसार पानी से गूंदकर बेलकर के बनाया जाता हैं। पूरी अथवा थेपला, जो बनाना है उसके अनुसार उसका आकार छोटा या बडा, पतला या मोटा हो सकता है। ऐसा बेलने के बाद पूरी बनानी है तो कडाईमे तेल लेकर तलना होता है। और थेपला बनाना है तो तवे पर तेल डालकर सेंकना होता है। खट्टे अथवा मीठे अचार के साथ, दूध अथवा चाय के साथ अथवा सब्जी के साथ भी खा सकते हैं।
+
गेहूं का आटा मोन लगाकर, आवश्यक मसाला डालकर, आवश्यकता के अनुसार पानी से गूंदकर बेलकर के बनाया जाता हैं। पूरी अथवा थेपला, जो बनाना है उसके अनुसार उसका आकार छोटा या बडा, पतला या मोटा हो सकता है। ऐसा बेलने के बाद पूरी बनानी है तो कडाईमे तेल लेकर तलना होता है। और थेपला बनाना है तो तवे पर तेल डालकर सेंकना होता है। खट्टे अथवा मीठे अचार के साथ, दूध अथवा चाय के साथ अथवा सब्जी के साथ भी खा सकते हैं। पौष्टिकता में थेपला प्रथम है, पूरी बादमें
 
  −
पौष्टिकता में थेपला प्रथम है, पूरी बादमें ।।
      
गुजरात से लेकर समग्र उत्तर भारत में रोटी अथवा पराठा के विविध रुपों में यह पदार्थ प्रचलित है, परिचित है, और प्रतिष्ठित भी है।  
 
गुजरात से लेकर समग्र उत्तर भारत में रोटी अथवा पराठा के विविध रुपों में यह पदार्थ प्रचलित है, परिचित है, और प्रतिष्ठित भी है।  
Line 241: Line 229:  
बाजरी, चावल, गेहूं, चने की दाल, ज्वारी, धनियाजीरा इत्यादि सब पदार्थ आवश्यक अनुपात में अलग अलग सेंककर ठण्डा होने के बाद एकत्र कर चक्की में पिसना होता है। उस आटे को 'भाजनी' कहे है। गरम पानी में नरम सा आटा गूंदकर गरम तवे पर तेल लगाकर उसपर यह आटेका गोला रखकर हाथसे थपथपाकर रोटी जैसा बनाया जाता है । आटे में स्वाद के लिये आवश्यकता के अनुसार मसाले डाले जाते हैं। लौकी, मेथी अथवा प्याज भी डाल सकते हैं।
 
बाजरी, चावल, गेहूं, चने की दाल, ज्वारी, धनियाजीरा इत्यादि सब पदार्थ आवश्यक अनुपात में अलग अलग सेंककर ठण्डा होने के बाद एकत्र कर चक्की में पिसना होता है। उस आटे को 'भाजनी' कहे है। गरम पानी में नरम सा आटा गूंदकर गरम तवे पर तेल लगाकर उसपर यह आटेका गोला रखकर हाथसे थपथपाकर रोटी जैसा बनाया जाता है । आटे में स्वाद के लिये आवश्यकता के अनुसार मसाले डाले जाते हैं। लौकी, मेथी अथवा प्याज भी डाल सकते हैं।
   −
तेल डालकर अच्छा सेंक लेनेके बाद वह खानेके लिये तैयार होता है। मखखन अथवा धीके दही अथवा छाछ के साथ अथवा चटनी के साथ खाया जाता है। स्वादिष्ट, पोषक और पचने में हलका, बनानेमें सरल पदार्थ है।
+
तेल डालकर अच्छा सेंक लेने के बाद वह खानेके लिये तैयार होता है। मखखन अथवा धीके दही अथवा छाछ के साथ अथवा चटनी के साथ खाया जाता है। स्वादिष्ट, पोषक और पचने में हलका, बनानेमें सरल पदार्थ है।
    
यहाँ तो केवल नमूने के लिये पदार्थ बताये गये हैं। भारत के प्रत्येक प्रान्त में एसे अनेकविध पदार्थ बनते हैं। थोडा अवलोकन करने पर ज्ञात होगा कि झटपट बनने वाले सस्ते, सुलभ, स्वादिष्ट और पौष्टिक एसे विविध पदार्थों बनाने में भारत की गृहणी कुशल है। आधुनिक युग ही इन्सटन्ट फूड का है ऐसा नहीं है, प्राचीन समय से यह प्रथा चली आ रही है।
 
यहाँ तो केवल नमूने के लिये पदार्थ बताये गये हैं। भारत के प्रत्येक प्रान्त में एसे अनेकविध पदार्थ बनते हैं। थोडा अवलोकन करने पर ज्ञात होगा कि झटपट बनने वाले सस्ते, सुलभ, स्वादिष्ट और पौष्टिक एसे विविध पदार्थों बनाने में भारत की गृहणी कुशल है। आधुनिक युग ही इन्सटन्ट फूड का है ऐसा नहीं है, प्राचीन समय से यह प्रथा चली आ रही है।
   −
==== प्रचलित जंकफूड ====
+
=== प्रचलित जंकफूड ===
 
जंकफूड से तात्पर्य है ऐसे पदार्थ जो स्वाद में तो बहुत चटाकेदार लगते हैं परन्तु जिनका पोषणमूल्य बहुत कम होता है। साथ ही ये बासी पदार्थ होते हैं। मुख्य भोजन में से बचे हुए पदार्थों से पुनःप्रक्रिया करने के बाद तैयार किये जाते हैं।
 
जंकफूड से तात्पर्य है ऐसे पदार्थ जो स्वाद में तो बहुत चटाकेदार लगते हैं परन्तु जिनका पोषणमूल्य बहुत कम होता है। साथ ही ये बासी पदार्थ होते हैं। मुख्य भोजन में से बचे हुए पदार्थों से पुनःप्रक्रिया करने के बाद तैयार किये जाते हैं।
   Line 328: Line 316:  
अन्य प्रश्नावलियों से प्राप्त उत्तरों की तुलना में इस विद्यालय से प्राप्त उत्तर सही एवं भारतीय दृष्टि की पहचान बताने वाले थे । इसका कारण यह था कि इस विद्यालय में समग्र विकास अभ्यासक्रमानुसार शिक्षण होता है । जब शिक्षा से सही दृष्टि मिलती है तो व्यवहार भी तद्नुसार सही ही होता है। दसरी महत्त्वपूर्ण बात यह कि इस प्रश्नावली में अभिभावकों की सहभागिता अधिक रही। उनमें से कुछ अभिभावक कम पढे लिखे भी थे. फिर भी अनेक उत्तर एकदम सटीक थे । यह आश्चर्य की बात थी । अल्पशिक्षित व्यक्ति भी अच्छा व्यवहार कर सकता है बात को उन्होंने सत्यसिद्ध किया।
 
अन्य प्रश्नावलियों से प्राप्त उत्तरों की तुलना में इस विद्यालय से प्राप्त उत्तर सही एवं भारतीय दृष्टि की पहचान बताने वाले थे । इसका कारण यह था कि इस विद्यालय में समग्र विकास अभ्यासक्रमानुसार शिक्षण होता है । जब शिक्षा से सही दृष्टि मिलती है तो व्यवहार भी तद्नुसार सही ही होता है। दसरी महत्त्वपूर्ण बात यह कि इस प्रश्नावली में अभिभावकों की सहभागिता अधिक रही। उनमें से कुछ अभिभावक कम पढे लिखे भी थे. फिर भी अनेक उत्तर एकदम सटीक थे । यह आश्चर्य की बात थी । अल्पशिक्षित व्यक्ति भी अच्छा व्यवहार कर सकता है बात को उन्होंने सत्यसिद्ध किया।
   −
आज हर कोई कार्यालय में, व्याख्यान में, सिनेमामें जाते समय पानी की बोटल साथ लेकर जाता है । परन्तु यहाँ सब लोगों ने मटके के पानी का उपयोग ही सबके लिए श्रेष्ठ बताया है । प्लास्टिक बोतल में रखा पानी प्रदूषित हो जाता है । ऐसा उनका मत था।
+
आज हर कोई कार्यालय में, व्याख्यान में, सिनेमा में जाते समय पानी की बोटल साथ लेकर जाता है । परन्तु यहाँ सब लोगों ने मटके के पानी का उपयोग ही सबके लिए श्रेष्ठ बताया है । प्लास्टिक बोतल में रखा पानी प्रदूषित हो जाता है । ऐसा उनका मत था।
    
जैसे घर में पानी की व्यवस्था करना घर के लोगों का दायित्व होता है, वैसे ही विद्यालय में पानी की व्यवस्था करना विद्यालय का दायित्व होता है इस सीधी सादी बात को हम भूल रहे हैं । विद्यालय में पानी भरना, उसकी स्वच्छता रखना यह हमारा काम है, आज के चतुर्थश्रेणी कर्मचारियों को इसका भान ही नहीं है। उधर अभिभावक भी वॉटर बोतल देकर, अपने बालक की सुरक्षा का ध्यान हमें ही रखना है ऐसा मानता है और उसमें धन्यता अनुभव करता है । प्लास्टिक बोतल का उपयोग हानिकर है इसे वे भूल जाते हैं । जल से जुड़े संस्कार जो उसे विद्यालय से मिलने चाहिए उनसे वह वंचित रह जाता है। जैसे कि समूह में कैसा व्यवहार करना, अपने से अधिक प्यासे मित्र को पहले पानी पीने देना, व्यर्थ बहने वाले पानी का कैसे उपयोग करना आदि ।
 
जैसे घर में पानी की व्यवस्था करना घर के लोगों का दायित्व होता है, वैसे ही विद्यालय में पानी की व्यवस्था करना विद्यालय का दायित्व होता है इस सीधी सादी बात को हम भूल रहे हैं । विद्यालय में पानी भरना, उसकी स्वच्छता रखना यह हमारा काम है, आज के चतुर्थश्रेणी कर्मचारियों को इसका भान ही नहीं है। उधर अभिभावक भी वॉटर बोतल देकर, अपने बालक की सुरक्षा का ध्यान हमें ही रखना है ऐसा मानता है और उसमें धन्यता अनुभव करता है । प्लास्टिक बोतल का उपयोग हानिकर है इसे वे भूल जाते हैं । जल से जुड़े संस्कार जो उसे विद्यालय से मिलने चाहिए उनसे वह वंचित रह जाता है। जैसे कि समूह में कैसा व्यवहार करना, अपने से अधिक प्यासे मित्र को पहले पानी पीने देना, व्यर्थ बहने वाले पानी का कैसे उपयोग करना आदि ।
Line 339: Line 327:  
यह व्यवहार अत्यन्त सहज हो गया है। । प्यासे को पानी पिलाने के भाव ही अब उत्पन्न नहीं होता ।
 
यह व्यवहार अत्यन्त सहज हो गया है। । प्यासे को पानी पिलाने के भाव ही अब उत्पन्न नहीं होता ।
   −
एक विद्यालय की ट्रिप रेल से जा रही थी । उसमें ५० विद्यार्थी थे । प्रत्येक विद्यार्थी को ५-५- बोतल दी गईं थी। हिसाब लगाये तो ५ x ५० x २० = ५००० रु. केवल पानी का खर्च था। फिर आवश्यकता, स्वतन्त्रता का अधिकार, अपव्यय, आर्थिकपक्ष आदि बिन्दुओं का विचार ही नहीं किया जाता । हमें इसका विचार करना चाहिए।
+
एक विद्यालय की ट्रिप रेल से जा रही थी । उसमें ५० विद्यार्थी थे । प्रत्येक विद्यार्थी को ५-५ बोतल दी गईं थी। हिसाब लगाये तो ५ x ५० x २० = ५००० रु. केवल पानी का खर्च था। फिर आवश्यकता, स्वतन्त्रता का अधिकार, अपव्यय, आर्थिकपक्ष आदि बिन्दुओं का विचार ही नहीं किया जाता । हमें इसका विचार करना चाहिए।
    
ईश्वर हमें पर्याप्त जल निःशुल्क देता है, परन्तु हम लोग उसका व्यवसाय करते हैं, आर्थिक लाभ करमा रहे हैं । हमें कुछ तो विचार करना चाहिए ।  
 
ईश्वर हमें पर्याप्त जल निःशुल्क देता है, परन्तु हम लोग उसका व्यवसाय करते हैं, आर्थिक लाभ करमा रहे हैं । हमें कुछ तो विचार करना चाहिए ।  

Navigation menu