पश्चिमी जीवनव्यवस्था के जितने भी आयाम हैं वे सब हिंसक हैं । इसी लिये वह आसुरी समाज है । भारत में असुर नहीं है ऐसा तो नहीं है । युगों से असुर रहे ही हैं और प्रभावी भी रहे हैं परन्तु भारत की मान्य व्यवस्था आसुरी नहीं है। भारत हमेशा अहिंसक समाजव्यवस्था का पक्षधर रहा है। आज भारत का अहिंसक समाज हिंसा से दृषित हो गया है यह सत्य है । परन्तु वह अस्वास्थ्य है, बिमारी है, व्याधि और उपाधि है, स्वभाव नहीं है । इसलिये इस रोग से मुक्त होना है। भारत के प्रदीर्घ इतिहास में पाँचसौ वर्षों से लगी यह बिमारी बहत लम्बी नहीं कही जा सकती तथापि उपचार की दृष्टि से पर्याप्त रूप से कष्टसाध्य है। यह परमात्मा की कृपा माननी चाहिये कि अभी यह बिमारी असाध्य या प्राणघातक नहीं बनी है। परन्तु इसे हल्के से भी नहीं लेना चाहिये। इससे मुक्त हुए बिना न हमारा राष्ट्रजीवन ठीक हो सकता है न विश्व भारत से लाभान्वित हो सकता है। | पश्चिमी जीवनव्यवस्था के जितने भी आयाम हैं वे सब हिंसक हैं । इसी लिये वह आसुरी समाज है । भारत में असुर नहीं है ऐसा तो नहीं है । युगों से असुर रहे ही हैं और प्रभावी भी रहे हैं परन्तु भारत की मान्य व्यवस्था आसुरी नहीं है। भारत हमेशा अहिंसक समाजव्यवस्था का पक्षधर रहा है। आज भारत का अहिंसक समाज हिंसा से दृषित हो गया है यह सत्य है । परन्तु वह अस्वास्थ्य है, बिमारी है, व्याधि और उपाधि है, स्वभाव नहीं है । इसलिये इस रोग से मुक्त होना है। भारत के प्रदीर्घ इतिहास में पाँचसौ वर्षों से लगी यह बिमारी बहत लम्बी नहीं कही जा सकती तथापि उपचार की दृष्टि से पर्याप्त रूप से कष्टसाध्य है। यह परमात्मा की कृपा माननी चाहिये कि अभी यह बिमारी असाध्य या प्राणघातक नहीं बनी है। परन्तु इसे हल्के से भी नहीं लेना चाहिये। इससे मुक्त हुए बिना न हमारा राष्ट्रजीवन ठीक हो सकता है न विश्व भारत से लाभान्वित हो सकता है। |