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| *ये तो सर्वविदित उदाहरण हैं, परन्तु यह तो हिमशिला का बाहर दिखनेवाला हिस्सा है । वास्तविकता अनेक गुना अधिक है । | | *ये तो सर्वविदित उदाहरण हैं, परन्तु यह तो हिमशिला का बाहर दिखनेवाला हिस्सा है । वास्तविकता अनेक गुना अधिक है । |
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− | ऐसे संचालकों के विद्यालयों में नीतिमत्ता की | + | ऐसे संचालकों के विद्यालयों में नीतिमत्ता की शिक्षा किस प्रकार दी जा सकेगी ? |
− | शिक्षा किस प्रकार दी जा सकेगी ? | |
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| 3. शिक्षकों की नीतिमत्ता के अभाव का स्वरूप कुछ इस प्रकार का है: | | 3. शिक्षकों की नीतिमत्ता के अभाव का स्वरूप कुछ इस प्रकार का है: |
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| ===इस स्थिति में विद्यालय क्या करें ?=== | | ===इस स्थिति में विद्यालय क्या करें ?=== |
− | कुछ इस प्रकार से विचार किया जा सकता है... | + | कुछ इस प्रकार से विचार किया जा सकता है: |
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| नीति का पक्ष लेने वाले कुछ लोग तो समाज में हैं ही । ये केवल नीति की बात ही नहीं करते, उनका आचरण भी नैतिक होता है । अक्सर ऐसे लोग अपने में ही मस्त होते हैं । दूसरों को अनीति का आचरण करना है तो करें, उनका हिसाब भगवान करेगा, हम अनीति का आचरण नहीं करेंगे । हमने दुनिया को सुधार करने का ठेका नहीं लिया है ऐसा वे कहते हैं । | | नीति का पक्ष लेने वाले कुछ लोग तो समाज में हैं ही । ये केवल नीति की बात ही नहीं करते, उनका आचरण भी नैतिक होता है । अक्सर ऐसे लोग अपने में ही मस्त होते हैं । दूसरों को अनीति का आचरण करना है तो करें, उनका हिसाब भगवान करेगा, हम अनीति का आचरण नहीं करेंगे । हमने दुनिया को सुधार करने का ठेका नहीं लिया है ऐसा वे कहते हैं । |
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| #किसी भी परीक्षा में नकल नहीं करना । | | #किसी भी परीक्षा में नकल नहीं करना । |
| #विद्यालय की सम्पत्ति को नुकसान नहीं पहुँचाना । | | #विद्यालय की सम्पत्ति को नुकसान नहीं पहुँचाना । |
− | #किसी भी शिक्षक की पीठ के पीछे निन््दा नहीं करना | | + | #किसी भी शिक्षक की पीठ के पीछे निन््दा नहीं करना । |
| #शिक्षक की आज्ञा की अवज्ञा नहीं करना । | | #शिक्षक की आज्ञा की अवज्ञा नहीं करना । |
| #झूठ नहीं बोलना । | | #झूठ नहीं बोलना । |
| #विद्यालय के नियमों का उल्लंघन नहीं करना । | | #विद्यालय के नियमों का उल्लंघन नहीं करना । |
| #ट्यूशन या कोचिंग क्लास में नहीं जाना । | | #ट्यूशन या कोचिंग क्लास में नहीं जाना । |
− | #घर से विद्यालय और विद्यालय से घर पैद्ल अथवा बाइसिकल से आनाजाना | | + | #घर से विद्यालय और विद्यालय से घर पैद्ल अथवा बाइसिकल से आनाजाना । |
| #कारखाने में बने कपडे और जूते नहीं पहनना, दर्जी ने और मोची ने बनाये हुए ही पहनना । | | #कारखाने में बने कपडे और जूते नहीं पहनना, दर्जी ने और मोची ने बनाये हुए ही पहनना । |
| #सूती गणवेश पहनना । | | #सूती गणवेश पहनना । |
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| ===अपनी दृष्टि व्यापक बनाना=== | | ===अपनी दृष्टि व्यापक बनाना=== |
− | बात प्रथम दृष्टि में तो ठीक लगती है, परन्तु हमें व्यापक दृष्टि से देखना होगा । दृष्टि व्यापक करने से इन बातों को भी सूची में समाविष्ट करने का तात्पर्य ध्यान में आयेगा | | + | बात प्रथम दृष्टि में तो ठीक लगती है, परन्तु हमें व्यापक दृष्टि से देखना होगा । दृष्टि व्यापक करने से इन बातों को भी सूची में समाविष्ट करने का तात्पर्य ध्यान में आयेगा । |
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| *इस कार्यक्रम को अपने अपने विद्यालयों में निश्चितता पूर्वक लागू करना चाहिये । कड़ाई से लागू करने से प्रारम्भ होगा परन्तु धीरे धीरे विद्यार्थियों और अभिभावकों को समझाकर सहमत बनाना चाहिये । सबको इन बातों के लिये अपने विद्यालय पर गर्व हो ऐसी स्थिति आनी चाहिये । | | *इस कार्यक्रम को अपने अपने विद्यालयों में निश्चितता पूर्वक लागू करना चाहिये । कड़ाई से लागू करने से प्रारम्भ होगा परन्तु धीरे धीरे विद्यार्थियों और अभिभावकों को समझाकर सहमत बनाना चाहिये । सबको इन बातों के लिये अपने विद्यालय पर गर्व हो ऐसी स्थिति आनी चाहिये । |
| *धीरे धीरे इन विद्यालयों की प्रतिष्ठा समाज में बनने लगे इस बात की और ध्यान देना चाहिये । सज्जनों को चाहिये कि वे इन्हें समाज में प्रतिष्ठा दिलने का काम करे । | | *धीरे धीरे इन विद्यालयों की प्रतिष्ठा समाज में बनने लगे इस बात की और ध्यान देना चाहिये । सज्जनों को चाहिये कि वे इन्हें समाज में प्रतिष्ठा दिलने का काम करे । |
| *अब इन विद्यालयों का सामर्थ्य केवल संचालकों और शिक्षकों तक सीमित नहीं है । विद्यार्थी और उनके परिवार भी इनके साथ जुडे हैं । | | *अब इन विद्यालयों का सामर्थ्य केवल संचालकों और शिक्षकों तक सीमित नहीं है । विद्यार्थी और उनके परिवार भी इनके साथ जुडे हैं । |
− | *अब इन विद्यालयों ने आसपास के विद्यालयों को बदलने का. अभियान छेडना होगा । विद्यार्थी विद्यार्थियों को, शिक्षक शिक्षकों को और संचालक संचालकों को परिवर्तित करने का काम करें । | + | *अब इन विद्यालयों ने आसपास के विद्यालयों को बदलने का अभियान छेडना होगा । विद्यार्थी विद्यार्थियों को, शिक्षक शिक्षकों को और संचालक संचालकों को परिवर्तित करने का काम करें । |
| *अब धमचिार्यों को भी इस अभियान में जुड़ने हेतु समझाना चाहिये । सन्त, महन्त, आचार्य, कथाकार, सत्संगी सार्वजनिक कार्यक्रमों में नीतिमत्ता के इन दस सूत्रों के पालन का आग्रह करें, अपने अनुयायियों से प्रतिज्ञा करवायें । | | *अब धमचिार्यों को भी इस अभियान में जुड़ने हेतु समझाना चाहिये । सन्त, महन्त, आचार्य, कथाकार, सत्संगी सार्वजनिक कार्यक्रमों में नीतिमत्ता के इन दस सूत्रों के पालन का आग्रह करें, अपने अनुयायियों से प्रतिज्ञा करवायें । |
| *कुछ दम्भी और भोंदू अवश्य होंगे, तथापि इसका परिणाम अवश्य होगा। | | *कुछ दम्भी और भोंदू अवश्य होंगे, तथापि इसका परिणाम अवश्य होगा। |
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| विद्यालयों को इस विषय का भी विचार करना होगा । व्यक्तिगत जीवन में स्वच्छता का आग्रह अधिकांश लोग रखते हैं परन्तु सार्वजनिक स्थानों की स्वच्छता की दरकार कोई नहीं करता । यह भी कानून का विषय नहीं है । | | विद्यालयों को इस विषय का भी विचार करना होगा । व्यक्तिगत जीवन में स्वच्छता का आग्रह अधिकांश लोग रखते हैं परन्तु सार्वजनिक स्थानों की स्वच्छता की दरकार कोई नहीं करता । यह भी कानून का विषय नहीं है । |
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− | 'कचरा' हमारा अधिकार है, सफाई करना नगरनिगम का कर्तव्य है, इस सूत्र पर चलने से काम नहीं बनता | यह प्रबोधन का विषय है। वास्तव में धर्माचार्यों ने इसे भी अपना विषय बनाना चाहिये । | + | 'कचरा' हमारा अधिकार है, सफाई करना नगरनिगम का कर्तव्य है, इस सूत्र पर चलने से काम नहीं बनता । यह प्रबोधन का विषय है। वास्तव में धर्माचार्यों ने इसे भी अपना विषय बनाना चाहिये । |
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| ===एक हाथ में लेने लायक अभियान=== | | ===एक हाथ में लेने लायक अभियान=== |
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| परिवारजनों से सीखने की कालावधि बालक बड़ा होकर अपने बालक को जन्म देता है तब तक की माननी चाहिये । यह पूरी पीढी की शिक्षा है । इसके मुख्य अंग इस प्रकार हैं | | परिवारजनों से सीखने की कालावधि बालक बड़ा होकर अपने बालक को जन्म देता है तब तक की माननी चाहिये । यह पूरी पीढी की शिक्षा है । इसके मुख्य अंग इस प्रकार हैं |
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− | शिशुअवस्था में कर्मेन्द्रियों, ज्ञानेन्द्रियों को सक्रिय बनाना, चलना, बोलना, खाना, सीखना, चित्त के माध्यम से संस्कार ग्रहण करना, जगत का परिचय प्राप्त करने की शरुआत करना | | + | शिशुअवस्था में कर्मेन्द्रियों, ज्ञानेन्द्रियों को सक्रिय बनाना, चलना, बोलना, खाना, सीखना, चित्त के माध्यम से संस्कार ग्रहण करना, जगत का परिचय प्राप्त करने की शरुआत करना । |
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| बाल और किशोर अवस्था में चरित्र के अनेक पहलुओं को सुदृढ़ बनाना, शरीर और मन को साधना, बुद्धि की सक्रियता का प्रास्भ करना, घरगृहस्थी चलाने हेतु आवश्यक सारे काम सीखना, परिवार का अंग बनने हेतु नियमन और अनुशासन में रहना । शिशु अवस्था में माता की भूमिका प्रमुख होती है और शेष सभी सहयोगी होते हैं। बाल तथा किशोर अवस्था में पिता की भूमिका प्रमुख होती है और शेष सभी सहयोगी होते हैं । | | बाल और किशोर अवस्था में चरित्र के अनेक पहलुओं को सुदृढ़ बनाना, शरीर और मन को साधना, बुद्धि की सक्रियता का प्रास्भ करना, घरगृहस्थी चलाने हेतु आवश्यक सारे काम सीखना, परिवार का अंग बनने हेतु नियमन और अनुशासन में रहना । शिशु अवस्था में माता की भूमिका प्रमुख होती है और शेष सभी सहयोगी होते हैं। बाल तथा किशोर अवस्था में पिता की भूमिका प्रमुख होती है और शेष सभी सहयोगी होते हैं । |
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| श्रेष्ठ और सुसंस्कृत समाज के लिये घर में होनेवाली इस शिक्षा का महत्त्व बहुत है। आज इस बात का विस्मरण हो गया है । घर केवल भोजन और निवास की व्यवस्था के केन्द्र बन गये हैं । मकान के रूप में सम्पत्ति बन गया है। इसे पुनः संस्कृति का केन्द्र बनाना शिक्षाविषयक चिन्तन का महत्त्वपूर्ण मुद्दा है । | | श्रेष्ठ और सुसंस्कृत समाज के लिये घर में होनेवाली इस शिक्षा का महत्त्व बहुत है। आज इस बात का विस्मरण हो गया है । घर केवल भोजन और निवास की व्यवस्था के केन्द्र बन गये हैं । मकान के रूप में सम्पत्ति बन गया है। इसे पुनः संस्कृति का केन्द्र बनाना शिक्षाविषयक चिन्तन का महत्त्वपूर्ण मुद्दा है । |
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− | ===२. बालक की विद्यालयीन शिक्षा का प्रारम्भ उचित समय पर हो=== | + | ===बालक की विद्यालयीन शिक्षा का प्रारम्भ उचित समय पर हो=== |
− | समाज में आम धारणा बन गई है कि शिक्षा विद्यालय में ही होती है । व्यक्ति के जीवन में शिक्षा अनिवार्य है, इसलिये उसका विद्यालय जाना भी अनिवार्य है । मातापिता को शिक्षा की इतनी जल्दी हो जाती है कि वे ढाई वर्ष की | + | समाज में आम धारणा बन गई है कि शिक्षा विद्यालय में ही होती है । व्यक्ति के जीवन में शिक्षा अनिवार्य है, इसलिये उसका विद्यालय जाना भी अनिवार्य है । मातापिता को शिक्षा की इतनी जल्दी हो जाती है कि वे ढाई वर्ष की आयु में ही बालक को विद्यालय में भेज देते हैं । यह कवल बालक के साथ ही नहीं तो शिक्षा के साथ और समाज के साथ भी अन्याय है । जल्दी करने से अधिक शिक्षा नहीं होती, जल्दी करने से अच्छी शिक्षा नहीं होती । उल्टे अनेक प्रकार से हानि होती है। दुनियाभर के शिक्षाशासत्री बालक की शिक्षा कम से कम पाँच वर्ष पूर्ण होने के बाद ही शुरू होनी चाहिये यह आग्रहपूर्वक कहते हैं । परन्तु देशमें पूर्व प्राथमिक, नर्सरी, के.जी., बालवाडी, शिशुविहार, शिशुवाटिका आदि नामों से यह शिक्षा जोरशोर से चलती है । अनेक स्थानों पर तो यह एक उद्योग बन गया है और कम्पनियाँ बनी हैं । बाजार के लोभ से और मातापिता के आअज्ञान से यह शिक्षा चलती है । शिक्षाशास्त्र, मनोविज्ञान, व्यवहारशास्त्र इस बात का समर्थन नहीं करते तो भी यह चलता है । कई विद्यालय तो अपने पूर्वप्राथमिक विभाग में यदि प्रवेश नहीं लिया तो आगे की शिक्षा के लिये प्रवेश ही नहीं देते । “शिशुशिक्षा' नामक यह वस्तु महँगी भी बहुत है । शिशु शिक्षा होनी चाहिये घर में, आग्रह रखा जाता है विद्यालय में होने का । इसका एक कारण घर अब शिक्षा के केन्द्र नहीं रहे यह भी है । इस विषय को ठीक करने हेतु एक बड़ा समाजव्यापी आन्दोलन करने की आवश्यकता है । परिवार प्रबोधन अर्थात् माता- पिता की शिक्षा इस आन्दोलन का महत्त्वपूर्ण अंग है । |
− | आयु में ही बालक को विद्यालय में भेज देते हैं । यह कवल बालक के साथ ही नहीं तो शिक्षा के साथ और समाज के साथ भी अन्याय है । जल्दी करने से अधिक शिक्षा नहीं होती, जल्दी करने से अच्छी शिक्षा नहीं होती । उल्टे अनेक प्रकार से हानि होती है। दुनियाभर के | |
− | शिक्षाशासत्री बालक की शिक्षा कम से कम पाँच वर्ष पूर्ण होने के बाद ही शुरू होनी चाहिये यह आग्रहपूर्वक कहते हैं । परन्तु देशमें पूर्व प्राथमिक, नर्सरी, के.जी., बालवाडी, शिशुविहार, शिशुवाटिका आदि नामों से यह शिक्षा जोरशोर से चलती है । अनेक स्थानों पर तो यह एक उद्योग बन गया है और कम्पनियाँ बनी हैं । बाजार के | |
− | लोभ से और मातापिता के आअज्ञान से यह शिक्षा चलती है । शिक्षाशास्त्र, मनोविज्ञान, व्यवहारशास्त्र इस बात का समर्थन नहीं करते तो भी यह चलता है । कई विद्यालय तो अपने | |
− | पूर्वप्राथमिक विभाग में यदि प्रवेश नहीं लिया तो आगे की शिक्षा के लिये प्रवेश ही नहीं देते । “शिशुशिक्षा' नामक यह वस्तु महँगी भी बहुत है । शिशु शिक्षा होनी चाहिये घर में, आग्रह रखा जाता है विद्यालय में होने का । इसका एक कारण घर अब शिक्षा के केन्द्र नहीं रहे यह भी है । इस | |
− | विषय को ठीक करने हेतु एक बड़ा समाजव्यापी आन्दोलन करने की आवश्यकता है । परिवार प्रबोधन अर्थात् माता- पिता की शिक्षा इस आन्दोलन का महत्त्वपूर्ण अंग है । | |
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− | ===३. प्राथमिक शिक्षा क्रिया और अनुभव प्रधान हो=== | + | ===प्राथमिक शिक्षा क्रिया और अनुभव प्रधान हो=== |
| शिक्षा विषयक एक अतिशय गलत धारणा यह बन गई है कि वह पढने लिखने से होती है। पुस्तकों और बहियों को, पढने और लिखने को इतना अधिक महत्त्व दिया जाता है कि शिक्षा होती है कि नहीं इस बात की ओर ध्यान ही नहीं है । अभिभावकों का आग्रह ऐसा होता है कि वे नियमन करने लगते हैं । | | शिक्षा विषयक एक अतिशय गलत धारणा यह बन गई है कि वह पढने लिखने से होती है। पुस्तकों और बहियों को, पढने और लिखने को इतना अधिक महत्त्व दिया जाता है कि शिक्षा होती है कि नहीं इस बात की ओर ध्यान ही नहीं है । अभिभावकों का आग्रह ऐसा होता है कि वे नियमन करने लगते हैं । |
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− | प्राथमिक शिक्षा ज्ञानेन्ट्रियों और कर्मन्द्रियों का विकास करने की शिक्षा है। यह क्रिया आधारित और अनुभव आधारित होनी चाहिये । वह ऐसी हो इसलिये पुस्तकें और लेखन सामग्री कम होनी चाहिये । | + | प्राथमिक शिक्षा ज्ञानेन्द्रियों और कर्मन्द्रियों का विकास करने की शिक्षा है। यह क्रिया आधारित और अनुभव आधारित होनी चाहिये । वह ऐसी हो इसलिये पुस्तकें और लेखन सामग्री कम होनी चाहिये । |
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| बालक को बस्ते की विशेष आवश्यकता ही नहीं है । परन्तु इस आयु में ही बस्ता बहुत भारी हो जाता है । | | बालक को बस्ते की विशेष आवश्यकता ही नहीं है । परन्तु इस आयु में ही बस्ता बहुत भारी हो जाता है । |
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− | विभिन्न विषय सीखने की पद्धतियाँ भी भिन्न भिन्न होती हैं । भाषा बोलकर, पढकर, लिखकर सीखी जाती है, गणित गणना कर, संगीत गाकर, विज्ञान प्रयोग कर, इतिहास कहानी सुनकर सीखे जाने वाले विषय हैं । एक विषय की पद्धति दूसरे विषय को लागू नहीं हो सकती | उदाहरण के लिये संगीत पढकर नहीं सीखा जाता । गणित और विज्ञान भी पढकर नहीं सीखे जाते । शिक्षकों और अभिभावकों को यह मुद्दा समझने की अत्यन्त आवश्यकता है । यह भारतीय शिक्षा का या प्राचीन | + | विभिन्न विषय सीखने की पद्धतियाँ भी भिन्न भिन्न होती हैं । भाषा बोलकर, पढकर, लिखकर सीखी जाती है, गणित गणना कर, संगीत गाकर, विज्ञान प्रयोग कर, इतिहास कहानी सुनकर सीखे जाने वाले विषय हैं । एक विषय की पद्धति दूसरे विषय को लागू नहीं हो सकती । उदाहरण के लिये संगीत पढकर नहीं सीखा जाता । गणित और विज्ञान भी पढकर नहीं सीखे जाते । शिक्षकों और अभिभावकों को यह मुद्दा समझने की अत्यन्त आवश्यकता है । यह भारतीय शिक्षा का या प्राचीन शिक्षा का नियम नहीं है, यह विश्वभर के मनुष्यमात्र की शिक्षा का सार्वकालीन नियम है । यह अभिभावक प्रबोधन का बहुत बड़ा विषय है । |
− | शिक्षा का नियम नहीं है, यह विश्वमर के मनुष्यमात्र की | |
− | शिक्षा का सार्वकालीन नियम है । यह अभिभावक प्रबोधन | |
− | का बहुत बड़ा विषय है । | |
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− | ===४. गृहकार्य, ट्यूशन, कोचिंग, गतिविधियाँ=== | + | ===गृहकार्य, ट्यूशन, कोचिंग, गतिविधियाँ=== |
− | शिक्षा को लेकर अभिभावकों के मनोमस्तिष्क इतने ग्रस्त और त्रस्त हैं कि कितने ही अकरणीय कार्य करने में वे | + | शिक्षा को लेकर अभिभावकों के मनोमस्तिष्क इतने ग्रस्त और त्रस्त हैं कि कितने ही अकरणीय कार्य करने में वे समय, शक्ति और पैसा खर्च करते हैं, साथ ही अपना तनाव और चिन्ता बढ़ा लेते हैं । |
− | समय, शक्ति और पैसा खर्च करते हैं, साथ ही अपना तनाव और चिन्ता बढ़ा लेते हैं । | |
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− | ऐसा एक मुद्दा गृहकार्य का है । बालकों के गृहकार्य का स्वरूप, गृहकार्य की मात्रा, गृहकार्य की पद्धति आदि सब अशाख्रीय ढंग से चलता है । गृहकार्य के रूप में विद्यालय घर में पहुँच जाता है । इसके चलते घर में सीखने लायक बातों की उपेक्षा होती है । उनके लिये समय ही | + | ऐसा एक मुद्दा गृहकार्य का है । बालकों के गृहकार्य का स्वरूप, गृहकार्य की मात्रा, गृहकार्य की पद्धति आदि सब अशास्त्रीय ढंग से चलता है । गृहकार्य के रूप में विद्यालय घर में पहुँच जाता है । इसके चलते घर में सीखने लायक बातों की उपेक्षा होती है । उनके लिये समय ही नहीं बचता है । गृहकार्य करने की पद्धति भी यान्त्रिक बन गई है। विद्यार्थी स्वयंप्रेरणासे गृहकार्य नहीं करते हैं। अभिभावकों को ध्यान देना पडता है । शिक्षकों को भय जगाना पड़ता है । |
− | नहीं बचता है । गृहकार्य करने की पद्धति भी यान्त्रिक बन | |
− | गई है। विद्यार्थी स्वयंप्रेरणासे गृहकार्य नहीं करते हैं। अभिभावकों को ध्यान देना पडता है । शिक्षकों को भय जगाना पड़ता है । | |
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− | अपने बालकों ने बहुत पढ़ना चाहिये ऐसी महत्त्वाकांक्षा से प्रेरित होकर मातापिता अपने बालकों को बहुत छोटी आयु में ही ट्यूशन के लिये भेजते हैं या अपने घर में शिक्षक को बुलाते हैं । कहीं कहीं तो तीन वर्ष के बालक के लिये भी स्यूशन होता है । कहीं कहीं बालक से | + | अपने बालकों ने बहुत पढ़ना चाहिये ऐसी महत्त्वाकांक्षा से प्रेरित होकर मातापिता अपने बालकों को बहुत छोटी आयु में ही ट्यूशन के लिये भेजते हैं या अपने घर में शिक्षक को बुलाते हैं । कहीं कहीं तो तीन वर्ष के बालक के लिये भी स्यूशन होता है । कहीं कहीं बालक से पिण्ड छुड़ाने के लिये भी उसे ट्यूशन में भेजा जाता है । कहीं कहीं गृहकार्य पूरा करवाने के लिये ट्यूशन में भेजा जाता है। यह तो बालक के साथ अन्याय है, उस पर अत्याचार है । |
− | पिण्ड छुड़ाने के लिये भी उसे ट्यूशन में भेजा जाता है | कहीं कहीं गृहकार्य पूरा करवाने के लिये ट्यूशन में भेजा | |
− | जाता है। यह तो बालक के साथ अन्याय है, उस पर अत्याचार है । | |
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| बालक थोडे बडे होते ही कोचिंग क्लास नामक प्रकरण शुरू हो जाता है । विभिन्न विषयों का कोचिंग होता है । दसवीं, बारहवीं, महाविद्यालयीन आदि सर्व स्तरों पर कोचिंग की महिमा बढ गई है । विद्यालयों से भी इनकी प्रतिष्ठा बढ गई है । इसके रूप में हम शिक्षाक्षेत्र को दूषित कर रहे हैं इसका भान शिक्षकों, अभिभावकों और कोचिंग देने वालों को नहीं है। इनके रूप में विषयों की परीक्षालक्षी शिक्षा होती है, विद्यार्थियों की शिक्षा नहीं होती यह मुद्दा विस्मृत हो गया है । शिक्षा का अग्रताक्रम ही बदल गया है । इस विषय पर अभिभावक प्रबोधन करने की आवश्यकता है । | | बालक थोडे बडे होते ही कोचिंग क्लास नामक प्रकरण शुरू हो जाता है । विभिन्न विषयों का कोचिंग होता है । दसवीं, बारहवीं, महाविद्यालयीन आदि सर्व स्तरों पर कोचिंग की महिमा बढ गई है । विद्यालयों से भी इनकी प्रतिष्ठा बढ गई है । इसके रूप में हम शिक्षाक्षेत्र को दूषित कर रहे हैं इसका भान शिक्षकों, अभिभावकों और कोचिंग देने वालों को नहीं है। इनके रूप में विषयों की परीक्षालक्षी शिक्षा होती है, विद्यार्थियों की शिक्षा नहीं होती यह मुद्दा विस्मृत हो गया है । शिक्षा का अग्रताक्रम ही बदल गया है । इस विषय पर अभिभावक प्रबोधन करने की आवश्यकता है । |
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| सर्वांगीण विकास की संकल्पना को स्पष्ट करना और उसके लिये क्या करना और विशेष रूप से क्या नहीं करना यह भी अभिभावक प्रबोधन का विषय है । | | सर्वांगीण विकास की संकल्पना को स्पष्ट करना और उसके लिये क्या करना और विशेष रूप से क्या नहीं करना यह भी अभिभावक प्रबोधन का विषय है । |
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− | ===५. अंग्रेजी माध्यम का मोह=== | + | ===अंग्रेजी माध्यम का मोह=== |
| अभिभावकों को अंग्रेजी का इतना अधिक आकर्षण होता है कि वे अपने बालकों को मातृभाषा सिखाने से पहले ही अंग्रेजी सिखाना प्रारम्भ करते हैं । बालक को भविष्य में विदेश भेजना है इसलिये अंग्रेजी अनिवार्य है यह तर्क देकर वे दो वर्ष की आयु से अंग्रेजी सिखाना शुरु कर देते हैं और अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय में भेजते हैं । इससे न मातृभाषा आती है न वे अपनी संस्कृति से जुडते हैं । अंग्रेजी माध्यम में पढने से विचार करने की, चिन्तन की, विषय को ग्रहण करने की, अभिव्यक्ति की, मौलिकता की बौद्धिक शक्तियों का विकास नहीं होता इस बडे भारी नुकसान की ओर ध्यान ही नहीं जाता है । व्यक्तिगत रूप से या सामाजिक रूप से मौलिक और स्वतन्त्र चिन्तन का ह्रास अंग्रेजी के लिये चुकानी पड़ने वाली भारी कीमत है । परिवार प्रबोधन के बिना इसका परिहार होने वाला | | अभिभावकों को अंग्रेजी का इतना अधिक आकर्षण होता है कि वे अपने बालकों को मातृभाषा सिखाने से पहले ही अंग्रेजी सिखाना प्रारम्भ करते हैं । बालक को भविष्य में विदेश भेजना है इसलिये अंग्रेजी अनिवार्य है यह तर्क देकर वे दो वर्ष की आयु से अंग्रेजी सिखाना शुरु कर देते हैं और अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय में भेजते हैं । इससे न मातृभाषा आती है न वे अपनी संस्कृति से जुडते हैं । अंग्रेजी माध्यम में पढने से विचार करने की, चिन्तन की, विषय को ग्रहण करने की, अभिव्यक्ति की, मौलिकता की बौद्धिक शक्तियों का विकास नहीं होता इस बडे भारी नुकसान की ओर ध्यान ही नहीं जाता है । व्यक्तिगत रूप से या सामाजिक रूप से मौलिक और स्वतन्त्र चिन्तन का ह्रास अंग्रेजी के लिये चुकानी पड़ने वाली भारी कीमत है । परिवार प्रबोधन के बिना इसका परिहार होने वाला |
| नहीं है । | | नहीं है । |
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− | ===६. सांस्कृतिक विषयों की उपेक्षा=== | + | ===सांस्कृतिक विषयों की उपेक्षा=== |
| आजकल शिक्षा अनेक अप्राकृतिक बन्धनों में जकडी गई है । सांस्कृतिक विषयों की उपेक्षा इसमें एक है । आज | | आजकल शिक्षा अनेक अप्राकृतिक बन्धनों में जकडी गई है । सांस्कृतिक विषयों की उपेक्षा इसमें एक है । आज |
− | शिक्षा, गणित, विज्ञान, अंग्रेजी और कम्प्यूटर में सिमट गई है । इनको छोडकर सारे विषय फालतू हैं । आगे चलकर तन्त्रज्ञान, चिकित्सा, प्रबन्धन, संगणक विज्ञान, वाणिज्य | + | शिक्षा, गणित, विज्ञान, अंग्रेजी और कम्प्यूटर में सिमट गई है । इनको छोडकर सारे विषय फालतू हैं । आगे चलकर तन्त्रज्ञान, चिकित्सा, प्रबन्धन, संगणक विज्ञान, वाणिज्य महत्त्वपूर्ण विषय बन जाते हैं । इनके लिये आवश्यक हैं इसलिये प्रारम्भ में गणित और विज्ञान पढने हैं । गणित और विज्ञान में विषय के नाते रुचि नहीं है। इतिहास, समाजशास्त्र, तत्त्वज्ञान, गृहकार्य आदि सांस्कृतिक विषयों |
− | महत्त्वपूर्ण विषय बन जाते हैं । इनके लिये आवश्यक हैं इसलिये प्रारम्भ में गणित और विज्ञान पढने हैं । गणित और विज्ञान में विषय के नाते रुचि नहीं है। इतिहास, समाजशास्त्र, तत्त्वज्ञान, गृहकार्य आदि सांस्कृतिक विषयों | |
| की घोर उपेक्षा हो रही है । ये सब पढने लायक विषय नहीं हैं। भाषा और साहित्य की ओर भी सुझान नहीं है। भाषाशुद्धि का आग्रह समाप्त हो गया है । इसका परिणाम यह होता है कि सामाजिकता, सभ्यता, शिष्टता, संस्कारिता, सामाजिक दायित्वबोध, देशभक्ति, मानवीय गुण आदि की शिक्षा नहीं मिलती है । मनुष्य एक यान्त्रिक, पशुतुल्य, आर्थिक प्राणी बनकर रह जाता है । यान्त्रिक शिष्टाचार और सभ्यता विकसित होती है । मानवीय सम्बन्धों को स्वार्थ की प्रेरणा होती है । अर्थात् व्यक्ति अपने सुख का विचार कर दूसरों से सम्बन्ध बनाता है । अपने लिये भी वह हित का नहीं, सुख का ही विचार करता है । भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति को ही पुरुषार्थ मानता है, शिक्षा का प्रयोजन भी वही है और वह प्राप्त कर सकने को यश मानता है । अधिक से अधिकतर की ओर गति को ही विकास मानता है और उसे ऐसा विकास ही चाहिये । | | की घोर उपेक्षा हो रही है । ये सब पढने लायक विषय नहीं हैं। भाषा और साहित्य की ओर भी सुझान नहीं है। भाषाशुद्धि का आग्रह समाप्त हो गया है । इसका परिणाम यह होता है कि सामाजिकता, सभ्यता, शिष्टता, संस्कारिता, सामाजिक दायित्वबोध, देशभक्ति, मानवीय गुण आदि की शिक्षा नहीं मिलती है । मनुष्य एक यान्त्रिक, पशुतुल्य, आर्थिक प्राणी बनकर रह जाता है । यान्त्रिक शिष्टाचार और सभ्यता विकसित होती है । मानवीय सम्बन्धों को स्वार्थ की प्रेरणा होती है । अर्थात् व्यक्ति अपने सुख का विचार कर दूसरों से सम्बन्ध बनाता है । अपने लिये भी वह हित का नहीं, सुख का ही विचार करता है । भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति को ही पुरुषार्थ मानता है, शिक्षा का प्रयोजन भी वही है और वह प्राप्त कर सकने को यश मानता है । अधिक से अधिकतर की ओर गति को ही विकास मानता है और उसे ऐसा विकास ही चाहिये । |
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− | ===७. वैश्विकता का आकर्षण=== | + | ===वैश्विकता का आकर्षण=== |
| शिक्षा अब स्वतः प्रमाण नहीं रही है । अर्थात् शिक्षा | | शिक्षा अब स्वतः प्रमाण नहीं रही है । अर्थात् शिक्षा |
− | अपने आपको अपने ही बल पर प्रमाणित नहीं करती | | + | अपने आपको अपने ही बल पर प्रमाणित नहीं करती । |
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− | व्यक्ति की भाषा, व्यक्ति का व्यवहार, व्यक्ति का दृष्टिकोण उसके शिक्षित होने का प्रमाण है। व्यक्ति के संस्कार, सद्गुण और सत्कार्य उसके शिक्षित होने का प्रमाण है । लिखित प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं होती है । किसी और ने प्रमाणित करने की बाध्यता नहीं होती । परन्तु हमने इन स्वाभाविक प्रमाणपत्रों के स्थान पर कृत्रिम और औपचारिक प्रमाणों की व्यवस्था की । सच्ची शिक्षा से विमुख होने का यह प्रारम्भ हुआ । इस व्यवस लिये संस्था और प्रक्रिया दोनों की आवश्यकता थी | इसलिये परीक्षा नामक प्रक्रिया और प्रमाणित करने वाला बोर्ड नामक संस्था बनी । | + | व्यक्ति की भाषा, व्यक्ति का व्यवहार, व्यक्ति का दृष्टिकोण उसके शिक्षित होने का प्रमाण है। व्यक्ति के संस्कार, सद्गुण और सत्कार्य उसके शिक्षित होने का प्रमाण है । लिखित प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं होती है । किसी और ने प्रमाणित करने की बाध्यता नहीं होती । परन्तु हमने इन स्वाभाविक प्रमाणपत्रों के स्थान पर कृत्रिम और औपचारिक प्रमाणों की व्यवस्था की । सच्ची शिक्षा से विमुख होने का यह प्रारम्भ हुआ । इस व्यवस्था के लिये संस्था और प्रक्रिया दोनों की आवश्यकता थी । इसलिये परीक्षा नामक प्रक्रिया और प्रमाणित करने वाला बोर्ड नामक संस्था बनी । |
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− | अब हमें शिक्षा से प्राप्त ज्ञान की नहीं अपितु परीक्षा के परिणाम स्वरूप मिलने वाले प्रमाणपत्र की आवश्यकता है क्योंकि नौकरी उससे मिलती है । ज्ञान की ही परीक्षा होती है और उसमें उत्तीर्ण होने पर ही प्रमाणपत्र मिलेगा यह | + | अब हमें शिक्षा से प्राप्त ज्ञान की नहीं अपितु परीक्षा के परिणाम स्वरूप मिलने वाले प्रमाणपत्र की आवश्यकता है क्योंकि नौकरी उससे मिलती है । ज्ञान की ही परीक्षा होती है और उसमें उत्तीर्ण होने पर ही प्रमाणपत्र मिलेगा यह स्वाभाविक क्रम है परन्तु यह सम्बन्ध विच्छेद कब हो गया इसका पता भी नहीं चला और वह हो गया । प्रमाणपत्र के बिना भी ज्ञान होता है इसका भी विस्मरण हो गया । |
− | स्वाभाविक क्रम है परन्तु यह सम्बन्ध विच्छेद कब हो गया | |
− | इसका पता भी नहीं चला और वह हो गया । प्रमाणपत्र के बिना भी ज्ञान होता है इसका भी विस्मरण हो गया । | |
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− | इसे प्रमाणित करने वाली भी विविध प्रकार की | + | इसे प्रमाणित करने वाली भी विविध प्रकार की संस्थायें होती हैं । ये स्थानिक, प्रान्तीय, अखिल भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय होती हैं । अब विकास की दौड में सब को अन्तरराष्ट्रीय संस्था का आकर्षण हो गया है। सब को लगता है कि अन्तर्राष्ट्रीय बोर्ड का प्रमाणपत्र अधिक प्रतिष्ठित है । अब ज्ञान, संस्कार, चरित्र, सामाजिकता, मानवीयता आदि अर्थहीन और अप्रासंगिक बातें हो गई हैं । वैश्विकता ही विकास है । |
− | संस्थायें होती हैं । ये स्थानिक, प्रान्तीय, अखिल भारतीय | |
− | और आर्न्तर्रष्ट्रीय होती हैं । | |
− | | |
− | अब विकास की दौड में सब को अन्तरराष्ट्रीय संस्था का आकर्षण हो गया है। सब को लगता है कि आन्तर्राष्ट्रीय बोर्ड का प्रमाणपत्र अधिक प्रतिष्ठित है । अब ज्ञान, संस्कार, चरित्र, सामाजिकता, मानवीयता आदि अर्थहीन और अप्रासंगिक बातें हो गई हैं । वैश्विकता ही विकास है । | |
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| यह कोई उचित दिशा नहीं है । इस विषय में प्रबोधन की आवश्यकता है । | | यह कोई उचित दिशा नहीं है । इस विषय में प्रबोधन की आवश्यकता है । |
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− | ===८. जीवनविषयक दृष्टि की विपरीतता=== | + | ===जीवनविषयक दृष्टि की विपरीतता=== |
− | जीवन को भौतिकता की दृष्टि से ही देखने का | + | जीवन को भौतिकता की दृष्टि से ही देखने का प्रभाव शिक्षा पर पड रहा है । ऐसे दृष्टिकोण का बढ़ना और सार्वत्रिक होना शिक्षा का ही परिणाम है। परन्तु अब उससे निपटना और उसमें बदल करना केवल शिक्षाक्षेत्र के बस की बात नहीं रही । अभिभावकों के सहयोग के बिना यह कार्य होना असम्भव है । इस दृष्टि से शिक्षा, जीवन, संस्कृति आदि विषयों को लेकर अभिभावक प्रबोधन की व्यापक योजना होने की आवश्यकता है । वर्तमान स्थिति ऐसी है कि अभिभावक विद्यालय के अनुकूल नहीं बनते विद्यालय अभिभावकों के अनुकूल हो ऐसा मानस अभिभावक रखते हैं । विद्यालय कभी मजबूरी में और कभी स्वाभाविक रूप में इस भूमिका को स्वीकार करते हैं क्योंकि बाजार का दृष्टिकोण सर्वत्र प्रतिष्ठित हो गया है जहाँ अभिभावक ग्राहक हैं और विद्यालय शिक्षा को बेचने वाले हैं । ग्राहकों के अनुकूल होना व्यापारी का धर्म होता है । |
− | प्रभाव शिक्षा पर पड रहा है । ऐसे दृष्टिकोण का बढ़ना और सार्वत्रिक होना शिक्षा का ही परिणाम है। परन्तु अब उससे निपटना और उसमें बदल करना केवल शिक्षाक्षेत्र के बस की बात नहीं रही । अभिभावकों के सहयोग के बिना यह कार्य होना असम्भव | |
− | है । इस दृष्टि से शिक्षा, जीवन, संस्कृति आदि विषयों को लेकर अभिभावक प्रबोधन की व्यापक योजना होने की आवश्यकता है । वर्तमान स्थिति ऐसी है कि अभिभावक विद्यालय के अनुकूल नहीं बनते विद्यालय अभिभावकों के अनुकूल हो ऐसा मानस अभिभावक रखते हैं । विद्यालय कभी मजबूरी में और कभी स्वाभाविक रूप में इस भूमिका को स्वीकार करते हैं क्योंकि बाजार का दृष्टिकोण सर्वत्र प्रतिष्ठित हो गया है जहाँ अभिभावक ग्राहक हैं और विद्यालय शिक्षा को बेचने वाले हैं । ग्राहकों के अनुकूल होना व्यापारी का धर्म होता है । | |
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− | इन विषयों की शैक्षिक दृष्टि से विस्तारपूर्वक चर्चा अन्यत्र स्वतन्त्र रूप से की गई है। यहाँ उसकी आवश्यकता नहीं । यहाँ अभिभावक प्रबोधन के विषय | + | इन विषयों की शैक्षिक दृष्टि से विस्तारपूर्वक चर्चा अन्यत्र स्वतन्त्र रूप से की गई है। यहाँ उसकी आवश्यकता नहीं । यहाँ अभिभावक प्रबोधन के विषय कौन से हैं और उनकी योजना कैसे करना इसका विचार किया है । |
− | कौन से हैं और उनकी योजना कैसे करना इसका विचार किया है । | |
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| यहाँ जिन विषयों का उल्लेख हुआ हैं उनको ठीक करना असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है क्योंकि ये देशव्यापी हैं, अत्यन्त प्रभावी रूप से पकड जमाये हुए हैं । सम्पूर्ण समाज कहीं न कहीं अभिभावक के रूप में ही व्यवहार करता है । सरकार भी इसका ही एक अंग है । बाजार ने इस पर पकड जमाई है । विज्ञापन मानस को प्रभावित करते हैं । | | यहाँ जिन विषयों का उल्लेख हुआ हैं उनको ठीक करना असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है क्योंकि ये देशव्यापी हैं, अत्यन्त प्रभावी रूप से पकड जमाये हुए हैं । सम्पूर्ण समाज कहीं न कहीं अभिभावक के रूप में ही व्यवहार करता है । सरकार भी इसका ही एक अंग है । बाजार ने इस पर पकड जमाई है । विज्ञापन मानस को प्रभावित करते हैं । |
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− | परन्तु विषय गम्भीर है। जीवन की सर्वप्रकार की गुणवत्ता का ह्रास हो रहा है । मनुष्यजीवन और पशुजीवन में जो अन्तर होता है वही समाप्त होता जा रहा है । इतना ही क्यों, पशु तो फिर भी प्राकृतिक जीवन जीते हैं और अनेक प्रकार की समस्याओं से बच जाते हैं । मनुष्य सुसंस्कृत जीवन व्यतीत करे ऐसी उससे अपेक्षा होती है परन्तु संस्कृति के शिखर से च्युत होने पर वह प्राकृत नहीं होता, विकृति के गर्त में गिरता है । मनुष्य जीवन को अपने ही द्वारा निर्मित समस्याओं के परिणाम स्वरूप विकृत हो | + | परन्तु विषय गम्भीर है। जीवन की सर्वप्रकार की गुणवत्ता का ह्रास हो रहा है । मनुष्यजीवन और पशुजीवन में जो अन्तर होता है वही समाप्त होता जा रहा है । इतना ही क्यों, पशु तो फिर भी प्राकृतिक जीवन जीते हैं और अनेक प्रकार की समस्याओं से बच जाते हैं । मनुष्य सुसंस्कृत जीवन व्यतीत करे ऐसी उससे अपेक्षा होती है परन्तु संस्कृति के शिखर से च्युत होने पर वह प्राकृत नहीं होता, विकृति के गर्त में गिरता है । मनुष्य जीवन को अपने ही द्वारा निर्मित समस्याओं के परिणाम स्वरूप विकृत हो जाने की स्थिति आज निर्माण हुई है । शिक्षा को लेकर अभिभावक प्रबोधन का प्रयोजन शिक्षा को और शिक्षा क माध्यम से मनुष्यजीवन को विकृति से बचाना है, विकृति के गर्त से बाहर लाना है। परिवार अभिभावक के लिये पर्यायवाची संज्ञा है अतः हम अभिभावक प्रबोधन को परिवार प्रबोधन ही कहेंगे । |
− | जाने की स्थिति आज निर्माण हुई है । शिक्षा को लेकर अभिभावक प्रबोधन का प्रयोजन शिक्षा को और शिक्षा क माध्यम से मनुष्यजीवन को विकृति से बचाना है, विकृति के गर्त से बाहर लाना है। परिवार अभिभावक के लिये पर्यायबाची संज्ञा है अतः हम अभिभावक प्रबोधन को | |
− | परिवार प्रबोधन ही कहेंगे । | |
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| परिवार प्रबोधन की योजना का पहला अंग है परिवार प्रबोधन का पाठ्यक्रम तैयार करना जिसके आधार पर आगे | | परिवार प्रबोधन की योजना का पहला अंग है परिवार प्रबोधन का पाठ्यक्रम तैयार करना जिसके आधार पर आगे |
− | की योजना बनेगी । पाठ्यक्रम के विषय कुछ इस प्रकार हो सकते हैं... | + | की योजना बनेगी। पाठ्यक्रम के विषय कुछ इस प्रकार हो सकते हैं... |
| # परिवार का अर्थ, परिवार का महत्त्व, सामाजिक, सांस्कृतिक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य | | # परिवार का अर्थ, परिवार का महत्त्व, सामाजिक, सांस्कृतिक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य |
| # परिवार की रचना, परिवार भावना एवं परिवार व्यवस्था | | # परिवार की रचना, परिवार भावना एवं परिवार व्यवस्था |
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| ये तो एक भूमिका बनाने के अधारभूत विषय हैं । इसके बाद व्यावहारिक विषयों की सूची बन सकती है । | | ये तो एक भूमिका बनाने के अधारभूत विषय हैं । इसके बाद व्यावहारिक विषयों की सूची बन सकती है । |
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− | परिवार रचना हेतु आवश्यक विषय | + | ==== परिवार रचना हेतु आवश्यक विषय ==== |
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| #वरवधूचयन और विवाहसंस्कार | | #वरवधूचयन और विवाहसंस्कार |
| #समर्थ राष्ट्र हेतु समर्थ बालक को जन्म देने वाले समर्थ मातापिता बनने की शिक्षा | | #समर्थ राष्ट्र हेतु समर्थ बालक को जन्म देने वाले समर्थ मातापिता बनने की शिक्षा |
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| #परिवार और कुलपरम्परा | | #परिवार और कुलपरम्परा |
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− | परिवार और समाज के अन्तर्सम्बन्ध के विषय | + | ==== परिवार और समाज के अन्तर्सम्बन्ध के विषय ==== |
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| #गृहस्थाश्रमी का समाजधर्म | | #गृहस्थाश्रमी का समाजधर्म |
| #परिवार और राष्ट्र, धर्म, संस्कृति | | #परिवार और राष्ट्र, धर्म, संस्कृति |
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| परिवार संचालन हेतु उपयोगी विषय : ये विषय सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक दोनों आयामों में होंगे । | | परिवार संचालन हेतु उपयोगी विषय : ये विषय सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक दोनों आयामों में होंगे । |
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− | # आहारशास्त्र जिसमें भोजन बनाना, करना और करवाना, भोजनसामग्री की शुद्धता की परख आदि बातों का समावेश होगा । | + | # आहारशास्त्र जिसमें भोजन बनाना, करना और करवाना, भोजनसामग्री की शुद्धता की परख आदि बातों का समावेश होगा। |
| # शुश्रूषा और परिचर्या करना जिसमें बच्चों की, वृद्धों की अतिथि की, बडों की और रुण्णों की परिचर्या और शुश्रूषा का समावेश होगा । | | # शुश्रूषा और परिचर्या करना जिसमें बच्चों की, वृद्धों की अतिथि की, बडों की और रुण्णों की परिचर्या और शुश्रूषा का समावेश होगा । |
| # गृहोपयोगी कार्य जिसमें कपडे, बर्तन, फर्नीचर, धान्य आदि अनेक बातों की सफाई का समावेश होगा । | | # गृहोपयोगी कार्य जिसमें कपडे, बर्तन, फर्नीचर, धान्य आदि अनेक बातों की सफाई का समावेश होगा । |
− | # इन्हीं के साथ पूजा, अतिथिसत्कार, ब्रतों, vat, उत्सवों, त्योहारों आदि को मनाना, दान-यज्ञ आदि करना, ब्रत-उपवास आदि करना इन सब का समावेश होगा । | + | # इन्हीं के साथ पूजा, अतिथिसत्कार, ब्रतों, vat, उत्सवों, त्योहारों आदि को मनाना, दान-यज्ञ आदि करना, व्रत-उपवास आदि करना इन सब का समावेश होगा । |
| # अथर्जिन की क्षमता का विकास | | # अथर्जिन की क्षमता का विकास |
| # अधिजननशास्त्र | | # अधिजननशास्त्र |
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| इस पाठ्यक्रम में और भी विषय हो सकते हैं। आवश्यकता और सम्भावना के आधार पर अपनी अपनी सूची बनाई जा सकती है । | | इस पाठ्यक्रम में और भी विषय हो सकते हैं। आवश्यकता और सम्भावना के आधार पर अपनी अपनी सूची बनाई जा सकती है । |
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− | पाठ्यक्रम निर्माण करने के बाद सामग्री की | + | पाठ्यक्रम निर्माण करने के बाद सामग्री की आवश्यकता रहेगी । विभिन्न सन्दर्भ ग्रन्थों का अध्ययन कर अनेक प्रकार की सामग्री तैयार करनी चाहिये । जैसे कि |
− | आवश्यकता रहेगी । विभिन्न सन्दर्भ ग्रन्थों का अध्ययन कर अनेक प्रकार की सामग्री तैयार करनी चाहिये । जैसे कि | + | # पुस्तकें : छोटी छोटी पुस्तिकाओं से लेकर बडे ग्रन्थ |
− | | + | # चित्र और आलेखों की प्रदर्शनी |
− | 1. पुस्तकें : छोटी छोटी पुस्तिकाओं से लेकर बडे ग्रन्थ
| + | # दृश्यश्राव्य सामग्री : सी.डी., फिल्म आदि |
− | | + | # कहानी, गीतों, प्रेरक घटनाओं का संग्रह |
− | 2. चित्र और आलेखों की प्रदर्शनी
| + | # खिलौने, वस्त्र, खाद्य पदार्थ, सुशोभन सामग्री, पात्रसंग्रह, स्वच्छता का सामान आदि का संग्रहालय तथा प्रदर्शनी |
− | | + | # नुक्कड नाटकों के लिये छोटे छोटे नाटक |
− | 3. दृश्यश्राव्य सामग्री : सी.डी., फिल्म आदि
| + | # सभा सम्मेलनों के लिये भाषण, गीत आदि |
− | | + | # रैलियों के लिये गीत, फलक, नारे, सूत्र आदि |
− | 4. कहानी, गीतों, प्रेरक घटनाओं का संग्रह
| + | # वॉट्सएप, फेसबुक आदि के लिये विडियो क्लीप्स, सन्देश, चित्र आदि |
− | | + | # विद्यास्भ संस्कार, जन्मदिनोत्सव आदि मनाने में मार्गदर्शक सामग्री |
− | 5. खिलौने, वस्त्र, खाद्य पदार्थ, सुशोभन सामग्री, पात्रसंग्रह, स्वच्छता का सामान आदि का संग्रहालय तथा प्रदर्शनी
| + | इन्हें सिखाने की योजना करना तथा पढ़ाने की योजना करना सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है । इस दृष्टि से कुछ इस प्रकार से विचार किया जा सकता है: |
− | | + | # शिक्षा के सर्व स्तरों पर सामान्य पाठ्यक्रम के अन्तर्गत इन विषयों का समावेश करना । |
− | 6. नुक्कड नाटकों के लिये छोटे छोटे नाटक
| + | # विद्यालय में जिस प्रकार प्राथमिक, माध्यमिक आदि विभाग होते हैं उस प्रकार परिवार शिक्षा विभाग हो सकता है । |
− | | + | # इन विषयों को सिखाने के लिये शिक्षक तैयार करने हेतु शिक्षक शिक्षा भी शुरू करनी होगी । |
− | 7. सभा सम्मेलनों के लिये भाषण, गीत आदि
| + | # विश्वविद्यालयों में गृहशास्तर, अधिजननशास्त्र जैसे विषय शुरू किये जा सकते हैं । |
− | | + | # विभिन्न सामाजिक सांस्कृतिक संस्था एवं संगठनों में छोटे छोटे पाठ्यक्रम, व्याख्यानमाला, कार्यशाला आदि की योजना हो सकती है । |
− | 8. रेलियों के लिये गीत, फलक, नारे, सूत्र आदि
| + | # सभाओं, सम्मेलनों, मेलों आदि में पुस्तक तथा अन्य सामग्री के वितरण की योजना बन सकती है । |
− | | + | # विद्यालय तथा अन्य संस्थायें प्रभातफेरियों, नुक्कड, नाटकों, रैलियों का आयोजन कर सकते हैं । |
− | 9. वॉट्सएप, फेसबुक आदि के लिये विडियो क्लीप्स, सन्देश, चित्र आदि
| + | # कीर्तनकारों और कथाकारों को इन विषयों को अपनी कथाओं के माध्यम से समाज तक पहुँचाने हेतु निवेदन किया जा सकता है । |
− | | + | # धारावाहिकों और फिल्मों को इन विषयों को चुनने का निवेदन भी किया जा सकता है । |
− | 10. विद्यास्भ संस्कार, जन्मदिनोत्सव आदि मनाने में
| + | # अन्तर्जाल का माध्यम भी इस विषय के प्रसार हेतु उपयोग में आ सकता है । |
− | मार्गदर्शक सामग्री | + | # गृहविद्यापीठ की रचना भी होनी चाहिये । |
− | | + | सामाजिकता की पर्यायोगिक शिक्षा: किसी भी हालत में यह विषय सरकारी मान्यता, अनुदान, प्रमाणपत्र आदि का विषय नहीं बनाना चाहिये ।यह समाज की आवश्यकता का विषय है, समाज को अपने बलबूते पर ही उसे क्रियान्वित करना चाहिये । शिक्षाक्षेत्र को इसमें अग्रसर की भूमिका लेनी चाहिये । यह ज्ञान, संस्कार, संस्कृति और धर्म का क्षेत्र है, बाजार और राज्य का नहीं । उसे उसी रूप में विकसित करना चाहिये । |
− | ३. इन्हें सिखाने की योजना करना तथा पढ़ाने की योजना करना सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है । इस दृष्टि से कुछ इस प्रकार से विचार किया जा सकता है...
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− | | |
− | १, शिक्षा के सर्व स्तरों पर सामान्य पाठ्यक्रम के
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− | अन्तर्गत इन विषयों का समावेश करना । | |
− | | |
− | २. विद्यालय में जिस प्रकार प्राथमिक, माध्यमिक आदि
| |
− | विभाग होते हैं उस प्रकार परिवार शिक्षा विभाग हो | |
− | सकता है । | |
− | | |
− | ३. इन विषयों को सिखाने के लिये
| |
− | शिक्षक तैयार करने हेतु शिक्षक शिक्षा भी शुरू करनी | |
− | होगी । | |
− | | |
− | ४. विश्वविद्यालयों में गृहशास्तर, अधिजननशास््र जैसे
| |
− | विषय शुरू किये जा सकते हैं । | |
− | | |
− | ५. विभिन्न सामाजिक सांस्कृतिक संस्था एवं संगठनों में
| |
− | छोटे छोटे पाठ्यक्रम, व्याख्यानमाला, कार्यशाला | |
− | आदि की योजना हो सकती है । | |
− | | |
− | ६. सभाओं, सम्मेलनों, मेलों आदि में पुस्तक तथा अन्य
| |
− | सामग्री के वितरण की योजना बन सकती है । | |
− | | |
− | ७. विद्यालय तथा अन्य संस्थायें प्रभातफेरियों, नुक्कड,
| |
− | नाटकों, रेलियों का आयोजन कर सकते हैं । | |
− | | |
− | ८. कीर्तनकारों और कथाकारों को इन विषयों को अपनी कथाओं के माध्यम से समाज तक पहुँचाने हेतु निवेदन किया जा सकता है ।
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− | | |
− | ९. धारावाहिकों और फिल्मों को इन विषयों को चुनने
| |
− | का निवेदन भी किया जा सकता है । | |
− | | |
− | १०. अन्तर्जाल का माध्यम भी इस विषय के प्रसार हेतु
| |
− | उपयोग में आ सकता है । | |
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− | ११. गृहविद्यापीठ की रचना भी होनी चाहिये ।
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− | | |
− | सामाजिकता की पर्यायोगिक शिक्षा | |
− | | |
− | किसी भी हालत में यह विषय सरकारी मान्यता, | |
− | अनुदान, प्रमाणपत्र आदि का विषय नहीं बनाना चाहिये । | |
− | यह समाज की आवश्यकता का विषय है, समाज को अपने
| |
− | बलबूते पर ही उसे क्रियान्वित करना चाहिये । शिक्षाक्षेत्र | |
− | को इसमें अग्रसर की भूमिका लेनी चाहिये । यह ज्ञान, | |
− | संस्कार, संस्कृति और धर्म का क्षेत्र है, बाजार और राज्य | |
− | का नहीं । उसे उसी रूप में विकसित करना चाहिये । | |
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− | Ro.
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− | 8.
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| === सामाजिकता की प्रायोगिक शिक्षा === | | === सामाजिकता की प्रायोगिक शिक्षा === |
Line 524: |
Line 447: |
| * एकदूसरे के घर जाने का अवसर निर्माण करना । | | * एकदूसरे के घर जाने का अवसर निर्माण करना । |
| * एक गट के विद्यार्थियों के परिवारों में भी परिचय और आत्मीयता बढ़ाना । | | * एक गट के विद्यार्थियों के परिवारों में भी परिचय और आत्मीयता बढ़ाना । |
− | * इन गटों की रचना में अमीर गरीब, ऊँच नीच, जाति पाँति का भेद गल जाय ऐसी रचना करना | | + | * इन गटों की रचना में अमीर गरीब, ऊँच नीच, जाति पाँति का भेद गल जाय ऐसी रचना करना । |
| * इस दृष्टि से विद्यालयीन व्यवहार में गुणों का सम्मान करने का प्रचलन बनाना चाहिये, धन, सत्ता या वर्णजाति की उच्चता का नहीं । इन आधारों पर विद्यालय से बाहर के जीवन में भी मित्रता विकसित हो सके यह देखना चाहिये । | | * इस दृष्टि से विद्यालयीन व्यवहार में गुणों का सम्मान करने का प्रचलन बनाना चाहिये, धन, सत्ता या वर्णजाति की उच्चता का नहीं । इन आधारों पर विद्यालय से बाहर के जीवन में भी मित्रता विकसित हो सके यह देखना चाहिये । |
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