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कभी कभी बालबुद्धि लोग भगवान कृष्ण द्वारा दिये गये युद्ध करने के परामर्श को हिंसा मानते हैं । महाभारत के युद्ध में अठारह अक्षौहिणी सेना का विनाश हआ। इतना विनाशक युद्ध करवाने वाले को अहिंसक कैसे कहा जा सकता है ? परन्तु भगवान कृष्ण को तो योगेश्वर भी कहा गया है। योगेश्वर स्वयं हिंसक कैसे हो सकते हैं ? महाभारत का युद्ध धर्म की रक्षा के लिये किया गया था इसलिये वह हिंसापूर्ण कृत्य नहीं था । हाँ, दुर्योधन के लिये वह हिंसा पूर्ण कृत्य था क्योंकि वह स्वार्थ से प्रेरित था।
 
कभी कभी बालबुद्धि लोग भगवान कृष्ण द्वारा दिये गये युद्ध करने के परामर्श को हिंसा मानते हैं । महाभारत के युद्ध में अठारह अक्षौहिणी सेना का विनाश हआ। इतना विनाशक युद्ध करवाने वाले को अहिंसक कैसे कहा जा सकता है ? परन्तु भगवान कृष्ण को तो योगेश्वर भी कहा गया है। योगेश्वर स्वयं हिंसक कैसे हो सकते हैं ? महाभारत का युद्ध धर्म की रक्षा के लिये किया गया था इसलिये वह हिंसापूर्ण कृत्य नहीं था । हाँ, दुर्योधन के लिये वह हिंसा पूर्ण कृत्य था क्योंकि वह स्वार्थ से प्रेरित था।
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अन्याय, अनीति, स्वार्थ से प्रेरित ऐसा कोई भी कार्य हिंसा है। जो किसी भी रूप में दूसरे का अधिकार छीनता है अहित करता है वह हिंसापूर्ण कृत्य है। इस दृष्टि से वर्तमान अर्थव्यवस्था पराकोटि की हिंसक व्यवस्था है। पर्यावरण का प्रदूषण करने वाला व्यवहार और व्यवस्था - आचरण और व्यवसाय - हिंसा है। प्राणियों के लिये जीवन दूभर बनाने वाला कृत्य हिंसा है। उदाहरण के लिये पक्की सडक पर पक्षी दाना नहीं चुग सकते और पशुओं के पैरों के खुर खराब होते हैं। प्रदूषण के कारण पक्षी, प्लास्टिक के कारण गायें मरती हैं। यह हिंसा है। बीजों को उत्पादन के लिये अक्षम बनाना हिंसा है । खाद्य पदार्थों और औषधियों में मिलावट करना हिंसा है। दूसरों को बेरोजगार बनाना हिंसा है । अर्थात् आज की समृद्धि हिंसक समृद्धि है। इस समृद्धि को उचित बनाने वाला विचार हिंसक है। उसके अनुकूल शिक्षा देना हिंसक शिक्षा है। इसी के पक्ष में न्याय देना हिंसा है। योगशास्त्र में अहिंसा का परिणाम बताते हुए कहा है, 'अहिंसा प्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैरत्यागः।' अर्थात् अहिंसा में प्रतिष्ठा होने से उसके आसपास का वै शान्त हो जाता है। अर्थात् जो व्यक्ति अहिंसक है उसकी उपस्थिति में एक दूसरे के
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अन्याय, अनीति, स्वार्थ से प्रेरित ऐसा कोई भी कार्य हिंसा है। जो किसी भी रूप में दूसरे का अधिकार छीनता है अहित करता है वह हिंसापूर्ण कृत्य है। इस दृष्टि से वर्तमान अर्थव्यवस्था पराकोटि की हिंसक व्यवस्था है। पर्यावरण का प्रदूषण करने वाला व्यवहार और व्यवस्था - आचरण और व्यवसाय - हिंसा है। प्राणियों के लिये जीवन दूभर बनाने वाला कृत्य हिंसा है। उदाहरण के लिये पक्की सडक पर पक्षी दाना नहीं चुग सकते और पशुओं के पैरों के खुर खराब होते हैं। प्रदूषण के कारण पक्षी, प्लास्टिक के कारण गायें मरती हैं। यह हिंसा है। बीजों को उत्पादन के लिये अक्षम बनाना हिंसा है । खाद्य पदार्थों और औषधियों में मिलावट करना हिंसा है। दूसरों को बेरोजगार बनाना हिंसा है । अर्थात् आज की समृद्धि हिंसक समृद्धि है। इस समृद्धि को उचित बनाने वाला विचार हिंसक है। उसके अनुकूल शिक्षा देना हिंसक शिक्षा है। इसी के पक्ष में न्याय देना हिंसा है। योगशास्त्र में अहिंसा का परिणाम बताते हुए कहा है, 'अहिंसा प्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैरत्यागः।' अर्थात् अहिंसा में प्रतिष्ठा होने से उसके आसपास का वै शान्त हो जाता है। अर्थात् जो व्यक्ति अहिंसक है उसकी उपस्थिति में एक दूसरे के स्वाभाविक शत्रु भी अपना वैर छोड़ देते हैं। हम ऋषियों के आश्रम के चित्र देखते हैं तब अनेक बार देखा है कि आश्रम के जलाशय में शेर और हिरन साथ साथ पानी पीते हैं। यह कल्पना नहीं है, ऋषि की अहिंसा का यह प्रभाव है। अर्थात् अहिंसक समाज में सुरक्षा, आश्वस्ति, सहृदयता, सज्जनता अपने आप पनपते हैं। हिंसक वातावरण में भय, चिन्ता, तनाव, असुरक्षा आदि बढते जाते हैं। हिंसक समाज में जेल, न्यायालय, अस्पताल, पुलीस आदि की बहुतायत होती है।
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पश्चिमी जीवनव्यवस्था के जितने भी आयाम हैं वे सब हिंसक हैं । इसी लिये वह आसुरी समाज है । भारत में असुर नहीं है ऐसा तो नहीं है । युगों से असुर रहे ही हैं और प्रभावी भी रहे हैं परन्तु भारत की मान्य व्यवस्था आसुरी नहीं है। भारत हमेशा अहिंसक समाजव्यवस्था का पक्षधर रहा है। आज भारत का अहिंसक समाज हिंसा से दृषित हो गया है यह सत्य है । परन्तु वह अस्वास्थ्य है, बिमारी है, व्याधि और उपाधि है, स्वभाव नहीं है । इसलिये इस रोग से मुक्त होना है। भारत के प्रदीर्घ इतिहास में पाँचसौ वर्षों से लगी यह बिमारी बहत लम्बी नहीं कही जा सकती तथापि उपचार की दृष्टि से पर्याप्त रूप से कष्टसाध्य है। यह परमात्मा की कृपा माननी चाहिये कि अभी यह बिमारी असाध्य या प्राणघातक नहीं बनी है। परन्तु इसे हल्के से भी नहीं लेना चाहिये। इससे मुक्त हुए बिना न हमारा राष्ट्रजीवन ठीक हो सकता है न विश्व भारत से लाभान्वित हो सकता है।
    
==References==
 
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