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== मान्यताओं की बुद्धियुक्तता ==
 
== मान्यताओं की बुद्धियुक्तता ==
जैसे ऊपर कहा है की किसी भी विषय का प्रारम्भ तो कुछ मान्यताओं से ही होता है| इसलिए मान्यता तो सभी समाजों की होती हैं| मनुष्य यह एक बुद्धिशील जीव है| इसलिए इसे जो मान्यताएँ बुद्धियुक्त होंगी उन्हें मानना चाहिए| विश्व निर्माण की भारतीय मान्यता को स्वीकार करनेपर प्रश्नों के बुद्धियुक्त उत्तर प्राप्त हो जाते हैं| इसलिए इन मान्यताओंपर विश्वास रखना iiतथा इन्हें मानकर व्यवहार करना अधिक उचित है| भारतीय विज्ञान त्यह मानता है कि सृष्टि की रचना की गयी है| यह करनेवाला परमात्मा है| जिस प्रकार से मकडी अपने शरीरसे ही अपने जाल के तंतु निर्माण कर उसीमं निवास करती है, उसी तरह से इस परमात्माने सृष्टि को अपने में से ही बनाया है और उसी में वास करा रहा है| इसकिये चराचर सृष्टि के कण कण में परमात्मा है| |
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किसी भी विषय का प्रारम्भ तो कुछ मान्यताओं से ही होता है | इसलिए मान्यता तो सभी समाजों की होती हैं | मनुष्य एक बुद्धिशील जीव है | इसलिए मनुष्य को जो मान्यताएँ बुद्धियुक्त लगें, उन्हें मानना चाहिए | विश्व निर्माण की भारतीय मान्यता को स्वीकार करने पर प्रश्नों के बुद्धियुक्त उत्तर प्राप्त हो जाते हैं | इसलिए इन मान्यताओं पर विश्वास रखना तथा इन्हें मानकर व्यवहार करना अधिक उचित है | भारतीय विज्ञान यह मानता है कि सृष्टि की रचना की गयी है | यह करने वाला परमात्मा है | जिस प्रकार से मकडी अपने शरीर से ही अपने जाल के तंतु निर्माण कर उसी में निवास करती है, उसी तरह से इस परमात्मा ने सृष्टि को अपने में से ही बनाया है और उसी में वास करा रहा है | इसलिए चराचर सृष्टि के कण कण में परमात्मा है |
जीवनका आधार : जीवन का आधार चेतना है| जड़ नहीं है| ठहराव या जड़ता तो जीवन का अंत हैं| जड़ से चेतन बनते आजतक नहीं देखा गया| डार्विन का विकासवाद और मिलर की जीवनिर्माण की परिकल्पना के प्रकाश में किये गए ग्लास ट्यूब जैसे प्रयोगों का तो आधार ही मित्थ्या होने से उसके निष्कर्ष भी विपरीत हैं| इस प्रयोग में पक्के हवाबंद कांच की नली में मीथेन और फफूंद की प्रक्रिया से जीव निर्माण हुआ ऐसा देखा गया| इससे अनुमान लगाया गया की जब वह नली पक्की हवाबंद है तो उसमें जीवात्मा जा नहीं सकता| निष्कर्ष यह निकाला गया कि जड़ पदार्थों की रासायनिक प्रक्रियाओं से ही जीव पैदा हो जाता है| वास्तव में जिनका ज्ञान केवल पंचमहाभूतोंतक ही सीमित है उन्हें ऐसा लगना स्वाभाविक है| लेकिन जो यह जानते हैं की मन, बुद्धि हवा से बहुत सूक्ष्म होते हैं और जीवात्मा तो उनसे भी कहीं सूक्ष्म होता है उनके लिए इस प्रयोग का मिथ्यात्व समझना कठिन नहीं है| और भी एक बात है जब लोगों ने कांच के अन्दर कुछ होते देखा तो इसका अर्थ है कि प्रकाश की किरणें अन्दर बाहर आ-जा रहीं थीं| याने हवा से सूक्ष्म कोई भी पदार्थ नली के अन्दर भी जा सकता है और बाहर भी आ सकता है| जीवात्मा ऐसे ही नली के अन्दर सहज ही प्रवेश कर सकता है| श्रीमद्भगवद्गीता में (३-४२) में कहा है –
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इंद्रियाणि पराण्याहू इन्द्रियेभ्य परं मन | मनसस्तु परा बुद्धिर्योबुद्धे परस्तस्तु स: ||  
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== जीवन का आधार ==
अर्थ : पंचमहाभूतों के सूक्ष्मरूप जो इन्द्रिय हैं उनसे मन सूक्ष्म है| मनसे बुद्धि और आत्मतत्व याने जीवात्मा तो बुद्धि से भी अत्यंत सूक्ष्म होता है|
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जीवन का आधार चेतना है, जड़ नहीं | ठहराव या जड़ता तो जीवन का अंत हैं | जड़ से चेतन बनते आज तक नहीं देखा गया | डार्विन का विकासवाद और मिलर की जीवनिर्माण की परिकल्पना के प्रकाश में किये गए ग्लास ट्यूब जैसे प्रयोगों का तो आधार ही मिथ्या होने से उसके निष्कर्ष भी विपरीत हैं | ग्लास ट्यूब प्रयोग में पक्के हवाबंद कांच की नली में मीथेन और फफूंद की प्रक्रिया से जीव निर्माण हुआ ऐसा देखा गया | इससे अनुमान लगाया गया कि जब वह नली पक्की हवाबंद है तो उसमें जीवात्मा जा नहीं सकता | निष्कर्ष यह निकाला गया कि जड़ पदार्थों की रासायनिक प्रक्रियाओं से ही जीव पैदा हो जाता है | वास्तव में जिनका ज्ञान केवल पंच महाभूतों तक ही सीमित है उन्हें ऐसा लगना स्वाभाविक है | लेकिन जो यह जानते हैं कि मन, बुद्धि हवा से बहुत सूक्ष्म होते हैं और जीवात्मा तो उनसे भी कहीं सूक्ष्म होता है उनके लिए इस प्रयोग का मिथ्यात्व समझना कठिन नहीं है | एक और भी बात है कि जब लोगों ने कांच के अन्दर कुछ होते देखा तो इसका अर्थ है कि प्रकाश की किरणें अन्दर बाहर आ-जा रहीं थीं | याने हवा से सूक्ष्म कोई भी पदार्थ नली के अन्दर भी जा सकता है और बाहर भी आ सकता है | जीवात्मा ऐसे ही नली के अन्दर सहज ही प्रवेश कर सकता है |  
सृष्टि निर्माण काल : श्रीमद्भगवद्गीता में ८-१७,१८ में कहा है –  
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श्रीमद्भगवद्गीता में (३-४२) में कहा है – इंद्रियाणि पराण्याहू इन्द्रियेभ्य परं मन | मनसस्तु परा बुद्धिर्योबुद्धे परस्तस्तु स: ||  
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अर्थ : पंचमहाभूतों के सूक्ष्मरूप जो इन्द्रिय हैं उनसे मन सूक्ष्म है | मनसे बुद्धि और आत्मतत्व याने जीवात्मा तो बुद्धि से भी अत्यंत सूक्ष्म होता है |  
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== सृष्टि निर्माण काल ==
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श्रीमद्भगवद्गीता में ८-१७,१८ में कहा है –  
 
सहस्त्रयुगपर्यन्तमहर्यद्ब्रह्मणो विदु: | रात्रिं युगसहस्त्रान्तान् ते अहोरात्रविदो जना: || अव्यक्ताद्व्यक्तय: सर्वा: प्रभावंत्यहरागमे | रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंजके ||
 
सहस्त्रयुगपर्यन्तमहर्यद्ब्रह्मणो विदु: | रात्रिं युगसहस्त्रान्तान् ते अहोरात्रविदो जना: || अव्यक्ताद्व्यक्तय: सर्वा: प्रभावंत्यहरागमे | रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंजके ||
 
अर्थ : ब्रह्माजीका एक दिन भी और एक रात भी एक हजार चतुर्युगों की होती है| ब्रह्माजी के दिन के प्रारम्भ में ब्रह्माजीमें से हीचराचर के सभी अस्तित्व उत्पन्न होते हैं और ब्रह्माजीकी रात्री के प्रारम्भ में ब्रह्माजीमें ही विलीन हो जाते हैं| इस एक चक्र के काल को कल्प कहते हैं| आगे हम जानते हैं की एक चतुर्युग ४३,३२,००० वर्ष का होता है| इसमें समझने की बात इतनी ही है की सृष्टि का निर्माण यह अति प्राचीन घटना है| ब्रह्माजी के दिन के साथ ही कालगणना शुरू होती है| और ब्रह्माजी की रात के साथ समाप्त होती है| वर्त्तमान में २७वीं चतुर्युगी का कलियुग चल रहा है| कलियुग के ५१०० से अधिक वर्ष हो चुके हैं|   
 
अर्थ : ब्रह्माजीका एक दिन भी और एक रात भी एक हजार चतुर्युगों की होती है| ब्रह्माजी के दिन के प्रारम्भ में ब्रह्माजीमें से हीचराचर के सभी अस्तित्व उत्पन्न होते हैं और ब्रह्माजीकी रात्री के प्रारम्भ में ब्रह्माजीमें ही विलीन हो जाते हैं| इस एक चक्र के काल को कल्प कहते हैं| आगे हम जानते हैं की एक चतुर्युग ४३,३२,००० वर्ष का होता है| इसमें समझने की बात इतनी ही है की सृष्टि का निर्माण यह अति प्राचीन घटना है| ब्रह्माजी के दिन के साथ ही कालगणना शुरू होती है| और ब्रह्माजी की रात के साथ समाप्त होती है| वर्त्तमान में २७वीं चतुर्युगी का कलियुग चल रहा है| कलियुग के ५१०० से अधिक वर्ष हो चुके हैं|   
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