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| ==== सामाजिकता क्या है ? ==== | | ==== सामाजिकता क्या है ? ==== |
− | मनुष्य समाज में रहता है । समाज मनुष्य का ही होता | + | मनुष्य समाज में रहता है । समाज मनुष्य का ही होता है। मनुष्य के अलावा अन्य प्राणियों का तो केवल समूह होता है । अन्य प्राणी केवल शारीरिक सुरक्षा के लिये समूह में रहते दिखाई देते हैं । मनुष्य के समूह में रहने के शारीरिक स्तर की सुरक्षा से बढहकर अनेक आयाम होते हैं । |
− | है । मनुष्य के अलावा अन्य प्राणियों का तो केवल समूह
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− | होता है । अन्य प्राणी केवल शारीरिक सुरक्षा के लिये समूह | |
− | में रहते दिखाई देते हैं । मनुष्य के समूह में रहने के शारीरिक | |
− | स्तर की सुरक्षा से बढहकर अनेक आयाम होते हैं । | |
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− | मनुष्य की आवश्यकतायें प्राणियों की आवश्यकताओं | + | मनुष्य की आवश्यकतायें प्राणियों की आवश्यकताओं से कहीं अधिक होती हैं । वह अकेला इन्हें पूरी नहीं कर सकता । उसे दूसरों पर निर्भर रहना ही पडता है। यह परस्परावलम्बन है । एकदूसरे के साथ अच्छे सम्बन्ध बनाये रखे बिना परस्परावलम्बन सम्भव नहीं होता । अतः आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु समूह में रहने के मनुष्य ने कुछ नियम बनाये, एक व्यवस्था बनाई, एक शास्त्र बनाया जिसे |
− | से कहीं अधिक होती हैं । वह अकेला इन्हें पूरी नहीं कर | + | समाजशास्त्र कहते हैं । यह व्यवस्था मनुष्य के व्यक्तित्व का अंग बन जाता है तब वह स्वाभाविक होता है । इसे ही सामाजिकता कहते हैं। हर व्यक्ति में इस सामाजिकता का विकास होना चाहिये । |
− | सकता । उसे दूसरों पर निर्भर रहना ही पडता है। यह | |
− | परस्परावलम्बन है । एकदूसरे के साथ अच्छे सम्बन्ध बनाये | |
− | रखे बिना परस्परावलम्बन सम्भव नहीं होता । अतः | |
− | आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु समूह में रहने के मनुष्य ने कुछ | |
− | नियम बनाये, एक व्यवस्था बनाई, एक शास्त्र बनाया जिसे | |
− | समाजशास्त्र कहते हैं । यह व्यवस्था मनुष्य के व्यक्तित्व का | |
− | अंग बन जाता है तब वह स्वाभाविक होता है । इसे ही | |
− | सामाजिकता कहते हैं । हर व्यक्ति में इस सामाजिकता का | |
− | विकास होना चाहिये । | |
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− | परन्तु आवश्यकताओं की पूर्ति ही सामाजिकता के | + | परन्तु आवश्यकताओं की पूर्ति ही सामाजिकता के लिये एकमेव प्रयोजन नहीं है । केवल आवश्यकताओं की पूर्ति यह तो ऊपरी और कुछ मात्रा में कृत्रिम प्रयोजन है । मूल प्रयोजन है आत्मीयता और प्रेम । सब एकदूसरे के साथ आत्मिक स्तर पर जुडे हैं और एकदूसरे के लिये प्रेम का अनुभव करते हैं इसलिये साथ रहना स्वाभाविक है, साथ रहना अच्छा लगता है यह मूल प्रयोजन है । आत्मीयता के |
− | लिये एकमेव प्रयोजन नहीं है । केवल आवश्यकताओं की | + | कारण ही सेवा, त्याग, सहयोग आदि गुण प्रकट होते हैं और व्यवहार में दिखाई देते हैं । ये बाहरी व्यवस्था के नियम नहीं हैं, लेनदेन के या लाभालाभ के हिसाब नहीं हैं, ये बिना हिसाब के देने के रूप में ही प्रकट होते हैं । यह आत्मीयता ही मनुष्य के लिये समूह में रहने हेतु प्रेरित करती है । प्रेम और आत्मीयता जिन गुणों के रूप में प्रकट होते हैं, उन गुणों का विकास ही सामाजिकता का विकास है । |
− | पूर्ति यह तो ऊपरी और कुछ मात्रा में कृत्रिम प्रयोजन है । | |
− | मूल प्रयोजन है आत्मीयता और प्रेम । सब एकदूसरे के साथ | |
− | आत्मिक स्तर पर जुडे हैं और एकदूसरे के लिये प्रेम का | |
− | अनुभव करते हैं इसलिये साथ रहना स्वाभाविक है, साथ | |
− | रहना अच्छा लगता है यह मूल प्रयोजन है । आत्मीयता के | |
− | कारण ही सेवा, त्याग, सहयोग आदि गुण प्रकट होते हैं | |
− | और व्यवहार में दिखाई देते हैं । ये बाहरी व्यवस्था के | |
− | नियम नहीं हैं, लेनदेन के या लाभालाभ के हिसाब नहीं हैं, | |
− | ये बिना हिसाब के देने के रूप में ही प्रकट होते हैं । यह | |
− | आत्मीयता ही मनुष्य के लिये समूह में रहने हेतु प्रेरित करती | |
− | है । प्रेम और आत्मीयता जिन गुणों के रूप में प्रकट होते हैं | |
− | उन गुणों का विकास ही सामाजिकता का विकास है । | |
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− | विद्यालयों के शिक्षाक्रम में सामाजिकता के गुणों का | + | विद्यालयों के शिक्षाक्रम में सामाजिकता के गुणों का विकास करने हेतु सावधानीपूर्वक अनेक प्रकार से योजना करनी चाहिये । |
− | विकास करने हेतु सावधानीपूर्वक अनेक प्रकार से योजना | |
− | करनी चाहिये । | |
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| ==== १, देना और बॉाँट कर उपभोग करना ==== | | ==== १, देना और बॉाँट कर उपभोग करना ==== |