==== विद्यालय या कक्षाकक्ष में जूते नहीं पहनना ====
==== विद्यालय या कक्षाकक्ष में जूते नहीं पहनना ====
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विद्या, कक्षाकक्ष, विद्यालय सभी पवित्र हैं। पवित्र स्थान पर हम जूते पहन कर नहीं जाते ? आज भी इस आचरण का सर्वत्र पालन होता है । हम मन्दिर में जूते पहन कर नहीं जाते । रसोईघर में जूते नहीं पहनते । विद्यालय में
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विद्या, कक्षाकक्ष, विद्यालय सभी पवित्र हैं। पवित्र स्थान पर हम जूते पहन कर नहीं जाते ? आज भी इस आचरण का सर्वत्र पालन होता है । हम मन्दिर में जूते पहन कर नहीं जाते । रसोईघर में जूते नहीं पहनते । विद्यालय में पहनते हैं क्योंकि विद्या और विद्यालय को पवित्र नहीं मानते । कुछ समय पूर्व ऐसा नहीं था। किन्तु विद्या को पवित्र नहीं मानना यह संस्कारिता नहीं है। इससे इस संस्कार का पुनःप्रस्थापित करने हेतु विद्यालय में जूते उतारकर पढ़ने और पढ़ाने का नियम बना सकते हैं। वास्तव में यह कोई मुश्किल काम नहीं है। केवल हमारे ध्यान में नहीं आता।
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पहनते हैं क्योंकि विद्या और विद्यालय को पवित्र नहीं मानते । कुछ समय पूर्व ऐसा नहीं था। किन्तु विद्या को पवित्र नहीं मानना यह संस्कारिता नहीं है। इससे इस संस्कार का पुनःप्रस्थापित करने हेतु विद्यालय में जूते उतारकर पढ़ने और पढ़ाने का नियम बना सकते हैं। वास्तव में यह कोई मुश्किल काम नहीं है। केवल हमारे ध्यान में नहीं आता।
==== भूमि पर बैठने की व्यवस्था ====
==== भूमि पर बैठने की व्यवस्था ====
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विद्यालयों में छात्र बैंचों या कुर्सियों पर बैठते हैं। शिक्षक कुर्सी पर बैठकर या खड़े होकर पढ़ाते हैं। आज यह धारणा बन गई है कि मेज कुर्सी के बिना काम नहीं चलेगा। आर्थिक दृष्टि से कमजोर विद्यालयों में तो ऐसी व्यवस्था नहीं होती किन्तु ऊँची फीस लेने वाले विद्यालयों के छात्र तो भूमि पर बैठ कर पढ़ ही नहीं सकते ? किन्तु खड़े होकर पढ़ाना असंस्कारिता है। पढ़ने वाला छात्र बैठा हो और पढ़ाने वाला शिक्षक खड़ा हो यह भी संस्कार के विरुद्ध है । पालथी लगाकर पढ़ने बैठना और छात्र से कुछ ऊँचे आसन पर बैठ कर पढ़ाना, योग्य पद्धति है । पालथी लगाकर बैठने से ऊर्जा मस्तिष्क की ओर प्रवाहित होती है जिससे ज्ञान ग्रहण आसान बनता है। पैर लटकाकर बैठने या खड़े रहने से अकारण ही ऊर्जा नीचे की ओर प्रवाहित होती है और ज्ञानार्जन में अवरोध उत्पन्न होता है। इसके उपाय के तौर पर ऊर्जा के कुचालक आसन (सूत या ऊन) पर पालथी लगाकर बैठकर पढ़ाने की व्यवस्था विद्यालय कर सकते हैं।
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विद्यालयों में छात्र बैंचों या कुर्सियों पर बैठते हैं। शिक्षक कुर्सी पर बैठकर या खड़े होकर पढ़ाते हैं। आज यह धारणा बन गई है कि मेज कुर्सी के बिना काम नहीं चलेगा। आर्थिक दृष्टि से कमजोर विद्यालयों में तो ऐसी व्यवस्था नहीं होती किन्तु ऊँची फीस लेने वाले विद्यालयों के छात्र तो भूमि पर बैठ कर पढ़ ही नहीं सकते ? किन्तु खड़े होकर पढ़ाना असंस्कारिता है। पढ़ने वाला छात्र बैठा हो और पढ़ाने वाला शिक्षक खड़ा हो यह भी संस्कार के विरुद्ध है । पालथी लगाकर पढ़ने बैठना और छात्र से कुछ ऊँचे आसन पर बैठ कर पढ़ाना, योग्य पद्धति है ।
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आर्थिक दृष्टि से भी इसमें काफी बचत है यह एक अतिरिक्त लाभ है।
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पालथी लगाकर बैठने से ऊर्जा मस्तिष्क की ओर प्रवाहित होती है जिससे ज्ञान ग्रहण आसान बनता है। पैर लटकाकर बैठने या खड़े रहने से अकारण ही ऊर्जा नीचे की ओर प्रवाहित होती है और ज्ञानार्जन में अवरोध उत्पन्न होता है। इसके उपाय के तौर पर ऊर्जा के कुचालक आसन (सूत या ऊन) पर पालथी लगाकर बैठकर पढ़ाने की व्यवस्था विद्यालय कर सकते हैं।आर्थिक दृष्टि से भी इसमें काफी बचत है यह एक अतिरिक्त लाभ है।