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प्रथम प्रश्न के उत्तर से यह तो स्पष्ट ध्यान में आता है कि यह तो सभी जानते हैं कि भारतीय और अभारतीय ऐसी दो प्रकार की बैठक व्यवस्था होती है। किन्तु आगे के उपप्रश्नों का उत्तर लिखते समय कुछ वैचारिक संभ्रम दिखाई देता है। भारतीय बैठक व्यवस्था सस्ती होने के कारण कमजोर आर्थिक स्थिति वाले विद्यालयों के लिए ठीक है ऐसा मानते हैं । शास्त्रीय दृष्टि से बैठक व्यवस्था का विचार किसी भी उत्तर में नहीं मिला । व्यावहारिक दृष्टि से बैठक व्यवस्था का विचार करने वाले बिन्दु और लोगों की मानसिकता इन दोनों प्रश्नों के उत्तर में सब मौन रहे हैं। पाँचवे प्रश्न में संस्कारक्षम वातावरण निर्माण करने हेतु कक्षाकक्ष में चित्र, चार्ट्स, सुविचार आदि लगाने चाहिए ऐसे उत्तर मिले हैं । परन्तु वास्तव में ये सारी सामग्री लगाना तो कक्षा कक्ष का सुशोभन करना मात्र ही है, यह तो केवल बाहरी व्यवस्था ही है । संस्कारक्षम वातावरण का आन्तरिक स्वरूप क्या हो यह किसी के भी ध्यान में नहीं आया । सातवें प्रश्न के उत्तर में पुस्तकालय, प्रयोगशाला, कार्यालय आदि में भारतीय बैठक व्यवस्था उचित नहीं ऐसा ही सबका मत था ।  
 
प्रथम प्रश्न के उत्तर से यह तो स्पष्ट ध्यान में आता है कि यह तो सभी जानते हैं कि भारतीय और अभारतीय ऐसी दो प्रकार की बैठक व्यवस्था होती है। किन्तु आगे के उपप्रश्नों का उत्तर लिखते समय कुछ वैचारिक संभ्रम दिखाई देता है। भारतीय बैठक व्यवस्था सस्ती होने के कारण कमजोर आर्थिक स्थिति वाले विद्यालयों के लिए ठीक है ऐसा मानते हैं । शास्त्रीय दृष्टि से बैठक व्यवस्था का विचार किसी भी उत्तर में नहीं मिला । व्यावहारिक दृष्टि से बैठक व्यवस्था का विचार करने वाले बिन्दु और लोगों की मानसिकता इन दोनों प्रश्नों के उत्तर में सब मौन रहे हैं। पाँचवे प्रश्न में संस्कारक्षम वातावरण निर्माण करने हेतु कक्षाकक्ष में चित्र, चार्ट्स, सुविचार आदि लगाने चाहिए ऐसे उत्तर मिले हैं । परन्तु वास्तव में ये सारी सामग्री लगाना तो कक्षा कक्ष का सुशोभन करना मात्र ही है, यह तो केवल बाहरी व्यवस्था ही है । संस्कारक्षम वातावरण का आन्तरिक स्वरूप क्या हो यह किसी के भी ध्यान में नहीं आया । सातवें प्रश्न के उत्तर में पुस्तकालय, प्रयोगशाला, कार्यालय आदि में भारतीय बैठक व्यवस्था उचित नहीं ऐसा ही सबका मत था ।  
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==== अभिमत : ====
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==== अभिमत ====
 
भारतीय और अभारतीय बैठक व्यवस्था में क्या अन्तर है इसकी स्पष्टता तो है। परन्तु आजकल विद्यालय, महाविद्यालय, सार्वजनिक सभागृह, कार्यालय एवं घरों में टेबलकुर्सी का उपयोग हमें इतना अनिवार्य लगता है कि अब हमें भारतीय बैठक व्यवस्था सर्वथा निरुपयोगी लगने लगी है। कुर्सी पर बैठकर भाषण सुनना प्रतिष्ठा का लक्षण माना जाता है । जबकि सुनने का सम्बन्ध कुर्सी से नहीं है, एकाग्रता व ग्रहणशीलता से है। परन्तु हमने तो इसे प्रतिष्ठा व अप्रतिष्ठा का रंग चढ़ा दिया है ।
 
भारतीय और अभारतीय बैठक व्यवस्था में क्या अन्तर है इसकी स्पष्टता तो है। परन्तु आजकल विद्यालय, महाविद्यालय, सार्वजनिक सभागृह, कार्यालय एवं घरों में टेबलकुर्सी का उपयोग हमें इतना अनिवार्य लगता है कि अब हमें भारतीय बैठक व्यवस्था सर्वथा निरुपयोगी लगने लगी है। कुर्सी पर बैठकर भाषण सुनना प्रतिष्ठा का लक्षण माना जाता है । जबकि सुनने का सम्बन्ध कुर्सी से नहीं है, एकाग्रता व ग्रहणशीलता से है। परन्तु हमने तो इसे प्रतिष्ठा व अप्रतिष्ठा का रंग चढ़ा दिया है ।
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प्रश्न ४ में दी हुई अनेक बातों में अपनी व्यक्तिगत टिप्पणी लिखें यह अपेक्षा थीं। इसके उत्तर में यज्ञ करना चाहिए, कीटों से रक्षा के उपाय प्राकृतिक हों, रासायनिक नहीं, ऐसे उत्तर मिले । प्राकृतिक साधनों का उपयोग करना और कृत्रिम साधनों को त्यागना, इस प्रश्न का भी समाधान कारक उत्तर नहीं मिला । हाँ, विद्यालय में कूलर, फ्रीज, ऐ.सी. आदि उपकरणों का विरोध अवश्य किया ।
 
प्रश्न ४ में दी हुई अनेक बातों में अपनी व्यक्तिगत टिप्पणी लिखें यह अपेक्षा थीं। इसके उत्तर में यज्ञ करना चाहिए, कीटों से रक्षा के उपाय प्राकृतिक हों, रासायनिक नहीं, ऐसे उत्तर मिले । प्राकृतिक साधनों का उपयोग करना और कृत्रिम साधनों को त्यागना, इस प्रश्न का भी समाधान कारक उत्तर नहीं मिला । हाँ, विद्यालय में कूलर, फ्रीज, ऐ.सी. आदि उपकरणों का विरोध अवश्य किया ।
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==== अभिमत : ====
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==== अभिमत ====
 
पंचमहाभूतों से यह सृष्टि बनी हैं। प्रत्येक महाभूत सृष्टि का सन्तुलन एवं स्वच्छता बनाये रखने का कार्य करता है। अतः इनकी सुरक्षा करना सही अर्थ में पर्यावरण की सुरक्षा है। परन्तु मनुष्य अपनी इच्छाओं की पूर्ति हेतु अपनी विकृत बुद्धि से उनका नाश कर रहा है , उन्हें प्रदूषित कर रहा है।
 
पंचमहाभूतों से यह सृष्टि बनी हैं। प्रत्येक महाभूत सृष्टि का सन्तुलन एवं स्वच्छता बनाये रखने का कार्य करता है। अतः इनकी सुरक्षा करना सही अर्थ में पर्यावरण की सुरक्षा है। परन्तु मनुष्य अपनी इच्छाओं की पूर्ति हेतु अपनी विकृत बुद्धि से उनका नाश कर रहा है , उन्हें प्रदूषित कर रहा है।
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में ही किया जाता है । जब से यन्त्र आधारित कारखाने शुरू हुए और रसायनों का बहुलता से प्रयोग शुरु हुआ तबसे पर्यावरण के प्रदूषण की समस्या शुरू हुई । तबसे विद्यालयों में पर्यावरण का विषय अध्ययन के क्रम में प्रविष्ट हुआ।  
 
में ही किया जाता है । जब से यन्त्र आधारित कारखाने शुरू हुए और रसायनों का बहुलता से प्रयोग शुरु हुआ तबसे पर्यावरण के प्रदूषण की समस्या शुरू हुई । तबसे विद्यालयों में पर्यावरण का विषय अध्ययन के क्रम में प्रविष्ट हुआ।  
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==== पर्यावरण विचार के कुछ मुद्दे ====
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===== पर्यावरण विचार के कुछ मुद्दे =====
 
प्रदूषण का विषय आता है तब तीन बातों का उल्लेख होता है, हवा, पानी और भूमि का प्रदूषण ।
 
प्रदूषण का विषय आता है तब तीन बातों का उल्लेख होता है, हवा, पानी और भूमि का प्रदूषण ।
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# अतः केवल भौतिक नहीं अपितु सांस्कृतिक प्रदूषण के निवारण का भी विचार करना चाहिये ।  
 
# अतः केवल भौतिक नहीं अपितु सांस्कृतिक प्रदूषण के निवारण का भी विचार करना चाहिये ।  
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==== पर्यावरण सम्बन्धित व्यावहारिक विचार ====
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===== पर्यावरण सम्बन्धित व्यावहारिक विचार =====
 
पर्यावरण विषयक अधिक चिन्तन करने का यहाँ प्रयोजन नहीं है । यहाँ केवल व्यावहारिक विचार करना है।
 
पर्यावरण विषयक अधिक चिन्तन करने का यहाँ प्रयोजन नहीं है । यहाँ केवल व्यावहारिक विचार करना है।
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क्या हम देख नहीं रहे हैं कि मोबाइल के कारण हमारी स्मरणशक्ति बहुत कम हो गई है ? क्या नेट पर सर्च कर, जानकारी डाउनलोड कर, कट् एण्ड पेस्ट की चातुरी अपनाकर पीएचडी प्राप्त होने की सुविधा के चलते हमारी चिन्तन प्रक्रिया अत्यन्त सतही हो गई है ? अतिशय स्वार्थी बनकर हमारे परिवार, धर्म, ज्ञान आदि को बाजार में ला दिया है । यह हम नहीं जानते ? यह सारा सांस्कृतिक पर्यावरण का प्रदूषण है जो पंचमहाभूतों के प्रदूषण से अनेक गुणा घातक है ।
 
क्या हम देख नहीं रहे हैं कि मोबाइल के कारण हमारी स्मरणशक्ति बहुत कम हो गई है ? क्या नेट पर सर्च कर, जानकारी डाउनलोड कर, कट् एण्ड पेस्ट की चातुरी अपनाकर पीएचडी प्राप्त होने की सुविधा के चलते हमारी चिन्तन प्रक्रिया अत्यन्त सतही हो गई है ? अतिशय स्वार्थी बनकर हमारे परिवार, धर्म, ज्ञान आदि को बाजार में ला दिया है । यह हम नहीं जानते ? यह सारा सांस्कृतिक पर्यावरण का प्रदूषण है जो पंचमहाभूतों के प्रदूषण से अनेक गुणा घातक है ।
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==== प्रदूषण से बचने हेतु मन की शिक्षा ====
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===== प्रदूषण से बचने हेतु मन की शिक्षा =====
 
इससे बचने की योजना बनानी चाहिये ।
 
इससे बचने की योजना बनानी चाहिये ।
  

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