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| अर्थात् कोई भी पदार्थ, व्यक्ति, व्यवस्था जब जीवनरक्षक, संस्काररक्षक, सद्भावरक्षक होते है, शुभ, कल्याणकारी होते है तब वह पवित्र होते है। | | अर्थात् कोई भी पदार्थ, व्यक्ति, व्यवस्था जब जीवनरक्षक, संस्काररक्षक, सद्भावरक्षक होते है, शुभ, कल्याणकारी होते है तब वह पवित्र होते है। |
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− | ==== पवित्रता का व्यावहारिक सूत्र ==== | + | ===== पवित्रता का व्यावहारिक सूत्र ===== |
| पवित्रता का जतन करना चाहिये । पवित्रता के प्रति व्यवहार करने के भी तरीके हमारी परम्परा ने बनायें हैं । जैसे कि - | | पवित्रता का जतन करना चाहिये । पवित्रता के प्रति व्यवहार करने के भी तरीके हमारी परम्परा ने बनायें हैं । जैसे कि - |
| * पवित्र वस्तु को अस्वच्छ नहीं किया जाता, अस्वच्छ स्थान पर रखा नहीं जाता, अस्वच्छ वस्तुओं के साथ नहीं रखा जाता। | | * पवित्र वस्तु को अस्वच्छ नहीं किया जाता, अस्वच्छ स्थान पर रखा नहीं जाता, अस्वच्छ वस्तुओं के साथ नहीं रखा जाता। |
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| वर्तमान में विद्यालय को पवित्र नहीं माना जाता इसलिये अनेक अकरणीय बातें होती हैं । | | वर्तमान में विद्यालय को पवित्र नहीं माना जाता इसलिये अनेक अकरणीय बातें होती हैं । |
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− | ==== विद्यालय मन्दिर है ==== | + | ===== विद्यालय मन्दिर है ===== |
| विद्या पवित्र है। विद्यालय में पवित्रता बनाये रखना चाहिय यह सहज अपेक्षा है । | | विद्या पवित्र है। विद्यालय में पवित्रता बनाये रखना चाहिय यह सहज अपेक्षा है । |
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− | ==== क्या किया जा सकता है ? ==== | + | ===== क्या किया जा सकता है ? ===== |
| * विद्यालय में पादत्राण पहनकर नहीं जाना । इसके लिये विशेष व्यवस्था करनी चाहिये । | | * विद्यालय में पादत्राण पहनकर नहीं जाना । इसके लिये विशेष व्यवस्था करनी चाहिये । |
| * विद्यालय में आत्यन्तिक स्वच्छता होनी चाहिये । | | * विद्यालय में आत्यन्तिक स्वच्छता होनी चाहिये । |